हाल ही के TOIFA अवार्ड ओ टीटी वर्ष 2023 ने प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई जुबली सीरीज को कई श्रेणियों के अवार्ड मिलने के कारण फिर से सुर्खियों में ला दिया है।और हो भी क्यों ना जुबली सीरीज, अविभाजित भारत और फिर दो देश– हिंदुस्तान और पाकिस्तान बंटवारे के दर्द को सहेजती और उसकी विभीषिका और संघर्ष को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है।सरहद के आर पार बसे कलाकारों और निवासियों का दर्द बयां करती, एक खूनी संघर्ष की कलात्मक कहानी है,जो मुंबई,लखनऊ,कराची जैसे शहरों में घूमती है।
पूरे 10 एपिसोड की श्रृंखला या सीरीज एक बेमिसाल सिने या सिनेमा इतिहास की इंगित गाथा कही जा सकती है।रॉय टॉकीज दूर कहीं इशारा करती ‘बॉम्बे टॉकीज‘ को प्रतीत होती है, जिसे हिमांशु राय और उनकी पत्नी देविका रानी ने खड़ा किया था ।जुबली सीरीज कहानी की दृष्टि से बहुत ही सुंदर बुनावट,कसे कथा शिल्प और तेज गति के कारण जानी जाती है।
इस सीरीज का संगीत दिल को छूने वाला और कर्ण प्रिय है।फिल्म और फिल्मी दुनिया के छुए–अनछुए,सियाह– सफेद पक्षों को बेहद सहजता और सार्थकता से प्रस्तुत करती है,यह सीरीज निश्चित रूप से कितनी ही और श्रेणियां के अवार्ड के लिए भी सक्षम दिखलाई पड़ती है।
जुबली को कुल 17 नामांकन मिले, जिनमें सर्वश्रेष्ठ ड्रामा सीरीज़, ड्रामा सीरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (खुराना और गुप्ता), ड्रामा सीरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (गब्बी) और ड्रामा सीरीज़ में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (चटर्जी) शामिल हैं, और ड्रामा सीरीज़ में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (मोटवानी) सहित शीर्ष 9 पुरस्कार जीते।व्यवहारिकता की कसौटी पर,जुबली सीरीज को ड्रामा सीरीज ऑफ द ईयर, शो रनर फॉर द ओटीटी,कास्टिंग बे, एक्सीलेंस इन बैकग्राउंड स्कोर, एक्सीलेंस इन कास्टिंग एनसेंबल, एक्सीलेंस इन कॉस्ट्यूम्स जैसे अवार्डस से नवाज़ा गया है।
जहां तक अभिनय का प्रश्न है यह सीरीज वर्षों तक बेमिसाल अदाकारी किए याद की जाएगी।मुख्य कलाकारों में प्रसनजीत चैटर्जी, अदिति राव हैदरी, अपारशक्ति खुराना, सिद्धांत गुप्ता, राम कपूर ,नंदीश संधू ने अपने अभिनय की छटा बिखरी है और अपनी अपनी किरदार में बेहद असरदार साबित हुए हैं अमित त्रिवेदी के गाने और बैकग्राउंड स्कोर में अलकनंदा दास गुप्ता अपनी लाजवाब काम किया है।
प्रसनजीत बनर्जी बतौर श्रीकांत राय ने बहुत अच्छा अभिनय किया है,अदिति राव हैदरी ने अपने भाव प्रवण अभिनय से सबको निरुत्तर कर दिया है। वहीं तवायफ की भूमिका में वमिका गाबी ने जानदार एक्टिंग से सबको चौंकाया है।सिद्धांत गुप्ता ने जय की भूमिका में मंझे अंदाज में अभिनय का लोहा मनवाया है।
वे कहानी के अनुसार अपने अभिनय से राज कपूर,देव आनंद सरीखे महान महान कलाकारों की याद दिलाते है,खासकर टैक्सी ड्राइवर फिल्म के निर्माण के अंदाज में। स्पॉट ब्वॉय से मदन कुमार बने किरदार अपारशक्ति खुराना बतौर विनोद कुमार विलेन और फिर चर्चित कलाकार के रूप भले ही नैसर्गिक या स्वाभाविक नज़र आए हैं पर कहीं ना कहीं ओवरएक्टिंग के शिकार भी हुए हैं।स्पॉट ब्वॉय से चर्चित मदन कुमार कहीं न कहीं बीते जमाने के सामान्य कद काठी के हीरो अशोक कुमार की परछाईं नज़र आते हैं और वहीं लखनऊ के जमशेर खान–हिमांशु राय और देविका रानी के त्रिकोण जनाब नजम उल हसन का गुमान देते हैं।रिफ्यूजी के रोल को अशोक बंथिया ने नए आयाम दिए हैं और लगाए सेट और संबंधित कलाकार अपने प्रभावी अभिनय से बंटवारे से उपजे दर्द को सत्यता के इंद्रधनुष को बेहद शानदार अंदाज में उकेर दिया है।यह सीरीज विभाजन की विभीषिका गरीबी,मजबूरी ,भुखमरी,बीमारी और अंधकारमय भविष्य के मंजर को प्रदर्शित करने के साथ भ्रष्टाचार और कलंकमय इतिहास को रूप को जस का तस दिखाने में सफल हुई जान पड़ती है।
सीरीज में रूसी प्रोपेगंडा और अमेरिकी तकनीक का भंवर बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है जो इन महाशक्तियों के सॉफ्ट संघर्ष को बताता और भारत का इनके बीच में रह जाने की मजबूरी को दर्शाता है।सिने जगत की काली कारगुजारियों,कास्टिंग काउच को भी शलीलता के दायरे में असरदार अंदाज़ में पेश किया गया है।
निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी ने इस विंटेज बॉलीवुड सीरीज को सत्यता के करीब रखते हुए दुखांत रूप में पटाक्षेप किया है जो भारत की नाट्य या फिल्म परंपरा के ठीक विपरीत है?!
तिस पर भी दर्शकों का इसे पसंद करना और टोइफा ज्यूरी द्वारा अनेकों अवार्ड्स से नवाजा जाना! इस बदली सोच को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण ढंग से बताता है कि अब भारतीय सोच सत्यता के पर्याय के काफी पास पहुंच चुकी है।
सूर्यकांत शर्मा
द्वारका नई दिल्ली
काफी अच्छी समीक्षा लिखी है आपने जुबली की। आपको पढ़कर इसे देखने का मन हुआ। इतने अवार्ड मिलना भी सीरीज की सफलता की पहचान होना ही है।
वैसे तो हम टीवी वगैरह भी नहीं देखते हैं और एक जमाने से पिक्चर भी नहीं देख रहे हैं मोबाइल पर भी यह सब चीज देखना भारी पड़ता है।
लेकिन आपकी समीक्षा को पढ़कर पिक्चर के बारे में काफी कुछ जाना और जो जाना वह महसूस भी हुआ।
यह एक ऐसी त्रासदी है जिसे भूलना बड़ा मुश्किल लगता है।
एक बेहतरीन समीक्षा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ।
तेजेन्द्र जी का शुक्रिया और पुरवाई काआभार।