Friday, October 18, 2024
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संपादकीय – रिश्वत किस्तों में

जो मुख्य किस्सा समाचार एजेंसियों के हवाले से सामने आया है वो गुजरात के सूरत शहर से सटे एक गाँव का है। वहां एक ग्रामीण से ज़मीन समतल करने के लिये ₹85,000/- की रिश्वत तय की गई। उस ग्रामीण की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उसने गिड़गिड़ा कर अपनी स्थिति अधिकारियों को समझाई। अब मसला यह कि इस मामले को सुलझाया कैसे जाए। डर था कि ग्रामीण रिश्वत के भार तले दब कर कहीं आत्महत्या ना कर ले। लिहाज़ा अधिकारियों के बीच का व्यापारी अचानक सनद हो उठा। उसने ग्रामीण को बहुत स्नेहपूर्ण भाषा में कहा, “वत्स, परेशान ना हो। तुम्हारा दर्द हम समझते हैं। तुम ऐसा करो कि ₹35,000/- पहली किस्त के रूप में और बाक़ी के पैसे तीन बराबर किस्तों में चुका दो। हम तुम पर विश्वास करते हैं।

गुजरात का भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा है। महात्मा गान्धी और सरदार पटेल गुजरात से ही थे। ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा में गुजराती मूल के भारतवंशियों की संख्या ख़ासी बड़ी है और उन्होंने अपने अपनाए हुए देशों में सम्मान भी खासा अर्जित किया है। स्वास्थ्य सेवा, फ़ार्मेसी, अकाउंट्स, बैंकिंग, मोटेल इंडस्ट्री… हर क्षेत्र में गुजरात के भारतीय मूल के लोग मिल जाएंगे। 
मोरारजी देसाई के रूप में गुजरात ने भारत को एक गांधीवादी प्रधानमंत्री भी दिये जो कांग्रेस पार्टी के नहीं थे। दरअसल 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ और कांग्रेस के बहुत से वरिष्ठ नेता अपनी पार्टी छोड़ कर जनता पार्टी से जुड़ गये और मोरारजी भाई उसी साल जनता पार्टी के नेता के रूप में प्रधानमंत्री बने। 
पूरे विश्व में स्वामी नारायण मन्दिरों के निर्माण ने विदेशों में हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। ब्रिटने में भी तो गुजराती रेस्टॉरेण्ट और थियेटर भी अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते हैं। 
पिछले कुछ सालों से राजनीति में भी एक वाक्य बहुत प्रचलित हुआ है – गुजरात मॉडल! वर्तमान प्रधानमंत्री और उस समय के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह गुजरात को प्रगति की राह पर डाला उसे ही गुजरात मॉडल कहा जाता है। लोग उस मॉडल की तारीफ़ भी करते हैं और मज़ाक भी उड़ाते हैं। 

एक कहानी बचपन में सुना करते थे कि एक राजा के यहां एक मंत्री बहुत भ्रष्ट था। हर काम में कोई न कोई तरीका निकाल ही लेता था रिश्वत लेने का। एक दिन अपने महामंत्री की सलाह पर उसने अपने भ्रष्ट मंत्री को एक काम सौंपा कि तुम सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक समुद्र की लहरें गिना करोगे। बेचारा मंत्री पहली बार पेशोपश में पड़ गया कि अब वो अपनी ऊपर की कमाई कैसे कर पाएगा। मगर उसका दिमाग़ भी शातिर था। उसने घोषणा करवा दी कि समुद्र के उस इलाके से कोई भी नाव या जहाज़ नहीं गुज़र सकता जहां उसे लहरें गिनने का काम दिया गया है। राजा का हुक्म है कि मुझे लहरें गिननी हैं और नाव व जहाज़ के चलने से लहरों के गिनने में कठिनाई होती है। 
जिन लोगों को नाव या जहाज़ उस रास्ते से ले जाना आवश्यक होता वे इस मंत्री को रिश्वत देते और वहां से निकल लेते। मंत्री का ऊपरी आय का स्त्रोत फिर से शुरू हो गया।
लगता है कि गुजरात के कुछ अधिकारियों ने बचपन में यह कहानी अवश्य सुनी होगी। इसलिये इसी वर्ष जून के महीने में जब पूरा भारत सूर्य देवता की गर्मी की मार के सामने तपा जा रहा था, इन अधिकारियों ने कुछ ऐसा कारनामा कर दिखाया कि अन्य विरोधी राजनीतिक दलों को गुजरात मॉडल पर निशाना साधने का एक और मौक़ा मिल गया। कहने वाले तो मज़े ले-लेकर चटख़ारे ले रहे हैं।
पुरवाई के पाठक अवश्य ही अधीर हो रहे होंगे कि आख़िर किस्सा क्या है… आज गुजरात ही क्यों हावी हो रहा है हमारे संपादकीय पर। तो लीजिये आपके साथ साझा कर ही लेता हूं। हमने सुना हुआ है कि घर या फ़्लैट लेना हो, या फिर कार, फ़्रिज, स्कूटर, मोटर साइकिल, टेलिविज़न आदि ख़रीदने हों तो एक ई.एम.आई. तय करके किस्तों में पैसा उतारा जा सकता है। मगर गुजरात के एक ख़ास विभाग के अधिकारियों ने तो अजब-गजब काम कर डाला… उन्होंने तो रिश्वत के लिये भी किस्तों की दर तय करनी शुरू कर दी है। 
इस मुद्दे को कुछ इस तरह भी देखा जा सकता है कि गुजरात के अधिकारी ख़ासे नरम दिल वाले भी हैं और बड़े दिल वाले भी। जब उन्हें पता चला कि वो बकरा जिसे वो काटने जा रहे हैं, बेचारे के शरीर में न तो ख़ून है और न ही हडिड्यों पर माँस, तो उनका दिल पसीज जाता है। वे सामने वाले पर तरस खाकर रिश्वत के पैसे समान किस्तों पर लेने को तैयार हो जाते हैं। 
जो मुख्य किस्सा समाचार एजेंसियों के हवाले से सामने आया है वो गुजरात के सूरत शहर से सटे एक गाँव का है। वहां एक ग्रामीण से ज़मीन समतल करने के लिये ₹85,000/- की रिश्वत तय की गई। उस ग्रामीण की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उसने गिड़गिड़ा कर अपनी स्थिति अधिकारियों को समझाई। अब मसला यह कि इस मामले को सुलझाया कैसे जाए। डर था कि ग्रामीण रिश्वत के भार तले दब कर कहीं आत्महत्या ना कर ले। लिहाज़ा अधिकारियों के बीच का व्यापारी अचानक सनद हो उठा। उसने ग्रामीण को बहुत स्नेहपूर्ण भाषा में कहा, “वत्स, परेशान ना हो। तुम्हारा दर्द हम समझते हैं। तुम ऐसा करो कि ₹35,000/- पहली किस्त के रूप में और बाक़ी के पैसे तीन बराबर किस्तों में चुका दो। हम तुम पर विश्वास करते हैं।
बेचारा ग्रामीण! मरता क्या ना करता? उसके पास कोई और विकल्प था कहां… वो मान गया। मगर गुजरात के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ए.सी.बी.) द्वारा इसी साल ऐसे दस मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें भ्रष्ट अधिकारी आम जनता से किस्तों में रिश्वत वसूल रहे हैं। 
ऐसा ही एक अन्य मामला साबरकांठा ज़िले का भी सामने आया है जिसमें दो पुलिसकर्मियों ने एक किसान से कुल ₹10 लाख की मांग की। मामला बिगड़ते देख उन्होंने किसान को चार लाख रुपये की पहली किस्त देने पर राज़ी कर लिया। और चार लाख मिलने के बाद वे भाग खड़े हुए।
एंटी करप्शन ब्यूरो के निदेशक शमशेर सिंह का कहाना है कि किस्तों में रिश्वत लेने का यह चलन नया नहीं है। दरअसल यह काफ़ी लंबे अरसे से चला आ रहा है। सच तो यह है कि यह व्यवस्था को काफ़ी प्रभावित कर रहा है। संस्थागत भ्रष्टाचार का यह एक ख़ूबसूरत नमूना है।
उन्होंने स्थिति को विस्तार से बताते हुए कहा कि इस तरीके के तहत पीड़ित काम शुरू होने से पूर्व पहली किस्त भरने के लिये सहमत हो जाते हैं। काम पूरा होने के बाद या तो पूरी राशि का भुगतान किया जाता है या फिर कुछ किस्तों में। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि पीड़ित अपना मन बदल लेते हैं और दूसरी या अगली किस्त देने के स्थान पर एंटी करप्शन ब्यूरो से संपर्क कर लेते हैं। 
श्री शमशेर सिंह ने साफ़ किया कि ए.सी.बी. गुजरात में इस तरह के भ्रष्ट आचरण से निपटने के लिये अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं। हमारा आग्रह है कि नागरिक हमें रिश्वतखोरी या जबरन वसूली के किसी भी मामले में संपर्क करें। 
गुजरात एंटी करप्शन डिपार्टमेंट के मुताबिक हाल के दिनों में इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। किस्तों में घर, कार, सोने के आभूषण खरीदना… सोशल मीडिया पर लोगों की राय है कि गुजरात के अधिकारियों ने भी किस्तों में रिश्वत लेना शुरू कर दिया है।
वैसे गुजरात को अकेला ना होने देने के लिये उत्तर प्रदेश का बरेली शहर भी खुल कर सामने आ गया। बरेली में हैरान करने वाला मामला सामने आया है, और वह भी रिश्वतखोरी का मामला है। इस मामले में प्रेम नगर थाना क्षेत्र में तैनात दारोगा रामौतार ने ई.एम.आई. पर रिश्वत लेने की हामी भरी थी और पहली किस्त ₹50,000 की पहुंच भी गई थी। दारोगा ने मुकदमे से नाम निकालने के एवज़ में दो लोगों से पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी। जब उक्त लोगों ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई तो दारोगा ने पीड़ितों पर अपनी दरियादिली दिखाई। ईएमआई की तरह किस्तों में रिश्वत तय कर ली। जिसकी शिकायत विजिलेंस से की गई। विजिलेंस की टीम ने रिश्वत की पहली किस्त लेते दरोगा को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।
भारत के प्रधानमंत्री ने हमेशा दावा किया है कि ना तो खाऊंगा ना ही खाने दूंगा। हो सकता है कि उन्हें बहुत से मामलों के बारे में ख़बर ना मिलती हो। मगर गुजरात और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को तो बाक़ायदा रिपोर्ट मिलती होगी। वैसे जो भी अधिकारी रिश्वत लेता है, उसका तकिया क़लाम होता है, “जी ऊपर तक पैसा देना होता है।” सवाल यह उठता है कि यदि भ्रष्टाचार ऊपर तक फैला हुआ है तो इसका इलाज कैसे होगा और कौन करेगा।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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44 टिप्पणी

  1. भ्रष्टाचार किस्तों में! पाकिस्तान का कॉमेडी नाटक बकरा किस्तों में याद आया । रिश्वत का मॉडल ऐसा फूलप्रूफ है कि हर बार रूप बदल कर अपना उल्लू सीधा कर लेता है।आजकल प्रदेश विदेश के लोगों पर देश का पैसा खा कर या उठा कर विदेश भाग जाने के आरोप लग रहे हैं, उस में भी खास प्रदेश के नाम ही हैं।
    आवाम के दिलों की बात कहता संपादकीय।
    और लगता है पुरवाई के संपादकीय में कहीं ना कहीं कहीं ना कहीं अमर गीतकार शैलेंद्र की छाया नजर आती है और इस बार के संपादकीय में शैलेंद्र साहब का वह गाना याद आ रहा है
    छोटी सी बात ना मिर्च मसाला कह के रहेगा
    कहने वाला,
    हम भी हैं तुम भी हो
    दोनो हैं आमने सामने
    देख लो क्या असर कर दिया
    प्यार के नाम ने।
    आज का सियासी माहौल भी ऐसा ही है।
    साहिर तो लगता है भूल ही जाएं अपनी सहर को।
    क्योंकि सहर को तो रिश्वत खा गई।
    काश हम इसे भी अंग्रेजों की मानिंद भगा पाते।
    शानदार संपादकीय।

    • भाई सूर्यकान्त जी आपने बिल्कुल सच कहा – छोटी सी बात ना मिर्च मसाला… कह के रहेगा कहने वाला… दिल का हाल सुने दिल वाला। यहां भी बकरा किस्तों में काटा जा रहा है।

  2. पुरवाई के पाठक अवश्य कृतार्थ हैं कि उन्हें ऐसे विषय पर संपादकीय पढ़ने को मिल रहा है जिसके बारे में कभी न सोचा गया होगा। वास्तव में यह जानकर दुःख होता है कि चाहे सरकार कोई भी हो, यदि एक व्यक्ति स्वयं ही भ्रष्टाचारी हैं या उसी अभ्यास में जीना उसकी परम इच्छा है तो उसका परिवर्तन तो ईश्वर भी नहीं कर सकते। कभी भी क्या यह देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता? किसीको दोष दिए बिना क्या हम स्वयं को बदल नहीं सकते?

    लेख के माध्यम से आपने एक चिंतनीय विषय रखा है सर….. आपकी लेखनी सदा सत्य को आधार बनाती रहे….साधुवाद

    • अनिमा जी सच में भारतवंशियों को जब यह सब पता चलता है बहुत कष्ट होता है। पुरवाई का प्रयास रहता है कि सत्य के साथ खड़े दिखाई दे।

  3. भारत में जो क्लर्क लेबल से रिश्वत शुरु होती है वो कभी बंद हो सकती ऐसी कल्पना मुश्किल है, कोई pm या cm कुछ नहीं कर सकता है ।

  4. सदा की भांति बिल्कुल नया विषय और रोचकता बेकरार रखते हुए। भ्रस्टाचार भारत में पर्याय बन चुका है। लाख कोशिश कर ले न कहूंगा न खाने दूंगा पर क्या पत्ता भी हिलता है। गंगा इतनी मैली ह्यो चुकी है कि गंगोत्री से ही सफाई कर कोई तो गंगासागर तक स्वच्छता पहुंचेगी। किश्तों में भ्रस्टाचार नया तो नहीं बिहार में हमने मेरे बचपन से देखा है। आपकी लेखनी को नमन।

    • सुरेश भाई जब ये ख़बरें बाहर पहुंचती हैं तो हमारा सिर झुक जाता है। हम भारत को सच में महान साबित करने के प्रयासों में लगे रहते हैं। मगर अब तो भ्रष्टाचारियों ने अपने कारनामों को state of the art बना लिया है।

  5. साधुवाद, भ्रष्टाचार की कहानी, क़िस्तों में भुगतान, बड़ी मेहरबानी। धन्य है उस देश की सरकार जो ऐसे बेशर्म लोगों के पनाह देती है!

  6. गंभीर मुद्दों को भी कितना आनंदमयी बना देते हैं कि पाठक पढ़ता ही चला जाए। जब तक एक जज रिश्वत लेनी नहीं छोड़ेगा तब तक भ्रष्टाचार को कोई रोक नहीं सकता

  7. भारत में राजस्व,पुलिस या अन्य विभागों के लोग ही रिश्वत नहीं ले रहे।साहित्य और संस्कृति के क्षेत्रों से जुड़े लोग और उनकी संततियां भी इसी काम में लगे हैं।मेरे ऐसे अनेक अधिकारी मित्र व परिचित हैं,जो साहित्य सृजन से जुड़े हैं,अनेक बहुत अच्छा लिख भी रहे हैं,लेकिन रिश्वतखोरी से नहीं बच पा रहे हैं।व्यापारी तो छोड़िए,किसान को भी नहीं बख्शते।उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनेक शोधार्थी के निदेशक विशेषज्ञों को मिठाई के डिब्बे दिलवाते हैं और विश्वविद्यालय मुख्यालय जाने के लिए टैक्सी का किराया शोधार्थी से लेते हैं।यही लोग पीएचडी की थीसिस लिखने का भी गैर कानूनी कार्य कर रहे हैं।खैर,रिश्वत की जड़ें हर क्षेत्र में फेल गई हैं।सृजनधर्मी जो नैतिकता का बल है,वही अनैतिक हुआ जा रहा है,यह लेखकीय चिंता के विषय होना चाहिए।

    • 1980 के दशक में इस विषय पर एक कहानी लिखी थी प्रमोद भाई। आपको भेजूंगा। सार्थक टिप्पणी के लिये आभार।

    • प्रमोद भार्गव,लेखक/पत्रकार,शब्दार्थ,४९ श्रीराम कॉलोनी,शिवपुरी मध्य प्रदेश,मोबाइल 9981061100 प्रमोद भार्गव,लेखक/पत्रकार,शब्दार्थ,४९ श्रीराम कॉलोनी,शिवपुरी मध्य प्रदेश,मोबाइल 9981061100

      जी,अवश्य।स्वागत है।

  8. दुःख इस बात का है कि जो सरकारी अफसर रिश्वत की शृंखला की कड़ी नहीं बनते उनको रेत दिया जाता है । दरिंदगी की हद नहीं है हमारे सरकारी तंत्र में ।
    आपने दूर बैठे मुंह खोला है तेजेंद्र जी । जो वहां बैठे हैं वह जल में रहकर मगर से वैर नहीं लेते ।
    पिताजी ने यह गलती की थी । उनको किश्तों में अपने जीवन की कुर्बानी देनी पड़ी और काटने वाला उनके डिपार्टमेंट में भी नहीं था ।पर ऊंची पायदान पर था तो सत्ता का दुरुपयोग किया । रिश्वत तंत्र की भुक्तभोगी हूं ।
    यही नहीं पिताजी के मरने के बीस वर्ष बाद उनकी पेंशन का बकाया मां को मिला और झूठा मुकदमा साबित होने का हर्जाना भी परंतु उसके लिए भाई को रिश्वत देनी पड़ी । विडंबना देखिए ।
    संविधान में संशोधन नहीं महीन कंघी से जुएं निकालने की जरूरत है ।कानूनों पर सबकानून बनाकर जोड़ने। की जरूरत है ।

    • कादंबरी जी आपने अपने परिवार की त्रासदी के बारे में बता कर रिश्वत जैसे दानव की सच्चाई उजागर कर दी है।

  9. बेहतरीन आदरणीय
    रिश्वत दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है।
    यह सुरसा के मुख की तरह बढ़ता ही जाना इससे निजात पाना संभव है।

  10. जितने लंबे कानून के हाथ हैं, उतनी गहरी भ्र्ष्टाचार की जड़ें हैं ।
    अब तो न अल्ला जाने न राम कि क्या होगा आगे —–जब देश महान होता है तो उसके अच्छे और बुरे सभी कार्य महान होते हैं ।
    Dr Prabha mishra

  11. साधूवाद बहुत ही सटीक आकलन किया है भारत की खान पान की व्यवस्था का जो बहुत ही अंदर तक फैली है यहाँ सिर्फ़ सरकारी नहीं प्राइवेट कंपनियों तक में भ्रष्टाचार है जिसे समाज ने अपना लिया न देने वाला को गलत लगता है न लेने वाले को,

  12. Your Editorial of today deals with various disguises/means that corrupt officials use to make money.Specially in Gujarat

    It is disgraceful indeed and we all must stay alert and not get caught in their network.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  13. ईश्वर करें अथवा यह कहना बेहतर हैकि सबको सुमति दें भगवान!
    भगवान ने सबको दी भी है मति किंतु इसका उपयोग तो हो। अब जब स्वार्थ सामने हो तो – – – -???
    गुजरात में रहने वालों को इतने विस्तार में पुरवाई झंझोड़ते रही है। इसके लिए धन्यवाद

    • प्रणव जी, गुजरात हमेशा सकारात्मक उपलब्धियों के लिये सुर्खियों में रहा है। मगर कुछ भ्रष्टाचारी अधिकारी सब मिट्टी में मिलाए दिये हैं।

  14. ‘रिश्वत किस्तों में‘ शीर्षक से प्रकाशित पुरवाई का यह संपादकीय भारत में सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतख़ोरी के संस्थागत होते जाने की कहानी है। आपने सही कहा है कि गुजरात ने देश को कई मामलों में नई राह दिखाई है और भ्रष्टाचार के मामले में भी वह नए प्रतिमान गढ़ रहा है।
    परंतु भारत में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है । युगों-युगों से यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। यह अलग बात है कि आज यह भगवान कृष्ण की तरह अपना विराट रूप दिखा रहा है और इसकी परिव्याप्ति देश के कण-कण में है।
    भारत में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में रिश्वतख़ोरी का सामना करना नहीं पड़ा हो।
    दरअसल रिश्वतख़ोरी इतनी आम बात हो गई कि इस बात को अब कोई बुरा नहीं मानता। अब तो कई लोग इसे सुविधा शुल्क भी कहते हैं। हमने इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सामान्य रूप से अपना लिया है। अपनी छोटी छोटी सुविधाओं और फ़ायदे के लिए हर स्तर पर हम समझौता करने के लिए तैयार रहते हैं। कह सकते हैं कि यहाँ भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है।
    वैश्विक नागरिक समाज ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार, एशिया में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच के लिए रिश्वतखोरी भारत में सबसे अधिक है।
    इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि धीमी और जटिल नौकरशाही प्रक्रिया, अनावश्यक लालफीताशाही और अस्पष्ट नियामक ढांचे के कारण लोगों को बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने के लिए व्यक्तिगत संबंधों और छोटे-मोटे भ्रष्टाचार के माध्यम से वैकल्पिक समाधान तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    भारत में इन दिनों Neet ,UGC , NET की परीक्षाओं में हुई धांधली और पेपर लीक सुर्ख़ियों में है और लाखों विद्यार्थियों का भविष्य ख़तरे में है। लेकिन समाधान दूर दूर दिखाई नहीं दे रहा है।

    • तरुण भाई, पत्रिका में आपकी पहली टिप्पणी का विशेष स्वागत है। आपकी सार्थक और गंभीर टिप्पणी संपादकीय को समझने में सहायक सिद्ध होगी।

  15. आपका यह संपादकीय भारत में सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतख़ोरी के संस्थागत होते जाने की कहानी है। आपने सही कहा है कि गुजरात ने देश को कई मामलों में नई राह दिखाई है और भ्रष्टाचार के मामले में भी वह नए प्रतिमान गढ़ रहा है।
    परंतु भारत में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है । युगों-युगों से यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। यह अलग बात है कि आज यह भगवान कृष्ण की तरह अपना विराट रूप दिखा रहा है और इसकी परिव्याप्ति देश के कण-कण में है।
    भारत में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में रिश्वतख़ोरी का सामना करना नहीं पड़ा हो।
    दरअसल रिश्वतख़ोरी इतनी आम बात हो गई कि इस बात को अब कोई बुरा नहीं मानता। अब तो कई लोग इसे सुविधा शुल्क भी कहते हैं। हमने इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सामान्य रूप से अपना लिया है। अपनी छोटी छोटी सुविधाओं और फ़ायदे के लिए हर स्तर पर हम समझौता करने के लिए तैयार रहते हैं। कह सकते हैं कि यहाँ भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है।
    वैश्विक नागरिक समाज ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार, एशिया में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच के लिए रिश्वतखोरी भारत में सबसे अधिक है।
    इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि धीमी और जटिल नौकरशाही प्रक्रिया, अनावश्यक लालफीताशाही और अस्पष्ट नियामक ढांचे के कारण लोगों को बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने के लिए व्यक्तिगत संबंधों और छोटे-मोटे भ्रष्टाचार के माध्यम से वैकल्पिक समाधान तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    भारत में इन दिनों Neet ,UGC , NET की परीक्षाओं में हुई धांधली और पेपर लीक सुर्ख़ियों में है और लाखों विद्यार्थियों का भविष्य ख़तरे में है। लेकिन समाधान दूर दूर दिखाई नहीं दे रहा है।

  16. आजकल तो पैसा सबसे बङी चीज है। न इंसान की कोई कद्र है न इंसानियत ही शेष है। यह भी संस्कारगत मुद्दा है । जब तक वे सच्चाई और ईमानदारी से दूर हैं वे सदैव भ्रष्ट ही रहेंगे।

  17. हमेशा की तरह सम्पूर्ण अन्तर्दृष्टि के साथ एक ज़रूरी मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करने में सफल संपादकीय।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ

    • युवा पीढ़ी द्वारा संपादकीय पर टिप्पणी पुरवाई की महत्वपूर्ण उपलब्धि है शिवानी। स्नेहाशीष।

  18. सचमुच बहुत क्षोभभरा मंजर है। मोदी और योगी दोनों खुद ईमानदार होने के बावजूद सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार रोक नहीं पा रहे हैं जो दैत्याकार होता जा रहा है।

  19. आपका संपादकीय रिश्वत लेकर बेइमानी में भी इमानदारी का नया फाॅर्मूला लेकर आए इस नये चलन पर प्रकाश डालता है। बधाई
    @ईश्वर करुण, चेन्नै

  20. संपादकीय पर ,वक्त पर लिखने के लिये वक्त नहीं निकाल पाए। हालांकि पढ़ लिया था। इसके लिए क्षमा कीजिएगा तेजेंद्र जी!भाई के रिटायरमेंट का फंक्शन था ।सभी बहनें भी आई हुई थीं और जब सब लोग रहते हैं तो सिर्फ बातें होती हैं मोबाइल कहाँ रखा जाता है यह पता ही नहीं चलता ।सिर्फ दिन में नहीं बल्कि आधी रात तक। बस यही कारण रहा।
    भ्रष्टाचार के मूल में रिश्वत ही है। जितना बड़ा काम उतनी बड़ी रिश्वत ।स्वार्थ का भाव इसे पल्लवित करता है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ रिश्वत न ली जाती हो।
    आपने इस संपादकीय में जिस कहानी का जिक्र किया है ,,वह कहानी हम पहले से नहीं जानते थे लेकिन आपके संपादकीय से दो दिन पहले ही हमने उस कहानी को किसी संदर्भ में पढ़ा है, पर कहाँ, यह याद नहीं।
    जिसके मन में लालच आ जाता है वह अपने स्वभाव को बदल नहीं पाता। जैसे ही कोई नियम बनते हैं वैसे ही उसके कोई ना कोई तोड़ भी निकल आते हैं। गुरु एक कदम चलता है तो चेला दो कदम आगे बढ़ जाता है।
    कोई व्यक्ति कितना भी ईमानदार बनने का प्रयास कर ले पर यह दुनिया उसकी आँखों में धूल झोंकने के हजार रास्ते तैयार कर लेती है।
    स्वार्थपूर्ति में ढील नहीं देंगे, हाँ! थोड़ा कंप्रोमाइज कर लेंगे कि रिश्वत को किस्तों में ले लिया जाएगा। नैतिक पतन की हद है। हमें तो छोटी-छोटी बातों पर भी भगवान के प्रति आस्था सचेत रखती है कि गलत काम करेंगे तो भगवान कहीं ना कहीं दंडित करेगा।
    आप विश्वास नहीं करेंगे तेजेन्द्र जी!पहले जब लॉटरी चलती थी तब हमारे छोटे बेटे ने ₹1 की डेली लॉटरी से एक टिकट खरीदी। और उसके ₹3000 मिले। लॉटरी की टिकट खरीदने पर सख़्त पाबंदी थी। वह जानता था कि घर में डाँट पड़ेगी इसलिए उसने वह रुपए अपने एक दोस्त के पास रखवा दिये। उसी दिन हम ने अपने खाते से ₹3000 निकलवाए साथी ने कहा भी कि तुम अपने पैसे अपने पास ही रखो पर हम दुकान में उनके पास रखवा कर स्कूल चले गए और दुकान की पेटी से हमारे वह ₹3000 निकल गए।हालांकि बाद में पता चला कि वह नौकर ने चुराए थे और वह खर्च भी कर दिए थे, लेकिन चले तो गए! और जब बेटे का पता चला तो उसको बहुत डाँट पड़ी।
    ऐसे ही एक बार साबूदाने लाने के लिए बेटा 50रु लेकर गया दुकानदार ने 100 का नोट समझ कर उसे₹6 की बजाय ₹56 वापस कर दिए उस समय बब्बल छोटा था। उसने हमको साबूदाने देने के साथ-साथ यह किस्सा भी सुनाया तो हमने उसको कहा कि तुम तुरंत जाकर ₹50 वापस करके आओ उसने कह दिया आई लक्ष्मी कोई नहीं लौटाता। एक घंटा भी नहीं हुआ था और साथी की तबीयत बहुत खराब हो गई। इतने सीरियस हो गए थे कि डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। उन्हें धड़कन की प्रॉब्लम थी। बी पी नॉर्मल रहता था लेकिन धड़कन बहुत ज्यादा बढ़ जाती थी। डॉक्टर ने बताया था कि लाखों करोड़ों में किसी को यह प्रॉब्लम होती है।रात को 2:30 बजे तक ही कुछ कहा जा सकता है। यह सुनकर हमने तुरंत उसे बुलाया और उससे पूछा कि तुमने पैसे वापस किये थे कि नहीं? उसने नहीं किए थे। हमने बहुत डाँट लगाई और तुरंत वापस करने के लिये भेजा।
    रात को 2:30 बजे तक आधे से ज्यादा होशंगाबाद हॉस्पिटल के सामने खड़ा था और ईश्वर की कृपा से साथी ठीक हो गए।
    ईश्वर के प्रति विश्वास इंसान को गलत काम करने से रोकता है। यह अघोषित दंड की तरह होता है। इसीलिए इसका भय ईमानदार बने रहने के लिए प्रेरित करता है। जो लोग भगवान को सिर्फ मंदिरों तक सीमित मानते हैं उन्हें किसी भी प्रकार के गलत काम करने में भय नहीं लगता।
    काश इंसान इस बात को समझ पाता कि किसी दूसरे को तकलीफ देकर आप सुख की अपेक्षा नहीं कर सकते। तत्काल में उसका परिणाम भले ही अच्छा दिखाई देता हो लेकिन भविष्य में वह गाज बनकर गिरता है। आज नहीं तो कल, आप नहीं तो आपका परिवार, आपके बच्चे, उसके चपेट में आएँगे ही। अपने दीर्घकालीन अनुभव में हमारा यह एक अनुभव भी शामिल है।
    इस संबन्ध में एक शेर हम कभी नहीं भूलते।
    *मंदिर तोड़ो मस्जिद तोड़ो*
    *ना इसमें कोई मुज़ाका है*
    *पर दिल मत तोड़ किसी का बंदे*
    *यह घर खास खुदा का है।*
    किसी असमर्थ के मेहनत की कमाई को जब कोई रिश्वत के रूप में लेता है तो उसके लिए दुआ तो नहीं निकलती होगी ना? किश्तों का आश्वासन, लाभ या छूट आपके अपराध को कम नहीं कर देता।
    इंसान का यही नैतिक पतन उसके लालच को बढ़ावा देता है। पैसा बहुत कुछ हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं होता, लोग इस बात को समझ नहीं पाते।
    भ्रष्टाचार की यह स्थिति इस हद तक पहुँच चुकी है कि इसका सुधरना नामुमकिन सा ही है।
    हर शख्स स्वयं को सुधार ले तो सब सुधर जाएँ। जानते सब हैं ,समझते सब हैं लेकिन करना कोई नहीं चाहता। भ्रष्ट अधिकारी के चलते काम निकालने के लिए रिश्वत देना इंसान की मजबूरी बन जाता है।
    मकान के लिए लोन लेते समय मैनेजर को रिश्वत देते हुए यह मजबूरी महसूस हुई। और ना चाहते हुए भी ऐसा करना पड़ा।
    भ्रष्टाचार की जड़ें जमीन में इतनी गहरी है कि उसका नष्ट होना तो नामुमकिन नहीं तो मुश्किल तो निश्चित है। पहले मंत्रियों को स्वयं को ही सुधारना जरूरी है। नेता लोग तो स्वयं आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं।
    किस्त में रिश्वत लेना राहत का नया तरीका है, पर कितना और किसके लिये?
    यह विमर्श का विषय है। विचारणीय और बेहद गंभीर विषय आपने संपादकीय में उठाया है।
    आपके संपादकीय सामाजिक विसंगतियों के विरोध में एक तथ्यपूर्ण सशक्त आवाज की तरह हैं।
    पुरवाई का आभार है जिसके माध्यम से आपको पढ़ना सहज हुआ।
    एक शंका का निवारण हुआ-हम किश्त लिखते हैं,आपने किस्त लिखा है। हम कन्फर्म थे कि किश्त शब्द सही है। पर आपकी किस्त को देखकर हमें अपने प्रति शंका हुई। सही शब्द कौन सा है यह जानने के लिए हमने गूगल में सर्च किया। पता चला कि शब्द तो दोनों ही सही हैं लेकिन अर्थ दोनों के अलग-अलग हैं।
    और यहाँ पर आपका किस्त शब्द सटीक बैठता है आज हमें हमारी एक गलती और मालूम पड़ी, जिसमें सुधार हुआ। शुक्रिया तो इसके लिए भी विशेष रूप से बनता है आपका,सो शुक्रिया पुन:।

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