Thursday, September 19, 2024
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डॉ नीरज सुधांशु की कविता – मैं क्यों हिंदी बोलूं

मैं क्यों हिंदी बोलूं मैया, मैं क्यों हिंदी बोलूं?
साल सतत्तर बाद भी देखो
राष्ट्र की भाषा बन न पाई,
पूरब, पश्चिम, दक्षिण दुश्मन
केवल उत्तर को यह भाई।
फिर मैं ही क्यों इसका हो लूं?
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैया…….

हिंदी बोलूं तो कहलाऊं
भैय्यन, ललुआ या फिर कद्दू,
मुझे नहीं अपमानित होना
ना चाहूं कहलाना बुद्धू।
मैं तो बस इंग्लिश संग डोलूं…
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैय्या…….

बहुत बड़ा ऑफीसर बनकर
मैं जब खुद पर इतराऊंगा,
अंग्रेज़ी में ही बोलूंगा
अंग्रेज़ी में ही गाऊंगा।
आज मैं राज़ ये खोलूं …
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैय्या……..

एम एल ए, एम पी हो चाहे
ऑफीसर या बिज़नेस मैन,
केवल इंग्लिश में बतियाएं
गिट-पिट कर मटका कर नैन।
सब पर भारी जब मैं तोलूं…
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैय्या……..

कैट, मैट, हो जैट, प्रोफेशनल
आई ए एस या पीसीएस,
कॉम्प्रीहेन्शन झट-पट कर दे
कहलाता वो ही जीनियस।
मैं भी क्यों न मिस्री घोलूं?
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैया……..

हर लड़का अब कॉन्वेंट में
पढ़ी-लिखी लड़की को चाहे,
जीन्स-शर्ट इंग्लिश पहनावा
अंग्रेज़ी में भरता आहें,
क्यों बहती में हाथ न धोलूं?
मैं क्यों हिंदी बोलूं, मैया…….

मां तुम मेरा कहना मानो
हिंदी की अब पिट न लो।
वर्ष में इक दिन जितना चाहो
उतना हिंदी दिवस मना लो।
शेष वर्ष इंग्लिश में बोलूं…
मैं क्यों हिंदी बोलूं , मैय्या मैं क्यों हिंदी बोलूं।

जो चाहो अपनाओ बेटा
पर अपनी मां को न भूलो,
संस्कार की बलि दे धरती-
अंबर के बिच तुम न डोलो।
फर्ज़ निभाऊं, आंखें खोलूं
नित मिल तुम संग हिंदी बोलूं…
मैं तो हिंदी बोलूं बेटा, मैं तो हिंदी बोलूं।

समझ गया मां बात आपकी
अंग्रेजी ना, अपनी हिंदी
समझ गया ये है मांबोली
भारत मां के भाल की बिंदी।
अब मैं सबकी आंखें खोलूं।
मैं भी हिंदी बोलूं मैया, मैं भी हिंदी बोलूं।

डॉ नीरज सुधांशु
(बिजनौर, उत्तर प्रदेश)
मोबा- 9837244343
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