Tuesday, September 17, 2024
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साहित्य अकादमी में पुस्तक लोकार्पण एवं चर्चा

हाल ही में कस्तूरी द्वारा आयोजित कार्यक्रम किताबें बोलती हैं: सौ लेखक, सौ रचना में कथाकार वंदना यादव जी की क़िताब “सैनिक पत्नियों की डायरी” पर चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार सच्चिदानंद जोशी ने की। 
मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षाविद प्रो. संध्या वात्स्यायन का तथा वक्ता रूप में कवि एवं गज़लकार लक्ष्मी शंकर वाजपेई जी का सान्निध्य मिला। 

सर्वप्रथम लक्ष्मी शंकर वाजपेई ने अपने वक्तव्य में पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा, “साहित्य जगत में यह पहली पुस्तक है जो सेना में तैनात अधिकारियों की पत्नियों पर द्वारा लिखी गई है। इस किताब में उनके संघर्ष, उनके साहस, उनकी निडरता और परिवार को सहेजने की ताकत दिखाई देती है। इस पुस्तक को इसलिए भी पढ़ना जरूरी है क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण की एक मिसाल आपको यहां देखने को मिलेगी”
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. संध्या वात्स्यायन ने पुस्तक के सभी आलेखों पर प्रकाश डाला और बताया, “सैनिक जीवन को पास से देखने की उनकी बहुत इच्छा थी, इस पुस्तक के माध्यम से उन्हें बहुत सारी जानकारियां मिलीं। उन्होंने सैनिक पत्नियों के जांबाजी के अनेक किस्से सांझा किए और उन किस्सों से सीख लेने के लिए भी कहा। जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को जिससे हम हार मान लेते हैं सैनिक की पत्नियों के लिए वह एक दैनिक समस्या की तरह होती है।” 
पुस्तक की संपादक कथाकार, वंदना यादव ने एक कर्नल की पत्नी के रूप में जिस तरह का जीवन जिया, उसे हमसे सांझा किया और कुछ दिलचस्प किस्से भी सुनाए। वंदना जी ने बताया इस किताब की शुरुआत ही हमारे जीवन के पहलुओं को सामने लाने की सोच से हुई, फिर सब का साथ मिला और किताब आज आप सभी के हाथ में है।

तत्पश्चात पुस्तक में शामिल सभी आलेख की रचनाकारों ने अपने-अपने मत हमारे समक्ष रखे। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, “इस पुस्तक को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए वंदना जी बधाई की पात्र हैं और इस पुस्तक के आने से सैनिक परिवारों के संघर्ष और परिवेश तो हमें पता चला ही साथ ही जीवन जीने की एक नई दृष्टि भी प्राप्त हुई जो अनुकरणीय है।
पुस्तक की चर्चा विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में अवश्य होनी चाहिए ताकि युवाओं का जीवन इस पुस्तक से प्रभावित हो।” धन्यवाद ज्ञापन कथाकार वंदना वाजपेई जी ने किया तथा संचालन साहित्य एवं कला अध्येता विशाल पाण्डेय ने किया। पूरी तरह भरा सभागार में कथाकार भावना शेखर, कवि नीलम वर्मा, पत्रकार, कथाकार प्रियदर्शन, योगिता यादव, ओम निश्चल, श्रीमती निर्मला यादव, चित्रा यादव,  मनीषा जयंत, शिवी सिंह, अशोक गुप्ता आदि गणमान्य उपस्थित रहे।
पुस्तक प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है।


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