‘ममा. मुझे भी पिंजरा लाकर दो …मैं भी लाल चिड़िया के पिंजरे को घर में रखूँगा। आज अभी ” ।
रोनी सूरत बनाते ईशान ने आज एलान कर ही दिया । इसी वर्ष उसे पाँचवाँ साल लगा था यानी चार वर्षीय मुन्ना, पर जुबान गज भर की । दिन भर उसकी धमा-चौकड़ी चलती रहती । अब तो वह स्कूल भी जाने लगा था लेकिन वहाँ से भी हर दिन कोई न कोई एक नई शरारत सीख कर घर आता और रमा की नाक में दम कर देता । उसका दिमाग था या प्रश्नों की भट्टी,समझ न पाती थी रमा क्योंकि हर क्षण एक नया सवाल पैदा हो जाता था उस खुराफाती दिमाग में जिसका जवाब ढूँढ्ते उसकी शाम हो जाती थी । और फिर शाम को वह पार्क जाने के जिद्द करता । क्योंकि एक खासियत और भी थी ईशान में । और वो यह कि परिंदों से उसे विशेष लगाव था । इसीलिए पार्क जाकर कुछ देर वहाँ पहले वह झूले पर झूलता और फिर सांझ ढले घने पेड़ों के झुरमुट में डालियों पर मचलते कूदते शोर मचाते बड़ी- बड़ी चोंच वाले पंछियों को बडे विस्मय से देखता और खुश होता था । पंछियों की चहचहाहट उसे बहुत पसंद थी । और पार्क से लौटते समय गली के छोर पर उस दुमंजिला मकान के सामने उस के पाँव चुम्बक की तरह चिपक जाते थे जहाँ बरामदे में एक बड़ा सा खूबसूरत लाल पिंजरा था जिसमे लाल-पीली ,हरी नीली ,चिड़ियाँ चीं-चीं करती शोर मचाती ,एक सलाख से दूसरे पर कूदती हुई उछल-उछल कर उसे लुभाती थी और वो माँ की उँगली छोड़ झट से बरामदे में अंदर घुस जाता था जहाँ रहती थी उसकी शम्मी जी । ईशान उन्हें नानी कहता था और वे उसे देखते ही बांहे फैला कर उसका स्वागत करती ,अपना अतिशय दुलार उस पर उँड़ेलती हुई । उम्र तो पचास के आर-पार थी उनकी । पति गुजर गए थे । एक बेटा था और वो भी देश छोड़ विदेश में बस गया था और शायद एक पोता था मुन्ने की हम-उम्र का इसीलिए मुन्ने को देखते ही पंछी दिखाने के बहाने वे उसे अंदर बुलाती और दोनों पिंजरे के पास बैठे क्या बातें करते ये तो ईश्वर जाने, लेकिन इस बीच रमा के और दो चक्कर जरूर पूरे हो जाते थे गली के । पर आज जब अपने पिता के साथ वह बाजार गया था तो उसने एक दुकान में पंछियों को बिकते देख लिया था । तभी से एक ही रट लगाए था –लाल-चिडिया वाला पिंजरा चाहिए तो बस चाहिए ।
रमा ने उसे कितनी बार समझाया कि पक्षी आकाश के प्राणी होते है । उन्हें पिंजरे में बांधने से पाप लगता है । उन्हें खुले आसमान में छोड़ देना चाहिए पर वह अबोध माने तो न । आज तो जिद्द की हद ही हो गई । आज वह मानने के मूड में नहीं था । रमा ने टालने के बहाने से कहा ,
“ठीक है ईशान …कल हम पार्क के किसी पेड़ से पकड़ कर एक चिड़िया को घर लाएंगे बशर्ते अगर वह तुम्हारे साथ आना चाहे तो” ।
वह सशंकित सा माँ को देखने लगा और मुँह से निकला,
“नहीं । दुकान से खरीदेंगे” । उस मासूम प्रज्ञा को इस करतब की संभावित सम्भावना पर शायद विश्वास न आया ।
‘नो …पक्षी को कैद नहीं करते’ । रमा झल्लाकर चिल्लाई ।
“ तो शम्मी नानी के घर में क्यों है?” उसने भी चीख कर कहा । आयतन दोनों का समान – न कम न ज्यादा ।
अब स्पष्टीकरण आवश्यक था । रमा ने उसे पास खींचते हुए दूध का गिलास पकड़ा कर पुचकारते कहा,” ईशान मैं शम्मी नानी को भी कहूँगी और तुम्हें भी कितनी बार बता चुकी हूँ कि पंछियों को पिंजरे में रखना पाप है ।देखा तुमने पेड़ों पर वे कितने मजे से अपने साथियों संग मिलकर शोर मचाते है? वे उडना चाहते है ईशान ,उन्हें बाँध कर रखना ठीक नहीं है । रात को अंधेरे में उन्हें पिंजरे में डर भी लगता है । वे दुःखी होकर रोते है । तुम उन्हें रुलाना चाहते हो?”
“ नहीं’ । वह छिटक कर दूर खड़ा हो गया । “वहाँ मैंने देखा ,वे खुश है, खेलते हैं । मुझे चाहिए ” ।
रमा को समझ न आ रहा था कि उसे कैसे मनाए । उसने बनावटी सख्ती से कहा, ‘ तो तुम न मानोगे? हाँ ? मैंने कहा न कि पिंजरा खुशी नहीं देता … तुम्हें समझ नहीं आता? मैं तुम्हें प्यार से समझा रही हूँ और तुम्हें ममा की बात पर यकीन नहीं? चलो दूध पियो पहले’ ।
उसकी झिड़की का विपरीत असर हुआ और वह और भी भड़क गया ।
“नहीं तुम झूठ बोल रही हो …मैं दूध नहीं पियूँगा…” । ग़ुस्से से उसने गिलास हाथ से उछाल दिया ।
खन्नाक…….गिलास धरती पर औंधा गिरा और गाढ़ा दूध जमीन पर फैल गया । रमा का गुस्सा सातवें आसमान पर , त्योरियाँ चढ गईं ,फुफकारती हुई वह उठी, उसका कान पकड़ चिल्लाई , ‘ शरारती बच्चा ,चल आज बताती हूँ तुम्हें ।एक घंटा बंद होगा उस बाथरूम में न अंधेरे में तब पता चलेगा …। बहुत ढीठ हो गया है… टाइम आउट पनिशमेंट । अब नानी याद आएगी ..चल । शाम को आज पार्क भी कैंसिल … समझा” ।
रमा खींचते हुए उसे बाथरूम में ले गई । बाथरूम गीला था तो उसने उसे बाथरूम से ही सटे एक छोटे से कमरे में अंदर धकेल कर बाहर से दरवाजा बंद कर दिया । यह घर का वो कोना था जहाँ केवल अनावश्यक सामान रखा जाता था । कमरे में ऊपर एक बहुत ही छोटा सा रोशनदान था जिसमे से हल्की सी रोशनी की एक लकीर अंदर आ सकती थी । ग़ुस्से में उसने यह नहीं सोचा कि दरवाजा बंद करने से बिना रोशनी और हवा के कमरा घुटन से भर जाता था । पर ईशान चुपचाप अंदर जाकर खड़ा हो गया । यह सज़ा उसके लिए नई न थी । जब भी शरारत करता था तो बाथरूम में बंद होना पडता था पर इस कमरे में वह पहली बार बंद हुआ था । कमरे में नील अँधेरा , हवा और रोशनी न के बराबर । दीवार से सट कर वह चुपचाप बैठ गया ।
रमा फ़र्श साफ करने में मग्न थी । कुछ देर घर के काम में वह व्यस्त रही पर नजरें उसी कमरे की ओर ही लगी हुई थी। एक बार कमरा खोल कर देखा भी था मुन्ने को । किवाड़ की ओर टकटकी लगाए और मुँह फुलाए वह दीवार से सटकर बैठा हुआ था । उसने सोचा, बैठा रहे ऐसे ही अंधेरे में । गलती की सज़ा मिलनी ही चाहिए । खोल दूँगी कुछ देर बाद’ । काम से निपट कर वह बरामदे में गई और सामने नजर दौड़ाई । गली में अजीब शोर था । सड़क के किनारे कुतिया ने जो पिल्ले दिए थे ,वे कुईं-कुईं चिल्लाते इधर-उधर भाग रहे थे क्योंकि एक शरारती बच्चे ने अपनी छोटी सी साइकिल उनकी पूँछ पर चढ़ा दी और अब सब बच्चे मिलकर उन पिल्लों की मरहम पट्टी करने का प्रयत्न कर रहे थे । रमा खड़ी -खड़ी नज़ारे का आनंद लेने लगी ।
शाम गहराई और अँधेरा छा गया । अचानक उसने समय देखा, दस मिनट से ऊपर हो गए थे । सोचा इतना समय काफी है सज़ा का । वह तेजी से अंदर गई और दरवाजा खोला । जैसे ही दरवाजा खुला, ईशान एकदम से उससे लिपट गया ,डरा –डरा भयभीत आँखों से सुबकियाँ लेता । शायद अंधेरे से वह डर गया था । रमा को उस पर बहुत दया आई। नन्हे को इतनी कठोर सज़ा देने के अपराध बोध ने आग में घी का काम किया । वह उसे गोदी में उठा कर पागलों की तरह चूमने लगी और तुतलाती माफी माँगने लगी ।
“आइ एम चो चॉरी ईशान … सो सॉरी … । पर तुम ममा को सताते ही क्यों हो? ममा को तुम्हें सज़ा देना क्या अच्छा लगता है….बोलो?” वह उसे चूमती जा रही थी और ईशान तो गोंद की तरह उससे चिपक सा गया था कसकर उसे पकड़े।
‘तुम्हें चिड़िया चाहिए …यही न?” रमा ने प्यार से उसकी पीठ सहलाते पूछा । वह चुप रहा । रमा ने सोचा वह डरा हुआ है । अपने आप संभल जाएगा ।
पर वह तो अगले ही पल सिर उठाकर बोला, “ हाँ’ ।
‘अच्छा बोलो जब ममा ने तुम्हें बंद कर दिया था तो तुम्हें अच्छा लगा था?”
उसने कुछ सोचा और जवाब में सिर आडे हिला दिया ।
“तो क्या चिड़िया को बंद कर देंगे पिंजरे में तो क्या उसे अच्छा लगेगा?’
वह असमंजस में उसे देखने लगा ।
‘न बेटा .पिंजरे में वो भी डर जाएगी जैसे तुम डर गए थे और जब डर लगेगा तो रोएगी भी ।अब बोलो …अब भी चाहिए?”
उसने मुंडी स्वीकारोक्ति में हिलाई और मुंह से निकला ‘न’..। रमा मुस्कुरा कर रह गई ।
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अगले दिन दोनों शाम को सैर पर निकले । पार्क गए ,पंछी देखे और लौटते समय यंत्रवत ईशान फिर शम्मी नानी के घर के आगे रुक गया पिंजरे की ओर ताकता । वहाँ दो ही चिड़ियाँ थी ।
‘आज पूरन पोली बनाई थी रमा, मुन्ने को पसंद हैं न,ये लो इसे खिलाओ और एक तुम्हारे लिए भी । बैठो इधर । ’ शम्मी नानी की रोज की आदत ,कुछ न कुछ लेकर तैयार रहती थी मुन्ने को खिलाने । आज भी खड़ी थी हाथ में प्लेट लेकर ।
रमा ने मुन्ने को एक पोली दी और खुद एक टुकडा उठाकर मुँह में रख शम्मी जी से बतियाने बैठ गई ।
‘नानी दो चिड़िया कहाँ गई” । मुन्ने ने पास आकर उत्सुकता से पूछा ।
“उड गई’। शम्मी जी बात पलटती बोली , ‘छोड़ो , तुम पोली खाओ राजा’।
आसमान में कालिमा गहराने लगी। शम्मी जी ने बरामदे में लाइट जला दी । दूधिया प्रकाश से बरामदा नहा उठा ।
‘कल ईशान बहुत जिद्द करने लगा था आंटी कि इसे भी पिंजरा चाहिए,लाल चिड़िया चाहिए। आजकल बहुत शैतान हो गया है । बहुत बदमाशी करने लगा है …पता है कि कल …कल क्या किया इसने?” रमा बोले जा रही थी और शम्मी जी हौले-हौले मुस्कराती उसकी बातों का रस ले रही थी ।
‘क्या कांड कर दिया नन्हे ने’? उन्होंने हँसते हुए पूछा।
“कल तो पूरा का पूरा दूध नीचे गिरा दिया इसने जानबूझकर … और बंद हो गया अंधेरे कमरे में…सजा दी मैंने । पर हाँ आंटी दो चिड़ियाँ कहाँ गई ? दिख नहीं रही है ?” रमा ने पिंजरे की ओर इशारा करते कहा ।
“चिड़ियाँ…? मर गई । रात को दो चिड़ियाँ मर गई । पिंजरे में मैंने एक दर्जन से अधिक चिड़ियाँ पाली थी और एक एक करती वे मरती चली गईं । और पता है जब एक चिड़िया मर जाती है तो उसकी साथी चिड़िया भी कुछ ही घंटो में मर जाती है, हम इनसानों की तरह नहीं” । शम्मी जी के आँखों में नमी तैर आई ।
“सोच रही हूँ कि इन दोनों को भी उड़ा दूँ । शायद ये जीवित बच जाए । दुःख होता है उन्हें इस तरह मरते देखकर” । आज उनका लहजा काफी बिखरा-बिखरा लग रहा था ।
ईशान उन दोनों की बातों से निर्लिप्त पिंजरे के पास तख्ते पर खड़ा ध्यान से उन चिड़ियों को देख था । दरअसल पिंजरा कमरे की छत से लटकती एक लंबी लोहे की जंजीर से बंधा हुआ था । वहाँ लकड़ी का एक पाटा था जिस पर खड़े होकर ईशान चिड़ियों को देखता था ।
अचानक पता नहीं क्या सूझा मुन्ने को, उस ने धीरे से पिंजरा खोल दिया । दोनों चिड़ियाँ कुछ पल पहले तो वहीं बैठी रही फिर थोड़ा सा कूद कर आगे आई और सावधानी से उस छोटे से दरवाजे से निकल कर पंख फड़फड़ाती फुर्र से उड़ गई । पंखों की फड़्फडाहट से दोनों को ध्यान बंटा और इससे पहले रमा या शम्मी जी उठकर पिंजरा बंद करती, दोनों चिड़ियाँ एक दम से उड़ कर घर से बाहर सड़क पर लगे बिजली के खंबों की तार पर जा बैठी । रमा स्तब्ध – सोचा ही न था कि ईशान ऐसा भी कर सकता है । कितनी महंगी चिड़िया थी, फुर्र से उड़ा दी । वह सकपका गई । कुछ सूझ ही न रहा था कि क्या कहे । बनावटी गुस्सा दिखाती उस पर चिल्लाई, ‘ईशान …भूल गए कल की सज़ा । ये क्या किया तुमने? जानते हो कुछ’ । शर्मिंदगी से उसके शब्द गडबडाने लगे ।
“ ममा …’ मुन्ने ने भोलेपन से अपनी तर्जनी उठा कर कहा, ‘ममा आप ही ने तो कहा था न कि चिड़िया को पिंजरे में नहीं रखते ,वे भी डर जाएगी अंधेरे में … अब वो देखो ” उसने बाहर तार पर बैठी चिड़ियों की ओर उँगली करते कहा, “ अब उसे कोई डर नहीं लगेगा” ।
इतने में एक चिड़िया तार छोड़ कर उड़ चली तो दूसरी ने भी उसके साथ उड़ान भरी और देखते-देखते दोनों सफेद बादलों को चीरती हुई आँख से ओझल हो गईं ।
“ उड़ गई…उड़ गई ? वह तख़्ते से उतर ताली पीटता कूदने लगा ।
रमा को तो जैसे काटो तो खून नहीं । वह शम्मी जी की ओर आँख उठाकर देख न पा रही थी । हाथ में पोली का टुकड़ा अभी भी था यानि जिस थाली में खाया उसी में …। वह धरती में धसी चली जा रही थी लेकिन वहीं यह सोच तरंगित भी किए जा रही थी कि ईशान पिंजरे में बंद परिंदे की तड़प को कितनी आसानी से समझ गया । बड़ी मुश्किल से सिर उठा कर अपने आपको सहज बनाते बोली, “आंटी माफ कीजिए, मैं राकेश से कहकर फिर से नई चिड़ियाँ खरीदवा ….” ।
“नहीं रमा … नहीं” । सूनी आँखों से मुन्ने की ओर देखती वे बोली, “ ईशान सही कह रहा है रमा । अपना अकेलापन दूर करने के लिए किसी स्वछंद प्राणी को कैद करना कितनी बड़ी मूर्खता थी । पता है… उन्हें उड़ता देख जितना सुकून मिला ,इतना तो उन्हें पालने में भी न मिला था और जो मैं सालों से न कर पाई ,नन्हे ने पल में कर दिखाया । चाहता तो यह भी था न इन्हें । पर इसकी चाहत पर स्वार्थ का रंग न चढ़ा था । इसीलिए उन्हें उड़ाने की हिम्मत कर दी उसने ,जो मैं न कर पाई थी । ”
ईशान कुछ समझ न पा रहा था । चुपचाप बारी-बारी दोनों की ओर देखता रहा ।
शम्मी जी उठी और प्यार से उन्होंने मुन्ने को गोद में ले लिया । उसे चूमती बोली, ‘ तो ईशान , फिर इस पिंजरे का क्या करेंगे ? … इसमें किसको रखेंगे?”
ईशान अब आश्वस्त हो गया था पर कुछ देर वह चुप रहा और फिर अपनी नन्हीं हथेली से उनका गाल सहलाता धीरे से बोला, ‘ मेरे अप्पू हाथी को । नानी मैं कल लेकर आऊँगा… । उसे रखेंगे’ ।
शम्मी जी की हंसी छूट गई । हंसी रोककर वे गंभीर स्वर में बोली , ‘हाँ… बिलकुल सही ईशान … लगता है आज के बाद यह पिंजरा तुम्हारे अप्पू के लिए ही ठीक रहेगा” ।
आदरणीय पद्मावती जी! वैसे तो बाल कहानी अच्छी है ,उद्देश्य भी अच्छा है,पर आपकी बाल कहानी ने तो हमें ही डरा दिया!
4 साल की उम्र बहुत छोटी होती है। निश्चित इस उम्र में बच्चे अधिक हुआ वाचाल होते हैं। वह अपनी नजरों से चीजों को देखते हैं और जो चीज अच्छी लगती है उसे प्राप्त करना भी चाहते हैं।सही गलत उन्हें नहीं समझता है। पर जिद वाली बात के लिए यही हो सकता है कि जब भी बच्चे जिद करें तो उन्हें दूसरी बातों से बहलाने की कोशिश करना चाहिए।
4 साल के बच्चे को इस तरह कमरे में बंद करना तो किसी तरह से भी उचित नहीं है। और फिर भूल भी जाना। हम तो पढ़ते हुए उतनी देर ही घबराहट में रहे जब तक आपने दरवाजा नहीं खोला। यह शंका रही के बच्चा न जाने किस हाल में मिलेगा।
कभी-कभी बच्चे भय के कारण सदमे में चले जाते हैं। इस तरह की कोई घटना आपकी नजर से शायद गुजरी नहीं।
किसी भी रचनाओं को पढ़ाते हुए जब कोई रचना हमारे अंदर इतनी बेचैनी उत्पन्न कर देती है तो हम उस प्रसंग को छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं।
साहित्यकारों को संवेदनशील हृदय का भी ध्यान रखना चाहिए!
वैसे कहानी अच्छी है बस सजा थोड़ी सी कम कर दे तो और अधिक बेहतर हो जाए। यह निवेदन है।
बाथरूम में बंद करके सिर्फ एक सेकंड के लिए लाइट बंद कर दी जाए तो वह अंधेरा भी डराने के लिए काफी है। हमें तो 1 मिनट भी बहुत लगता है, इतने से बच्चों के लिए एक घंटा बहुत होता है। बाकी आपकी कहानी है।
हमारे दिमाग में तो एक प्रश्न और कौंध गया था कि कितनी लापरवाही है माँ की!इतने से बच्चे को बंद करके भूल ही गई!!
अच्छी सी कहानी थोड़ी सी खटक गई।
प्रस्तुति के लिए तेजेंद्र जी को बधाई पुरवाई का आभार।
पिंजरा कहानी बाल निर्मल मनोभावों को उकेरने में सफल रही है। बालक जानता है कि अपने स्वार्थ के लिए स्वछंद जीव को या पंछी को कैद करने में महानतम नहीं है अपितु उसे मुक्त करने में ही विवेक है। डॉ पद्मावती जी कहानी शिक्षाप्रद है।
इस के लिए लेखिका को बहुत बहुत बधाई। साधुवाद।