Friday, October 18, 2024
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सुमन शर्मा की ग़ज़लें

1
फ़िर मुझको मुझसे मिला दे,
मेरे अशआ’र मुझको सुना दे।
चल ख़्वाबों के जहां में ले चल,
चैन की नींद मुझको सुला दे।
भूला हुआ हूँ मैं खुद का चेहरा,
आँखों में तस्वीर मुझको दिखा दे।
किया खुद को मैंने तेरे हवाले,
संवार चाहे या मुझको मिटा दे।
मुकम्मल नहीं जो चाहें यहाँ पर,
होता क्यों ऐसा है मुझको बता दे।
2
बिन तेरे आयी ये कैसी रात है,
ख़्वाहिशों की बरस रही बरसात है।
दमक दमक कर दामिनी डराये,
चाँद तारों की भी न आयी बारात है।
अम्बर ने बरसा कर अमी रस,
धरा को दी अपने प्यार की सौग़ात है।
मंद है चंचल पवन की रागिनी,
पुष्प पल्लव की हवाओं से मुलाक़ात है।
राग के सुख बीज को बोती हुई,
रात ये आयी बनकर शब्द ए रात है।
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1 टिप्पणी

  1. आदरणीय सुमन जी! आपकी गजलें साधारण लगीं
    शेर जो अच्छे लगे-
    1
    मुकम्मल नहीं जो चाहें यहाँ पर,
    होता क्यों ऐसा है मुझको बता दे।
    2
    अम्बर ने बरसा कर अमी रस,
    धरा को दी अपने प्यार की सौग़ात है

    मंद है चंचल पवन की रागिनी,
    पुष्प पल्लव की हवाओं से मुलाक़ात है।
    बधाइयां आपको

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