Thursday, September 19, 2024
होमअपनी बातसंपादकीय - राहुल गांधी की विदेश यात्राएं और विवाद

संपादकीय – राहुल गांधी की विदेश यात्राएं और विवाद

ब्रिटेन, अमरीका और अन्य यूरोपीय देशों में तमाम दुनिया के राष्ट्र प्रमुख एवं विपक्षी दलों के नेता आते हैं और पत्रकारों से बातचीत भी करते हैं। मगर राहुल गांधी के अलावा हमें विश्व का ऐसा कोई नेता नहीं मिला जो अपने देश के मैले कपड़े दूसरे देशों में धो रहा हो। एक तरफ़ राहुल गांधी दो-दो चुनाव क्षेत्रों में विजयी हो जाते हैं मगर फिर भी कहते हैं कि भारत में चुनाव निष्पक्ष नहीं होते। मगर साथ ही कहते हैं कि चुनावी नतीजों के बाद नरेन्द्र मोदी डर गये हैं। कई बार सोच कर डर लगता है कि यदि कभी राहुल गांधी भारत के प्रधानमंत्री बन गये तो क्या वे भूल पाएंगे कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं, वे स्वयं हैं।

राहुल गांधी हर साल विदेश यात्रा पर जाते हैं… वहां बयानबाज़ी करते हैं… विदेश के मीडिया और विद्यार्थियों के सामने भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाते हैं… वर्तमान सरकार की ख़ामियां गिनवाते हैं… और चीन की तारीफ़ें करते हैं। 
दरअसल पहले राहुल गांधी केवल एक सांसद थे। ऐसा नहीं है कि भारतीय सांसद होना कोई कम ज़िम्मेदारी की बात है; मगर राहुल गांधी विदेश में कुछ भी कहने में झिझक महसूस नहीं करते थे। उनकी बातें सुनने के बाद होता दरअसल कुछ यूं था कि पाकिस्तान टीवी चैनल पर वहां के नेता और डिप्लोमैट लाइव टीवी पर कह दिया करते थे – “सभी लोग नरेन्द्र मोदी के साथ नहीं हैं। अरुंधति राय, राहुल गांधी, सोनिया गांधी जैसे लोग भी हैं जो हमारी बात समझते हैं।”
पहले भारतवंशियों को डर लगा रहता था कि ना जाने राहुल गांधी क्या कुछ कह दें और कैसा विवाद खड़ा कर दें। मगर आहिस्ता-आहिस्ता यह एक सालाना शगल जैसा बन गया। राहुल गांधी विदेश जाते और वहां मोदी के प्रति अपनी नफ़रत के कारण भारत विरोधी बयान दे आते और फिर भारत में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ तू-तू मैं-मैं चलती रहती। फ़िल्म शोले के आम आदमी की तरह भारत का आम आदमी यही सवाल पूछता दिखाई देता – “आख़िर राहुल गांधी विदेश जाते क्यों हैं?”
सच तो यह है कि इस बार पहला मौक़ा है जब राहुल गांधी भारतीय संसद के विपक्ष के नेता के रूप में विदेश गये हैं। आज उनका कहा गया एक-एक शब्द विदेशियों के लिये किसी गोला बारूद से कम नहीं जिससे वे भारत को घायल कर सकें। इसलिये सबको उम्मीद थी कि अब की बार राहुल गांधी ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे कि भारत की छवि विदेशों में धूमिल हो।  
अंकल सैम पित्रोदा ने राहुल गांधी की इस अमरीका यात्रा से पहले कहा है कि, “राहुल गांधी का एजेंडा कुछ बड़े मुद्दों को संबोधित करना है। उनके पास ऐसा विज़न है, जो बीजेपी द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करके प्रचारित किए जाने के विपरीत है। मुझे आपको बताना होगा कि राहुल गांधी ‘पप्पू’ नहीं हैं, वह उच्च-शिक्षित हैं, वह किसी भी विषय पर गहरी सोच रखने वाले रणनीतिकार हैं।”
शायद इसका अर्थ यही निकाला जा सकता है कि राहुल गांधी मासूम नहीं हैं। वे भारत के विरुद्ध जो कुछ कहते हैं, बहुत सोच समझ कर कहते हैं। उन्होंने मान लिया है कि जैसे कहा जाता था – इंदिरा इज़ इंडिया और इंडिया इज़ इंदिरा – यही अब मोदी के बारे में भी सोचा जा सकता है। शायद इसीलिये वे मोदी की नफ़रत में भारत के विरुद्ध बोलना शुरू कर देते हैं। 
अपनी वर्तमान अमरीकी यात्रा में राहुल गांधी ने सबसे पहले तो इस बात को भुला दिया कि वे एक संवैधानिक पद पर विराजमान हैं और अब उनकी निजी राय का कोई मतलब नहीं बचा है। अब वो जो कुछ भी बोलेंगे वो केवल कांग्रेस पार्टी का बयान नहीं होगा बल्कि भारतीय संसद के पूरे विपक्ष का बयान होगा। मगर उन्हें इस ज़िम्मेदारी का अहसास अभी तक हो नहीं पाया है। उन्होंने इस यात्रा पर एक दो नहीं पूरे पाँच ऐसे वक्तव्य दिये जिन्होंने उन्हें विवादों के घेरे में फँसा दिया। 
एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर राहुल गांधी ने एक विवादास्पद बयान दे डाला। भारतीय सिखों को लेकर राहुल ने कहा, “सबसे पहले आप लोगों को यह समझना होगा कि लड़ाई किस बारे में चल रही है। यह लड़ाई राजनीति के बारे में नहीं है। लड़ाई इस बारे में है कि आपका नाम क्या है, क्या एक सिख के तौर पर उन लोगों को भारत में पगड़ी पहनने की इजाज़त दी जाएगी? क्या एक सिख होने के तौर पर उन्हें भारत में कड़ा पहनने की इजाजत दी जाएगी? क्या एक सिख गुरुद्वारे जा सकेगा? हमारी लड़ाई इस बारे में है और हम सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए लड़ रहे हैं।”
राहुल गांधी के इस बयान पर केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा कि वे तो साठ सालों से पगड़ी और कड़ा पहन रहे हैं। उनको तो कभी किसी ने इन्हें पहनने से या गुरुद्वारे में जाने से रोका। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें आजतक कोई ऐसा सिख नहीं मिला जिसे पगड़ी या कड़ा पहनने से रोका गया हो या फिर गुरुद्वारे जाने में कोई बाधा उत्पन्न की गई हो। 
हरदीप सिंह पुरी ने आगे कहा, “यह उनके (राहुल गांधी के) पिता के समय की बात है जब सिखों का नरसंहार हुआ था। हमारे 3000 लोग मारे गए थे… ऐसा नहीं है कि उन्हें इन सब बातों की जानकारी नहीं है… वे काफ़ी समय से राजनीति में हैं। इसलिए उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अगर वे देश के बाहर या देश के अंदर भी इस तरह का बयान देंगे तो उन पर हंसी ही आएगी। यह एक ऐसा बयान है जिसकी कड़ी से कड़ी निंदा की जानी चाहिए… वे देश के बाहर रहने वाले हमारे भाइयों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं… वे बिना किसी आधार के बयान दे रहे हैं… ”
राहुल गांधी के बयान का खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने समर्थन किया है। पन्नू ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि भारत में सिखों के अस्तित्व पर ख़तरे को लेकर गांधी का बयान न केवल साहसिक और अग्रणी है, बल्कि 1947 से भारत में सत्तासीन सरकारों के तहत सिखों को जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके तथ्यात्मक इतिहास पर भी आधारित है। उसने कहा, सिख होमलैंड, खालिस्तान की स्थापना के लिए पंजाब स्वतंत्रता जनमत संग्रह के औचित्य पर सिख्स फॉर जस्टिस के रुख की भी पुष्टि करता है। ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ पन्नू द्वारा संचालित एक अमेरिका स्थित समूह है।
राहुल गांधी की चीन-भक्ति से तमाम भारतीय परिचित हैं। अमरीका में भी राहुल गांधी ने एक निराधार बयान दे डाला और कहा कि चीन में कोई बेरोज़गारी नही जबकि भारत बेरोज़ागारी की समस्या से जूझ रहा है। राहुल गांधी के अनुसार भारत में कौशल की कमी नहीं है, बल्कि भारत में कौशल का सम्मान नहीं है। 
बेरोज़गारी के आंकड़े बताते हैं कि चीन लगभग 15 से 17% बेरोज़गारी की दर से जूझ रहा है। राहुल गांधी का यह दावा भी इतना ही झूठ निकला जो उन्होंने मिस इंडिया के बारे में कहा था। राहुल ने दावा किया था कि भारत में जो लड़कियां मिस इंडिया बनी हैं उनमें से एक भी दलित, अल्पसंख्यक या पिछड़ी जाति की नहीं है। जब आंकड़े प्रस्तुत किये गये थे तो पता चला कि राहुल गांधी ने यह बयान देने से पहले इस बारे में रत्ती भर शोध नहीं किया था। यह भी सोचने का मुद्दा है कि आख़िर राहुल गांधी का स्क्रिप्ट कौन लिख रहा है। 
राहुल गांधी ने केवल बयान ही नहीं दिये बल्कि अपने इस दौरे के आखिर में राहुल गांधी ने कुछ ऐसे नेताओं से भी मुलाकात की जो हमेशा से ही भारत विरोधी बयानों को लेकर चर्चाओं में रहे हैं। इन नेताओं से राहुल गांधी की मुलाकात को लेकर बीजेपी ने उनपर निशाना साधा है। राहुल गांधी ने अपने दौरे के दौरान विवादों में रहे जिन नेताओं से मुलाकात की उनमें शामिल हैं – इल्हान उमर, वरिष्ठ राजनयिक डोनाल्ड लू और प्रमिला जयपाल।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की कट्टर समर्थक इल्हान उमर अपने भारत विरोधी रुख के लिए खूब चर्चा में रही है। इल्हान भारत विरोधी नारे लगाती है… यही नहीं उसने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का भी दौरा किया था और पी.ओ.के. में भारत के विरुद्ध ख़ूब बयानबाजी भी की थी। हिंदू-फ़ोबिया को लेकर भी इल्हान उमर अक्सर विवादित बयानों से घिरी रहती हैं। 
राहुल गांधी ने जिस भारतीय मूल के सिख व्यक्ति को संबोधित कर कहा था कि क्या भारत में एक सिख को पगड़ी और कड़ा पहनने की अनुमति दी जाएगी, वह भलिंदर सिंह वीरमानी हैं। वह अमेरिका में एक मीडिया संस्थान के सीईओ हैं और एक पत्रकार के तौर पर उस सभा में उपस्थित थे। उनका कहना है कि राहुल ने जो मुद्दा छेड़ा है, वह बेतुका है और इसमें कोई तथ्य नहीं है।
भलिंदर ने एक भारतीय समाचार चैनल से बातचीत में कहा कि भारत में सिखों को हर जगह अपनी धार्मिक पहचान और चिह्नों के साथ कहीं भी आने-जाने की आजादी है, वे गुरुद्वारे भी जा सकते हैं। उस सभा में राहुल का 15-20 मिनट का संबोधन था। इसके तत्काल बाद करीब 300 लोगों की भीड़ उन्हें वहां से ले गई। किसी को उनसे सवाल करने का मौका नहीं मिला। चूंकि राहुल ने उनका नाम लिया था तो वह पूछना चाहते थे कि उनसे किसने कहा है कि सिखों को पगड़ी बांधने व कड़ा पहनने की आजादी नहीं है। सिर्फ भारत में नहीं, दुनिया भर में कहां आज़ादी नहीं है।
ब्रिटेन, अमरीका और अन्य यूरोपीय देशों में तमाम दुनिया के राष्ट्र प्रमुख एवं विपक्षी दलों के नेता आते हैं और पत्रकारों से बातचीत भी करते हैं। मगर राहुल गांधी के अलावा हमें विश्व का ऐसा कोई नेता नहीं मिला जो अपने देश के मैले कपड़े दूसरे देशों में धो रहा हो। एक तरफ़ राहुल गांधी दो-दो चुनाव क्षेत्रों में विजयी हो जाते हैं मगर फिर भी कहते हैं कि भारत में चुनाव निष्पक्ष नहीं होते। मगर साथ ही कहते हैं कि चुनावी नतीजों के बाद नरेन्द्र मोदी डर गये हैं। कई बार सोच कर डर लगता है कि यदि कभी राहुल गांधी भारत के प्रधानमंत्री बन गये तो क्या वे भूल पाएंगे कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं, वे स्वयं हैं।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
RELATED ARTICLES

42 टिप्पणी

  1. राहुल गांधी की विदेश यात्राएं !संपादकीय औचित्यपूर्ण तरीके से पड़ताल कर एक सतुलित छवि प्रस्तुत करता है।कहीं भी किसी दल विशेष के प्रति आकर्षण या अनाकर्षण नज़र नही आता है।
    महाभारत का एक पात्र अश्वत्थामा की याद बरबस आ रही है और उसका नैनो संस्करण भी इस संपादकीय के केंद्र में है।भारतीय लोकतंत्र मूल्यों ,संस्कृति की सांझी विरासत से कोसों दूर यह युवराज अब विदेशों में वहां के छूट भय्यों से गलबहियां करता दुष्ट पड़ोसी को महिमामंडित करता घूम रहा है।
    बेहतर होता कि विपक्ष अपने कार्यों की गति को बढ़ाती और भविष्य में सत्ता में आने की कवायद करती तो भारत का भला होता।
    पर अब अश्वत्थामा के अश्वत्थामा है और गांधारी गांधारी है और दुर्योधन जब नहीं है इस दुर्योधन का विकृत रूप अश्वत्थामा अब भारतीय परिदृश्य में हलचल मचा रहा है।
    पाठक समझ सकते हैं कि क्या करना है।
    पुरवाई पत्रिका परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं।

    • भाई सूर्यकांत जी आपने संपादकीय को सही परिप्रेक्ष्य में देखा और सार्थक टिप्पणी की। आपको हार्दिक आभार।

  2. राहुल गांधी देश के लिए दुर्भाग्य हैँ, उन्हें ये समझ ही नहीं है कि भारत अलग है और मोदी या बीजेपी अलग है, वे मोदी की बुराई करें ,बीजेपी की करें लेकिन देश की नहीं, जो व्यक्ति अपनी दादी से ही नहीं सीख सकता वो किसी और से क्या सीखेगा ? सैम पित्रोदा सही कहते हैं वे पप्पू नहीं और न ही पीएम मोदी के अनुसार बालक बुद्धि हैँ, वे दुष्ट बुद्धि हैँ और कुछ नहीं

  3. आज के संपादकीय पर लिखने के लिए क्या ही कहें तेजेन्द्र जी! संपादकीय को पढ़कर बेहद अफसोस हुआ।
    देश की तो खैर छोड़ ही दो विदेश जाते हुए भी, क्या बात करना है क्या नहीं ?इस तैयारी से अगर आप नहीं जा रहे हो तो फिर आपके लिए क्या ही कहा जाए!इससे तो बेहतर है कि आप जाओ ही मत।
    देश आपके वैचारिक मतभेद से कहीं ऊपर है! यह बात कैसे लोगों को समझ में नहीं आती है वह भी विपक्ष का नेता प्रमुख होते हुए। जबकि आप विपक्ष में बैठे हैं तो आपकी सक्रियता व समझदारी ज्यादा जरूरी है। यहाँ तो कम से कम पार्टीगत मतभेद से परे रहकर बात करनी चाहिये। क्या ही कहा जाए अब। आपके आज के संपादकीय ने ऐसी वास्तविकता से रूबरू कराया है जो सिर्फ पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी निंदनीय है। पता नहीं इन सबके दूरगामी परिणाम क्या होंगे लेकिन अच्छे तो नहीं होंगे यह निश्चित है।
    सच में बहुत दुख हुआ आज का संपादकीय पढ़कर।
    लेकिन आपका तो शुक्रिया फिर भी बनता है कि आप सच्चाइयों से साक्षात्कार करवा रहे हैं।
    सच कहें तो आपके शीर्षक ने ही हमको शॉक्ड किया। तत्काल छठी इंद्री सक्रिय हुई कि अब इन्होंने पता नहीं क्या कह दिया विदेश जाकर!

    पर आपका शुक्रिया तो फिर भी बनता है और पुरवाई का आभार भी, सच्चाइयों से मुलाकात करवाते रहते हैं आप पुरवाई के माध्यम से।

    • आदरणीय नीलिमा जी, आपकी टिप्पणियां पुरवाई पत्रिका के लिए महत्वपूर्ण हैं। अपना स्नेह बनाए रखें।

  4. बहुत बड़ा कलंक है यह शख़्स! देश का अहित चाहने वाला है। हिंदुओं का सबसे बड़ा शत्रु है। इससे बड़ा पाखंडी और हृदयविहीन आज की तारीख में ढूंढने से नहीं मिलेगा।
    बहुत बढ़िया आलेख है। ऐसे विषय पर लिखकर आपने हिम्मत दिखाई है।
    साधुवाद@

  5. राहुल गाँधी निर्विवाद बयान कब दिये है? न देश में और न विदेश में। आपने अपनी संपादकीय में जिस तरह से उसको निष्पक्ष रूप से लिखा है, तभी हम राजनीतिक चर्चाओं से दूर रहते हुए भी अवगत हो रहे है। आप इस बात बधाई के पात्र हैं।

  6. यह आदमी तो विपक्षी नेता कम.. देश का शत्रु अधिक है..। इनके बोलने पर यदि जनता भ्रमित हो जाए तो यह मूर्खता होगी।

    आपकी निडर लेखनी सदैव हम पाठकों का पथ प्रदर्शक बने। साधुवाद सर

  7. एक छोटी सी बात है हम घर की बात बाहर नहीं गए थे अपनी शहर की बात दूसरे शहर में जाकर नहीं कहते हम अपने देश की बात दूसरे देश में जाकर कहें हमारे देश को नीचा दिखाएं इसमें ही गर्व है क्या? मुझे तो बहुत तेज गुस्सा आता है! यह कैसा आदमी है इसको सपोर्ट करने वाले कैसे आदमी है? लोगों को अपने देश पर गर्व होता है? क्या इसे इटली पर गर्व होता है? तेजेंद्र जी एक बात और मैं कहना चाहती हूं आप बिल्कुल सही लिखते हैं! हमारे देश में जो अपने आप को साहित्यकार बताते हैं वह भी एक तरफ की सोच रखते हैं! बहुत ही मुझे अफसोस होता है! बोलती में कभी कुछ नहीं हूं पर बहुत दुख होता है! इतना साफ-साफ सच्चा लिखने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कभी रात में जगती नहीं हूं. आपका लेख पढ़ने के लिए जगती हूं। आपका लेख पढ़ कर बहुत तृप्ति होती है।

    • भाग्यम जी किसी भी लेखक/संपादक के लिए यह गर्व का पल होगा जब उसका पाठक कहे, “कभी रात में जागती नहीं हूं, आपका लेख पढ़ने के लिए जगती हूं।” आपके समर्थन के लिए हार्दिक आभार!

  8. हमेशा की तरह एक ओज जगाने वाला संपादकीय! आप किसी भी स्थिति का सही आकलन करने में संकोच और भीरुता नहीं रखते। आपको हमेशा ही उस बात के लिए सैल्यूट जो केवल बयानबाजी न होकर जागरूकता की मशाल होता है। इस विषय में आखिर कहा भी क्या जाए केवल सिर पर हाथ रखकर बैठने के।
    जय हो राहुल बाबा की

  9. ज्वलंत मुद्दे पर एक और सम्हला हुआ संपादकीय, धन्यवाद सम्पादक जी। राहुल की ये आदत पुरानी है, फिर भी देश की सारी राजनीतिक पार्टियां यदि इनको अपना नेता चुनती हैं और यहां की जनता इस तरह के मूर्ख, गैरजिम्मेदार और देश विरोधी को वोट देती है तो ‘देस’ की बलिहारी है।
    जब किसी गलत व्यक्ति को शक्ति मिलती है तो उसका दुरुपयोग ही होता है। विदेशी अपने हित के लिए भले ही इनको भाव दें, मन ही मन हँसते होंगे कि भारत की आम जनता किस हद की मूर्ख होगी जो राहुल जैसे को नेता मानती है। घनघोर दुर्भाग्य भारत का। गज़ब है यहां की जनता जो कांग्रेस के मोह से मुक्त ही नहीं होती, किसी भी गधे- खच्चर को वोट दे देती है। जाने भारत का भविष्य क्या होगा?

    • शैली जी अच्छा लगा कि आपने इसे संभला हुआ संपादकीय कहा। मेरा उद्देश्य वातावरण को गर्म करना नहीं, सच्चाई को परखना है। राहुल गांधी को समझना होगा कि leader of opposition का अर्थ होता है विपक्ष का प्रधानमंत्री!

  10. हर राष्ट्रप्रेमी स्तब्ध है कि राहुल क्या क्या अनाप शनाप बोल आये हैं। एक बार फिर से स्थापित हो गया है कि यह बंदा दरअसल पप्पू ही है। इसे खुद नहीं पता कि जो बकवास यह करता जा रहा है वह खुद आत्मघात की ओर बढ़ रहा है। देश में अव्यवस्था होगी, गृहयुद्ध की नौबत आयी तो यह भी शिकार बनेगा।

    आपने सही समय पर सही परिप्रेक्ष्य रखा है। राहुल को सद्बुद्धि नहीं आनी है। और यह पप्पू आग से खेल रहा है। खतरनाक पप्पू है। सावधान हो जाना चाहिए।

  11. दरअसल बात ये है कि राहुल गांधी जी ने कांग्रेसी विचारधारा से किनारा करके दूसरी विचारधारा को आत्मसात कर लिया है। कांग्रेस के पूर्ववर्ती नेताओं ने इन विचारधाराओं को अच्छे से मैनेज करके कांग्रेसी विचारधारा को आगे रखा। यह धारा भारतीय जनमानस के अनुकूल थी। इसलिए लोग कांग्रेस से जुड़े रहे। विचारधारा के साथ साथ प्रतिभा भी होनी चाहिए ताकि पार्टी को आगे बढ़ाते रहें। उधार की विचारधारा से एकाध बार सफल भी हो गए तो उसकी उम्र ज्यादा नहीं होती है। पार्टियां एक दूसरे से नफरत करने लग जातीं हैं तो फिर फिर अनाप-शनाप निकलता ही है।

  12. दरअसल बात ये है कि राहुल गांधी जी ने कांग्रेसी विचारधारा से किनारा करके दूसरी विचारधारा को आत्मसात कर लिया है। कांग्रेस के पूर्ववर्ती नेताओं ने इन विचारधाराओं को अच्छे से मैनेज करके कांग्रेसी विचारधारा को आगे रखा। यह धारा भारतीय जनमानस के अनुकूल थी। इसलिए लोग कांग्रेस से जुड़े रहे। विचारधारा के साथ साथ प्रतिभा भी होनी चाहिए ताकि पार्टी को आगे बढ़ाते रहें। उधार की विचारधारा से एकाध बार सफल भी हो गए तो उसकी उम्र ज्यादा नहीं होती है। पार्टियां एक दूसरे से नफरत करने लग जातीं हैं तो फिर अनाप-शनाप निकलता ही है।

  13. राहुल गांधी सिर्फ ये सिद्ध करने में अपनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं कि उनके पूर्वजों ने जो किया वो सही था ,वो देश हित में था ,अतः उसी विचार धारा को जीवित रखने का प्रयत्न करते रहो ।
    Dr Prabha mishra

  14. एक कडुवे सच से साक्षात्कार कराता संपादकीय। भारत में भी राहुल के बयानों की चर्चा हो रही है और काफी लोग गुस्से में हैं। बेतुके और आधारहीन वक्तव्य भारत को तो बदनाम करते ही हैं। । वास्तव में वे ऐसी बातें करके सोच रहे होंगे कि यह वक्तव्य उन्हें प्रधानमंत्री बना देंगे, ईश्वर न करे, ऐसा हो। प्रधानमंत्री बनने के लिए एक नये विजन की जरूरत है। लोकतंत्र में एक ही दल हमेशा सत्ता में रहेगा, यह नामुमकिन है। मैं तो यही प्रार्थना करती हुं कि हमारे इस युवा देश में एक नये विजन वाला नेतृत्व उभरे और वह देश को एक ऐसी दिशा दे जो देश को और अधिक ऊंचाईयों तक ले जायें।
    राजनीतिक दल कोई भी हो, उसका नेतृत्व संवेदनशील
    और देशभक्त होना चाहिए राहुल ज़ैसा पथभ्रष्ट तो बिल्कुल नहीं।

    आपने राहुल के विदेश यात्रा की विसंगतियों को रेखांकित किया, देश आपके प्रति आभारी हैं। विडंबना यही है कि कुछ लोग उसके बहकावे में आते जा रहे हैं, ईश्वर ऐसे लोगों की संख्या सीमित ही रखें, हमें देश को ऐसे नेतृत्व से शीघ्र ही मुक्ति मिले, देश के लिए ऐसी शुभकामनाओं के साथ आपका साधुवाद कि आप भी वहीं महसूस कर रहे ह़ैं जो इस समय देश महसूस कर रहा है।

  15. इस संपादकीय के लिए धन्यवाद।

    सच पूंछे तो राहुल और ट्रंप एक ही नाव पर सवार हैं।
    दोनो ही अनाप शनाप बयान दे कर जनमत को पक्ष में लाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर इंटरनेट के द्वारा धुलाई होने पर भी सुर्खियां बटोरना चाहते है।
    जो इन दोनो के ढुलमुल या कट्टर समर्थक हैं वे प्रसन्नता पूर्वक इनके झोले में चले जाते हैं। आम आदमी हैरान है कि कोई जीती मक्खी कैसे निगल सकता है? राहुल देश विरोधी बयान देने में ट्रंप से बहुत आगे हैं। दोनो की मूर्खता में जो चालबाजी है उसका आधार है जनता को मूर्ख समझना। मूर्ख न भी हो तो जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है ऐसा दोनो का दृढ़ विश्वास है।

    • भाई हरिहर जी डर तो इस बात का है कि भारत में बांग्लादेश जैसी स्थितियां लाने की बात हो रही थी।

  16. राहुल गाँधी इस देश की राजनीति को बचपन से देख और समझ रहे हैं। वे एक ऐसे खानदान से हैं जो प्रधानमंत्री पद को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। राहुल गाँधी भी इस पद पर अपना अधिकार समझते हैं लेकिन जबावदेही के लिए तैयार नहीं हैं इसलिए उन्होंने और सोनिया गाँधी ने मनमोहन सिंह को कठपुतली प्रधानमंत्री बना दिया। मनमोहन सिंह जैसे विद्यमान व्यक्ति की भी न जाने क्या मज़बूरी थी। एक बार उन्होंने पद पर रहते हुए कहा भी था कि अगर राहुल गांघी प्रधानमंत्री बनना चाहें तो वे पद छोड़ सकते हैं।
    जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं वे स्वीकार ही नहीं कर पर रहे हैं कि उनकी जगह कोई और उस पद पर पहुँच गया है, जिस पर उनका अधिकार है।

    वे देश के लिए नया विजन देने की बजाय अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज्य करो’ वाली नीति अपना रहे हैं। इसलिए कभी देश में कभी असहिष्णुता की बात करते हैं तो तो कभी जाति जनगणना की। वे सिर्फ हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलते हैं. उन्हें सिर्फ हिंदू असहिष्णु लगते हैं।चीन, पाकिस्तान तथा अन्य देश उनके कहे वाक्यों को भारत के विरुद्ध इस्तेमाल करते हैं किन्तु इससे उन्हें क्या! वह तो देश के विरोध में उतर आये हैं। काश!लोग उनकी. कुत्सित मानसिकता को समझ पाएं क्योंकि मोदी विरोधी उनकी बातों को सिर आँखों पर लेते हैं।

    सैम पित्रोदा ने ठीक ही कहा है कि वे पप्पू नहीं हैं। वे बेहद चालक हैं। उन्होंने मोहब्बत की दुकान के बैनर तले झूठ की दुकान खोल ली है। कहा भी गया है कि बार-बार बोला असत्य भी एक दिन सत्य लगने लगता है।

  17. Your Editorial of today rightly points out how irresponsible and undesirable comments Rahul Gandhi makes when he goes abroad. Condemning it too.
    As an MP and also the Leader of Opposition he should never criticise/ defame the present political situation and malign our Prime Minister
    A well- timed advice to Rahul Gandhi.
    Wish he follows it next rime he goes abroad.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  18. राहुल गांधी जैसे लोगों को न जाने कैसे जीत हासिल हो जाती है । हर कदम पर विवादास्पद बयान देना कितना अशोभनीय है। कभी ऐसा तो कोई इस देश का प्रधानमंत्री न बने ।

  19. बहुत बहादुरी से सच के ख़ुलासे के लिये बहुत बहुत साधुवाद जितेन्द्र भाई: मुझे तो लगता है कि यह बिन लगाम वाला जानवर एक दम पागल हो गया है। इतना नशा कुर्सी का कि गद्दी छिन जाने पर पागलों जैसी बहकी बहकी बातें करना तो इस का तकिया कलाम बन गया है। जैसा आपने लिखा है कि LOP बनने के बाद किसी भी राजनीतिक मामले में ब्यान देना opposition का ब्यान है। इतने साल राजनीति में रहने के बाद भी इसको इतनी भी अकल नहीं है। मुंह खोलने से पहले थोड़ा सोच ले कि क्या कह रहा है। आफ़िर कौन लिखता है इसकी स्पीच? ज़रा एक मिनट के लिये सोचो कि अगर इस सिर फिरे को भारत का प्रधान मन्त्री बना दिया जाए तो देश की क्या हालत होगी। बस खटाखट खटाखट की आवाज़ें आनी शुरू हो जाजेंगी। समय आगया है कि इसको को देशद्रोही के अप्राध में जेल में बन्द करके ताला लगा दिया जाए और चाबी को गहरे समु्द्र में फेंक दिया जाये। शर्म आनी चाहिये कि विदेशों में जाकर अपने ही देश की बुराइयें करना। यही संस्कार मिले थे क्या विरासत में?
    कई बार तो इसकी तारीफ़ करने वालों की अकल पर भी मुझ को तरस आता है। ख़ड़गे उस में से एक है। भारत के एक चमकते सितारे शशी थरूर की अकल पर तो मुझ को बहुत तरस आता है। इतना काबिल इंसान होने के बाद भी वो अभी तर काँग्रैस में क्यों है। क्या हो गया है उसे? मुझे तो ऐसा लग रहा है कि BJP राहुल की रस्सी की लगाम को ढीला किए जारही है। बस देखना यही है कि बहोत जल्दी राहुल इस लगाम में ख़ुद ही फँस जायेगा।

  20. देश की छवि कैसे धूमिल की जाती है और किस तरह विदेश में जाकर बिना शोध के अपना ज्ञान बघारा जा सकता है ये कोई राहुल गाँधी से सीखे।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest