मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने सी.बी.आई. को जांच सौंप दी है। एस.आई.टी. का गठन किया है। जांच शुरू हो चुकी है। पाँच पुलिसकर्मी सस्पेण्ड किये जा चुके हैं। और स्मृति ईरानी ने सरकार की तरफ़ से आश्वासन दिया है कि मुजरिमों को बख़्शा नहीं जाएगा। योगी सरकार के लिये यह अग्निपरीक्षा है। यदि वे कठोर कदम नहीं उठाती है तो उत्तर प्रदेश सरकार की नीयत और अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़े हो जाएंगे। उन्हें महाराष्ट्र सरकार से कुछ अलग करके दिखाना होगा।
भारत का राज्य चाहे कोई भी क्यों न हो, उसकी पुलिस विवादों में घिरने के लिये हमेशा तैयार रहती है। हर राज्य की पुलिस एफ़. आई. आर. लिखने में देरी करती है। राजनीतिक दबाव के नीचे काम करती है। पैसे और रसूख़ वालों को बचाने का प्रयास करती है। और अंत में देश भर में अपनी खिल्ली उड़वाने में सफल हो जाती है।
सभी राजनीतिक दल किसी भी प्रकार की घटना या दुर्घटना पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज़ नहीं आते। इस मामलें में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, त्रिणमूल कांग्रेस आदि आदि सब एक समान हैं। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में मुंबई पुलिस कटघरे में खड़ी दिखाई दी तो हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस। मीडिया भी अपनी टी. आर. पी. बढ़ाने को चक्कर में सनसनी फैलाने में कोई गुरेज़ नहीं करता। मामले पर कुछ कहने से पूर्व एकबार यह देखना उचित होगा कि कब क्या हुआ –
14 सितंबर: अभी तक जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक़, हाथरस में 19 साल की एक युवती को चार लोगों ने ज़बरदस्ती खींचकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। पीड़िता को उसीके दुपट्टे से गला घोंटकर मारने का प्रयास किया, उसकी रीढ़ की हड्डी और गर्दन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी। कहा जाता है कि आरोपियों ने उसकी जीभ भी काट दी।
23 सितंबर: पीड़िता को होश आया और उसने अपराधियों का नाम लेते हुए पुलिस को अपना बयान दिया, जिसके आधार पर तीन लोगों – संदीप, उसके चाचा रवि (35) और उनके दोस्त लव कुश को गिरफ़्तार किया गया।
26 सितंबर: हाथरस एस. पी. विक्रांत वीर ने चौथे आरोपी रामू को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया। उन्होंने कहा “हमने सामूहिक दुष्कर्म, हत्या के प्रयास और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। हमने घटनास्थल से सभी साक्ष्य एकत्रित कर लिए हैं और आरोप पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं। वीर ने कहा, हम चाहते हैं कि परिवार को न्याय मिले और वह तत्काल कार्रवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सभी दस्तावेज़ जमा करेंगे।
27 सितंबर: इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर में एक डॉक्टर ने बताया कि पीड़िता की हालत गंभीर है और सभी चार अंगों में पक्षाघात हो गया है। उसकी गर्दन और पीठ पर गंभीर चोटों का असर है और वह ठीक तरह से सांस लेने में सक्षम नहीं है। हम उसका इलाज कर रहे हैं और वह वेंटिलेटर पर है।
29 सितंबर: अपनी जिंदगी के लिए लंबी और कड़ी लड़ाई लड़ने के बाद पीड़िता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया।
30 सितंबर: पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने सुबह तीन बजे पीड़िता का अंतिम संस्कार किया और शव को वापस घर नहीं लाने दिया। घटनास्थल पर मौजूद संवाददाताओं ने पुलिस द्वारा परिवार के लोगों को घर में बन्द करने और शव का दाह संस्कार करने के वीडियो पोस्ट किए।
हाथरस पुलिस ने मीडिया में चल रही ख़बरों का खण्डन करते हुए ट्वीट किया, “कतिपय सोशल मीडिया के माध्यम से यह असत्य खबर फैलायी जा रही है कि थाना चन्दपा क्षेत्रान्तर्गत दुर्भाग्यपूर्ण घटित घटना में मृतिका के शव का अन्तिम संस्कार बिना परिजनों की अनुमति के पुलिस ने जबरन रात में करा दिया है। हाथरस पुलिस इस असत्य एवं भ्रामक खबर का खंडन करती है।”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मामले पर सख़्त कार्रवाही का संदेश प्रेषित किया। मुख्यमन्त्री ने ट्वीट करते हुए कहा, “हाथरस में बालिका के साथ घटित दुर्भाग्यपूर्ण घटना के दोषी कतई नहीं बचेंगे। प्रकरण की जांच हेतु विशेष जांच दल का गठन किया गया है। यह दल आगामी सात दिवस में अपनी रिपोर्ट देगा। त्वरित न्याय सुनिश्चित करने हेतु इस प्रकरण का मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलेगा।”
इस पूरे प्रकरण को देखते हुए कुछ सवाल तो खड़े होते ही हैं कि आख़िर पीड़िता का फॉरेंसिक टेस्ट आठ दिन बाद क्यों करवाया गया। जबकि रेप के निशान तो तीन दिन में ग़ायब हो सकते हैं।
पीड़िता के मरते वक्त के बयान की अनदेखी क्यों की गयी। जब पीड़िता ने बलात्कार का आरोप लगाया तो उसी एंगिल से जांच होनी चाहिये थी।
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के जिलाधिकारी का बिटिया मामले में एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। डी. एम. प्रवीण कुमार वीडियो में दुष्कर्म की शिकार बिटिया के परिवार से कह रहे हैं कि मीडिया तो आज है, कल नहीं रहेगी। हम यहीं रहेंगे। अपने बयानों को बार-बार मत बदलो। इस वीडियो को लेकर खासी चर्चाएं हैं। उनका कहना कि यदि आपकी बेटी कोरोना से मर जाती तो क्या आपको मुआवज़ा मिलता – यह एक बहुत ही ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान है।
एक बात बिल्कुल समझ नहीं आ रही कि आख़िर पुलिस ने इतनी रात को पीड़िता की लाश जलाने में इतनी मुस्तैदी क्यों दिखाई… क्या वे कुछ छिपाना चाह रहे थे या फिर महाराष्ट्र की ही तरह किसी को बचाना चाह रहे थे। क्या यह छिपाने का प्रयास किया जा रहा था कि किसी को पता न चल सके कि पीड़िता की ज़बान काट ली गयी थी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गयी थी। क्या पुलिस को इतना भी नहीं मालूम था कि अंतिम संस्कार और लाश को पेट्रोल या मिट्टी का तेल डाल कर जलाने में कुछ फ़र्क़ तो होता है।
मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने सी.बी.आई. को जांच सौंप दी है। एस.आई.टी. का गठन किया है। जांच शुरू हो चुकी है। पाँच पुलिसकर्मी सस्पेण्ड किये जा चुके हैं। और स्मृति ईरानी ने सरकार की तरफ़ से आश्वासन दिया है कि मुजरिमों को बख़्शा नहीं जाएगा। योगी सरकार के लिये यह अग्निपरीक्षा है। यदि वे कठोर कदम नहीं उठाती है तो उत्तर प्रदेश सरकार की नीयत और अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़े हो जाएंगे। उन्हें महाराष्ट्र सरकार से कुछ अलग करके दिखाना होगा।
नमस्कार, सम्पादकीय, घटना की विस्तृत व्याख्या है ।पुलिस दबाव में काम करके अपना आत्म सम्मान खो रही है, सही कहा ।