देखो चुनाव आ रहे, नेता जोड़े हाथ ।
ढोंग रचायें नित नया, तिलक लगाये माथ।।
चुनावी टर्र टर्र से, जनता है बेहाल ।
भोपू कही चीख रहा ,कहीं बँटता माल ।।
घर घर नेता आ रहे ,पाँव लगाये माथ ।
तुम मेरे परम पिता , देदो अपना साथ ।।
कोई भी नेता बने ,क्या पड़ता है फ़र्क़ ।
पीते हैं हँस घोल कर ,देश का सभी अर्थ ।।
आवश्यक ये भी नही , नेता को हो ज्ञान ।
मुख में शहद बग़ल छुरी , लेते अपना मान ।।
करनी कथनी में सदा ,करते हैं ये भेद ।
करें काम पूरे नही ,हँस जतलाते खेद ।।
सावित्री जी !अंतिम दो दोहों के अतिरिक्त सभी में लय दोष है।