Wednesday, October 16, 2024
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हरिहर झा की कविता – मीत है बाजार की

हिंदी भाषा वैज्ञानिक है, ऊँचा सिर अपना रखवाती
पर स्टेटस-सिंबल इंग्लिश के  आगे जाहिल कहलाती 
कविता, लेख कहानी अच्छी, ग्राहक को ही पटा न पाती
हिंदी दिवस मनाने, डस्टर  ले कर धूल उड़ाई जाती
सृजनात्मक साहित्य बड़ा है, प्रयोजनमूलक नहीं पाती
अर्थशास्त्र, विज्ञान में देखा, ढूंढा, मिले दिया ना बाती
मीत है बाजार की,  हिंदी, व्यापार बड़ा ले कर आती
विदेश में फहराए झंडा, घर में कच्ची गोली खाती
इकसठ करोड़ घर में बोलें, फिर भी क्यों जिबान हकलाती
माँ की लोरी, कद्र ना मिले, दासी बन बेचारी गाती 

हरिहर झा
संपर्क – [email protected]
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