होमफ़िल्म समीक्षासूर्यकांत शर्मा की कलम से - महाराज : एक विरल फिल्म फ़िल्म समीक्षा सूर्यकांत शर्मा की कलम से – महाराज : एक विरल फिल्म By Editor October 19, 2024 0 111 Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp धर्म, संस्कृति और अध्यात्म ऐसे संवेदनशील विषय हैं कि उन पर बोलने से पहले भी सोचना पड़ता है। ऐसे में यदि कोई फिल्म आए तो विवाद की संभावना तो रहती ही है। धर्म की आड़ में होने वाले पाखंड और कुकृत्यों के विरुद्ध समाज, साहित्य और सिनेमा में अक्सर आवाज़ें उठी हैं। समाज सुधारकों, लेखकों आदि की इन्हीं आवाज़ों के चलते ही कई सारी कुरीतियों के उन्मूलन का रास्ता साफ हुआ। फिर चाहे वह देवदासी प्रथा रही हो, सती प्रथा या फिर चरण सेवा की प्रथा। धर्म और अध्यात्म तो अतीत वर्तमान और भविष्य के कालजयी घटक है।अब हमारा देश है धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र और यहां जितनी स्वतंत्रता है उतनी पूरे विश्व में कहीं नहीं।यही कारण है कि भारत में बहुधा विचारोतेजक सर्जनाएं अर्वाचीन काल से जारी हैं। ब्रिटिश काल में तो इस पर कोर्ट केस की लड़ाई तक ही चुकी है।सन 1862 में इस मानहानि मामले पर करसन दास मुलजी पत्रकार और एक धर्मगुरु के बीच ऐतिहासिक संघर्ष हुआ था।इसी को गुजराती पत्रकार सौरभ शाह ने साल 2014 में एक उपन्यास ‘महाराज‘ लिखा था।इसी कृति पर बनी है फिल्म ‘महाराज‘। यद्यपि इसे बेहतरीन फिल्म स्क्रिप्ट में बदलने में लेखक त्रय यथा स्नेह देसाई,कौसर मुनीर और विपुल मेहता ने जम कर मेहनत की है और यह एक संतुलित और शानदार फिल्म बन पड़ी है। इस चर्चित फिल्म पर काफी विवाद हुआ और फिर मामला कोर्ट में पहुंच और किसी तरह यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो ही गई। इस फिल्म से जाने माने अभिनेता आमिर खान के छोटे बेटे जुनैद खान ने भारतीय सिने जगत में धमाकेदार एंट्री /शुरुआत की है।यह फिल्म करसन दास नाम के पत्रकार के ऐसे अनूठे संघर्ष की कहानी है। जो आज से डेढ़ शताब्दी पूर्व और वह भी ब्रिटिश काल में समाज सुधार आंदोलन और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध लड़ा था।करसन दास मुलजी के संघर्ष और उनकी स्वीकार्यता इतनी अधिक थी कि उन्हें भारतीय मार्टिन लूथर किंग के नाम से जाना और पहचाना जाता था। यशराज फिल्म्स बैनर के तले यह फिल्म निर्मित हुई है। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने इस फिल्म को निर्देशित किया है।फिल्म के मुख्य कलाकारों में जुनैद खान शालिनी पांडे,शरवरी वाघ और जयदीप अहलावत ने बेहतरीन अदाकारी से उस समय को जीवंत कर दिया है।सत्य घटनाओं पर आधारित यह फिल्म सन 1862 में एक पत्रकार,जुनैद खान(करसन दास),और धर्मगुरु,जयदीप अहलावत( जदूनाथ महाराज)के यौन अपराधों पर प्रमुख रूप से केंद्रित है। पत्रकार के लेख लगातार लिखने पर धर्मगुरु के हथकंडे दिखाए गए हैं और जब वह असफल होता है तो यही धर्मगुरु बॉम्बे कोर्ट में मानहानि का केस दायर कर देता है। पूरी की पूरी फिल्म में करसन दास एक जुझारू समाज सुधारक और पत्रकार के रूप में जमें हैं।उनका मुखर विरोध धर्म और आस्था की आड़ में ‘चरण सेवा‘ जैसी कुत्सित कुरीति के प्रति है।इस कठिन राह में उनका परिवार ही उन्हें त्याग देता है।महाराज और उसके भक्तों का कड़ा और षड्यंत्रकारी विरोध इस पत्रकार की अग्नि परीक्षा के समान है। जय अहलावत धर्मगुरु की भूमिका में एक शानदार और दमदार कलाकार के रूप में स्थापित हो गए हैं।उनका अभिनय और शारीरिक सौष्ठव अप्रतिम बन पड़ा है। महाराज की भूमिका में जयदीप के पर्दे पर आने के बाद नज़रें सिर्फ और सिर्फ उन पर रहती हैं। उनके व बाकी के किरदारों को और अधिक विस्तार व गहराई मिलती तो फिल्म अपने असर को बढ़ा सकती थी। सुहैल सेन फिल्म के संगीत को कर्ण प्रिय बनाने में सफल रहे हैं और नृत्य और नयनाभिराम हैं। वैष्णव संप्रदाय और वह भी गुजरात की पृष्ठभूमि में रंगों प्रेम और डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है।यहां पर कॉस्ट्यूम डिजाइनर मैक्सिमा बासु की मेहनत रंग लाई है।जुनैद खान की भले ही यह पहली फिल्म रही पर उन्होंने अपने नैसर्गिक अभिनय की छटा बिखेरी है। जुनैद खान बतौर इस फिल्म के नायक अदालत में कहते भी हैं कि प्रथा का पुराना होना नहीं, सही होना ज़रूरी है। इस फिल्म को तसल्ली से देखें तो यह भी समझ आता है कि यह किसी धर्म या संप्रदाय के नहीं बल्कि एक कुप्रथा के खिलाफ बात करती है जिसके चलते रहने के पीछे वे भक्त भी दोषी होते हैं जो आंख मूंद कर उसे मानते रहते हैं।हालांकि करसन दास के किरदार को निभाने में मेहनत की है लेकिन उनकी संवाद अदायगी, भावों और भंगिमाओं में अभी और सुधार आना बाकी है। उम्मीद है कि आने वाले समय में यह युवा अपनी अभिनय प्रतिभा से और बेहतरीन फिल्में दर्शकों को प्रदान करेगा। सिनेमेटोग्राफी इस फिल्म का एक अहम और मजबूत पक्ष है।राजीव राय के निर्देशन में फोटोग्राफी भी बेहद स्तरीय है। यदि एक लाइन में कहना हो तो एक शानदार विषय पर एक दमदार फिल्म कही जा सकती है। सूर्य कांत शर्मा संपर्क – [email protected] Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp पिछला लेखदेवी नागरानी की कहानी – कमलीअगला लेखअनिमा दास के दो सॉनेट Editor RELATED ARTICLES फ़िल्म समीक्षा सूर्यकांत शर्मा की कलम से – सिने इतिहास का चमकदार पन्ना : जुबली August 3, 2024 फ़िल्म समीक्षा संजय अनंत द्वारा ‘कल्कि 2898AD’ की समीक्षा July 13, 2024 फ़िल्म समीक्षा सूर्यकांत शर्मा की कलम से : जमना पार – एक सच July 13, 2024 कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें टिप्पणी: कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! नाम:* कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें ईमेल:* आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें वेबसाइट: Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. 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