जीवन या मृत्यु ही नहीं, जीवन का एक एक पल ईश्वर के नियंत्रण में रहता है । “केवल वही इस सृष्टि का नियंत्रक है” इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता । इस संसार में कर्म और भाग्य को लेकर बहुत बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन यदि सही अर्थों में देखा जाए तो दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । कोई कहता है कि कर्म से ही भाग्य बनता-बिगड़ता है तो कोई यह भी कहने से नहीं चूकता कि जो भाग्य में लिखा होता है उसी के अनुरूप इंसान की अंतरात्मा कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और वह कर्म करता है । बहरहाल जो भी हो, विषय तो जटिल है ही ।
नताशा ने अपना जीवन बहुत सरलता एवं सादगी से जिया था । ना कोई विशेष आकांक्षा और ना ही किसी से कोई अपेक्षा । धर्म-अध्यात्म की बात करें तो उस क्षेत्र में भी वह दो कदम आगे ही थी लेकिन जीवन के इस पड़ाव पर आकर वह विवश हो गई थी । वह और उसके पति, बस वे दो ही तो थे जो आजीवन एक दूसरे के पूरक रहे थे लेकिन आज की परिस्थिति में तो रवीश एक मूकदर्शक मात्र बनकर रह गए थे ।
उन्हें रह रहकर जीवन के वे क्षण यदा कदा याद आते थे जब अच्छा-बुरा चाहे जैसा भी समय रहा हो, नताशा ने निर्विरोध रूप से सहयोग ही किया था लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ कि नताशा ने एक भी बात ना मानी और स्थिति इतनी विकट हो गई कि रवीश विवशता के जाल में फँसते चले गए । रवीश जो कुछ भी कहते, नताशा या तो उसे सीधे सीधे ही नकार देती या कुछ ऐसी शर्त रख देती कि रवीश आगे कुछ न बोल पाते ।
नताशा कुछ दिनों से ऐसी मानसिक उलझनों में फँसी हुई थी जो अविश्वसनीय थीं । उसके कथनानुसार वह किसी अदृश्य शक्ति के मकड़जाल में उलझी हुईं थी । उसके मन का द्वंद्व विकराल रूप लेता जा रहा था । स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी थी कि नताशा ने खाना खाने तक में रुचि लेना छोड़ दिया था । रवीश नताशा को तरह तरह से समझाते और उसकी सारी देखभाल वे स्वयं करते लेकिन इस बार नताशा ने खाना न खाने की जिद बुरी तरह ठान ली थी और वह अपनी बात पर अड़ी हुई थी ।
चूंकि रवीश पंडित-मौलवियों के टोनों-टोटकों में कोई विश्वास नहीं रखते थे अत: वे स्वयं को बहुत असहाय सा महसूस करते हुए कुछ कर न पा रहे थे कि एक सुबह उन्होंने पाया कि नताशा ने अपनी सारी की सारी दवाइयाँ एक साथ ही खा ली थीं और वह बेहोश पड़ी हुई थी । शायद यह उसकी विवशता की पराकाष्ठा थी । रवीश नताशा को अस्पताल तक ले तो आए थे लेकिन स्थिति गंभीर बनी हुई थी ।
समाज के कुछ लोग भले ही इस स्थिति को नताशा के किसी पूर्व जन्म के कर्मभोग की संज्ञा दे दें लेकिन वर्तमान जीवन में तो नताशा निश्छल एवं सहृदयी प्रवृत्ति की ही थी, अधिकांशतः शांत रहती तथा यथासंभव ईश्वर के प्रति समर्पणभाव रखती अत: उसके बारे में किसी भी अंतिम निष्कर्ष तक पहुँच पाना अत्यंत कठिन कार्य था ।
नताशा आई सी यू से प्राइवेट वार्ड में पहुँच चुकी थी और रवीश उसके पास में ही बैठे थे । नताशा उनसे कुछ कहना चाहकर भी बोलने में असमर्थता महसूस कर रही थी लेकिन कहीं कुछ ऐसा अवश्य था कि वह उनको एकटक देखे जा रही थी । नताशा ने रवीश का हाथ पकड़ना चाहा तो रवीश ने भी नताशा से कुछ जानना चाहा पर बात लेशमात्र भी आगे न बढ़ सकी ।
नताशा डॉक्टर एवं उनके सहयोगीजनों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप खतरे की स्थिति से बाहर आ चुकी थी लेकिन निरंतर देखभाल की आवश्यकता तो अभी भी थी ही अत: स्टाफ अपना काम तल्लीनता से पूरा करके चला जाता । परिणाम स्वरूप नताशा शीघ्र ही अपने घर सकुशल पहुँचने योग्य हो गई ।
नताशा इस बार एक विकट परिस्थिति सहन करके घर वापस आई थी अत: उसने अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करते हुए ईश्वर के प्रति समर्पणभाव को और अधिक बल देना आरंभ कर दिया लेकिन उन अदृश्य शक्तियों से छुटकारा न पाने के कारण उसका जीवनसंग्राम अभी भी जारी था जो अंतहीन सा लग रहा था ।
परिवार की स्थिति दिन पर दिन विषम होती जा रही थी । नताशा और रवीश जब भी इस स्थिति पर बातें करने बैठते तो किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जाते और कोई हल न निकल पाता । वे विवशता के जाल में फँसकर रह गए थे ।