Friday, October 18, 2024
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ज्योत्सना सिंह की लघुकथा – निष्प्राण

‘सीने में जलन दिल में तूफ़ान सा क्यों हैं? इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है?’ स्लो वॉल्यूम में गाना बज रहा था। मैं तेज रफ्तार से ड्राइव कर रहा था। वैसे मेरा यकीन मुझसे कह रहा था कि मुझसे मिले बिना वह नहीं जायेंगी लेकिन वक्त की अपनी पकड़ होती है। उसकी अपनी ही चाल होती है।नहीं तो जो मेरे साथ हुआ वह क्यों होता?
जब पापा हमें छोड़कर गए तब मैं तलाक का मतलब भी नहीं जानता था। मुझे तो बस यह लगा था कि मम्मी और पापा की लड़ाई हो गई है। पापा गुस्से में शीना आंटी के घर रहने चले गए हैं। जब गुस्सा खत्म होगा तब आंटी उन्हें वापस घर छोड़ जाएंगी लेकिन पापा फिर कभी घर नहीं आए।
पापा की जगह फिर एक नया चेहरा हमारे घर पर आने लगा पहले वह चेहरा मुझे सिर्फ़ शाम को ही घर पर दिखता था। जब तक वह रहता तब तक मैं अपने कमरे से बाहर नहीं आता था। पता नहीं क्यों पर वह मुझे पसंद नहीं था। कुछ महीनों के बाद वह हमारे घर पर ही रहने लगा और मम्मी ने मुझसे कहा कि अब यही मेरे पापा हैं। लेकिन मैं अपने पापा को पहचानता था। बस वह दुनिया की इस भीड़ में कहीं खो गए थे। उसके आने के बाद मम्मी घर में रहते हुए भी कहीं खो गई थीं।
फिर मम्मी का पेट बहुत मोटा होने लगा था उसके बाद ही तो मम्मी उसे लेकर आईं थीं। मेरे साथ खेलने के लिए मगर उसके आने के बाद से मम्मी बिल्कुल बदल गई थीं। मुझे बहुत डांटती और बस उसका ख्याल रखती।
धीरे-धीरे मैंने अपने इर्द-गिर्द अकेलेपन का एक मजबूत खोल बना लिया। अब मैं सब अपने आप कर लेता था मुझे किसी की भी ज़रूरत नहीं थी। मैं किसी से भी अच्छे से बात नहीं करता था। उसी घर में वे तीन लोग खुश रहते और मुझे ज़िद्दी और घुन्ना बच्चा कहते। मुझ पर खीजते हुए एक रोज मम्मी ने कहा था कि मैं अपने बाप पर गया हूँ तभी घुन्ना हूँ। मुझे याद नहीं रह गया था कि पापा कैसे थे।
मैं बड़ा होने लगा था।अपने ओढ़े उस एकाकीपन के सख्त कवर के साथ जिसके भीतर मैं कोमल और डरा हुआ था।सिर्फ़ मम्मी-पापा के लिए एक फैसले की वजह से।
मैंने कहा न वक़्त की अपनी ही चाल होती है। उसने मेरे हिस्से के दर्द के साथ मुझे बड़ा करके काबिलियत के इस मुकाम पर पहुंचा दिया जहां मैं जानवरों की दुनिया पर रिसर्च कर रहा हूँ। आज सुबह ही घर से फ़ोन आया कि- “मम्मी की तबियत बहुत ख़राब है। वह मुझे एक बार देखना चाहती हैं।”
कुछ देर बाद मैं जंगल से घर पहुँच गया था।मम्मी जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रही थीं। मुझे जी भरकर देखने के बाद उन्होंने मेरी पीठ पर हाथ फेरा और आँखें बंद कर लीं। उनके हाथ फेरते ही मुझे लगा धरती का सारा बोझ जो अब तक मेरी पीठ पर रखा था उसमें भूचाल आ गया और मैं उस खोल से मुक्त होकर निष्प्राण न रहकर जीवंत हो गया हूँ।
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3 टिप्पणी

  1. यह लघुकथा तो नहीं है।लघु कहानी है।
    कभी-कभी वैवाहिक संबंध ऐसे दोराहे में खड़े हो जाते हैं कि पति पत्नी को अलग होना पड़ता है लेकिन बच्चे इस अलगाव में पिस जाते हैं। बचपन कहीं खो जाता है।
    कहानी का सकारात्मक अंत बहुत पसंद आया।माँ से बच्चे को जो उपेक्षा मिली। अंत समय में वह उससे मुक्त हो गया,जब वह कहता है-
    “मुझे जी भरकर देखने के बाद उन्होंने मेरी पीठ पर हाथ फेरा और आँखें बंद कर लीं। उनके हाथ फेरते ही मुझे लगा धरती का सारा बोझ जो अब तक मेरी पीठ पर रखा था उसमें भूचाल आ गया और मैं उस खोल से मुक्त होकर निष्प्राण न रहकर जीवंत हो गया हूँ।”

    अच्छी लघु कहानी है आपकी ।

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