होमपुस्तकसूर्य कांत शर्मा की कलम से 'पांडे जी की दिलकश दुनिया' की... पुस्तक सूर्य कांत शर्मा की कलम से ‘पांडे जी की दिलकश दुनिया’ की समीक्षा By Editor July 27, 2024 0 346 Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp पुस्तक – “पांडे जी की दिलकश दुनिया” प्रकाशक- स्वतंत्र प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली लेखक- डॉ लालित्य ललित मूल्य (पेपर बैक) – रुपए 299 आईएसबीएन 978-93-5986-397-9(पेपर बैक) व्यंग्य लेखन सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है। व्यंग्य केवल वही लिख सकता है,जिसने पहले अपने दुःख और कड़वे अनुभवों पर हँस कर दुनिया को समझा और सीखा होगा। हमारी संस्कृति में कबीर,तेनाली रामा से लेकर हरिशंकर परसाई, काका हाथरसी, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, शंकर पुणतांबेकर, नरेंद्र कोहली, विष्णु नागर, ज्ञान चतुर्वेदी, सूर्यकांत व्यास, गोपाल चतुर्वेदी, के पी सक्सेना, हुल्लड़ मुरादाबादी और वर्तमान में प्रेम जनमेजय, आलोक पुराणिक आदि जैसे पुरोधा और व्यंगकार रहे हैं। पौराणिक परिपेक्ष्य में, नारद जी न केवल प्रथम पत्रकार हैं, वरन वह अपनी वक्रोक्तियों, कटाक्षों, समग्र व्यंग्य विधाओं के लिए भी जाने जाते हैं। कथाओं, कहानियों में तो वे अपने बुद्धि और व्यंग्य चातुर्य से दशा–दिशा और परिणाम को भी बदल देते हैं। अस्तु कहने का तात्पर्य है कि इसमें रेखांकित होने वाली विधा व्यंग्य है। तिस पर भी यह एक दुधारी तलवार जैसी विधा है, बस ज़रा सा चुके नहीं कि स्वस्थ व्यंग्य भौंडे/भद्दे प्रकरण में बदल जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि व्यंग्य में औचित्य,बुद्धिमत्ता,संतुलन, सृजनात्मकता और सकारात्मकता का समावेश ही उसे सहज–सरल और गुदगुदाने या फिर हल्की सी शोखी से चिकोटी काटने वाला अमोघ अस्त्र बनाता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रेम जनमेजय के व्यंग्य हास्य की स्मित पाठकों के चेहरों पर देखी जाती रही है, उसी कड़ी में एक और सहयात्री अपनी उपस्थिति पहले से ही प्रभावपूर्ण अंदाज़ में दर्ज़ करवा चुके हैं। परंतु हाल ही में यही व्यंग्यकार अपनी सद्य और यहाँ पर, समीक्षित पुस्तक से सुर्खियों और प्रासंगिकता के दायरे में हैं। अक्सर स्थापित लेखक, साहित्यकार, व्यंग्यकार कोई न कोई स्वनिर्मित कैरेक्टर या कैरेक्टर श्रृंखला को गढ़ते हैं और फिर अपनी व्यंग्य यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। यहां पर पांडेय जी मुख्य पात्र हैं और लेखक या सही अर्थों में व्यंग्यकार ने, इस चरित्र को लेकर चार सौ से अधिक व्यंग्य रचनाओं को एक अलग आयाम दिया है। उनमें से केवल इक्कीस व्यंग्य को छाँट कर यानी छँटे हुए व्यंग्य, पाठकों को परोसना असंभव नहीं तो दुष्कर कार्य अवश्य है। आजकल की आभासी और डिजिटल होती दुनिया और पाठक जगत में सधे सारगर्भित, सुरुचिपूर्ण और प्रसांगिक व्यंग्य, कटाक्ष, वक्रोक्ति से लबरेज़ लेखन और पुस्तक की महती दरकार है। आज का पाठक जीवन में बहुत ही संघर्षपूर्ण स्थितियों से रोज़ दो–चार होता है। आज़ादी के अमृतकाल खंड से गुज़र रहा भारतवर्ष, इस सजीव विधा का शैदाई है। कहा जाता है कि हास्य/कॉमेडी/व्यंग्य की उम्र बहुत छोटी या तितलीनुमा होती है। अतः नई–नई स्थिति, परिस्थिति, संदर्भ और आस–पास के घटनाक्रम से लेखक को सर्जना करनी होती है। पुस्तक में सृजित, पूरे के पूरे इक्कीस व्यंग्य के इंद्रधनुष का व्यंग्यरथी, अपने तरकश में, कविता तथा संबद्ध विधाओं के अस्त्र–शस्त्र लेकर चला है। अपनी सृजन यात्रा में उनका उपयोग बहुत ही सूझबूझ से कर पाठकों को हँसाने के साथ–साथ एक स्वस्थ मानसिकता के निर्माण का उपक्रम भी इस पुस्तक में स्थान–स्थान पर परिलक्षित होता है। कुछेक बानगी प्रस्तुत हैं: ‘तापमान फिर अपने ही रिकॉर्ड ध्वस्त करता हुआ,गड़बड़ी के कारण फिर गरीब मरता हुआ।’ अब यह प्रदूषण के दंश की बात को रेखांकित करता है- “आज तक, कोई पैसे वाला, इलाज के लिए नहीं मरा है! उसे उसकी माहौल में जी लेने दो, कितने दिन बचे हैं, उसके पास खुली हवा के, जब ऑक्सीजन बिक रही बाजारों में।” अब यह अमीर और ग़रीब की बात को प्रस्तुत करता है- अगर अनुभव की मानें, तो स्वास्थ्य के लिए हास्य और व्यंग्य, एक टॉनिक की मानिंद है,जो उसे गुदगुदाता है, आस –पास के परिवेश को समझता है,आंखों पर पड़ा पर्दा हटाता है,समाज की विसंगतियों के प्रति सचेत कर उसमें एक सकारात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न कर और फिर जीवन यात्रा में कुछ ना कुछ मूल्यवर्धन करते हुए समाज को मानसिक समृद्धता की ओर ले जाता है। इन इक्कीस व्यंग्य सर्गों में यही अनुभूति पाठकों को महसूस होगी। कुछ व्यंग्य यथा पांडेय जी और बाबाओं का चक्कर, पांडेय जी चैनल अंतर्राष्ट्रीय सीमा, पांडेय जी, देविका और बिल्लो मखीजा, पांडेय जी और दिलकश दुनिया, इश्क में पांडेय जी, पांडेय जी और लपकू राम का मीटू, पांडेय जी और मैजेंटा लाइन, पांडेय जी और फालतू की टेंशन तथा पांडेय जी व्हाट्स एप ग्रुप की बीमारी। व्यंग्य लोक साहित्य और संस्कृति का अहम और नितांत आवश्यक हिस्सा है; तभी तो लोकोक्तियां और सूक्तियां उसका ही मूल्यवर्धित रूप हैं। इस पुस्तक में यथास्थान और यथासंभव उनके समुचित प्रयोग से,पाठकों को हमारे देश के बहुआयामी वैभिन्नता का कोलाज भी पढ़ने और समझने को मिलेगा। व्यंग्य परिभाषा पूरी नहीं होती, अगर उसमें प्रचलित हीरो–हिरोइन या फिर चर्चित व्यक्तित्व और फिर उसके तकिया कलाम एक अंदाज़ विशेष में ना प्रस्तुत किए जाएं। यहीं पर विगत के अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा भी अपनी अदा और डायलॉग विशेष के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। ऐसी ही कुछ कोशिश डॉक्टर लालित्य ललित ने भी की है। उनके कुछ संवाद विशेष /डायलॉग विशेष के उदाहरण हैं– प्रवासी टिंडे, प्रवासी पंछी, कौंधती हवा, अवतारी पुरुष, मानसिक कब्जियत आदि। वहीं लोकभाषा शब्दों के साथ–साथ उपमा का प्रयोग, व्यंग्य प्रकरण को चुटीला, पैना और सटीक बनाता है क्रमशः उदाहरण- झोट्टा, लत्ते, रबचिक, ढिबरी टाइट, मलूक, मेडल–शेड्ल। वहीं लोकोक्तियां और सूक्तियां भी इनकी व्यंग अध्याय में अपनी छटा निरंतर बिखेरती नज़र आती हैं। मज़ेदार बात यह है कि प्रचलित का, आवश्यकता अनुसार, शालीनता की सीमा में रह कर, उसका गुदगुदाने वाला परिवर्तन भी दर्शनीय है, संदर्भ हेतु– ‘दुर्लभ अवस्था में ही दौड़ गए’, ‘आनंद लीजिए दिल में डाउनलोड हो जाता है,’ ‘चचा बकिए आई मीन बोलिए’, ‘गुल खिलते हैं या गुलगुले बनते हैं’, ‘सरकारी योजनाओं का पता एक आम आदमी को कहां लगता है’, ‘जनता जनता जानना चाहती है’, ‘यूं गया जैसे मतदाता को किसी बाढ़ पीड़ित इलाके में खाद्य सामग्री का का थैला किसी हेलीकॉप्टर से लूटना है’, ‘हम उस देश के वासी हैं जहां ब्लाइंड लोगों के लाइसेंस भी पैसे लेकर बनवा दिए जाते हैं।’ व्यंग्य में, अगर विसंगति को औचित्य और गुदगुदाती सत्यता के साथ प्रस्तुत किया जाए तो इसकी बात ही कुछ और होती है और यही अहम बानगी या बानगियां इस समूचे व्यंग्य संग्रह में देखी और पढ़ी जा सकती हैं। हां,यह व्यंग्य पुस्तक अब ई–पुस्तक संस्करण में भी उपलब्ध है, अतः आप इसे अपने मोबाइल, लैपटॉप, किंडल या अन्य किसी भी प्रचलित, पॉपुलर मोड में अपनी इच्छानुसार पढ़ सकते हैं। चलते–चलते एक और बात, जो इस व्यंग्य–संग्रह या किसी भी पुस्तक की उपयोगिता में मूल्य वर्धन कर सकती है वह है, पुस्तक का ऑडियो संस्करण जो कि समय के अभाव से जूझते पाठकों या दिव्यांग जनों को भी पुस्तक पठन और आनंद से सराबोर कर सकता है। कुल मिलकर नैसर्गिक रूप से स्मित बिखेरने वाली पुस्तक बन पड़ी है, जिसे सभी आयु वर्ग के पाठक खरीद कर पढ़ना चाहेंगे। सूर्य कांत शर्मा फ्लैट नंबर बी वन मानसरोवर अपार्टमेंट प्लॉट नंबर तीन सेक्टर पांच द्वारका नई दिल्ली 110075 ईमेल – [email protected] Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp पिछला लेखडॉ आरती कुमारी की ग़ज़लेंअगला लेखलंदन में काशी की भव्यता और दिव्यता का समारोह Editor RELATED ARTICLES पुस्तक सूर्यकांत शर्मा की कलम से – रंगमंच मनुष्य की सनातन प्रवृत्ति: लक्ष्मीनारायण लाल August 31, 2024 पुस्तक सूर्यनाथ सिंह की कलम से – रचनाकार को रचना की तरह पढ़ते हुए August 31, 2024 पुस्तक सुरेन्द्र अग्निहोत्री की कलम से – मानवीय संवेदनाओं का चित्रण कहानी-संग्रह ’वो मिले फेसबुक पर’ August 17, 2024 कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें टिप्पणी: कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! नाम:* कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें ईमेल:* आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें वेबसाइट: Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed. Most Popular कविताएँ बोधमिता की November 26, 2018 कहानीः ‘तीर-ए-नीमकश’ – (प्रितपाल कौर) August 5, 2018 ‘हयवदन’ : अस्मिता की खोज May 2, 2021 अपनी बात…… April 6, 2018 और अधिक लोड करें Latest मेरी कहानियों में जो आपबीती होती है, वह जगबीती भी होती है- अवधेश प्रीत September 15, 2024 शोभना श्याम की लघुकथा – रिकवरी September 14, 2024 नीलिमा करैया की कविता – हमारी हिंदी September 14, 2024 डॉ. दिलबागसिंह विर्क का लेख – महिला टी 20 विश्व कप में भारत की दावेदारी September 14, 2024 और अधिक लोड करें