अशोक व्यास की दो ग़ज़लें
किसी सपने को जगाया जाये
नदी ये ज़िंदगी की रुक रही है
बेवजह लग रही हर बात अगर
कहाँ हूँ, क्यूँ हूँ, ये ख़बर पाने
सैलाब थम तो गया आंसू का
बेबसी का लॉकेट सा बनवाया है
सिसकते रंगों का दर्द नकार दिया
शिष्ट दिखते रहने की ज़िद लेकर हमने
लपटें उठा गया जिनका ग़ुस्सा किताबों तक
ज़िंदा बचे रहे जो मर जाने का डर लेकर
धुएँ की लिखाई को हम पढ़ नहीं पाए पर
हर रास्ते को रोशन करने निकल पड़े हम
अशोक व्यास
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