Wednesday, October 16, 2024
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डॉ प्रमिला वर्मा की कहानी – मौसम था आशिक़ाना

सोच तो बहुत दिन से रहा था । एक दिन हिम्मत करके उसने जेल अधीक्षक के पास जाकर कहा – “जनाब ,मुझे मेहरबानी करके एक नोटबुक और पेन चाहिए ।मैं कुछ लिखना चाहता हूं। जेल अधीक्षक मिस्टर नायक मुस्कुरा दिए।यह पाकिस्तान को सूचनाएं देने वाला हिंदुस्तानी बल्कि हिंदू पता नहीं क्या लिखना चाहता है। शायद आप बीती, उन्होंने स्वीकृति दे दी। हमेशा खामोश रहने वाला मोहसिन अपने श्रम को धर्म की तरह निभाने वाला मोहसिन शांत चित्त जेलर नायक को किसी भी कोण से खुफिया सूचनाएं देने वाला नहीं लगता था। लेकिन वह क्या कर सकते थे ।उसके खिलाफ मिले सबूतों और कोर्ट से मिली सजा के अनुसार वह देशद्रोही था ।कोर्ट का स्पष्ट आदेश था उस पर कड़ी नजर रखी जाए और सश्रम कारावास की दस वर्ष की सजा सुनाते हुए उसे जेल भेज दिया गया। उसने जेल अधीक्षक के द्वारा मिली 200 पेज की नोटबुक और पेन को लेकर उनके चरण स्पर्श करने झुका तो वे गदगद हो गए। लेकिन सजा तो मोहसिन को मिली थी ।उन्होंने कहा- “अतुल” वह चौंक पड़ा।” तुम अतुल ….अतुल जगताप सांगानेरिया…. वह हैरत से उन्हें देखता रह गया।
 खत्म हो चुका है मोहसिन… अब तुम अतुल हो।एक नेक इंसान हो। इतने समय में मैंने जाना है। जाओ इस नोटबुक में मोहसिन की हत्या कर दो और अतुल को जियो।” वह सिर नीचे झुकाए खड़ा रहा।वे चले गए ।
वह अपनी बैरक में बैठा सामने पैर फैलाए उस पर नोटबुक रखे सोचता रहा कहां से शुरू करूं…… पूरे 15 वर्षों का समय एक चलचित्र के रील की तरह उसके समक्ष घूमने लगा।
                       
उसने पहले पृष्ठ पर लिखा मोहसिन खान….. फिर उसे काट दिया ….. फिर लिखा अतुल….. फिर काटा….. फिर लिखा मोहसिन खान।
हां पिछले 15 वर्षों से वह इसी नाम के साथ तो जी रहा था। फटे कपड़े पर पैबंद की तरह यह नाम उसके व्यक्तित्व पर चिपका दिया गया था।
कहां हो तुम मोनिका?
आंखों में पहले मोनिका नाम से एक रोशनी सी आई… फिर अंधेरा छा गया और आंखें आंसुओं से भर गईं। कितनी ही बार वह खामोश रुलाई रोया होगा कि उसका हम उम्र साथी रिज़वान उसकी पीठ पर एक धौल जमाता …..”ब्रादर रोता क्यूं है ? तू तो इतना पढ़ा लिखा है। तेरा देश कौन सी तुझे इतनी बड़ी नौकरी दे देता कि तू खुश रहता। बरसों जूतियां चटकाता रहता। तेरे देश में कितने पढ़े लिखे नौजवान नौकरी के लिए भटकते रहते हैं। देख तेरे जैसे  अनेके लोगों को लाखों रुपए हमारे हाईकमिश्नर  के द्वारा दिलवाए जाते हैं। उसे हमारे कमांडर सबके घरों को पहुंचा देता है। बस, तू उनका काम करता रहा। उधर तेरी बहन की शादी धूमधाम से होगी। तेरे अब्बू, अम्मी बड़ी सी गाड़ी में घूम रहे होंगे। और तू भी तो एक बेहतर जिंदगी जी रहा है ना ।”
“और तुम रिज़वान कितनी बेहतर जिंदगी जी रहे हो । तुम्हारे खानदान के लोग मौज उड़ा रहे होंगे…. और तुम?”।  गद्दार!!! कहते कहते रुक गया वह। कहां से आए हो?…. रिज़वान ने उसके मुंह पर उंगली रख दी। अर्थात ना चाहते हुए भी आतंकवादी बने रहो । याद है रिज़वान को जब अचानक बूटों की आवाज ने उसके शांत शहर कुलगाम को बेबस कर दिया था। और अपने ही कौम के लोगों को लूटा था।
 ज़्यादतियां की थीं। बहनें और अम्मी कैसे कोठरी में छुप गई थीं। तब वह मात्र 16 वर्ष का था और पकड़ लिया गया था इन लोगों के द्वारा….। एक ही कहानी है चाहें वह रिज़वान हो या मोहसिन।
 रिज़वान भी नहीं जानता कि उसकी अम्मी, अब्बू और बहनें कितने सुख में हैं।
 “नहीं खाया जाता मुझसे यह मांस के लोथड़े… किसी को इतना दुख, तकलीफ देकर कैसे खाया जाता है। क्या उनका दुख हमारे भीतर नहीं आ जाता।”
एक बार शुरु- शुरु में उसने कह दिया तो बावर्ची  ने तीखी मिर्च, शोरबा वाली सब्जी की प्लेट उसके मुंह पर फेंक कर मारी।
कई हफ्तों तक वह आंखों पर ठंडा लेप लगाए पड़ा रहता। फिर उसने कुछ भी कहना छोड़ दिया। थाली में परोसे मांस के टुकड़ों को वह बगल में बैठे किसी भी साथी की थाली में डाल देता और किसी तरह सूखी रोटियां वह उस शोरबे में डुबोकर खा लेता। अब तो आदत पड़ चुकी है ऐसे खाने की।
वह कॉलेज के दिन थे… . …. उत्साह से भरे । जब मोनिका और अपने सभी सहपाठी मित्रों के साथ उन लोगों ने कॉलेज में एडमिशन लिया ।ग्रेजुएशन के प्रथम वर्ष में ही मोनिका और उसने महसूस किया यह मित्रता साधारण मित्रता नहीं है, बल्कि प्रेम में तब्दील हो चुकी है।
पहले वह इस बात को नहीं मानता था। लेकिन मोनिका मानती थी कि वह पढ़ाई में ही तेज नहीं है। बल्कि जिंदगी के हर क्षेत्र में अव्वल है। वह खिलाड़ी था….. । कॉलेज में प्रथम श्रेणी में पास होना…. और बांसुरी बजाना । उसके मामा बांसुरी बजाया करते थे तो वह भी बजाना सीख गया था।                     
और फिर लगातार के अभ्यास से बांसुरी पर अनेक धुन बजा लेता था बांसुरी के ही कारण उसे कनुप्रिया नाटक में कृष्ण का अभिनय करने को दिया गया ।राधा का अभिनय  एक कोमल सी लड़की पूजा को दिया गया… बस मोनिका रूठ गई थी।  “तुमने जानबूझकर पूजा का नाम प्रपोज किया है।”उसने कहा था। जबकि ऐसा नहीं था।
अतुल पूर्णतया मोनिका का ही था। ‘कॉलेज के प्राचार्य कहते थे बांसुरी हमारे देश की संस्कृति की प्रथम धुन है।’ गुस्सा उतरने के बाद मोनिका उसे कनु कहने लगी थी। बाद में कॉलेज में मित्रों के बीच उसका कनु नाम ही प्रचलित हो गया। वे सभी ग्रेजुएशन के तीसरे वर्ष में थे। वह आगे एम.बी.ए करना चाहता था। मोनिका को अंग्रेजी साहित्य में दिलचस्पी थी। सभी ने कोई ना कोई राह चुन ली थी।
कभी-कभी दोनों कॉलेज के पीछे बहती बरसाती नदी के किनारे बैठ जाते। जहां उनकी खुली आंखों में अनेक सपने तैरा करते थे। धीमे-धीमे उन सपनों को आंखों में संजोए मोनिका उसके कंधे पर सिर रखकर आंखों को बंद कर लेती, कहीं कोई सपना आंखों से फिसल ना जाए। 
अतुल ने बताया था उसकी छोटी बहन रेखा स्टेट सर्विस की परीक्षा देना चाहती है। इसके लिए उसे कोचिंग की आवश्यकता है। लेकिन  मां मानती हैं कि रेखा ग्रेजुएशन कर ले फिर उसकी शादी कर देंगे।
“लेकिन मोनिका, मैं उसे पढ़ाऊंगा। जो करना चाहे वह करेगी। फिर उसकी शादी के रुपयों का भी तो मुझे ही प्रबंध करना होगा।”उसने पुनः कहा-
 “तुम तो जानती हो पिताजी कोर्ट में एक वकील के मुनीम हैं। ज्यादा वेतन नहीं है  उनका।” मोनिका  ने धीमे से उसका हाथ दबाया। यह सहमति थी और एक आश्वासन कि तुम कर सकोगे अतुल ।और मैं तुम्हारे साथ हूं।  
उन लोगों का एक बड़े आंगन के साथ दो कमरों का पैतृक मकान है । तो पिताजी को जो वेतन के रूप में मिलता है उसे खाने इत्यादि का खर्च तो संभल जाता है परंतु अन्य खर्चों में आर्थिक सामने आ जाता है। वह एम .बी.ए करके एक अच्छी नौकरी करेगा और सभी कुछ संभाल लेगा। देखना ….. हमारे पास एक बड़ा सा फ्लेट होगा…. जिसमें मेरी मोनिका और मैं…. हम अपने सारे सपनों को पूरा करेंगे मोनिका। उसकी आंखों में सुनहरे सपने तैर गए। मोनिका भी उन सपनों के उजास में झिलमिला उठी।
                   
एम. बीए. की पढ़ाई के साथ वह रात के कुछ घंटों की नौकरी  एक प्रेस में करने लगा , ताकि पढ़ाई का खर्च निकलता रहे। उसके साथ पढ़ रहे साथी विवेक के पिताजी बिल्डर थे। एक बार वह बनती  हुई बिल्डिंग भी देख आया था।   उसने अपने मित्र विवेक से कहा “इसी बिल्डिंग में मैं एक फ्लैट लूंगा । बस एम. बीए हो जाऊं फिर लोन भी मिल जाएगा।” विपिन के पिताजी ने बनती हुई बिल्डिंग में जिसमें कुछ फ्लैट बन चुके थे एक में उसे रहने बोल दिया। क्योंकि उसके सामने रहने की समस्या थी। उन्होंने यह भी कहा यही फ्लेट तुम खरीद लेना । वे जानते थे इतनी जल्दी फ्लैट बिकेंगे नहीं। अतुल एक मकान ढूंढ ही रहा है तो उसे रहने दिया जाए।  बिल्डिंग की सुरक्षा भी रहेगी। बिल्डर चाहते भी थे कि सुरक्षा की दृष्टि से कोई अन्य भी वहां रहे। तब तक तुम उसमें रहो। हालांकि बिल्डिंग आउटस्कर्ट में है। लेकिन शहर तो लगातार बसता ही जा रहा है। वहां से कॉलेज आने जाने की सुविधा के लिए बहुत वाहन हैं। उनको चाहिए थी अपनी बिल्डिंग की सुरक्षा जो उनका पुराना चौकीदार जो लंगड़ा भी हो गया था उस पर इतना भरोसा नहीं किया जा सकता था। बिल्डिंग में नीचे माल बिखरा पड़ा था। अतुल को यह बात पसंद आई और वह रहने आ गया।
इस फ्लेट में मोनिका दो बार आ चुकी थी। वह खुश थी इतने अच्छे और बड़े फ्लेट को देखकर। वह खुश होकर मोनिका को बताने लगा …. देखो मोनिका यह हमारा कमरा होगा….  यह मां और पिताजी का …. यह इतना बड़ा हाल है यह हमारा ड्राइंग रूम होगा। तुम्हें इंटीरियर प्लांट पसंद है ना! तुम यहां लगाना और तुम्हारा फिश एक्वेरियम यहां होगा। बालकनी से हवा, धूप आती रहेगी तो पौधे भी स्वस्थ रहेंगे।
 यह ढेर सारी अलमारियों वाला कमरा रेखा का होगा। उसे अलमारियां बहुत पसंद है। यहां उसका कंप्यूटर होगा जहां वह अपनी पढ़ाई करेगी ।….कहते हुए उसने स्टोव पर चाय बनाती मोनिका को पीछे से आकर आलिंगन बद्ध कर लिया। उसकी हर खुशी में मोनिका साथ थी।
                        
वह उस दिन कॉलेज से लौटा ही था और नीचे बिछी चटाई पर चाय पीते हुए अखबार पढ़ रहा था कि एकदम से दरवाजा जो भीतर से बंद नहीं था 6-7 लोगों ने खोल लिया। सभी के चेहरे कपड़े से ढंके  हुए थे । किसी एक के हाथ में रिवाल्वर  था।
यह क्या ? वह चौंक पड़ा। इस खाली घर में  लूटने को है ही क्या ?
” कौन हो तुम लोग” उसने पूछा” और मुझसे क्या चाहिए “वह डर भी गया था। वे उसके इर्द – गिर्द बैठ गए। दो तीन आदमी दीवाल से टिककर खड़े रहे ।उनमें से एक व्यक्ति ने कहा- ” देखो! जैसा हम कहते हैं तुम्हें करना पड़ेगा । हम तुम्हें पैसों से मालामाल कर देंगे। तुम यह पढ़ाई…. इस नौकरी से भी उतना नहीं कमा पाओगे जितना हमारा सरगना तुम्हें देगा। एक ने अपनी पॉकेट से उसके मां, पिता और बहन रेखा की तस्वीर निकाल कर दिखाई।
“हम लोग कल सुबह आएंगे। तुम कहीं जाना नहीं । हमारी नज़र तुम पर रहेगी ।तुम्हारे इस मकान में हम मशीनें रखेंगे। तुम एक होशियार और पढ़े-लिखे लड़के हो ।हमारे बहुत काम के हो। तुम्हें यहां से जरूरी खबरें  सीमा पर भेजनी होंगी। फिर वह हमारे मुल्क में  एजेंट द्वारा भेजी  जाएंगी।”
 “तुम लोग क्या चाहते हो? मैं क्यों करूंगा यह सब?” उसने लगभग रुआंसे होते हुए कहा।
” सब पता चल जाएगा” कहते हुए उन्होंने एक ₹10 की गड्डी उसकी और उछाली और चले गए । उन लोगों के जाने के बाद वह सोचता रहा…. क्या करे ? क्या पुलिस को खबर कर दे। लेकिन उनके पॉकेट में थी उन तीनों की तस्वीरें।
मोनिका के यहां फोन था। क्या वह मोनिका को बताए ? नहीं! नहीं…. अभी तक तो उन लोगों के पास तीन तस्वीरें थीं फिर कहीं चौथी भी ना हो जाए। घबराहट में वह खिड़की के पास गया तो देखा पुलिया पर दो व्यक्ति मुंह पर कपड़ा  लपेटे बैठे हैं वह और भी भयभीत हो उठा।
यह लोग निश्चय ही उग्रवादी संगठन से हैं। और मेरे द्वारा यहां की खबरें सीमा पर पहुंचाएंगे । वह रात भर सोया नहीं भयभीत सा कमरे में टहलता रहा। सुबह-सुबह वह लोग आ गए ।धीरे-धीरे लकड़ी के खोखे ऊपर चढ़ाए जाने लगे फिर खोके खुले ।मशीनें बाहर निकलीं। यह तो टेलीप्रिंटर है अर्थात रात्रि को अखबार में काम करना यह पता लगा कर आए थे। नीचे वॉचमैन ने पूछा तो  उन लोगों ने बताया ” कारखाने का काम है जो उस लड़के से करवाना है ।”
उसने साफ मना किया कि वह यह सब नहीं कर सकता। उसे यह काम आता ही नहीं है।
एक व्यक्ति जो डीलडोल से बलिष्ठ था उसने उसकी गर्दन इतनी जोर से दबाई कि उसकी आंखों के समक्ष चिंगारियां फूटने लगीं। वह असहाय हो चुका था। फिर दूसरे दिन एक अन्य व्यक्ति आया उसने मशीनें बाहर निकालीं और उसको जानकारी दी। और यह भी कहा कि मना नहीं करना तुम हमारे यहां की लिस्ट में शामिल हो चुके हो।
एक महीने से वह फ्लेट से बाहर नहीं निकला ।उसकी जिंदगी अब दहशत की तरफ मुड़ चुकी थी। उस कमरे से मशीनों की खटखट की आवाज आती… जहां मोनिका के साथ उसके सपने पूरे होने थे। वे जैसा कहते  उसे करना पड़ता । उसने अपने आप को देशद्रोही की लिस्ट में खड़ा पाया।
इधर मोनिका महीने भर से उसकी सूचना न पाकर घबराहट में आई।  उसने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुल गया।  वह अंदर आई ….मोनिका उसे देखकर आश्चर्य में डूब गई ।उसका कनु उन लोगों से घिरा भारी-भरकम मशीनों से कुछ पेपर्स को अटैच कर रहा था। सामने मोनिका को देखकर वह उसके प्रति अनजानी आशंका से कांप उठा।
” मोनिका तुम यहां?”
 ” और तुम यहां क्या कर रहे हो?”
   ” मैं,  मैं! कुछ भी तो नहीं। यह मेरे कस्टमर हैं इनका काम कर रहा हूं।”
इतनी भी मासूम नहीं थी मोनिका की कुछ समझ ना पाए । उन सभी के चेहरे कपड़े से ढके थे।
“तुम इन आतंकियों के……”
उसने मोनिका के होंठों पर उंगली रख दी और ” नहीं” में सिर हिलाया। 
“तुम जाओ मोनिका! मैं जल्दी ही तुमसे मिलूंगा और सब बताऊंगा। “
मोनिका ने जाना ही ठीक समझा। वह अपने शरीर के चिथड़े देखने को  तैयार नहीं थी। और अकेला अतुल इन लोगों से क्या जीत पाएगा। 
बाहर निकलते हुए मोनिका से कहा गया-   ” ए  ,मेडम! बाहर किसी को कुछ बोला तो परिवार सहित तुमको आरी से काट देंगे।”
                  
रात भर मोनिका इसी उहापोह में रही कि क्या पुलिस को खबर करे? लेकिन वे लोग अतुल को कहीं मार ना दें।
  दो दिन वह भी कॉलेज नहीं जा पाई। जिन मशीनों को उसने देखा था निश्चय ही उसके द्वारा बाहर खबरें भेजी जाती होंगी। लेकिन अतुल ही क्यों ? क्योंकि अतुल कुछ अलग हटकर था । निश्चय ही इस बात का पता लगाकर उसके पास पहुंचे होंगे कि वह यह काम कर सकेगा। बिल्डिंग का शहर से दूर होना भी उनके लिए फायदेमंद था। 
दो दिन बाद ही अखबार में खबर  थी। एमबीए की पढ़ाई करता एक लड़का खुफिया खबरें देता हुआ पकड़ा जाता कि वे लोग भाग निकले। शहर से दो लड़के लापता हैं।
 ं खबर पढ़ते ही वह जहां खड़ी थी वहीं भरभरा कर गिर पड़ी । तो मेरा अतुल अब कभी नहीं लौटेगा ……
अतुल के माता – पिता और बहन रेखा और वह स्वयं उस फ्लेट के सामने खड़े एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे। वहां भीड़ लगी थी। 
अब उसका नाम मोहसिन था और वह लकड़ी के मकान में, किसी बर्फीले इलाके में और भी कई लड़कों के साथ रहने को मजबूर था।
उन लोगों को वह सारी ट्रेनिंग दी जा रही थी जो दहशत और आतंक फैलाने के लिए की जानी थी ।किसी एक लड़के ने वहां से भागने की कोशिश की थी तो उसको तड़पा तड़पा कर मारा गया था। उसकी मौत को देखकर सभी भय की स्थिति में और सकते की हालत में थे।
वहां पर कुछ लड़कियां और औरतें सुदूर इलाके से आती थीं। वह इस ग्रुप के सरगना को पता नहीं क्या क्या बताती थीं। उन्हें रुपए दिए जाते और फिर वह सरगना उनके साथ अपनी संतुष्टि  भी करता। हो सकता है वह भी मजबूर की गई हों उनकी तरह।
कई बार घाटियों  से बंदूक चलने की आवाजें और घायलों की चीख-पुकार सुनाई देती। बातचीत में बताया जाता  की सेना और उनके जैसे अन्य लोगों से मुठभेड़ हुई है।
एक दिन उसने मोनिका को पत्र लिखा और उसके घर का पता लिखकर लिफाफा छुपा दिया । लेकिन वह पकड़ा गया और उसके साथ जो कुछ किया गया वह सोचना या याद करना भी नहीं चाहता।
दस वर्ष बीत रहे थे इन लोगों के साथ रहते… भागते और फिर नया ठिकाना।
अब उसने अपने परिवार के बारे में सोचना बंद कर दिया था। कितने ही नए लड़के आए वे या तो मुठभेड़ में मारे गए या इन्हीं लोगों द्वारा मार दिए गए। अन्यत्र भी भेजे गए।
वह कभी समझ नहीं पाया कि आखिर यह लोग चाहते क्या हैं ंं।
कभी-कभी वह बांसुरी लेकर (जो उसने किसी ठेले पर से खरीदी थी) दूर किसी पत्थर पर बैठ जाता। क्या बांसुरी की धुनें मोनिका तक पहुंचती होंगी।
रिजवान पास आकर बैठ गया। “अरे ब्रादर हमें कश्मीर चाहिए ।कश्मीर हमारा है।”
क्या उत्तर देता वह।
जानता है वह…. ऊंचे पर्वतों से टकरा कर धुनें वापस लौट आती हैं।
अब रिज़वान 26-27 वर्ष का एक सुंदर आकर्षक नौजवान बन चुका है । वह भी अपने कॉलेज में अपनी ऊंचाई अपने डीलडोल के कारण कोई हीरो ही कहलाता था । अब तो याद ही नहीं उसे की उपमाएं उसे किस फिल्मी हीरो की दी जाती थीं ंं।
” किस स्वतंत्रता की बात करते हो रिज़वान?  “उसने धीमे स्वर में पूछा।
 यहां की तो हवा में भी दहशत है कहीं कोई सुन ना ले।
” कश्मीर खुद स्वतंत्र होना चाहता है” रिज़वान ने कहा।
             
एक पढ़ा लिखा इंसान कैसे इन विक्षिप्त मानसिकता वालों के साथ दस वर्षों से रह रहा है। सब कुछ जानता समझता  वह लेकिन चुप ही रहता।
अब उसे डर नहीं लगता था । वह इस जिंदगी को खत्म करना चाहता था। जब तुम्हारे समक्ष ओर – छोर कोई रास्ता सुझाई न दे रहा हो तब तुम क्या करोगे ?
उस दिन शाम को मगरिब की नमाज़ के बाद वे लोग बात कर रहे थे। शायद सीमा से कुछ दूसरी तरफ हथियार ड्रग्स, विस्फोटक आदि…. आतंकवादी बनाने की दिशा में बढ़ने वाले कट्टर लोग लेकर आ रहे हैं उन्हें जहां पहुंचाना है…..
न जाने क्या हुआ उसने मन ही मन सोच लिया कि वह यह कार्य करेगा ।उसने खुलकर अपना प्रस्ताव सामने रख दिया।
दूसरे दिन एकदम सवेरे वह और रिज़वान इस कार्य के लिए निकल गए। उसके मन में क्या चल रहा है रिज़वान कहां समझ पाया ? बंद लोडिंग गाड़ी में विस्फोटक, हथियार  ड्रग्स इत्यादि। अर्थात पूरे एक समूह का  सफाया।भीड़ भरे इलाके में भयंकर विस्फोट होगा। आज या कभी भी। होगा तो अवश्य।
रिज़वान के साथ वह ट्रक लेकर मुख्य सड़क पर आ गया था। काफी दूर जाते हुए रिज़वान ने कहा था” हमारा पीछा पुलिस कर रही है” आगे जाकर उसने जानबूझ कर घाटी की तरफ गाड़ी ऐसी मोड़ी की ना जाने कितनी कुलाटियां खाते हुए गाड़ी गहरी घाटी में गिरी । उससे पूर्व रिज़वान ‘ब्रादर’  चिल्लाता हुआ गाड़ी से कूदा…. और वह भी कूद पड़ा। गाड़ी नीचे गिरी। बाद में पता चला वह 700 फीट से ज्यादा नीचे गिरी। एक विस्फोट हुआ और गाड़ी जल उठी। रिज़वान खड़ा हो गया। कहीं कोई चोट नहीं । वह सकते की हालत में था ….लेकिन वह तो खुश था… उसका यह मिशन था कि भले ही उसकी दर्दनाक मौत हो लेकिन अब बस… उसकी कोहनी टूट चुकी थी । अस्पताल में उसे होश आया तो उसने अपने आप को पुलिस से घिरा पाया। वह सेना को अपनी कहानी सुनाना चाहता था…यह उसकी जीत थी … फिर उसने जो कुछ सुनाया वह संतुष्ट था । 
उसे सजा हुई दस वर्ष सश्रम कारावास।और वे दस वर्ष जो उसने इन आतंकियों के साथ बिताए… इतना आसान नहीं था उसका केस।
दूसरी नोटबुक लेने वह जेलर के पास गया जो अब बदल चुके थे । उन्होंने नोटबुक देते हुए  बताया कि जेलर नायक के किए अनुरोध से …उसके अच्छे चाल चलन से उसे समय से पूर्व रिहा किया जाएगा।
रिज़वान हैरान था। जो उसने कोर्ट के समक्ष कहा था। दोनों एक ही जेल में बंद थे ।बरसों से यह हिंदू लड़का उन लोगों की प्रताड़ना सहते – सहते कभी हृदय से आत्मसमर्पण इन लोगों के समक्ष नहीं कर सका। और एक वह ….
जेल से बाहर आकर उसे सूझ नहीं रहा था कि कहां जाए।
उन्हीं दिनों की खबर थी कि अखनूर के पास के इलाकों में जो खेत हैं। वहां खेत पर काम करते हुए सीमा पार से आई गोलियों का शिकार एक किसान दंपति हुआ है। जिनके 9 साल का एक बेटा है। यह बेटा अनाथ हो चुका है ।उसने मंशा ज़ाहिर की कि वह बेटे से मिलेगा और उसके साथ रहेगा। बेटे का नाम अतीक है।  मुसलमानों के सारे तौर तरीके धर्म वह इन वर्षों में समझ चुका था। अतीक के साथ वह उसी के घर में रहने लगा।
एक दिन जब दूर जंगल में टहल रहा था…. उसकी बांसुरी भी उसके साथ थी । बरसों बाद वह बांसुरी बजाने उसी जंगल के घने दरख़्त के नीचे बैठ गया …..उसे कॉलेज में कनुप्रिया नाटक की वह धुन याद आ गई और वह बजाने लगा। उन दिनों मौसम कितना आशिकाना था…. आंखों में ढेर सारे सपने… मोनिका। बहुत ही अच्छा उनका करियर और माता-पिता, बहन के लिए सब कुछ कर लेने की इच्छा। सोचते हुए बरसों बाद उसकी सूनी आंखों में आंसू झिलमिला उठे।
  पहले सुर ऊटपटांग हुए फिर संभल गए। शाम हो रही थी दूर जंगल की ओर पेड़ों के पीछे सूरज डूबना चाहता था कि उन डूबती सुनहरी किरणों के समक्ष एक आकृति आकर खड़ी हुई और जोरो से चीख पड़ी…. कनु ….वह हड़बड़ा कर खड़ा हो गया।
आंसुओं का लंबा सिलसला जब ठहरा तो मोनिका ने बताया कि वह तो यूं ही यहां तक टहलने आई थी। पास के गेस्ट हाउस में रुकी है।
 फिर कहा – “अतुल तुम्हारी प्रतीक्षा निर्मूल थी। तुम कभी ना लौटने के लिए चले गए थे । मेरा आज भी संबंध रेखा से हैं। हम दोनों मिलते हैं। तुम्हारे जाने के दो-तीन वर्षों बाद मेरी शादी हो गई। रेखा की शादी तुम्हारा घर बेचकर तुम्हारे चाचा ने कर दी । चाचा तुम्हारे पेरेंट्स को अपने साथ ले गए ।लेकिन अतुल …… वह  समझ चुका था दोनों उसकी प्रतीक्षा करते – करते  दुनिया छोड़ गए।
लेकिन तुम्हारी बहन रेखा ने तुम्हें कभी माफ नहीं किया।”
 “हां सचमुच, उसने जो कुछ भी सुना वह माफ नहीं कर सकती थी।”
उसने दोनों नोटबुक मोनिका के हाथ में थमाई । ” यह रेखा को दे देना। शायद वह मुझे इसको पढ़कर माफ कर दे ।
और तब तुम मुझे बताना मैं शायद मिलने आऊं या वह आए । “
नोटबुक देने के लिए वह मोनिका को घर ले गया था । मोनिका ने देखा एक गरीब की जिंदगी से भी निम्नस्तर की जिंदगी उसका ब्रिलिएंट एमबीए की पढ़ाई करता हुआ अतुल आज जी रहा है।
” अब क्या करोगे तुम आगे? क्या तुम्हारी सर्टिफिकेट वगैरा रेखा से लेकर भिजवाऊं। उसने तुम्हारा सामान संभाल कर रखा है अतुल। वह समझती है कि तुम इस दुनिया में ….लेकिन मेरा विश्वास था तुम हो और मुझसे मिलोगे।”
उसने एक ‘आह’ भरी।” क्या करूंगा सर्टिफिकेट और डिग्री का। मेरे नाम के साथ जो कलंक है वह… आगे वह बोल नहीं सका।
“पहले यह डायरी मैं पढ़ूंगी फिर रेखा को दूंगी।”
अतुल अपलक मोनिका की आंखों में ठहरे आंसुओं को देखता रहा।
 मोनिका मुड़ी और आंसुओं की बूंदों को आंखों से ढलकने दिया….  वह बिना पीछे मुड़कर देखे तेज़- तेज़ कदमों से नीचे उतरने लगी।

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2 टिप्पणी

  1. बहुत ही मार्मिक कहानी प्रमिला जी आपकी! पढ़कर मन छार-छार हो गया। क्या ही कहें हम इस कहानी के लिये। आतंकवाद और आतंकवादियों के इस तरह के क्रियाकलापों से न जाने कितने हैं युवा पीढ़ित होते होंगे। हम इस कहानी को सच्चाई की तरह देखते हैं। सांप्रदायिकता की आग में समान धर्मा लोगों को दिक्कत ना हो तो ना हो क्योंकि यह धार्मिक कट्टरता पर आधारित है, पर धोखे से, जबरदस्ती से , डरा-धमकाकर दूसरे लोगों की जिंदगी बर्बाद करना कहाँ की इंसानियत है और किस धर्म में लिखा है? एक होनहार प्रतिभा उभरने से पहले ही खत्म हो गई। उम्मीदों पर ग्रहण लग गया। स्वप्न पूरे होने के पूर्व ही नष्ट हो गये। और प्रेम की तो भ्रूण हत्या ही हो गई। जेलर में इंसानियत थी। वह एक अच्छा व्यक्ति था और उसने उसे उसका नाम पुनः वापस दिया। मोहसिन से बदलकर वह पुन: अतुल हो गया। लेकिन इस अंतराल में जो कुछ हुआ उसने उसके जीवन की धारा को ही बदल दिया था। उसकी पहचान ही खो गई थी। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। एक कहावत है

    *का वर्षा जब कृषि सुखाने*
    जब खेती पूरी सूख गई और उसके बाद कृपा की बारिश हुई भी तो वह किस काम की ? कितनी उम्मीद थी उम्मीद थी उसकी बहन की शादी माता-पिता की सेवा लेकिन वह कुछ भी ना कर सका और माता-पिता भी चल बसे।
    एक बेहतरीन, संवेदनशील कहानी के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ ।

    • इतनी सुंदर समीक्षा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको कहानी पसंद आई।
      यह किसी न किसी की जिंदगी की सच्चाई है।
      पुनः धन्यवाद।

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