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ताज़ा रचनाएं
प्रदीप श्रीवास्तव की कहानी – सुमन खंडेलवाल
उस सुनसान और दुनिया के लिए डरावने, भूत-प्रेतों से भरे मनहूस रास्ते पर निकलना मुझे किसी शांत सुन्दर उपवन में टहलने जैसा लगता था।...
अरूणा सब्बरवाल की कहानी – आख़िरी धागा
रात भर किन- मिन , किन-मिन ,बारिश ने उसे पल भर भी सोने नहीं दिया...सुबह हो चुकी थी l बाहर अभी भी अँधेरा था…उसने...
संपादकीय – अब तो कुत्तों के दिन फिर गये…!
फ़िल्मों में एक संवाद और भी बार-बार सुनने को मिलता है - “हर कुत्ते के दिन बदलते हैं!” मुझे कुछ दिन पहले ही इस...
प्रदीप श्रीवास्तव की कहानी – सुमन खंडेलवाल
उस सुनसान और दुनिया के लिए डरावने, भूत-प्रेतों से भरे मनहूस रास्ते पर निकलना मुझे किसी शांत सुन्दर उपवन में टहलने जैसा लगता था।...
दिनेश कुमार माली की कलम से – नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता...
समीक्ष्य कृति : बेनज़ीर-दरिया किनारे ख्वाब लेखक : प्रदीप श्रीवास्तव प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह ,नेहरू नगर, कानपुर-२०८०१२ २४, लॉकवुड ड्राइव,प्रिंसटन,न्यूजर्सी,यू,एस.ए.
“बेनज़ीर : दरिया किनारे...
गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’ का लेख – हर वोट अपने...
सभी जानते ही नहीं, मानते भी हैं कि, किसी भी तरह की प्रतियोगिता हो या चुनाव, वहाँ मतदान के माध्यम से निर्णय की स्थिति...