प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी का लेख – हिंदी का अमृत महोत्सव मनाना है तो उसे शिक्षण और रोजगार माध्यम में लाना होगा
2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिंदी को भारत की आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं में से एक भाषा के तौर पर माना गया है, तो हिंदी की इस स्थिति के लिए दोषी कौन है? भारत के उत्थान में अगर एक बड़ी कमजोरी है तो वह उसकी अपनी भाषा का देश के शासन की अभिव्यक्ति ना होना।
हिंदी भारत की राजभाषा है इसलिए इसके पठन-पाठन को विशेष रूप से ध्यान दिया जाए ताकि राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन-अध्यापन की भाषा बने, जिससे विद्यार्थी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजभाषा के जो प्रयोग क्षेत्र हैं उनसे वह परिचित हो सके। चर्चा और नारेबाजी तो बहुत है फिर भी यह कहा जा सकता है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने की बात तो दूर की कौड़ी है। अभी उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों के अनेक विश्वविद्यालय में हिंदी अध्ययन की भाषा नहीं है, अनेक सरकारी विश्वविद्यालयों हिंदी विभाग की स्थापना तक नहीं हुई है।
प्रो.नवीन चन्द्र लोहनी
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