युगों से गरजता रहा है अँधेरा
युगों से दिये हम जलाते रहे हैं।
पनपते रहे हैं सदा से असुर दल
सदा से उन्हें हम मिटाते रहे हैं।
ज़माने ने देखा सदा यह नज़ारा
अहंकार हुंकार भरता रहा है,
मगर हो तिमिर चाहे बलवान जितना
सदा एक दीपक से डरता रहा है;
बढ़ा है सितम हर ज़माने में यूँ ही
मगर लोग परचम उठाते रहे हैं।
उजाले से ऐसे करें दोस्ती हम
कभी हाथ से उसका दामन न छूटे,
चले अनवरत सिलसिला यूँ सृजन का
कि अब फिर कभी ज्योति की लय न टूटे;
किसी के हृदय में बनीं दूरियाँ गर
तो हम हाथ बढ़कर मिलाते रहे हैं।
दीप पर्व की हार्दिक मंगलकामनाएँ🌹🌹🌹🌹🌹
वशिष्ठ अनूप,
अध्यक्ष हिन्दी विभाग,
बी एच यू,वाराणसी।
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