Friday, October 18, 2024
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लालित्य ललित का व्यंग्य – पांडेय जी सम्मान मंडी में

पांडेय जी उसी बात से नाराज है कि एक अज्ञात किसिम की संस्था ने उनका नाम संचालन के लिए पोस्टर बना कर छाप दिया;उन्होंने रामखेलावन ने कहा कि यह कोई अच्छी बात नहीं,बल्कि संकेत है कि संस्थाएं किस प्रकार रचनाकारों के लेखन दायित्व का दोहन करने में आगे हैं!
यह बात रामखेलावन के समझ में नहीं आई,बल्कि कुछ  चाटुकारों ने तो यहां तक कहा कि रामखेलावन बहुत जल्द प्रेमचंद बनने की कतार में है!!
यह सुनकर विलायती राम पांडेय ने अपना सर पीट लिया कि कितने बुरे दिन आ गए! हिंदी साहित्य के!
और पोस्टर में जो रचनाकार शामिल किए गए थे उनका लिखा भी बहुत ज्यादा नहीं था जो कहीं उल्लेख किया जाएं।
उन्होंने महाकवि का भी जिक्र किया जो गाहे बगाहै कहीं भी जाने को तैयार रहते है,बस यही आदत विलायती राम पांडेय को आजकल रास नहीं आ रही।
ऐसा ही पिछले दिनों हुआ।किसी संस्था ने अपने को चमकाने के लिए सौ से ऊपर सम्मान बांटने का मन बनाया और काम पर बुजुर्ग किसिम के उन लेखकों को लगा दिया जो अब किसी काम के नहीं रह गए,आई मीन अब उनका यही काम बचा है कि किसी के भी लेखन में कोई न कोई मीन मेख निकाला जाएं और किसी को भी बलि का बकरा बनाया जाएं।
एक व्यंग्य लिखने वाली महिला का नाम समालोचना के लिए तय कर दिया गया,जबकि उक्त महिला का दूर तक भी व्यंग्य समालोचना में न कोई दखल था और न ही अभी ऐसी वैसी भी समझ विकसित हुई थी।चुनांचे उसने हल्ला कर दिया,और सम्मान मंडी में आरोप प्रत्यारोप के मामले शुरू हो गए।आयोजन समिति के प्रमुख कर्ता धर्ता ने भी खुलकर आंदोलन को सजीव कर दिया और फिर शुरू हुआ स्नैप शॉट से लेकर वाटसप आंदोलन।मामले ने तुल पकड़ा,कुछ पक्ष में आ गए और कुछ विपक्ष में।
हुआ यहां तक जब राधेलाल शर्मा ने कहा कि शाम को फलानी जगह आ रहे है! तो पांडेय जी ने जवाब दिया न तो मैं महत्वाकांक्षी हूं और न दरबारी हूं।पांडेय जी ने कह दिया।ऐसा इसलिए भी किया कि वे अब इस तरह के आयोजन में अपनी ऊर्जा नष्ट करना नहीं चाहते थे,बल्कि कुछ ठोस करना चाहते थे।
अंतर्मन कुमार ने कहा पांडेय जी,देखिएगा कहीं आपका नुकसान न हो जाएं,ये दुनिया आजकल स्वार्थ जैसे विषयों पर केंद्रित है,उसी पर चल रही है,आप सामने वाले की हां जी हांजी करो तो आपको सभी तरह की सुख सुविधाएं मिल जाएगी,अन्यथा आप कतार में ही खड़े रह जाएंगे।

पांडेय जी ने देखा सम्मान मंडी एक पांच सितारा होटल में आयोजित है,आयोजक सिल्क कुर्ते में घूम घूम कर मुस्करा रहा है मानो मैंने कोई किला फतह कर लिया।

जबकि रामकिशन पुनिया ने कहा:हद होती है शराफत की,यह हो क्या रहा है!
और पास जाते हुए वेटर को रोका और मोहितो का आचमन करते हुए कहा: पांडेय जी इसका स्वाद तो हाजेमदार है, पांडेय जी मुस्करा दिए।
उधर रामखेलावन माइक पर थे और शब्दों से फुटबाल खेलते हुए कभी शब्दों को पचा रहे थे और कभी उसे लिट्टी चौखा खिला रहे थे। पांडेय जी सोचने लगे कि काम तो बढ़िया है संचालन का,यदि ढंग से किसी बेहतर संचालक का भुगतान किया जाए और चयन हो तो कार्यक्रम में चांद लग सकता है,लेकिन आयोजक को पता है कि कहां पैसा लगाना है और कहां नहीं!
देविका गजोधर ने बताया सरजी कुछ गुलदस्ते आयातित किए गए है,मसलन दिल्ली से बाहर से आए है और इसी होटल में ठहराए गए गई,यानी आगे के लिए मैच फिक्स।
कहां जाएगा हमारा देश,अब क्रिकेट मैच की तरह साहित्य के सम्मान भी फिक्स होने लगे है।अंदर की बात तो यह कि दरबार पहले भी था और दरबारी कवि पहले भी।उसी तर्ज पर यह परपंरा चली आ रही है।सुनकर पांडेय जी कुछ सोचने लगे:

आत्ममुग्ध लोगों का पता / लालित्य ललित

मुझे पता है
आत्ममुग्ध लोगों के रहने का पता
वे चाहते है
कि उनके जीते जी
उन्हें देश का बड़ा सम्मान मिल जाए
किसी महल्ले का प्रवेश द्वार
संकेत सूचक पट्टी उनके बारे में दर्शाती हुए नजर आए
कि फलाने लेखक यहां रहते थे
गली के नुक्कड़ पर तीसरा मकान उन्हीं का है

पार्क में लोग
बातें करते हुए कहेंगे
बड़ा हंसमुख व्यक्ति था
किसी अज्ञात बीमारी के चलते चल बसा
बुढ़ापे के मजे भी ले न पाया
कुछ दिन और जी लेता तो कमसे सोने पर सुहागा होता

किसी ने कहा
पर जी होनी को कौन टाल सकता है भला
जिसने जाना है हरि के द्वार
वह तो सोते सोते ही चला जाता है

सच्ची स्वर्ग ही गया होगा
मिलनसार था
दूसरे ने कहा सेटिंगबाज भी था
वहां भी जुगाड कर लिया होगा
क्या पता
कैसे कैसे लोग है!
जो यहां भी और वहां भी नेटवर्किंग करना छोड़ते कहां है
हे राम
क्या जमाना आ गया!

तभी आवाज़ आई
राम नाम सत है
हरि का नाम सत है

मतलब गया
टाटा,बाय बाय
यानी महल्ले का नाम
सूचना पट्टी पक्की!

गजब है
क्या क्या सोच लेते हैं
चल हवा आने दें
हुर…….

इतने में चीकू ने कहा: पापा जी,अपना मोबाइल देना,जरा एक पोयम का मतलब देखना है।पांडेय जी ने कहा अच्छा,देता हूं,बेटा,परिक्षा के लिए गंभीर हो जाओ,चीकू ने देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे वह कोई एहसान कर रहा हो,चीकू क्या आजकल सभी बच्चों का यही हाल है।

नए सेशन में चीकू का एडमिशन किसी और स्कूल में करवाना था,मसलन पुराने स्कूल में पढ़ाई पांडे जी के मन मुताबिक नहीं हो रही थी,दूसरा पांडेय जी को लग रहा था आने वाला समय प्रतियोगिता का है, पढ़ाई ठीक से होना बेहद जरूरी है,यह बात दीगर है पांडेय जी भी चीकू की उम्र में शरारती रहे थे,लेकिन मानने को तैयार नहीं था,दूसरा चीकू जितना आनंद खेलने में लेता था उतना ही समय रसोई में बिताता था,कभी कुछ और कभी कुछ। पांडेय जी को समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है! लेकिन अंतर्मन कुमार जरूर यह कहता कि पांडेय जी देखना जो भी होगा,एक दिन वह ब्रेकिंग न्यूज से कम नहीं होगा।

पांडेय जी ने सोचा दुनिया बड़ी विचित्र किसिम की है,कुछ तो ऐसे है जो किसी भी कीमत पर कुछ भी कर गुजरने से बाज आने वाले नहीं देखते।

फिर मन में विचार आया कि दुनिया बहु धंधी है अंधी है वह तो अलग बात है,बहरहाल अल्ला दीन का जिन्न मिल जाएं,सब फिराक में इसी बात को लेकर है, कसम आपकी जनाब।
आइए कहीं ओर ले चलता हूं तभी अंतर्मन कुमार ने कहा मथुरा वृंदावन की कोई मिठाई लाया था,क्या आपने रामप्यारी जी को खिलाई! ! पांडेय जी ने कहा नहीं,अभी तो नहीं खिलाई,खिला देंगे भोजन के समय,कहते है न! मिठाई मिठाई को खींचती है,देखते है कल क्या मिठाई वाकई में किसी और मिठाई को खींच कर ले आएंगी!
शाम को दफ्तर से आने के बाद पांडेय जी ने देखा कि ठंड अभी गई नहीं,स्वेटर पहनने के लिए उन्होंने रामप्यारी से कहा कि लगता है मौसम अभी जाने वाला नहीं।
रामप्यारी ने कहा कि हिमाचल में बर्फ बारी हुई नहीं कि दिल्ली में मौसम ठंडा हुआ!
पांडे जी कभी मौसम को देखते है और कभी अपने आपको देखते है!

सम्मान जिसे मिला,वह खुश हुआ और जिसे नहीं मिला,उसने जुगत नाम के शब्द का अनुसंधान किया।किसी ने राधेलाल के पांव पकड़ने का प्रयास किया तो किसी ने पांडेय जी पर डोरे डालने की चेष्टा की,कोई महाकवि को लुभाने लगा तो कोई अलाने जी से संबंध गांठने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

यानी जमाने के अनुसार लोग अपनी बिसात बिछाने में लग गए। कि इस बार न सही तो अगले वर्ष बाजी मार ले जाएंगे!

अब बात कायदे की,यदि आपको पुरस्कार मिल भी गया तो क्या हो जाएगा!

कुछ नहीं
कुछ किताबें बिक जाएगी
कुछ पैसे खाते में आ जाएंगे और क्या!
कुछ दिन जी लोगे फिर बीमार,अस्पताल,इलाज
कहानी खतम
दी एंड।
तभी पांडेय जी को सपना दिखाई दिया सोते सोते पुरस्कार ले लो,ताम्रपत्र ले लो, सम्मानित हो जाओ,किताब छपवा लो,भूमिका लिखवा लो, चर्चा करवा लो,सम्मान ले लो,स्थानीय स्तर पर,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर। अपना बजट बताओ, लोकार्पण करवा लो,चर्चा करवा लो।
इतने में पांडेय जी ने करवट ली और बिस्तर से गिर गए।
रामप्यारी ने कहा कि क्या हुआ!
गिरे कैसे!
पांडेय जी ने कहा सम्मान मिल रहा था कि रामकिशन पुनिया ने भांजी मार ली,पता नहीं देविका गजोधर ने पाला कैसे बदल लिया!
रामप्यारी ने कहा काहे सपने की दुनिया में घूमते हो!
सच्चाई से वास्ता रखो,वही काम आएगा!
आई बात समझ में!
अच्छा सुनो,नए सेशन में चीकू का एडमिशन होना है,इस बात का ध्यान रखना।
ठीक है अन्नपूर्णा जी,याद रखूंगा,चिंता नक्को जी।
कहते हुए पांडे जी भोजन करने लग गए। कहते हैं, भोजन घर का हो लंगर का हो,भोजन भोजन होता है,कुछ समझ रहे हो न!
अंतर्मन ने कहा पांडेय जी तुसी ग्रेट हो,आजकल बातें बड़ी जल्दी समझ लेते हो! पांडेय जी ने कहा,जल्द समझना बेहतर है,देखिए न जो काम हो जाएं,बढ़िया है और जाना तो सभी ने हरि के द्वार है,सुनते ही राधेलाल शर्मा नो दो ग्यारह हुए,जब से उन्हें सम्मान मिला है,सुना है फूले नहीं समा रहे,कोई बात नहीं,पांडेय जी ने मन में कहा गुब्बारा चाहे कितना ही उड़ ले,आएगा तो नीचे ही,तब की तब देखा जाएगा।
वास्तव में मनुष्य कितना निरीह प्राणी है जो सम्मान के लिए भटक रहा है, कि कोई  भी संस्था बेशक बैक डोर एंट्री कर सम्मानित कर दे,बाकी जिसने जो समझना हो समझता रहे।
तभी रामप्यारी ने कहा कि बेमतलब बड़बड़ाओ मत जब से कार्यक्रम से लौटे हैं पता नहीं क्या भूत चढ़ गया है दिमाग में,सम्मान ले कर रहेंगे,अगला दे या न दें,देख लेंगे,क्या समझता है यह! रामप्यारी विलायती राम पांडेय को बड़बड़ाता छोड़ गई, कि कुछ देर में सो ही जाएंगे,पता नहीं क्या हो गया है इन्हें…..

लालित्य ललित 
संपर्क
बी 3/43, शकुंतला भवन
पश्चिम विहार,नई दिल्ली 110063
[email protected]
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3 टिप्पणी

  1. बेहद मानीखेज परंतु चुटीला और पैना व्यंग्य।
    बधाई हो डॉक्टर ललित लालित्य जी और आदरणीय संपादक श्री तेजेंद्र शर्मा जी को शानदार प्रस्तुति हेतु।

  2. साहित्य जगत में मिलने वाले सम्मानों को लेकर जो कुछ हो रहा है,जो रेलम फेल मची है, जो तिकड़में लगती हैं उस पर अच्छा व्यंग लिखा है ललित जी आपने।
    लोगों को झटके भी अच्छे लगते हैं और दौरे भी अच्छे आते हैं।
    इतना गहरा असर कि सपने में भी पीछा नहीं छूटता।
    शीर्षक बहुत जोरदार रखा आपने! वास्तव में यह मंडी से अलग या कम नहीं।
    बधाई ललित जी !एक बेहतरीन व्यंग के लिये।

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