Sunday, October 27, 2024
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वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु से श्याम सुशील की बातचीत

प्रकाश मनु लीक छोड़कर चलने वाले विलक्षण साहित्यकार हैं। बड़ों के लिए तो उन्होंने साहित्य की प्रायः हर विधा में जमकर लिखा ही है, बच्चों के लिए भी भरपूर लिखा। कुछ अरसा पहले उनके कठिन संघर्षों भरे जीवन सफर, थोड़ी अलहदा शख्सियत और विविध रुचियों को लेकर बातचीत हुई। मनु जी ने बहुत खुलकर मेरे सवालों के जवाब दिए, जिनमें बीच-बीच में उनकी खरी और खुरदरी शख्सियत की एक झलक भी दिखाई पड़ जाती है। जैसे सीधे सवाल, वैसे ही सीधे जवाब। बड़े संक्षिप्त पर गहरे भी, जिसमें जीवन के प्रति उनका आशावादी नजरिया है तो साहित्य के प्रति उनकी चिंताएँ और सरोकार भी। साथ ही अपने ढंग से कुछ करने की जिद और उत्साह भी।

प्रकाश मनु जी के साथ यह अनोखा इंटरव्यू थोड़े संक्षिप्त रूप में यहाँ दे रहे हैं। आशा है, इसे पढ़कर पाठक उनके जीवन और विचारों को जानने क साथ-साथ, खुद उनकी भी कुछ अलग छवियाँ देख पाएँगे।

श्याम सुशील – अपने जन्मदिन पर किस तरह की यादें मन में कौंधती हैं?
प्रकाश मनु – श्याम जी, बचपन में जन्मदिन मनाने की परंपरा घर में न थी। जब जन्मदिन की तारीख ही ठीक न लिखी हो, तो उसे मनाने का उत्साह भी कैसा? यों भी हमारे पुराने पारंपरिक भारतीय परिवारों में मुझे याद नहीं पड़ता, ऐसी कोई परंपरा थी। पर अगली पीढ़ी में हमारे देखते-देखते यह चल निकला।…बाद में भी बच्चे बड़े हुए तो उन्होंने ही मम्मी या पापा का जन्मदिन मनाया। हालाँकि बहुत सादा ढंग से। जन्मदिन पर सुनीता जी सुबह-सुबह हलवा बना लेती हैं और घर के मंदिर के आगे खड़े होकर हम लोग हाथ जोड़ लेते हैं। उस स्वादिष्ट हलवे को खाते हुए लगता है, दुनिया में इससे बड़ा कोई सुख, स्वाद और आनंद तो हो नहीं सकता। 
जिन दिनों ‘नंदन’ पत्रिका में था तो हम लोग मिलकर सभी साथियों का जन्मदिन मनाते थे। मेरा जन्मदिन मनाना भी मित्रों को याद रहता था। तब भी कोशिश होती थी कि बाहर से कुछ मँगाने की बजाय मैं सुनीता जी के हाथ की बनी पूरियाँ और सूखे आलू की भाजी मित्रों के लिए लेकर जाऊँ। सब बड़े शौक से मिल-जुलकर खाते थे। ये बड़े आनंद के क्षण होते थे, जिनमें खूब अच्छी गप्पाष्टक भी होती थी और हम लोग खूब हँसते-कहकहाते थे। वे आनंदपूर्ण क्षण आज भी याद आते हैं। उन्हीं दिनों मैंने मन ही मन यह संकल्प करना शुरू किया कि इस वर्ष मैं ये-ये काम पूरे करूँगा। इस बहाने बहुत से काम हो जाते थे और बहुत खुशी मिलती थी। यह नियम तो मेरा आज भी चल रहा है। इस बार जन्मदिन पर मैंने सोचा है कि मैं बरसों से चलते आ रहे अपने अधूरे काम जल्दी से जल्दी पूरे करूँगा, ताकि इसी साल वे पाठकों के आगे आ सकें।
श्याम सुशील – आपने बचपन में क्या सपने देखे थे अपने बारे में?
प्रकाश मनु – बचपन से ही श्याम जी, लेखक होना मुझे अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना लगता था। उन दिनों भी मेरे हीरो कहें या नायक, साहित्यकार ही थे और वे आज भी हैं। मुझे लगता था, परमात्मा ने इस संसार में अपने बाद सबसे बड़ा साहित्यकार को ही बनाया है। बड़े से बड़ा नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, धनपति, अफसर, इंजीनियर, डाक्टर, किसी बड़ी से बड़ी संस्था का अध्यक्ष या किसी जगविख्यात कंपनी का सर्वेसर्वा, ये सब मुझे लेखक या साहित्यकार के आगे हेय लगते थे। आज भी लगते हैं। मेरी बनाई हुई दुनिया के सूरज, चाँद, सितारे तो लेखक ही हैं। उनसे बड़ा वहाँ कोई नहीं। कोई बड़े से बड़ा कुर्सीनशीन आए तो कोई जरूरी नहीं कि मैं उसके लिए खड़ा होऊँ। पर जिंदगी भर गरीबी, बेबसी और अभावों के बीच रहकर लिखने वाले किसी साहित्यकार के आगे आदर और विनम्रता से झुकने पर लगता है, मैंने स्वर्ग का सुख पा लिया।…हालाँकि साहित्यकार भी वही आकर्षित करते हैं, जिनमें स्वाभिमान और खुद्दारी हो और जिन्होंने सफलता के पीछे दौड़ने की बजाय, शब्दों की साधना में, तप में खुद को खपाया है, इस दुनिया के लाखों मामूली लोगों के सुख-दुख और तकलीफों से एकाकार होकर लिखा है। 
श्याम सुशील – बचपन में आपका रोल मॉडल कौन था?
प्रकाश मनु – श्याम जी, बचपन में मेरे रोल मॉडल साहित्यकार ही थे। गद्य में रोल मॉडल प्रेमचंद थे, तो कविता में मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, रामनरेश त्रिपाठी और निराला की मानस छवियाँ मुझे सबसे अधिक मोहती थीं। इन्हें पढ़कर ही मन में अपने लेखक होने की छवि बनी। आँखों में एक सपना जागा और जाने-अनजाने मैं उसे पोसने लगा।…आज अगर कुछ शब्द जोड़ लेता हूँ तो उसका श्रेय इन्हीं बड़े कद्दावर लेखकों को है। हालाँकि बाद में और लेखकों को पढ़ा तो मन में और-और साहित्यकारों की भी ऐसी ही मोहक मानस छवियाँ बनने लगीं, जो मुझे कलम पकड़कर शब्दों की इस अनोखी दुनिया में आने के लिए आकर्षित करने लगीं। 
श्याम सुशील – आपके लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशी क्या है?
प्रकाश मनु – किसी को थोड़ी सी खुशी देकर मिलने वाली खुशी मुझे इस दुनिया की सबसे बड़ी खुशी लगती है।
श्याम सुशील – कौन सी चीज आपके अंदर जोश भर देती है?
प्रकाश मनु – किसी ऐसे पीड़ित जन के साथ खड़े होकर लड़ना, जो बहुत उपेक्षित है, तकलीफें झेल रहा है और जिसकी बात कहने वाला कोई नहीं है, मुझमें सबसे ज्यादा जोश भर देता है। मुझे लगता है, जिसका सब साथ छोड़ दें, लेखक या साहित्यकार का साथ उसे जरूर मिलना चाहिए। उसके हक में लड़ते हुए या अपनी किसी रचना में उसकी तकलीफ को उकेरते हुए, मन में बड़ा जोश उमड़ता है और महसूस होता है कि मैं सच्चाई के साथ खड़ा हूँ। यानी एक लेखक के रूप में सार्थक जीवन जी रहा हूँ। इसी तरह महाराणा प्रताप, शिवाजी, झाँसी की रानी की लड़ाइयों और भारत के स्वाधीनता संघर्ष में क्रांतिकारियों के उत्सर्ग को याद करते हुए, या उनके बारे में लिखते हुए मन में बड़ा जोश उमड़ता है।
श्याम सुशील – आपकी जिंदगी में कोई ऐसी बात जिसका आपको अफसोस है?
प्रकाश मनु – हाँ, माँ के अंतिम दिनों की मुझे अकसर याद आती है, जब मैं उनके निकट नहीं था। मैं हिंदुस्तान टाइम्स में था और कुछ दिन की छुट्टी लेकर उनसे मिलने गया था। तब माँ कुछ दुखी लगीं, पर अपनी व्यथा उन्होंने मुझसे नहीं कही। पर जब मैं चलने लगा, उन्होंने एक-दो दिन और रुकने का अनुरोध किया। मैंने कहा कि माँ, अभी तो मुझे जाना है, पर मैं जल्दी आऊँगा। इस पर माँ के मुँह से निकला, “पुत्तर, फिर मैं तैनूँ नईं मिलणा।” मैं चौंका, फिर भी इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया। उन्हें आश्वासन देकर कि जल्दी ही फिर से आऊँगा, मैं दिल्ली चला आया। पर मेरे वहाँ पहुँचने के दो-तीन दिन बाद ही बड़े भाईसाहब का फोन आया कि माँ को ब्रेन हैमरेज हुआ है, एक तरफ का शरीर लकवाग्रस्त हो गया है। ठीक से बोल भी नहीं पातीं। 
मैं दौड़ा-दौड़ा आगरा पहुँचा, जहाँ वे अस्पताल में दाखिल थीं। तब माँ ने मुझे देखते ही बहुत जोर लगाकर अपनी अस्पष्ट आवाज में कहा, “पुत्तर, मैं तैनूँ कहया सी ना। फिर मैं तैनूँ नईं मिलणा।” सुनकर मुझे रोना आ गया। माँ कोई बीस-पचीस दिन चारपाई पर रहीं। अचेत प्रायः। बस, बीच-बीच में होश आता तो कुछ बुदबुदातीं।…और फिर वे चली गईं। जब वे अचेत थीं, मैं पूरे समय उनके पास ही बैठा रहा और पछताता रहा कि जब उन्होंने एक-दो दिन रुकने के लिए कहा था तो मैं उनके पास रुका क्यों नहीं! यह पछतावा अब भी गया नहीं है और मन को लगातार विकल करता है।

श्याम सुशील – इस दुनिया में सबसे अच्छी चीज आपको क्या लगती है?
प्रकाश मनु – मुझे दुनिया में सीधे-सरल और बेबनाव लोग सबसे अच्छे लगते हैं। उनमें इनसानियत की खुशबू देखता हूँ तो मन खिल जाता है। लगता है, इस दुनिया में इससे अनमोल और बेशकीमती चीज कोई और नहीं हो सकती। इसी तरह दुनिया की बेहतरी के लिए किसी धुन के साथ काम करने वाले, अपने आप में खोए और डूबे हुए लोग मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। इनमें हर चेहरे में मुझे वाल्मीकि नजर आते हैं, कालिदास और टैगोर नजर आते हैं, चंद्रशेखर रमन और जगदीशचंद्र बसु नजर आते हैं।
श्याम सुशील – और सबसे बुरी चीज?
प्रकाश मनु – धोखा, ईर्ष्या, छल-कपट…खुद को बहुत ऊँचा और दूसरों को कीड़े-मकोड़े जैसा समझने का अहंकार, इससे बुरी और हेय चीज मेरे खयाल से इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकती।
श्याम सुशील – आपको सबसे ज्यादा प्यार किस पर आता है?
प्रकाश मनु – किसी भोले-भाले, निश्छल बच्चे पर, जो अपने खेल में लीन है। मुझे यह दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य लगता है।
श्याम सुशील – किस बात पर रोना आता है?
प्रकाश मनु – इस दुनिया की भीड़-भाड़ और धक्का-मुक्की में कोई अकेला, एकदम अकेला छूट जाए और उसके साथ कोई न हो तो आँखें भर-भर आती हैं और रोना निकल पड़ता है। ऐसा चाहे वास्तविक जीवन में हो या किसी कहानी या फिल्म में, हमेशा मेरी यही हालत होती है। जीवन में एक-दो बार अपने भी अकेले छूट गए होने की प्रतीति हुई है और मैं एकांत में फूट-फूटकर रोया हूँ।…इसी तरह याद पड़ता है श्याम जी, कि बचपन में कोई करुण कथा या उपन्यास पढ़ते हुए मुझे बहुत रोना आता था। प्रेमचंद और शरत के उपन्यास पढ़ते हुए, एक हाथ में किताब पकड़े हुए, दूसरे हाथ से लगातार आँसू पोंछता जाता था। ऐसा अब भी होता है। अभी कुछ रोज पहले ही साने गुरुजी का आत्मकथात्मक उपन्यास ‘श्याम की माँ’ पढ़ते हुए निरंतर रोता रहा और पढ़ता रहा। एक या दो सिटिंग में ही मैंने इसे पूरा किया। दुख का आवेग इतना था कि रात सोते समय भी उपन्यास में माँ का दुख-तकलीफें याद आईं और मैं फफककर रो पड़ा। 
सच ही माँ के चरित्र पर लिखा गया यह ऐसा अद्भुत उपन्यास है कि किसी पत्थरदिल को भी दे दो, तो उसके अंदर प्रेम और करुणा का सोता फूट पड़ेगा। शायद हिंदी में ऐसी कोई कृति नहीं। इसे कोई दूसरा नाम देना हो तो ‘मातृपुराण’ कह सकते हैं, जिसे जितनी बार पढ़ो, हृदय निष्पाप होता है। एक महान पुस्तक। जिसने इसे नहीं पढ़ा, शायद वह अभागा ही है, इसलिए कि वह एक बड़े आत्मिक सुख से वंचित ही रह गया। कोई बच्चा इसे पढ़े या बड़ा, जीवन भर कभी भूल नहीं पाएगा, इसलिए कि इसे पढ़ते हुए आँसुओं की गंगा से आपका हृदय निमज्जित होता है।…यह सब मैं आपके सवाल के जवाब में नहीं कह रहा श्याम भाई। बस, कहे बगैर नहीं रह सकता था, इसलिए कह रहा हूँ।
श्याम सुशील – हँसी किस बात पर आती है?
प्रकाश मनु – हास्य की चिर परिचित स्थितियों से तो अकसर नहीं आती। पर जीवन में अचानक ही कभी किसी की कोई लास्यपूर्ण भंगिमा दिख जाती है या बात में से कोई खेल सरीखी बात निकल आती है तो खुद-ब-खुद कहीं छिपी हुई हँसी होंठ पर आकर फुरफुराने लगती है।…या फिर अपनी किसी बेवकूफी और बुद्धूपने पर हँसी आती है और खूब आती है। बचपन में, माँ बताती थीं, कि अगर मैं कभी कोई मजेदार बात सुनता था तो बड़े जोर से ताली बजाकर उछल पड़ता था और फिर एकाएक मेरे होंठों से निकलता था, “ओल्लै…!” वह बच्चा अब भी कहीं मेरे भीतर से गया नहीं है। जिंदगी में कोई भी चीज या बात जो मजेदार हो, उस पर हँसी आती है।
हाँ, पर इसके साथ ही इधर कभी-कभी कुछ और चीजों पर भी हँसी आने लगी है। कोई अपने आपको बहुत भारी तख्ते खाँ समझे, तो भीतर हँसी उमगती है। और मन करता है कि हँसते-हँसते उसे एक रूमाल पेश करूँ कि भैया तख्ते खाँ जी, बड़ी देर से आपकी नाक बह रही है, जरा पोंछ लो!
श्याम सुशील – ऐसी कौन सी चीज है जो आपको दूसरों में नापसंद है?
प्रकाश मनु – स्वार्थ, ओछापन और अहंकार।
श्याम सुशील – आपको अपने बारे में कौन सी चीज नहीं पसंद है?
प्रकाश मनु – ज्यादा भावुकता। मैंने आपको बताया ही है कि कई बार मेरा खुद पर बस नहीं रहता और दुख की कोई घटना या प्रसंग सुनाते हुए मेरे आँसू आ जाते हैं, गला भर आता है और मैं फफकने लगता हूँ।… बाद में यह सोचकर कि इसे कौन समझेगा और ज्यादातर लोग तो, जो संवेदनशील नहीं हैं, उलटे इस पर हँसेंगे ही, मुझे बड़ी शर्म महसूस होती है। बड़ी लज्जा आती है। पर ऐसे भावुक क्षणों में खुद पर काबू पाने की बहुत कोशिशों के बावजूद मैं अपने आपको रोक नहीं पाता। लगता है, मुझमें इतनी भावुकता न होती तो अच्छा था। 
श्याम सुशील – आपका आदर्श वाक्य?
प्रकाश मनु – लोग खुशी की तलाश में पागलों की तरह भाग रहे हैं। पर वे नहीं जानते कि इस दुनिया में खुशी पाने का बस एक ही तरीका है कि दूसरों को खुशी बाँटो तो तुम्हें खुशी मिलेगी। मगर लोग खुशी देना नहीं चाहते, बस पाना चाहते हैं, इसीलिए इतने अधिक दुखी, परेशान और चिड़चिड़े हैं।
श्याम सुशील – दूसरों की नजर में आप किस रूप में दिखना चाहते हैं?
प्रकाश मनु – एक सच्चा, सहृदय और विश्वसनीय इनसान।
श्याम सुशील – आपके लिए कामयाबी क्या है?
प्रकाश मनु – मन में जो कुछ करने की छटपटाहट है, उसे वह पूरा कर लूँ, यही मेरे लिए सबसे बड़ी कामयाबी है। कामयाबी कुछ पाना नहीं, कुछ कर गुजरना है।
श्याम सुशील – आपका मनपसंद तकियाकलाम क्या है?
प्रकाश मनु – ‘तो जैसा कि मैंने अभी बताया…’ या फिर, ‘तो बात असल में यह है कि…!’ मैं जब कभी लोगों से खुलकर बोलता-बतियाता हूँ श्याम जी, तो ये टुकड़े जरूर आते हैं। इन्हीं को आप मेरा मनपसंद तकियाकलाम समझ लें।
श्याम सुशील – ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिससे आप बहुत ज्यादा प्रभावित रहे हैं?
प्रकाश मनु – लोकगीतों के लिए पूरे देश की कई-कई बार परिक्रमा करने, गाँव-गाँव और धूलभरी पगडंडियों पर भटकने वाले लोकगीतों के फकीर देवेंद्र सत्यार्थीजी से मैं सबसे अधिक प्रभावित रहा हूँ। उनका हृदय एक बच्चे की तरह निष्कलुष था। किस्सागोई और बात कहने की उस्तादी ऐसी कि उन्हें किस्सागोई का बादशाह कहा जाता था।…उनका असर अब भी कम नहीं हुआ। शायद जीवन की आखिरी साँस तक मैं उन्हें याद करूँगा। वे ही मेरे गुरु हैं, जिनसे मैंने जीवन और साहित्य का मर्म समझा।
श्याम सुशील – आपके लिए ईश्वर क्या है?
प्रकाश मनु – इस दुनिया में जो कुछ सच्चा है, अच्छा है और बल देने वाला है, उसी को मैं ईश्वर कहता हूँ। सच्ची कहूँ तो ईश्वर मुझे मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे या किसी और पूजास्थल पर नहीं मिला, किसी धर्मग्रंथ में भी उसके दर्शन नहीं हुए। मैंने तो हमेशा मनुष्य में ही उसे देखा है। वह रिक्शेवाला, कुली या मजदूर जो थोड़े पैसों के लिए हाड़तोड़ मेहनत करता है, ईश्वर उसमें नहीं तो और किसमें है? आप किसी मेहनतकश आदमी, या फिर किसी दीन-दुखी और जरूरतमंद के लिए कुछ करें, उससे मीठा बोलें, उसकी मदद करें, इससे बड़ी ईश्वर की पूजा कोई और नहीं है।
श्याम सुशील – क्या आप भाग्य को मानते हैं?
प्रकाश मनु – ऐसा तो नहीं श्याम जी, कि मैं भाग्य को बिल्कुल न मानता होऊँ। पर भाग्य के सहारे जीने वाला आदमी मैं हरगिज नहीं हूँ। मुझे लगता है कि कर्मलीन रहने में ही मेरा बस है। उसके बाद भी जो करना चाहता हूँ, जिसमें मेरा इतना श्रम लग रहा है, वह पूरा न हो या फिर विषमताएँ और उग्र होकर सामने आ जाएँ, तो फिर उसे ईश्वर की इच्छा समझकर समय पर छोड़ देता हूँ और मुक्त हो जाता हूँ। इसे आप चाहें तो भाग्य कह लें। ऐसी हताशाएँ और अंतराल मेरे जीवन में बहुत आए हैं। अब भी आते रहते हैं। पर जल्दी ही उनसे उबरकर मैं फिर से अपनी सामर्थ्य भर काम में लग जाता हूँ। भाग्य के सहारे बैठे रहना मुझे कतई पसंद नहीं है।
श्याम सुशील – आज के समय का सबसे बड़ा आश्चर्य आपको क्या लगता है?
प्रकाश मनु – देखो श्याम भाई, आज हो क्या रहा है? हममें से हर कोई सुख पाना चाहता है, दूसरों से अधिक पाना चाहता है, पर हमने अपनी गाड़ी में घोड़े उलटे जोत रखे हैं, जो हमें लगातार विपरीत दिशा की ओर तेजी से भगाए लिए जा रहे हैं। हम सुख लेने निकलते हैं और बोरे भर-भरकर दुख खरीद लाते हैं। फिर हम रोते हैं और अपने सिर पर दोहत्थड़ मार-मारकर विलाप करते हैं। यों सुख की चाहत में हम दूसरों से आगे निकलने की एक ऐसी अंधी प्रतियोगिता में पड़ जाते हैं कि अपना और दूसरों का सुख जहरीला करते जा रहे हैं, फिर भी हम चेतते नहीं हैं। सच पूछिए तो, मुझे यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य लगता है।
श्याम सुशील – आपको किससे डर लगता है?
प्रकाश मनु – कहीं किसी बुरी घड़ी में कोई अशुभ विचार या बुराई की छाया मेरी आत्मा की उजास को न ढक ले। मेरी मनुष्यता पर कोई कलंक न आ जाए।…यही आशंका सबसे अधिक डराती है और कई बार तो एकांत में, किसी अज्ञात के आगे हाथ जोड़कर मैं रो पड़ता हूँ।
श्याम सुशील – अगर आप लेखक नहीं होते तो क्या काम करना पसंद करते?
प्रकाश मनु – शायद तब मैं समाज-सेवा के काम में सक्रिय होकर कुछ करता।…कोई छोटा-मोटा गांधी या फिर अन्ना हजारे का शिष्य होकर आम जनता की लड़ाई लड़ता। शक्ति के मद में अकड़े हुए, आज के जमाने के कंस और दुर्योधनों को ललकारता।
श्याम सुशील – आपके लिखने का तरीका क्या है?
प्रकाश मनु – भाई श्याम जी, लिखने का मेरा कोई खास तरीका नहीं है। बस, बैठो और लिखना शुरू कर दो। जो बात दिल-दिमाग में सबसे ज्यादा खलल डाल रही हो, पहले उसी को लिख डालो। और फिर उसके साथ-साथ शब्द से शब्द, वाक्य से वाक्य जोड़ते जाओ। इस तरह बात चलती है तो कुछ न कुछ बनता जाता है। असल में जो रचना कागज पर उतरती है, वह दिल-दिमाग में बहुत पहले ही बन चुकी होती है। इसलिए कोई ज्यादा मुश्किल नहीं आती।…हाँ, इतना फर्क जरूर आया है कि पहले मैं हाथ से कागज पर लिखता था और बाद में वह कंपोज होता था। आजकल लैपटॉप पर ही सीधा लिख लेता हूँ। इसके लिए बेटी ऋचा का आभारी हूँ, जिसने यह लैपटॉप खरीदकर दिया और तब से काफी आसानी हो गई। मित्र सूर्यनाथ सिंह का आभारी हूँ, जिन्होंने यूनिकोड-मंगल फौंट में लिखने की तरकीब सिखाई। यों मामला चल पड़ा। पर लिखते समय पहले ही मन साथ-साथ तेजी से दौड़ता था, आज भी वैसे ही दौड़ता है। इस नाते लिखना तो असल में मन में होता है और वह हर क्षण, हर पल चलता रहता है। फिर वह लैपटॉप के परदे पर आए या कागज पर, यह सिलसिला तो कृति की प्रतिकृति सरीखा ही है। 
श्याम सुशील – आपकी प्रकाशित किताबों में से सबसे ज्यादा कौन सी किताब आपको प्रिय है?
प्रकाश मनु – बड़ों के लिए लिखी गई किताबों में ‘यह जो दिल्ली है’ मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इसी तरह बच्चों के लिए लिखी गई अपनी पुस्तकों में ‘चीनू का चिड़ियाघर’ और ‘एक था ठुनठुनिया’ मुझे काफी पसंद हैं। ‘एक था ठुनठुनिया’ को साहित्य अकादेमी का बाल साहित्य पुरस्कार मिला है। अपना पहला बाल उपन्यास ‘गोलू भागा घर से’ भी मुझे प्रिय है। इधर साहित्य अकादेमी से मेरा बाल उपन्यास ‘खजाने वाली चिड़िया’ छपकर आया है। खासा रोमांचक उपन्यास। यह भी बरसों के श्रम और तल्लीनता से लिखा गया है और मुझे बहुत प्रिय है।
श्याम सुशील – आज की पीढ़ी के बच्चों से आप क्या कहना चाहेंगे?
प्रकाश मनु – हर बच्चे के भीतर कुछ बनने का सपना होता है। मेरा कहना है कि वे डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, किसी कंपनी के प्रबंधक या कंप्यूटर विशेषज्ञ कुछ भी बनें, पर पहले बेहतर मनुष्य बनें। एक सच्चे इनसान बनें।
श्याम सुशील – आपका प्रिय लेखक?
प्रकाश मनु – अगर बड़ों के साहित्य की बात करें तो कथा साहित्य में शैलेश मटियानी मेरे सर्वाधिक प्रिय लेखक हैं और कवियों में विष्णु खरे मुझे अच्छे लगते हैं। बच्चों के रचनाकारों की बात करें तो दामोदर अग्रवाल बड़े अद्भुत बाल कवि हैं। बच्चों के होंठों पर नाचने वाली ऐसी सुंदर और रसपूर्ण बाल कविताएँ किसी और ने नहीं लिखीं। आगे कोई लिख सकेगा, इसमें भी शक है। इसी तरह सर्वेश्वरदयाल सक्सेना और डा. शेरजंग गर्ग मेरे बहुत प्रिय कवि हैं। आजादी के बाद के कालखंड में भूपनरायण दीक्षित ने बच्चों के लिए ‘बाल राज्य’ और ‘नानी के घर में टंटू’ सरीखे जबरदस्त उपन्यास लिखे। एकदम बाल मन से जुड़े अनूठे उपन्यास। इसी तरह ‘पराग’ के पूर्व संपादक आनंदप्रकाश जैन। उनसे कभी मिलना नहीं हुआ। पर मैं उन्हें गुरु मानता हूँ, और उनकी रचनाएँ पढ़कर मन ही मन प्रणाम करता हूँ। बाल कथाकारों में वे मुझे सबसे अधिक मोहते हैं। इसी तरह रेखा जैन ने बच्चों के लिए बड़े सुंदर और सरस नाटक लिखे। बाल नाटककारों में वे मेरी सर्वाधिक प्रिय लेखिका हैं।
श्याम सुशील – आपकी प्रिय पुस्तक?
प्रकाश मनु – मुझे जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ ने बहुत प्रभावित किया। आपको बताऊँ, मेरे नाम से जुड़ा मनु भी प्रसाद की ‘कामायनी’ से ही आया है। गद्य की बात करें तो अमृतलाल नागर का ‘मानस का हंस’ और रामविलास जी की पुस्तक ‘निराला की साहित्य साधना’ भी मेरी प्रिय पुस्तकें हैं। बाल साहित्य में अमृतलाल नागर का बाल उपन्यास ‘बजरंगी और नौरंगी’, भूपनारायण दीक्षित का ‘बालराज्य’ और मस्तराम कपूर का ‘नाक का डाक्टर’ मेरी सबसे प्रिय पुस्तकें हैं। बाल कविताओं में अगर किसी एक पुस्तक का नाम लेना हो तो वह है, ‘बतूता का जूता’।
श्याम सुशील – आपको खाने में क्या-क्या पसंद है?
प्रकाश मनु – घर की दाल-रोटी, सब्जी मुझे दुनिया का सबसे अच्छा पकवान लगती है। सुनीता जी बहुत सादा खाना बनाती हैं, पर उसमें बड़ा रस होता है। खाने में मुझे दिखावा या आडंबर पसंद नहीं। एक साथ बहुत सब्जियाँ परोस दी जाएँ तो मैं हकबका जाता हूँ कि क्या खाऊँ, कैसे खाऊँ? घर की बनी सिर्फ एक सादा सी सब्जी या दाल ही बहुत है। उसके आगे किसी पाँच तारा होटल का खाना भी मुझे नहीं रुचता। और सच बताऊँ, कभी किसी दावत में खाना खाने जाना पड़े, तो मुझे यह भीषण यातना से कम नहीं लगता।
श्याम सुशील – कौन सी मिठाई सबसे ज्यादा अच्छी लगती है?
प्रकाश मनु – बचपन से ही मुझे रस से भरी गरम इमरती बहुत अच्छी लगती है, या फिर जलेबी। बूँदी के लड्डू भी, जो जरा देहाती ढंग से बने हों, सख्त और भुरभुरे, वे अच्छे लगते हैं। घर की बनी मिठाइयों में मुझे आटे के लड्डू यानी पिन्नी बहुत पसंद है। माँ बहुत अच्छी पिन्नियाँ बनाती थीं। बचपन में बहुत खाईं। सर्दियों में कभी-कभी अब भी हमारे घर में बन जाती हैं।
श्याम सुशील – मनपसंद फल?
प्रकाश मनु – केला…या फिर अमरूद। वही जो आम जन के फल हैं, मुझे सबसे ज्यादा पसंद हैं।
श्याम सुशील – वृक्ष?
प्रकाश मनु – मुझे छतनार बरगद सबसे अच्छा लगता है। उसे देखकर बाबा जी या दादा जी वाला भाव उभरता है। बच्चों के लिए लिखी गई मेरी बहुतेरी कहानियों में बरगद किसी महत्त्वपूर्ण पात्र या कथानायक की तरह उपस्थित है। गुलमोहर, शिरीष, अमलतास, पीपल और नीम भी मुझे पसंद हैं।
श्याम सुशील – फूल?
प्रकाश मनु – बरसों पहले जब कुरुक्षेत्र में रिसर्च कर रहा था तो अकसर घूमने के लिए ब्रह्मसरोवर जाया करता था। बारिशों में वहाँ बहुत बार कमल के फूल देखे। एक निगाह में पानी में लहलहाते सैकड़ों कमल के फूल…! पूरा वातावरण मीठी खुशबू से भर जाता था। वह झाँकी मुझे कभी नहीं भूलती। कुरुक्षेत्र में कुईं या कुमुदनी का भी निराला सौदर्य देखा। मैं देखता था, बारिशों में सड़क के किनारे जहाँ भी कहीं कोई गड्ढा पानी से भरा, कुछ ही अंतराल में वहाँ शुभ्र सफेद कुमुदनी के फूल लहलहाते नजर आ जाते थे।….पर यह सब तो आजकल मुझे स्वप्नलोक की बात लगती है। इधर जो फूल सहजता से देखने को मिल जाते हैं, उनमें गेंदा मुझे आम आदमी का फूल लगता है और वही सबसे अच्छा भी लगता है। आसानी से उग भी जाता है। खुद हमारे घर हर वर्ष गेंदे के फूलों की बहार आती है। और हाँ, याद पड़ता है, मैंने गेंदे के फूल की एक छोटी सी सरस कहानी भी लिखी है, जो मेरे कई पाठकों ने पसंद की है।
श्याम सुशील – और जानवर…?
प्रकाश मनु – वन्य पशुओं में मुझे हिरन सबसे ज्यादा मोहते है, और उसके बाद खरगोश। घर-परिवार के आसपास अकसर मिलने वाले पालतू जीवों की बात करें तो छोटे-छोटे गदबदे पिल्ले भी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। ऐसा ही एक पिल्ला कुनु मैंने पाला भी था और वह मेरा लाड़ला बेटा बन गया था। कुनु पर मैंने एक कहानी भी लिखी है। इसी तरह पिल्लों को लेकर बच्चों के लिए कुछ दिलचस्प कहानियाँ भी लिखी गईं।
श्याम सुशील – कौन सा पक्षी आपको अधिक पसंद है?
प्रकाश मनु – पक्षियों में गौरैया मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। वह एकदम भोली-भाली, घरेलू और दोस्त सरीखी लगती है। उस पर लिखी गई आपकी कविता भी मुझे खूब पसंद है, ‘वह गौरैया कहाँ गई…?’ मोर और उनकी खूबसूरती भी बहुत लुभाती है। दिल्ली के चिड़ियाघर में बहुत पहले मैंने और सुनीता जी ने सामान्यतः मिलने वाले हरे-नीले गर्वीले मोर के अलावा एक बिल्कुल सफेद मोर भी देखा था। एकदम दूधिया मोर। दोनों अलग-अलग बाड़े में थे, पर एक-दूसरे को देख सकते थे। उन दोनों के बीच क्या अद्भुत नृत्य प्रतियोगिता हुई थी। उसे तो मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।
श्याम सुशील – नदी?
प्रकाश मनु – कुछ बरस पहले सपरिवार हरिद्वार और ऋषिकेश जाना हुआ। वहाँ मैंने गंगा का उत्फुल्ल विस्तार देखा था। वह मुझे कभी नहीं भूलता।…किसी नदी का अपरंपार वैभव मैंने वहीं देखा। यों बरसों पहले इलाहाबाद में त्रिवेणी पर गंगा-यमुना के मिलन का अद्भुत दृश्य देखा था। जहाँ तक नजर जाती, दूर-दूर तक फैली अथाह जलराशि, बड़ी-बड़ी लहरों की पछाड़ों के साथ। वह दृश्य भी अकसर याद आता है।
श्याम सुशील – आपका मनपसंद रंग?
प्रकाश मनु – हलका गेरुआ या फिर मिट्टी वाला रंग। पहले कच्चे मकानों पर जो मिट्टी की लिपाई की जाती थी, उसकी हलकी पीली रंगत मुझे सबसे अधिक मोहती है। उसे देखकर लगता है, जैसे आँखों को ठंडक पड़ रही हो। इसी तरह हलका बादामी रंग मुझे अच्छा लगता है, हलका प्याजी भी। और हाँ, आसमानी रंग भी मुझे पसंद है।
श्याम सुशील – शहर?
प्रकाश मनु – कुरुक्षेत्र मेरा सबसे प्रिय शहर है। मैं अकसर कहता हूँ कि कुरुक्षेत्र आने पर मेरा पुनर्जन्म हुआ।…कुरुक्षेत्र मुझे छोड़ना पड़ा और मैं वहाँ रह न सका, इसे अपने जीवन का बड़ा अभिशाप मानता हूँ। हालाँकि बीच-बीच में कुरुक्षेत्र जाना होता है। सुनीता जी का घर वहीं है। वहाँ ब्रह्मसरोवर के अपरिमित विस्तार और विशाल जलराशि को देखकर जो सुंदर अहसास होता है, उसे शब्दों में बता पाना मुश्किल है।
श्याम सुशील – गाँव?
प्रकाश मनु – किशोरावस्था में अपने एक बाल मित्र के साथ मैं गरमी की छुट्टियों में उसके गाँव गया था और दो-एक दिन वहाँ रुका था।। गाँव का नाम तो अब याद नहीं, पर उसका सुंदर अहसास मन में है। इसी तरह मेरी पत्नी सुनीता की नानी जी का गाँव सालवन मुझे बहुत अच्छा लगा था। वहाँ कुछ समय रहा था, जब नानी जीवित थीं। पूरे गाँव ने जिस प्यार-दुलार से मेरा आतिथ्य किया था, उसे याद करके आज भी अभिभूत हो उठता हूँ। फिर गाँव के कुछ युवकों के साथ मैं वहाँ भ्रमण करने गया था और वहाँ के एक-एक स्थल के इतिहास-भूगोल की जानकारी बड़े अच्छे ढंग से उन लोगों ने दी थी। तब मुझे समझ में आया कि सालवन एक बड़ा ही सुसंस्कृत गाँव है। आज भी सालवन की बड़ी मीठी पुलक भरी याद मेरे मन में है।
श्याम सुशील – आपका प्रिय खेल?
प्रकाश मनु – कबड्डी और पचगुट्टी। शुरू में पचगुट्टी खेली, बाद में कबड्डी बहुत दिनों तक खेलता रहा। शायद हाईस्कूल में ही मुझे चश्मा लग गया था। कबड्डी खेलते समय बहुत बार चश्मा गिरा और फ्रेम या लेंस टूट गया। पर कबड्डी खेलने का जोश फिर भी कम नहीं हुआ।
श्याम सुशील – प्रिय खिलाड़ी?
प्रकाश मनु – ध्यानचंद, जिन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है। मुझे उन पर बहुत गर्व महसूस होता है, इसलिए कि उन्होंने अपने जादुई खेल से भारत की कीर्ति और स्वाभिमान को ऊँचा रखा।
श्याम सुशील – आपकी मनपसंद फिल्म?
प्रकाश मनु – ‘दो आँखें बारह हाथ’ फिल्म मुझे बहुत पसंद है। इसमें नायक के रूप में व्ही. शांताराम का किरदार और अभिनय दोनों ही मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। फिल्म में एक बड़ा नैतिक संदेश भी है, पर जिस खूबसूरती और जिस कलात्मक भंगिमा के साथ वह सामने आता है, उसका जवाब नहीं। हालाँकि कुछ और फिल्मों का भी मुझे जरूर जिक्र करना चाहिए, जिन्होंने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। ‘जागृति’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘मुगलेआजम’, ‘मदर इंडिया’, ‘साहिब, बीवी और गुलाम’, ‘प्यासा’, ‘फागुन’, ‘पाकीजा’, ‘गाइड’, ‘आनंद’, ‘बावर्ची’, ‘अभिमान’, ‘अनुराग’, ‘सत्यकाम’, ‘शोले’, ‘जाने भी दो यारो’, ‘तारे जमीन पर’, ‘थ्री ईडियट्स’ और ‘इंगलिश-विंगलिश’ भी मेरी प्रिय फिल्में हैं।
श्याम सुशील – आपका प्रिय अभिनेता?
प्रकाश मनु – गुरुदत्त और राज कपूर, ये दो ऐसे अभिनेता हैं जो मेरे मन में बसे हैं। मैं उन्हें बार-बार और हर रूप में देखना चाहता हूँ। हालाँकि कुछ फिल्मों में दिलीप कुमार, देवानंद, राजेश खन्ना, अशोक कुमार, धर्मेंद्र, संजीव, अमिताभ बच्चन और प्राण का काम भी मुझे कभी नहीं भूलता।
श्याम सुशील – आपकी प्रिय अभिनेत्री?
प्रकाश मनु – मीना कुमारी। उनके चेहरे और आवाज की लरज से जो करुणा और संवेदना फूटती थी, उसका कोई जवाब नहीं। आप एक बार देखने के बाद जिंदगी भर उस सहज अभिनय और भावाभिव्यक्ति को याद करते रह सकते हैं। ऐसा अभिनय वही कर सकती थीं। हालाँकि कुछ फिल्मों में नूतन, नरगिस, मधुबाला, वहीदा रहमान, वैजयंतीमाला, राखी, जया भादुड़ी, रेखा, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, मौसमी चटर्जी, माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी का काम भी मुझे बहुत अच्छा लगा।
श्याम सुशील – प्रिय फिल्म निर्देशक?
प्रकाश मनु – के. आसिफ, जिन्होंने ‘मुगलेआजम’ जैसी महान फिल्में वही बना सकते थे। हालाँकि हृषिकेश मुखर्जी भी मुझे बहुत प्रिय हैं। उनकी बनाई ‘आनंद’ फिल्म तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता।
श्याम सुशील – प्रिय गायक-गायिका?
प्रकाश मनु – मुकेश और लता मंगेशकर। उन्हें बार-बार सुनने का मन होता है। गीता दत्त, किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, तलत महमूद और जगजीत सिंह के गाए कुछ गीत भी लाजवाब लगते हैं।
श्याम सुशील – प्रिय नेता?
प्रकाश मनु – लोकमान्य तिलक, सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल और लालबहादुर शास्त्री। इनकी साफगोई, ईमानदारी और दृढ़ता मुझे अच्छी लगती है। फिर महात्मा गाँधी तो हैं ही। पर वे तो राष्ट्रनायक हैं, राष्ट्रपिता हैं।
श्याम सुशील – आपका मनपसंद समाचार-पत्र?
प्रकाश मनु – जनसत्ता। जब से शुरू हुआ, तभी से इसे पढ़ रहा हूँ। किसी और अखबार में यह बात नहीं, फिर चाहे वह कितना ही बड़ा और लोकप्रिय क्यों न हो।
श्याम सुशील – आपका मनपसंद त्योहार?
प्रकाश मनु – होली। बचपन से ही होली के रंग और उत्साह में रँगना अच्छा लगता है। आजकल गीले रंगों से नहीं, गुलाल से होली खेलता हूँ, पर खेलता जरूर हूँ। भले ही दो-चार आत्मीय लोगों के माथे पर गुलाल का टीका लगाऊँ, पर सुख मिलता है। बचपन की होली कभी नहीं भूल पाता, जब पूरा शहर होली के रंगों में सराबोर हो जाता था और फिर पड़वा पर सभी लोग एक-दूसरे से गले मिलकर सारे गिले-शिकवे दूर कर लेते थे। वह आनंद, वह प्यार और आत्मीयता अब केवल सपने की बात लगती है।
श्याम सुशील – आपका प्रिय नशा?
प्रकाश मनु – दीवानों की तरह पढ़ना और लिखना। लिखना और पढ़ना और इसमें सच्ची-मुच्ची मुझे कुछ होश नहीं रहता। आज भी कोई अच्छी किताब हाथ में आते ही मैं गायब हो जाता हूँ। कहाँ…? यह तो खुद मुझे भी नहीं पता। हालाँकि लिखने की व्यस्तता में पढ़ना कई बार स्थगित हो जाता है। सुनीता जी में पढ़ने की दीवानगी मुझसे कहीं अधिक है और जब वे किसी पुस्तक को जरूर पढ़ने के लिए कहती हैं, तो जबरन अपने सारे काम रोककर उसे पढ़ने बैठ जाता हूँ।
श्याम सुशील – आपकी नजर में सबसे बुरा काम?
प्रकाश मनु – किसी को धोखा देना… या विश्वासघात।
श्याम सुशील – आपकी प्रिय प्रार्थना?
प्रकाश मनु – ‘ऐ मालिक, तेरे बंदे हम, ऐसे हों हमारे करम,/ नेकी पर चलें और बदी से टलें,/ ताकि हँसते हुए निकले दम…!’ मुझे यह इनसान और इनसानियत की सच्ची प्रार्थना लगती है, जो सभी धर्मों और मतवाद से परे है। 
श्याम सुशील – आपके लिए सबसे बड़ा सम्मान क्या है?
प्रकाश मनु – मुझे लगता है, अपने अग्रजों, साथी लेखकों और पाठकों का प्यार पा लेने से बड़ा सम्मान कोई और नहीं हो सकता।
श्याम सुशील – आपके लिए रुपया-पैसा क्या है?
प्रकाश मनु – गुजारे के लिए एक जरूरत, ताकि आप तल्लीन होकर अपने काम में जुट सकें।
श्याम सुशील – जीवन क्या है?
प्रकाश मनु – एक ऐसा उपन्यास, जिसके शुरू और बाद के पन्ने फटे हुए हैं, इसलिए हम कभी उन्हें पढ़ नहीं पाते और हमेशा तरसते हैं।
श्याम सुशील – आपका सबसे बड़ा सपना?
प्रकाश मनु – काश, यह दुनिया थोड़ी और अच्छी, थोड़ी और प्यारी, थोड़ी और सुंदर हो जाए।
श्याम सुशील – आपके लिए धर्म क्या है?
प्रकाश मनु – जिससे यह जीवन जीने में, सार्थक और सक्रिय ढंग से जीने में थोड़ा सुभीता हो जाए, थोड़ा भीतर का बल मिले।
श्याम सुशील – पूजा-पाठ में विश्वास करने या न करने का कारण?
प्रकाश मनु – श्याम जी, पहले मैं खुद को नास्तिक कहता था, अब नहीं कहता। पर पूजा-पाठ में मेरी आस्था न कभी पहले थी, न अब है। मुझे लगता है, अपने मन और विचारों को सुंदर और निर्मल रखना चाहिए। अगर ईश्वर है तो वह आपकी आत्मा की उजास को जरूर देख लेगा, और अगर नहीं है तो भी आपने अपनी आत्मा को उजलाकर जो सुकून हासिल किया, वह इस जीवन का सबसे बड़ा प्राप्य है। और वह आपको ही नहीं, आपके निकट के लोगों के मन को भी आनंदित करेगा।…पर इसके लिए शोर-शराबे का बखेड़ा करना, ढोंग और आडंबर करना, यह तो बड़ी निरर्थक बात है। जितनी देर आप पूजा-पाठ और टल्ली खड़काने में लगाते हैं, उतने में किसी जरूरतमंद की मदद करें, या फिर समाज में निचली श्रेणी के या कमतर समझे जाने वाले लोगों से मीठी बोली में बात करें, उन्हें थोड़ी खुशी दें और बराबरी का अहसास कराएँ, तो यह ईश्वर की सच्ची पूजा होगी। इसलिए कि ईश्वर अगर कहीं है तो इनसानों में ही है, जीवधारियों और वनस्पतियों में है। उनमें उसे पहचानें, यही सच्ची पूजा है।
श्याम सुशील – बच्चों से आपकी अपेक्षाएँ?
प्रकाश मनु – वे नेक, संवेदनशील और समझदार हों। दूसरे के दुख और दर्द को अपने जैसा ही समझें। सुख के नकली साधन जुटाकर नहीं, बल्कि किसी की मदद करने में सच्चा सुख महसूस करें।
श्याम सुशील – एक बेहतर दुनिया की कल्पना आप किस रूप में करते हैं?
प्रकाश मनु – उसमें हर इनसान एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील और करुणार्द्र होगा। छोटे-बड़े का भेद न रह जाएगा और कोई किसी के प्रति अन्याय न करेगा। ऐसी दुनिया निस्संदेह एक प्यार और हमदर्दी भरी दुनिया होगी, जिसमें बेशक साहित्य और कलाओं के लिए कहीं अधिक सम्मान होगा।
श्याम सुशील – भारत एक विकसित और खुशहाल राष्ट्र कैसे बन सकता है?
प्रकाश मनु – जब बाहरी विकास के साथ-साथ भीतर के विकास की बात भी की जाए। एक गांधी नहीं, घर-घर में गांधी हों जो लोगों को प्रेम, दया, समानता, स्वावलंबन और हमदर्दी का पाठ सिखाएँ।
श्याम सुशील – समाज से ऊँच-नीच और अमीरी-गरीबी क्या कभी खत्म हो सकेगी?
प्रकाश मनु – अभी तो श्याम जी, लग रहा है कि वह उलटे और बढ़ रही है। इस देश में अरबपति-खरबपति अमीरों की संख्या लगातार बढ़ रही है, पर उसके साथ ही भूखे-नंगे, गरीब और बदहालों की संख्या भी बढ़ रही है और उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है। इसे देखकर कई बार लगता है, कि क्या बेहतर कल का हमारा सपना केवल सपना ही रहेगा?…पर तो भी हम सपना देखना कैसे छोड़ सकते हैं? हमारी पीढ़ी के बाद अगली पीढ़ी आएगी। फिर और-और पीढ़ियाँ आती रहेंगी। उनमें कोई न कोई तो इस सपने को पूरा करने के लिए अपनी आत्मा की समूची शक्ति और आवेश के साथ उठकर खड़ा होगा और जनता को साथ लेकर इस देश, समाज में भारी उथल-पुथल कर डालेगा। जो आज तख्ते खाँ बनकर बैठे हैं और सिर्फ अपना पेट भर रहे हैं, ऐसे छली-कपटी कुर्सीनशीनों और सत्ताधीशों में बड़े-बड़ों के ताज उछाले जाएँगे और तब सही मायने में जनता का शासन होगा। तब हम कल्पना कर सकते हैं कि समाज में ऊँच-नीच और अमीरी-गरीबी भी न रहेगी।…अभी जो हालात हैं, उनमें तो हम सिर्फ इसकी कामना ही कर सकते हैं।
श्याम सुशील – समाज में वैज्ञानिक चेतना लाने और सभी शिक्षित हों, इसके लिए हमें क्या करना होगा?
प्रकाश मनु – यह काम किन्हीं दो-चार एनजीओ, सरकारी कार्यक्रमों, यूनिसेफ या ऐसी ही अन्य संथाओं के भरोसे छोड़ने से काम न चलेगा। हममें से हर पढ़ा-लिखा आदमी सीने में आग लेकर निकले और कंधे से कंधा मिलाकर काम करें, तो इस देश से अशिक्षा के भूत को भागते देर न लगेगी। और तभी वैज्ञानिक चेतना की नींव भी रखी जा सकेगी।
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प्रकाश मनु, 545, सेक्टर-29, फरीदाबाद (हरियाणा), पिन-121008
मो. +91-9810602327
श्याम सुशील, ए-13, दैनिक जनयुग अपार्टमैंट्स, वसंधरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096।
मो. 09871282170


श्याम सुशील
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जन्म : 28 अगस्त, 1957 को बस्ती (उत्तर प्रदेश) में।
दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए.। दैनिक हिंदुस्तानमें करीब बीस वर्षों तक संपादन कार्य। दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम सृजन‘, ‘फलकऔर किताब की दुनियाके लिए पचास से अधिक साहित्यकारों के रचनात्मक जीवन और कृतित्व पर शोध। दूरदर्शन-रेडियो आर्काइव्स में भाषा विशेषज्ञ के तौर पर स्वतंत्र रूप से कार्य। नवान्न‘, ‘बूधनऔर नन्ही कलमपत्रिकाओं का संपादन। 
अपनी जमीन पर‘, होती मैं भी चंचल तितली‘, ‘बकरी के साथ’, आओ बादल’, ठाँव-ठाँव घूमा तथा आबू-साबू (कविता), श्रीकृष्ण (जीवन कथा) प्रकाशित। निरंकारदेव सेवक की प्रतिनिधि बाल कविताएँ (प्रकाश मनु के साथ), बात से बात : केदारनाथ सिंह के साथ तथा मेरे साक्षात्कारसीरीज़ के अंतर्गत अमृता प्रीतम और त्रिलोचन के साक्षात्कारों की किताब का संपादन। राहुल सांकृत्यायन स्मृति व्याख्यान-माला की पहली किताब दूसरी दुनिया संभव हैतथा प्रतिनिधि कविताएँ : त्रिलोचनका सह-संपादन।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ कविवर त्रिलोचन के पत्रों, साक्षात्कारों और असंकलित रचनाओं की टोह में। 
संपर्क : ए-13, दैनिक जनयुग अपार्टमेंट्स, वसुंधरा एनक्लेव, दिल्ली-110096, मोबाइल : 09871282170
ई-मेल : [email protected]
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5 टिप्पणी

  1. बहुत बढ़िया, छोटी से लेकर बड़ी बड़ी बातें मनु जी के जीवन के रहस्य खोलती हैं। डूबकर की गई बातचीत को पढ़ते समय तारतम्य नही टूटता

  2. श्याम सुशील जी का बेहतरीन इंटरव्यू है यह कृष्ण मनु जी के साथ।
    नंदन पत्रिका हमने पढ़ना शुरू करने के बाद दसवीं क्लास तक पढ़ी। वह एक बेहतरीन पत्रिका थी। हमें आज भी घनश्याम दास बिरला का उसमें लिखा हुआ एक संस्मरण याद है कि किस तरह सुबह 5:00 बजे से घूमने जाते हुए जब उन्होंने ठंड में फुटपाथ पर ठिठुरते सोते लोगों को देखा तो ठंड के दिनों में वह कंबल लेकर जाने लगे थे, और गरीबों को सोते में उढ़ा दिया करते थे।
    जहाँ तक जन्मदिन की बात है। वह समय ही ऐसा था। जन्मदिन कोई नहीं मनाता था। बाद में ही यह प्रचलन में आया। फिर भी हम लोग मनाते नहीं थे। मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाते थे बस।
    साहित्यकारों के प्रति जो सोच प्रकाश मनु जी की है, हमें लगता है लगभग सभी की सोच भी उसी तरह की रहती थी तब। साहित्यकार हम लोगों के लिए भी सर्वोपरि थे। उनके लिखे को हम लोग सिर्फ पढ़ते ही नहीं थे बल्कि जीवन में उतारने का प्रयास भी करते थे हमें आज भी यह बात दृढ़ता से महसूस होती है कि हमारे जीवन की निर्मिती में माता-पिता, गुरु एवं साहित्यकारों का ही योगदान है। हम जो भी ,जैसे भी हैं हमारी सोच और हमारे विचारों पर इन तीनों का ही प्रभाव है। और हम शुक्रगुजार हैं सबके कि उन्होंने हमें इतना अच्छा जीवन इतनी बेहतरीन सोच से नवाज़ा।
    श्याम सुशील जी! प्रश्नों की आपकी श्रृंखला काफी लंबी है। बहुत सोच विचारकर आपने अपना प्लान तैयार किया और क्रम से सभी प्रश्नों के जवाब बहुत सहजता और सरलता से दिये प्रकाश मनु जी ने।
    प्रारंभिक कई बातें अपने समय की होने के कारण बहुत अपनी सी लगीं। हर काल का भी अपना एक स्वभाव होता है जो उस काल के लोगों में नजर आता है लगभग सभी में।
    इसमें कोई दो मत नहीं यह एक बेहतरीन इंटरव्यू है इसमें बहुत कुछ सीखने के लिए है। इस इंटरव्यू के लिए शाम सुशील जी!आपका तहेदिल से शुक्रिया।
    साथ ही प्रस्तुति के लिए तेजेंद्र जी का भी दिल से आभार!

  3. बहुत रोचक साक्षात्कार। वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु जी के साहित्य के प्रति विचार बहुत उत्कृष्ट हैं और साथ ही बहुत स्पष्ट हैं।

  4. श्रद्धेय मनुजी के सक्षात्कार को बड़ी तल्लीनता एवं मनोयोग से पढ़ा।
    श्याम सुशीलजी के प्रश्नों के उत्तर में श्रद्धेय मनुजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनेक अनछुए पहलू उजागर हुए हैं।
    भगवान कृष्ण की गीता की याद ताजा हो गई।
    बच्चों के लिए आपका संदेश बेहद प्रेरक है। हर बच्चा बेहतर मनुष्य बनें। एक सच्चा इंसान बनें।
    दीवानों की तरह पढ़ना और लिखना ही आपका प्रिय नशा है।
    बेहद प्रेरक, सारगर्भित एवं नई दिशा देने वाला साक्षात्कार।
    हार्दिक बधाई, श्रद्धेय।
    सादर,
    सविनय,
    श्यामपलट पांडेय
    15 मई ,2024

  5. गज़ब का साक्षात्कार, श्याम सुशील जी ने जिस खुले मन से प्रकाश मनु जी का साक्षात्कार लिया मनु जी ने जबाब भी उतनी ही साफ गोई से दिए। अपनी जिंदगी का खुला चिट्टा सबके सामने रख दिया।
    अद्भुत संवेदन शीलता और कल्पना का गठजोड़ है उनका जीवन. इंसानियत के प्रति लगाव प्रेम और बालपन की मन में बसी झांकी उन्हें दूसरे साहित्यकारों से अलग करती है.।
    उम्र के इस पड़ाव में बिना रुके बिना थके लिखते जाना और अपने ऊपर घमंड नहीं कोई अपेक्षा नहीं.।
    ईश्वर आपको शतायु करे, खूब लिखें, खूब पढ़ें और बाल
    साहित्य की सेवा करें।

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