Wednesday, October 16, 2024
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संपादकीय – टाटा का मतलब बाय-बाय नहीं होता

(इस संपादकीय को लिखने के क्रम में सामग्री उपलब्ध करवाने के लिये मित्र सूर्यकांत शर्मा का आभार)

सुहेल सेठ बताते हैं कि ब्रिटेन में राजकुमार चार्ल्स ने एकबार रतन टाटा को सदी के महान परोपकारी का सम्मान देने के लिये लन्दन के बकिंघम पैलेस में आमंत्रित किया। मगर रतन टाटा के प्रिय कुत्तों में से एक की तबीयत ख़राब हो जाने के कारण उन्होंने उस सम्मान समारोह में आने असमर्थता ज़ाहिर कर दी और वे अपने कुत्ते की देखभाल करने के लिये अपने घर में ही रुक गये।

पुरवाई के पाठकों को बताना चाहूंगा कि हमारे बचपन मे कहा जाता था – जूता बाटा का और स्टील टाटा का। टाटा का नाम ही गारन्टी कार्ड का काम किया करता था… और आज भी करता है।
हम जब किसी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तो आम तौर पर उसका बायोडाटा ही लिख देते हैं। कब जन्म हुआ, कहां पढ़ाई हुई, क्या उपलब्धियां थी और कितने सम्मान मिले।… बस हो गई श्रद्धांजलि पूरी। मगर रतन टाटा और टाटा साम्राज्य हमारे जीवन से इतने जुड़े हुए हैं कि उन्हें इतनी सीधी सरल श्रद्धांजलि देना उचित नहीं होगा।
जब हम अपने जीवन पर निगाह डालते हैं तो पाते हैं कि सुबह उठने से लेकर रात को सोने के लिये बिस्तर पर जाने के बीच का जितना भी समय गुज़रता है उस दौरान हम कोई न कोई टाटा उत्पाद इस्तेमाल कर रहे होते हैं। सुबह उठते ही जब हम पहला कप चाय का पीते हैं तो उसमें टाटा चाय या फिर टाटा टेटली चाय इस्तेमाल करते हैं। जब चाय पीने से पहले या बाद में टाइम देखते हैं तो टाइटन की घड़ी पर निगाह जाती है। 
इसी तरह जब हम तैयार होने के लिये कपड़े पहनते हैं तो वेस्टसाइड, ज़ारा और ज़ूडियो हमें दिखाई देते हैं। गहनों के लिये हम तनिश्क ज्यूलर की तरफ़ ताकते हैं। घर से निकलने के लिये कार में बैठते हैं तो टाटा मोटर्स; बाज़ार में जब स्टारबक्स कॉफ़ी पीते हैं; एक शहर से दूसरे शहर या फिर विदेश की यात्रा करनी हो तो विस्तारा और एअर इंडिया आपकी सेवा के लिये तैयार हैं। 
घर की ज़रूरतों के लिये किराना ख़रीदना हो तो बिग बास्केट और फिर इलेक्ट्रॉनिक का सामान चाहिये तो क्रोमा। घर में टीवी पर कार्यक्रम देखने हों या फिर समाचार सुनने हों तो टाटा-स्काई; टेलिफ़ोन करना हो तो टेलिकॉम और यदि किसी को बाहर डिनर करवाना हो तो ताज होटल। जब गर्मी के मौसम में शरीर पसीने से लथपथ हो रहा हो तो वोल्टास का एअर कंडीशनर शीतल हवा प्रदान करता है, और सबसे महत्वपूर्ण तो हमारा रोज़ाना का भोजन है जो कि टाटा नमक के बिना बन ही नहीं पाता। सच है कि टाटा नाम हमारे जीवन की हर ज़रूरत से जुड़ा है।
एक समय ऐसा भी था कि यदि किसी को कैंसर जैसा भयानक रोग जकड़ लेता था तो उम्मीद की एक ही किरण दिखाई देती थी – मुंबई में टाटा कैंसर अस्पताल। यहां देश विदेश से कैंसर के मरीज़ जीवन की आशा लिये आया करते हैं। 
जब जे.आर.डी. टाटा की मृत्यु हुई थी तो मैं सोचा करता था कि क्या उनकी मृत्यु के साथ टाटा समूह बिखर जाएगा… मगर ऐसा नहीं हुआ। रतन टाटा ने टाटा एम्पायर की कमान ऐसी संभाली कि यह सही मायने में वैश्विक संस्था बन गया।  
रतन टाटा कहा करते थे, “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं”। वे सादगी और प्रतिबद्धता के भीष्म थे। वे जीवन भर अकेले यानी अविवाहित रहे और अपना पूरा जीवन और अपनी उद्यमिता सम्पूर्ण मानव जाति और देश की सेवा में समर्पित कर दिया। नौ अक्टूबर को ब्रीच कैंडी अस्पताल, मुंबई में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व भर से महत्वपूर्ण हस्तियों ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
28 दिसंबर 1937 को बंबई (अब मुंबई) में जन्मे थे, रतन नवल टाटा। रतन टाटा ने कैंपियन स्कूल मुंबई, कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, बिशप कॉटन स्कूल, शिमला और रिवरडेल कंट्री स्कूल न्यू यॉर्क शहर में शिक्षा प्राप्त की। वह कार्नेल विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र रहे। जेआरडी टाटा ने 75 वर्ष की आयु में जब टाटा सन्स के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, तो उन्होंने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
फ़ोटो साभार : अजय मोहंती
रतन नवल टाटा एक सफलतम उद्योगपति होने के साथ साथ अनन्य मानव और मानवताप्रेमी थे। शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास के समर्थक होने के नाते रतन टाटा ने चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में बेहतर जल उपलब्ध कराने के लिए न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग संकाय को सहयोग दिया। उनके सभी कार्य बेहद साफ सुथरे और पारदर्शी थे। यही कारण है कि यदि उन्होंने कभी भी कोई भी परोपकारिता की तो वह भी एक निश्चित और स्पष्ट मापदंड में यथा टाटा शिक्षा एवं विकास ट्रस्ट ने 28 मिलियन डॉलर का टाटा छात्रवृत्ति कोष प्रदान किया था, जिससे कॉर्नेल विश्वविद्यालय में भारत के स्नातक छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके। वार्षिक छात्रवृत्ति से एक समय में लगभग 20 छात्रों को सहायता मिलती है। 
इसके अतिरिक्त टाटा समूह की कंपनियों और टाटा चैरिटीज ने 2010 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एचबीएस) को एक कार्यकारी केंद्र के निर्माण के लिए 50 मिलियन डॉलर का दान दिया था। उनके द्वारा स्थापित टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने संज्ञानात्मक प्रणालियों और स्वचालित वाहनों पर शोध हेतु कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय (सीएमयू) को 35 मिलियन डॉलर का दान दिया था। यह किसी कंपनी द्वारा दिया गया अब तक का सबसे बड़ा दान है और 48,000 वर्ग फुट की इमारत को टीसीएस हॉल कहा जाता है।
वे पक्के तौर पर व्यवसायिक प्रोफेशनल थे। यही कारण है कि उन्हें कई कंपनियों के प्रमुखों से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अपनी-अपनी कंपनियों में दशकों तक काम किया था। टाटा ने सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करके उनकी जगह लेना शुरू कर दिया। उन्होंने प्रत्येक कंपनी के लिए समूह कार्यालय में रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया। उनके नेतृत्व में टाटा सन्स की अति-व्यापी कंपनियों को एक समन्वित इकाई के रूप में सुव्यवस्थित किया गया।
उनकी सूझबूझ से उनके 21 वर्षों के कार्यकाल के दौरान राजस्व 40 गुना से अधिक तथा लाभ 50 गुना से अधिक बढ़ा। उन्होंने टाटा टी को टेटली, टाटा मोटर्स को जगुआर लैंड रोवर तथा टाटा स्टील को कोरस का अधिग्रहण करने में मदद की, जिससे यह संगठन मुख्यतः भारत-केंद्रित समूह से वैश्विक व्यवसाय में परिवर्तित हो गया।
मारुति कार का गठन कभी गरीब ‘आदमी की कार’ को केंद्र में रखकर किया गया था परंतु यह कंपनी ऐसा उत्पाद यानी कार बना नहीं पाई। रतन टाटा ने इसे व्यावहारिक रूप से सोचा समझा और तब जाकर उन्होंने टाटा नैनो कार की भी संकल्पना तैयार की थी। कार की कीमत ऐसी रखी गई थी,जो औसत भारतीय उपभोक्ता की पहुंच में थी। ब्रिटेन की जेग्युआर और लैंड रोवर कारें भी टाटा समूह की ही हैं।
वे अपने वचन यानी कौल के पक्के थे। यही कारण है कि उन्होंने 28 दिसंबर, 2012 को 75 वर्ष की आयु सीमा तक पहुंचने पर टाटा सन्स के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे कर एक मिसाल कायम की।
इस कर्मयोगी को अपनी कठिन यात्रा में देश-विदेश से जो मान/सम्मान /पुरस्कार प्राप्त हुए, उनमें से कुछ का ब्यौरा दें तो  उन्हें सन 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण और सन 2008 पद्म विभूषण प्रदान किया गया। वहीं विदेशों में सन 2004 में ओरिएंटल रिपब्लिक ऑफ उरुग्वे का पदक, उरुग्वे सरकार द्वारा सन 2004 मानद डॉक्टर ऑफ टेक्नोलॉजी प्रदान किया गया। वर्ष 2008 में उन्हें एक के बाद एक सम्मान और पुरस्कार मिले। इसी प्रकार देश-विदेश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों द्वारा उन्हें समय-समय पर अनेक मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। 
वैसे सम्मान आदि के प्रति रतन टाटा में कोई विशेष मोह नहीं था। सुहेल सेठ बताते हैं कि ब्रिटेन में राजकुमार चार्ल्स ने एकबार रतन टाटा को सदी के महान परोपकारी का सम्मान देने के लिये लन्दन के बकिंघम पैलेस में आमंत्रित किया। मगर रतन टाटा के प्रिय कुत्तों में से एक की तबीयत ख़राब हो जाने के कारण उन्होंने उस सम्मान समारोह में आने असमर्थता ज़ाहिर कर दी और वे अपने कुत्ते की देखभाल करने के लिये अपने घर में ही रुक गये।  
रतन टाटा ने अपने जीवन में वास्तविक ख़ुशी महसूस कर ली थी। उन्हें बड़े-बड़े प्लांट और उद्योग की उपलब्धियों से कहीं अधिक ख़ुशी हुई जब एक मित्र के कहने पर वे 200 व्हील-चेयर बच्चों को उपहार स्वरूप देने के लिये ख़ुद पहुंचे। रतन टाटा के अपने शब्दों में, “एक बार किसी मित्र ने विकलांगों के लिये व्हील चेयर मांगी। मैंने दो सौ व्हील चेयर खरीद दीं लेकिन दोस्त ने आग्रह किया कि बांटने भी चलूं और मैं गया। जब सभी व्हील चेयर बांट कर चलने लगा तब एक विकलांग ने मेरी टांगों से मुझे पकड़ लिया, जिससे मेरा चेहरा उसके सामने आ गया। मैंने पूछा कि कुछ और चाहिए क्या? उस बच्चे ने कहा कि मैं आपका चेहरा अच्छे से देखना चाहता था ताकि जब स्वर्ग में आपसे मिलू़ं तो आपको पहचान सकूं! इस चेहरे की खुशी मेरी सबसे बड़ी खुशी थी!”
रतन टाटा और एअर इंडिया का मेरे जीवन में बहुत महत्व है। दरअसल मैंने एअर इंडिया में दो दशकों से अधिक समय फ़्लाइट परसर के रूप में कार्य किया है। मुझे जे.आर.डी. टाटा और रतन टाटा दोनों को फ़्लाई करने का मौक़ा मिला। जे.आर.डी. भारत के पहल विमान चालक थे जिन्होंने उस समय के बॉम्बे से कराची तक फ़्लाईट का परिचालन किया था। एअर इंडिया लिमिटेड उन्हीं द्वारा शुरू की गई थी। वर्ष 1953 में भारत सरकार ने इस एअर लाइन का राष्ट्रीयकरण कर दिया। भारत में एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइन के नाम से दो सरकारी विमान सेवाएं शुरू हो गईं। 
वर्ष 2007 में एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइन का विलय हो गया। वर्ष 2017 में रतन टाटा ने विस्तारा एअरलाइन की शुरूआत की। जिसने बहुत जल्दी वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ली। इसी महीने यानी कि अक्तूबर 2021 में टाटा सन्स ने 2.3 अरब डॉलर के एवज़ एअर इंडिया भारत सरकार से ख़रीद ली। आज टाटा सन्स एअर इंडिया एवं विस्तारा एअरलाइन के माध्यम से भारतीय आकाश पर एकछत्र राज कर रहे हैं।  
आज रतन टाटा हमारे बीच नहीं हैं। तिस पर भी उनके कार्य और स्थापित किए गए मील के पत्थर सरीखे मापदंड और मानक, संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकाश पुंज की तरह विकास और समावेशित विकास की राह आलोकित करते रहेंगे।
‘पुरवाई’ पत्रिका परिवार और विश्व के कोने-कोने में बसे पाठक और लेखक गणों की ओर से इस कर्म योगी मानव महर्षि को करबद्ध साष्टांग प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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60 टिप्पणी

  1. बहुत सी नई जानकारी देता संवेदनशील संपादकीय पढ़कर रतन टाटा और टाटा परिवार के योगदान पर आदर से सिर झुक गया। कोई भी सम्मान मिला हो लेकिन भारत रत्न, उनके जीवनकाल में न मिलना कहीं दुःख दे गया। महाप्राण को कोटि कोटि प्रणाम। दशहरे के दिन भी अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए आपको नमन और धन्यवाद।

    • शैली जी, आपने सही कहा कि रतन टाटा को उनके जीवनकाल में भारत रत्न से अलंकृत करना भारत सरकार की अहम ज़िम्मेदारी थी।

  2. रत्न टाटा के जीवन के बारे में लिखना अत्यंत दुरूह कार्य है अनेकोनेक प्रसंग हैं जो हमे उद्वेलित करते हैं , प्रेरित करते हैं सही खून तो उनका जीवन ऐसी किताब है जिसे जितना पदों उतना सीखने को मिले।

  3. रतन टाटा का कहा वाक्य – “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूँ।”
    आज के नवयुवकों के लिए सदा प्रेरणास्पद रहेगा। उन्होंने ऐसे समय भारत में उद्यमों की नींव रखी ज़ब देश की प्रगति के लिए उनकी बेहद आवश्यकता थी।

    वह सहृदय तो थे ही, इंसानों के साथ बेज़ुबान जानवरों के दुःख दर्द को भी बखूबी महसूस करते थे। उन्होंने मूक जानवरों के लिए आश्रयस्थल बनाया ही, कोरोना काल में उन्होंने अपने किसी भी कर्मचारी को हटाने से मना कर दिया था।

    वे सच्चे कर्मयोगी थे तभी उन्हें शांतिपूर्ण मृत्यु मिली।देश की प्रगति के लिए सतत योगदान देने वाले कर्मठ योद्धा को भारत रत्न न मिलना दिल को कचौटता रहेगा।

    • आपने सही कहा सुधा जी… रतन टाटा सच में कर्मयोगी थे। देश की प्रगति में उनका अद्वितीय योगदान रहा।

  4. वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए अपने सिद्धांतों से एक लकीर खींच गये हैं रतन टाटा। बहुत सी जानकारियां उपलब्ध करा गया आपका संवेदनशील संपादकीय।
    धन्यवाद

    • हार्दिक आभार सुधा। आपने सही कहा है कि रतन टाटा युवा पीढ़ी के लिए बहुत ऊंचे मानदंड स्थापित कर गए।

  5. रतन टाटा एक सफल व्यवसाई से अधिक, अच्छे इंसान थे। उनके पूरे जीवन घटनाए जन मानस को प्रेरित करती रहेगी।

  6. महापुरुष ,और महान -आत्मा, रतन टाटा को
    को विनम्र श्रद्धांजलि ।
    ऐसी प्रतिभाएं निराली होती हैं जिन्हें अलविदा नहीं कहा जा सकता ।
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी आपने सही कहा – सत्य तो यह है कि रतन टाटा कभी नहीं मरते। वे हम सबके भीतर ज़िंदा रहते हैं।

  7. एक सच्चे सुच्चे विशिष्ट, प्रतिभासंपन्न देवतुल्य माँ भारती के प्रिय सपूत को आप की शब्दांजलि मुझे रूंधे कंठ और सजल नयनों से निकली आर्द्रता से भरपूर लगी। आपकी शब्दांजलि का शीर्षक ही आपके चिरंजीवी रतन टाटा ( संभव नहीं कि उनके नाम के साथ स्वर्गीय लिखा जाए ) के लिए आपके कृतज्ञ और स्वस्थ मनोभावों को प्रकट कर देता है। उस व्यक्तित्व ने कभी किसी को निराश नहीं किया। अपनी विलक्षण प्रतिभा से भारत में व्यवसाय को नयी व्यवस्था दी, भारतीय युवाओं के लिए रोजगार पैदा किया.. युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए छात्रवृत्ति दी… मानवता का अग्रदूत बन कर जटिल रोगों के लिए चिकित्सालय बनवाए… अपने राष्ट्र से कभी मुंह नहीं मोड़ा, बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को अपने दायित्व को समझा। आपने अपनी शब्दांजलि में रतन टाटा जी की निस्वार्थ प्रतिभा का जो खाका खींचा… यह बेहद संवेदनशील और भावुक करने वाला है। R I P RATTAN TATA… NOT REST IN PIECE…. BUT *RETURN IF POSSIBLE*…..

    • किरण जी आपकी टिप्पणी बहुत ही मार्मिक है। वे निस्वार्थ सेवा की मूर्ति थे। हमारे देश को ऐसे ही महान व्यक्तित्वों की ज़रूरत है।

  8. आपकी संपादकीय में रतन टाटा जी के संपूर्ण कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। उनके परोपकारी कार्यों को पढ़कर मन गदगद हो गया। और ऐसा गदगद हुआ कि भूल ही गया कि दो दिन पहले उनका देहांत हो चुका है। आपने अपनी संपादकीय में जो सामग्री संजोई है वह प्रेरणादाई है। रतन टाटा जी के संदर्भ में जो विकलांग बच्चे वाला संवाद है वह कभी न भूलने वाला है। बच्चा कहता है कि मैं आपका चेहरा इतनी अच्छी तरह से देखना चाहता हूं ताकि स्वर्ग में मैं आपको पहचान लूं। इसे पढ़कर मैं खुशी एवं गर्व से रोमांचित हो उठा हूं।
    आदमी के अच्छे कार्य उसे अमर बना देते हैं। परोपकार वाले कार्य हर दिल की धड़कन बन जाते हैं। उन पर हर भारतवासी गर्व करता है। एक विचारधारा के अनुसार गरीब और पूंजीवाद एक दूसरे के विरोधी हैं। इसमें सच्चाई भी है। मैं सोचता था कि पूंजीपति हृदयहीन होते हैं। अगर वे अपना हृदय लेकर व्यवसाय करेंगे तो वे सफल कैसे होंगे। लेकिन रतन टाटा जी ने इस पर कुठाराघात कर दिया है। उत्तम हृदय वाले मनुष्य के लिए ऐसी बातें मायने नहीं रखती हैं। इस महामानव के लिए धन,पद, ऐश्वर्य सिर्फ साधन मात्र थे। साध्य तो उनके पालतू पशु थे, समूची मानवता थी। आज हम गर्व के साथ अपने महापुरुष को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
    संपादक जी को इस संपादकीय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    • भाई लखनलाल जी, आपकी टिप्पणी बहुत सारगर्भित है। पेंडुलम की तरह झूलते हुए अपनी पूरी बात समझा देती है। वे सच में महामानव थे।

  9. निशब्द विनम्र श्रद्धांजलि मुझे बहुत दुख होता है कि हमारे देश में जितनी भी महान हस्तियां थी उन्होंने विवाह नहीं किया अगर वह अपने संस्कार अपने बच्चों को देते तो एक भावी पीढ़ी का निर्माण होता। अटल बिहारी वाजपेई,अब्दुल कलाम…..। बहुत ही संवेदनशील संपादकीय

  10. एक समीचीन संदर्भ और महबूब शख्सियत पर केंद्रित संपादकीय।रत्न नवल टाटा एक शानदार और दमदार शख्सियत जो अनंत काल तक भारत वर्ष साथ याद आती रही है और रहेगी।एक अच्छे और शानदार संपादकीय के लिए आभारी हैं ,आपके पाठक गण।

    • भाई सूर्यकांत जी इस संपादकीय के लिखने में आपने जो सहयोग किया, उसके लिए हार्दिक आभार।

  11. आदरणीय तेजेन्द्र जी।
    आज का संपादकीय तो अपेक्षित था। आपका शीर्षक हमेशा की तरह बहुत सटीक है ।यहाँ टाटा काअर्थ ..वास्तव में बाय-बाय नहीं है।
    इस संपादकीय पर हमें एक घटना याद आ गई। हमारे युवा भांजे की ट्रेन एक्सीडेंट में डेथ हो गई थी। यह घटना लगभग 8-9 साल पुरानी है।बॉडी घर से उठी नहीं थी उसके पहले इंश्योरेन्स के पचास लाख रूपए आ गये थे। कंपनी के बहुत सारे लोग आए थे। इतना ही नहीं, बल्कि पता चला था कि इन लोगों ने कोई ऐसी जगह निश्चित की हुई है ,शायद बेंगलुरु में, जहाँ कोई व्यक्ति अगर खत्म हो जाता है तो उसके नाम से एक पेड़ लगाया जाता है। जब वृक्षारोपण हुआ तो उन्होंने बुलाया भी था और नहीं जाने पर उन्होंने फोटो खींचकर भिजवाई। पेड़ के ऊपर नाम भी लिखवा दिया था। शायद कोई नियम रहा हो इंश्योरेंस का। पर हमें बहुत अच्छा लगा। रतन टाटा स्वयं तो अच्छे थे ही पर उनकी कंपनी और उसके नियम भी उतने ही अच्छे हैं।
    जिस दिन नहीं रहे थे उसी दिन हमारी एक फ्रेंड ने हमें एक मैसेज भेजा था-आज मन हो रहा है कि यहाँ पर शेयर करें।
    As you wake up this morning and switch of your AC (Voltas) and look at the time (Titan) today one will not be able to dress to work (Westside/Zara/Zudio) this morning nor drink a cup of tea or coffee (Tetley/Starbucks) nor drive (TataMotors) or fly out (Vistara/AI) to work or shop for grocery (Big Basket) or Electronics (Chroma) nor make a call (Telecom) nor watch the news (TataSky) nor dine out (Taj) or do business (TCS) without paying homage to a wonderful human being and an architect by profession in the true sense…that has touched several lives and will be missed dearly.
    इंसान की जिंदगी की कीमत सही अर्थों में उसकी मृत्यु के बाद ही पता चलती है।जीवन उसी का सफल है, जिसकी मृत्यु का शोक पूरी दुनिया को हो। एक बार कभी हमने पढ़ा था कोई व्यक्ति कितना बड़ा है अगर यह पता करना हो तो यह देखो कि उसकी मृत्यु के पीछे कितनी भीड़ है।
    रतन टाटा को देखकर दुनिया के युवाओं को सीख लेना चाहिये ।रतन टाटा का कहा वाक्य – “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूँ।”
    यह वाक्य कर्मठता की प्रेरणा देता है।
    जिस व्यक्ति में जानवरों के प्रति इतना प्रेम है कि बड़े से बड़ा सम्मान उनकी बीमारी के सामने फीका पड़ जाता है-लोग सीखें कि वास्तविक सह्रदयता ,करुणा और दया क्या होती है?
    लोग सीखें की देशभक्ति क्या होती है?
    बड़े-बड़े पूँजीपति सीखें के पैसों का सदुपयोग क्या होता है।
    जो अमूल्य निधि हम सब ने और देश खोई है उसके प्रति यही सबसे सही और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
    कौन कहता है कि रतन टाटा नहीं रहे। वो हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगे।

  12. बहुत सुंदर भावप्रवण अभिव्यक्ति है ।आपका संपादकीय आदरणीय कीर्तिशेष रतन टाटा जी के प्रति एक नयी दृष्टि और स्नेह. सम्मान की भावना विकसित करता है.।उनके योगदान. परोपकार. गरीबों के.प्रति करुणा से जुडे कार्य इतने अधिक हैं.कि उन्हे लिख पाना भी सरल नहीं लगता।आज उनका जमशेदपुर उदास है..त्योहार की रौनक फीकी.है.मानो कोई अपना नहीं रहा।बहुत सारगर्भित विश्लेषण किया.है आपने ..साधुवाद भाई.इतने सुंदर और मार्मिक प्रसंगों से आपने उन्हे याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं.पढते.हुए मन अभिभूत हो जाता है।
    एक और सार्थक..उत्कृष्ट संपादकीय के लिए बहुत बहुत बधाई. ।सादर प्रणाम।

    • हार्दिक आभार पद्मा। जमशेदपुर वासियों का जो इमोशनल रिश्ता रतन टाटा से रहा होगा, आपकी टिप्पणी से पता चलता है। आपकी भावनाएं महसूस की जा सकती हैं।

  13. जितेन्द्र भाई आपके इस सम्पादकीय से भारत के उस कर्मयोगी, सच्चे सपूत, देशभकत और विनम्र स्वभाव के व्यक्तित्व रतन टाटा जी के बारे में बहुत जानकारी देने के लिए बहुत बहुत साधुवाद। भारत में अरबपतियों की कमी नहीं है लेकिन वो शख्सियत जिसने अपने मुनाफ़े से पहले देश का और अपनी कम्पनी में काम करने वालों का हित पहले सोचा हो; शायद ढ़ूण्डने पर भी नहीं मिलेंगे। रतन टाटा के कामों को सारी दुनिया ने सराहा, पहचाना और माना। आपको भारत सरकार ने केवल पद्म भूषण तथा पद्म विभूषण से तो नवाज़ा, लेकिन दुख इस बात का है कि भारत की जन्ता के बहुत चाहने पर भी रतन टाटा जी को भारत रतन के सम्मान से क्यों नहीं नवाज़ा गया। इतिहास गवाह है इस बात का कि भारत के कुछ लोगों ने तो अपने आप को अपनी पैरवी करके इस श्रेणी में नाम लिखवा दिया लेकिन जो असली हकदार था उसको नज़रन्दाज़ क्यों किया गया।

    • विजय भाई, आपने अपनी सार्थक टिप्पणी में सही सवाल उठाए हैं। ये सवाल तमाम लोगों के मन में उठ रहे हैं। हार्दिक आभार।

  14. रतन टाटा के व्यक्तित्व को एक लेख में लिखना असंभव है पर फिर भी आपने लगभग सभी पहलुवको समेटने की कोशिश की है। मेरा अनुरोध है कि आप उनके बारे में कुछ और रोचक क़िस्से भी लिखें।

    • अनीता जी संपादकीय की अपनी सीमाएं होती हैं। मगर आपके सुझाव पर विचार किया जाएगा। आभार।

  15. ईश्वर के द्वारा निमित्त किए हुए कर्मों को पूर्ण करने की कोशिश करने वाला महान व्यक्तित्व। सादर नमन

  16. आदरणीय संपादक जी
    “मानवता के रत्न” स्वरूप श्री रतन टाटा को भारत रत्न मिले या ना मिले उससे कोई अंतर नहीं पड़ता जो रतन है वह रत्न है। जो रोल्स-रॉयस गाड़ी के पीछे पैदल चलने में विश्वास रखता हो उसे उपाधियों की भला कभी कोई परवाह रही होगी?

  17. Your Editorial of today brightens up the day with more unknown details about Ratan Tata’s life and contributions in various fields of social good.
    He had a rare personality of goodness and compassion combined with good sense of commercial success.
    Thanks n warm regards,Tejendra ji
    Deepak Sharma

  18. एक कर्मयोगी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि आपका संपादकीय प्रत्येक छोटी से छोटी घटना पर भी विचार करने के लिए बाध्य करता है।
    यह पाँच तत्वों का शरीर है जिसको विलीन तो होना ही है लेकिन इस सम्मान के साथ जो कभी समाप्त न हो, यह तो कोई विरला ही हो सकता है।
    आपने ज़िक्र किया सम्मान को अपने पैट की देखभाल के लिए छोड़ देने का, ऐसे व्यक्तित्व को भला किसी भी प्रकार के सम्मान का मोह कैसे हो सकता है?
    ऐसे व्यक्तित्व को विनम्र श्रद्धांजलि जिनको हृदय की गहराई से सम्मानित किया गया।
    चरैवेति चरैवेति जीवन का मूल मंत्र समझने वाले कर्मयोगी को संसार सदा शत शत नमन करेगा।

  19. स्वर्गीय रतन टाटा जी और टाटा समूह के बारे में इतना कुछ जानने को मिल रहा है! उस पर टिप्पणी नहीं उपन्यास लिखे जा सकते हैं !
    अभी श्रद्धांजलि स्वरूप इतना ही कह सकते हैं कि –

    जमशेत जी टाटा
    जे आर डी टाटा
    और
    रतन टाटा
    धरती पर आधुनिक वास्तविक महामानव हुए
    ये हम सब का सौभाग्य है कि हम सब जाने अनजाने उनकी दी हुई सौग़त का उपभोग करते रहते हैं !

  20. An appropriate assessment that Shri Ratan Tata transformed the TATA company as an universal institution wherein people from across the continents felt a sense of belonging and appreciation for a person not only a wise industrialist, raising infrastructure all around and creating employment but also a human so sensitive to needs and pains of humans and animals alike. There is a momentum gaining strength for awarding him posthumously with a Bharat Ratna . But such an award cannot be equated with what he had already achieved by winning hearts of us all Indians in being a true Son of India.

  21. मैंने टाटा के बारे में बहुत कुछ पढ़ा पर टाटा सिर्फ टाटा नहीं है बहुत अच्छा लगा। और दूसरा एक विकलांग ने मुझे पकड़ लिया और कहा कि स्वर्ग में आपका चेहरा देखूंगा। यह दोनों मुझे बहुत अच्छा लगा आपको बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई।

  22. बहुत सुंदर संपादकीय

    ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी रतन टाटा जी की कमी हमेशा खलेगी। इनके बारे में आपके संपादकीय से और अधिक जानने को मिला। धन्यवाद सर

  23. भाव से भर जानकारीयुक्त संपादकीय l रतन टाटा विनम्र श्रद्धांजलि । unकी कमी हमेशा खलेगी , पर अपने विचारों के रूप में वे हमारे साथ सदा रहेंगे l आपने संपादकीय में उदाहरण स्वरूप जो उनका विचार लिया , “मैं निर्णय लेने में नहीं, निर्णय को सही साबित करने में विश्वास करता हूँ l” ये विचार सदा से मुझे प्रेरित करता रहा है l सादर नमन

  24. रतन टाटा पर बहुत सारगर्भित सम्पादकीय, एक उद्योगपति को कैसा होना चाहिए इसका उदाहरण उन्होंने सामने रखा, राष्ट्र के प्रति समर्पित, मानवता से ओतप्रोत रत्न टाटा हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं

  25. आपके आलेख से रतन टाटा के विषय में पूरी जानकारी मिली। उनके उत्पादों से तो हम बहुत अच्छी तरह परिचित हैं किंतु किस तरह वे हमारे दैनंदिन जीवन में समाहित हैं, यह आपने बताया। अत्यंत आत्मीयतापूर्ण आलेख है। यश:काय आद.रतन टाटा की स्नमृति को नमन और आपको हार्दिक धन्यवाद।

  26. आपका बहुत ही अच्छा संपादकीय जो बातें नहीं मालूम थी वह भी मालूम हो गई।
    आपका हर संपादकीय बहुत ही सारगर्भित होता है आपकी मेहनत को महसूस करते हैं।

  27. विलंब हो गया प्रतिक्रिया देने में… क्षमापार्थी हूँ सर
    यह संपादकीय युवाओं को प्रेरित करता है.. एक सफल एवं शाश्वत जीवन का मंत्र देता है। आपके शब्दों एवं भावों में एक महान आत्मा की सम्पूर्ण कहानी दृष्ट होती है। यही है जीवन की परम तृप्ति कि केवल मानवीय विकास के लिए जीवन उत्सर्ग कर दिया जाए।
    साधुवाद सर

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