दीपावली की रात को
दूर कहीं सुनसान जगह पर
जलाया जाता है
एक यमदीपक
जिसे मुड़कर देखना भी निषिद्ध होता है।
शायद स्त्री की नियति भी
होती है यमदीपक जैसी
मानो उसे प्रकाशित करने वाला भी
फिर मुड़कर नहीं देखता इसे
और यह निरंतर जलती रहती है
भाग्य के भरोसे
ना जाने कब उसकी लौ शांत हो जाएगी
ना जाने कब इस दिये का तेल खत्म हो जायेगा
ना जाने कौन इसे जला कर भूल गया है
ना जाने क्यों फिर किसी ने इसे मुड़कर नहीं देखा।
कोई नहीं जानता,
स्त्री की नियति होती है यमदीपक जैसी
जो स्वयं जलती रहेगी
एक अंतहीन अंधेरे में
ना जाने कब तक
और करती रहेगी
उस पथ को प्रकाशमान
जिस पर अब कोई आएगा नहीं
क्योंकि स्त्री की नियति
होती है यमदीपक जैसी।
गरिमा भाटी “गौरी”
लेखिका, संस्थापक (काव्य गरिमा हिंदी साहित्य मंच)
फरीदाबाद (हरियाणा)
भारत।
गौरी भाटी की कविता यमदीपक स्त्री जीवन का रिक्तकोश है। इसे भरा नहीं जा सकता है। क्योंकि स्त्री को शायद किसी ने समझा ही नहीं है। जिस तरह से दीपक को जला दिया जाता है और उसके प्रकाश में सभी प्रकाशित होते रहते हैं पर उसकी चिंता फिर किसी को नहीं होती है। बस सभी अपने में मस्त हो जाते हैं। उसके हिस्से में सिर्फ अंधेरा आता है जिससे वह बुझने तक लड़ती रहती है। यह कविता मुझे अच्छी लगी। कवयित्री को बधाई
कविता जितनी सादी है ,उसका भाव उतना ही अधिक गंभीर है।वैसे स्त्रियों के प्रति स्थितियाँ अब बदल रहीं हैं किंतु फिर भी पूरी तरह तो शायद कभी भी नहीं सुधरेंगी।
दीपावली आ रही है यम का दिया नरक चतुर्दशी के दिन लगता है ,जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। चार बत्ती का यह मिट्टी का दिया शाम के समय घर के दरवाजे के बाहर लगाते हैं, एक कोने में दक्षिण दिशा की ओर। शेष तो हमें नहीं पता लेकिन यह यम की प्रसन्नता के लिये लगाया जाता है ऐसा बुजुर्ग कहा करते थे। पर हमारे यहां तो यह नाली के पास लगता है। घर से बाहर जो नालियाँ बहा करती हैंं, घर के उस कोने में, और कोई कारण होगा तो हमें नहीं पता और शायद हमने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। किंतु यम के इस दीपक में स्त्री की दुर्दशा की परिकल्पना अद्भुत है।
हमने तो इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया कि इस दिये को लगाने के बाद पलट कर नहीं देखते हैं। वैसे ही वह घर के बाहर दरवाजे के कोने में लगता है और उसके बाद लगाकर अंदर चले जाते हैं।
हर धार्मिक मान्यताओं के पीछे कोई ना कोई कारण है और हर क्षेत्र में उन्हें लेकर अलग-अलग किंवदंतियाँ हैं।
5 दिन का दिवाली का यह त्यौहार अपनी अनेक कहानियों से भरा हुआ है।
अच्छी कविता है आपकी। ईश्वर करें कि दिवाली का यह पर्व किसी भी स्त्री के लिए यम के दीपक की तरह न हो।
गौरी भाटी की कविता यमदीपक स्त्री जीवन का रिक्तकोश है। इसे भरा नहीं जा सकता है। क्योंकि स्त्री को शायद किसी ने समझा ही नहीं है। जिस तरह से दीपक को जला दिया जाता है और उसके प्रकाश में सभी प्रकाशित होते रहते हैं पर उसकी चिंता फिर किसी को नहीं होती है। बस सभी अपने में मस्त हो जाते हैं। उसके हिस्से में सिर्फ अंधेरा आता है जिससे वह बुझने तक लड़ती रहती है। यह कविता मुझे अच्छी लगी। कवयित्री को बधाई
कविता जितनी सादी है ,उसका भाव उतना ही अधिक गंभीर है।वैसे स्त्रियों के प्रति स्थितियाँ अब बदल रहीं हैं किंतु फिर भी पूरी तरह तो शायद कभी भी नहीं सुधरेंगी।
दीपावली आ रही है यम का दिया नरक चतुर्दशी के दिन लगता है ,जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। चार बत्ती का यह मिट्टी का दिया शाम के समय घर के दरवाजे के बाहर लगाते हैं, एक कोने में दक्षिण दिशा की ओर। शेष तो हमें नहीं पता लेकिन यह यम की प्रसन्नता के लिये लगाया जाता है ऐसा बुजुर्ग कहा करते थे। पर हमारे यहां तो यह नाली के पास लगता है। घर से बाहर जो नालियाँ बहा करती हैंं, घर के उस कोने में, और कोई कारण होगा तो हमें नहीं पता और शायद हमने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। किंतु यम के इस दीपक में स्त्री की दुर्दशा की परिकल्पना अद्भुत है।
हमने तो इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया कि इस दिये को लगाने के बाद पलट कर नहीं देखते हैं। वैसे ही वह घर के बाहर दरवाजे के कोने में लगता है और उसके बाद लगाकर अंदर चले जाते हैं।
हर धार्मिक मान्यताओं के पीछे कोई ना कोई कारण है और हर क्षेत्र में उन्हें लेकर अलग-अलग किंवदंतियाँ हैं।
5 दिन का दिवाली का यह त्यौहार अपनी अनेक कहानियों से भरा हुआ है।
अच्छी कविता है आपकी। ईश्वर करें कि दिवाली का यह पर्व किसी भी स्त्री के लिए यम के दीपक की तरह न हो।