संस्कार दो न केवल
सबका सम्मान करने का
बल्कि अपना आत्मसम्मान
सुरक्षित रखने का भी।
संस्कार दो न केवल
बड़ों की सेवा करने का
बल्कि उनकी गलत बात को
गलत कहने का भी।
संस्कार दो परिवार की मान मर्यादा
को बनाए रखने का
पर साथ साथ अन्याय से लड़ने का भी
सच के लिए अपनी आवाज बुलंद करने का भी।
संस्कार दो परिवार को जोड़े रखने का
पर खुद को टूटने ना देने का भी
मजबूती से खड़े रहने का भी।
बेटियां नींव होती हैं दो परिवारों की
उसका सशक्त होना ही परिचायक है
कि निर्माण होगा उसे पर
इक मजबूत इमारत का।
दीपमाला गर्ग
एमफिल (अर्थशास्त्र),एम. एड., एम. ए. ( अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, हिंदी)
नेट (एजुकेशन)
पता: 105/1, बुद्धा कॉलोनी सीही गेट फरीदाबाद- 121004
संप्रति: सहायक प्राचार्या
सेंट ल्यूक शिक्षा महाविद्यालय
गांव चांदपुर, बल्लभगढ़।
अच्छी कविता है।