प्रकाश मनु की कलम से – रामदरश मिश्र : जिनका अपार स्नेह और सान्निध्य मुझे मिला
चाहता हूँ कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है,
आभारी हूँ बहुत दोस्तो, मुझे तुम्हारा प्यार मिला,
कुछ कविता, कुछ कहानियाँ, कुछ विचार
तुम नम्र होकर इनके पास जाओगे
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परम आदरणीय प्रकाश मनु जी !
हम जब से साहित्य जगत से जुड़े हैं, अपने गुरु के प्रति इतना अधिक समर्पित कोई भी व्यक्ति नहीं देखा।
परम पूज्य आदरणीय मिश्र जी के लिए 10 भागों में लिखा इतना लंबा लेख!!!! हमने लगभग तीन या चार किश्तों में इसे पढ़ा।मानो आपने इस लेख में उनकी पूरी जीवनी, उनका पूरा चरित्र, उनका स्वभाव, उनके क्रियाकलापों से झलकते उनके एक-एक गुण; कुछ भी नहीं छोड़ा। आपके इस लेख को पढ़ने के बाद उनके बारे में कुछ भी जानना शायद शेष नहीं रह जाता।
आपने जितनी भी कविताएँ इसमें दी हैं, आपकी स्वयं की भी, सभी बहुत अच्छी हैं।
उनके प्रति आपका यह समर्पण देखकर मन गद्गद् हो गया।
आपने साबित किया कि श्रेष्ठ साहित्यकार कैसे होते हैं, एक इंसान कितना अच्छा हो सकता है!
यहाँ पर उदारता, सरलता, अपनत्व और वास्तविक प्रेम की हद भी नजर नहीं आती चाहे कितनी ही दूर तक चले जाओ।
इस पर लिखने के लिए यहाँ हमारे पास बहुत कुछ था, लेकिन हमारे शब्दों के खजाने में से हम ऐसे शब्द ढूँढ नहीं पा रहे हैं, इसलिए थोड़े लिखे को अधिक समझिएगा।यह गुजारिश है हमारी।
इसे पढ़ते हुए एक बात हमने और महसूस की कि आपका बस चलता तो आप इस लेख को खत्म ही ना करते, आपके सारे शब्द चुक जाते तब भी शायद आपका लेखन तृप्त न होता। उनके प्रति आपके प्रेम और श्रद्धा की यह पराकाष्ठा है।
साहित्यकारों के प्रति हमारे मन में बहुत सम्मान है और अपने उस पूरे सम्मान के साथ हम आप दोनों को ही सादर प्रणाम करते हैं!
एक बात आपने बिल्कुल सही कही
*”जो सहृदय पाठक केवल शब्दों को ही कविता नहीं मानते, बल्कि शब्द और शब्द तथा पंक्ति और पंक्ति के बीच के खाली स्थान को भी पढ़ना जानते हैं, उनके लिए यह बात अबूझ न होगी कि रामदरश जी की इस निस्पृहता के भीतर बहुत गहरी रागात्मकता की एक नदी बह रही है। वे कितना भी चाहें, उससे मुक्त हो ही नहीं सकते।”*
आपको पढ़कर यहाँ हमने भी महसूस किया।
आप दोनों को ही एक बार फिर से हमारा सादर चरण स्पर्श है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दोनों को ही सदा स्वस्थ और दीर्घायु रखें।
इस लेख की प्रस्तुति के लिए दिल की गहराइयों से तेजेन्द्र जी का शुक्रिया। हमारे जुड़ने के बाद की यह पुरवाई की श्रेष्ठतम रचना है।
और पुरवाई का इसके लिए विशेष शुक्रिया।