कछुए और खरगोश की कहानी हम सबने सुनी है। यह जानना हैरान करता है कि सरपट दौड़ने वाला खरगोश खिसक-खिसक कर चलने वाले कछुए से हार गया। और हार भी ऐसी-वैसी नहीं, आधा रास्ता तय कर लेने के बाद पैदा हुए ओवर कॉन्फिडेंस ने लगभग तय हो चुकी जीत को हार में बदल दिया। यानी ज्यादा तेज गति, ओवर कॉन्फिडेंस जगाती है जबकि सतत निरंतर प्रयास सफलता की गारंटी होते हैं।
हर व्यक्ति अपनी तरक्की चाहता है। अपने लिए मान-सम्मान चाहता है। इसके लिए वह अतिरिक्त मेहनत भी करता है। निश्चित ही आप भी ऐसा कर रहे हैं। यह भी संभव है कि आप अपने किसी प्रियजन को बढ़त के लिए दिन-रात एक करते हुए देख रहे हों। ऐसे में आपके लिए इस बात को समझना आसान होगा कि सुपरफास्ट स्पीड से दौड़ना जल्दी ही थका देगा। आप हांफने लगेंगे। जितनी तेजी से आप दौड़ रहे हैं, उसी अनुपात में परिणाम ना मिलने पर थकान होने लगेगी, डिप्रेशन भी हो सकता है। इसीलिए मंज़िल पर पहुँचने से पहले खुदको थकाना नहीं है। हाँफ कर बैठना भी नहीं है बल्कि आगे बढ़ने की योजना इस तरह बनानी है कि बोरियत, ऊब या हार जाने के डर से उलट, सफलता की राह पर कदम बढ़ाते हुए आपको अपने निर्णय पर फक्र हो। अपने प्रयासों के सफल होने का यक़ीन हो और जल्दी ही आप अपनी मंज़िल तक पहुंच सकें। इसके लिए पूरी प्लानिंग के साथ आगे बढ़ते रहना, सफलता सुनिश्चित करता करेगा।
युवा और चुस्त-दुरुस्त लोग भी ट्रेडमिल पर कुछ ही देर के लिए तेज गति में दौड़ने का हौसला कर पाते हैं जबकि एक निश्चित गति में लगातार चलते हुए किसी भी उम्र का स्वस्थ व्यक्ति देर तक व्यायाम करता रह सकता है। आप खुदको इसी दूसरी कैटिगरी में रखें। यही रणनीति कारगर साबित होगी। अन्यथा जितनी तेजी से उपर उठते हुए अपनी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाएंगे, जल्दी ही थकान आप पर हावी हो जाएगी। और खुदको ताजा दम करने के लिए जब कुछ देर का विश्राम करने के लिए रूकोगे, इसी समय आपके प्रतिद्वंदी आपसे आगे निकल जाएंगे।
जीवन एक रास्ता है। इस राह पर चलते हुए सब लोग अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। यहाँ आप किसी का साथ लेने के लिए रूके, या थकान मिटाने को कुछ देर लिए ठहर गए, इतनी देर में भी आपके आसपास के लोग, आपके संगी-साथी आपको पीछे छोड़कर, आगे निकल जाएंगे। यह इंसान का इजाद किया फलसफा नहीं है। यह प्रकृति का नियम है। मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि हम किसी की मदद ना करें। दरअसल हर तरह की स्थिति से सामंजस्य बैठा कर आगे बढ़ते रहना होता है।
कभी-कभी हिन्दी फिल्मों के गीत भी गुनगुनाया करें। पूरा गीत याद ना हो तब भी किसी गीत का मुखड़ा या अंतरा ही गुनगुना लें। वह भी नहीं तो सिर्फ एक पंक्ति ही पर्याप्त रहेगी। अपने हौंसले बुलंद करने के लिए एक गीत की पहली पंक्ति, ‘कदम-कदम बढाए जा…’ गुनगुनाने की आदत ड़ाल लें। जब-जब थकान हो, रूकने का मन करे, इस पंक्ति को सस्वर गाएं। यह आपको जोश से भर देगी।
बहुत सार्थक लेखन हे बहन। बहुत बहुत बधाई आप को। आज ऐसे आलेखों की बहुत आवश्कता है। बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएँ।
आपकी सार्थक टिप्पणी के लिए आभार आशा जी।
आपने सही कहा शैली जी।
बहुत सार्थक लेखन है बहन। बहुत बहुत बधाई आप को। आज ऐसे आलेखों की बहुत आवश्कता है। बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएँ।
धन्यवाद आशा जी।
Very motivating. Thank you for writing this!
Thanks Shivani betu.
Very motivating….. congratulations to you Vandana ji and all the best…
Thanks Ramya ji.
Bahut khoob
धन्यवाद डॉ चंद्र त्रिखा जी।