Friday, October 18, 2024
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ऋषभ गुप्ता की कविता – सफर की बाँहें

सफर इतना खूबसूरत
क्यों लगता है
मंजिल से दूर जब
मुसाफिर राह पर अकेला होता है
अनजानी गलियों से गुज़र कर
अनजाने लोगों से मुलाकात
ना कोई शोर
और ना ही कोई
बैर होता है
सिर्फ दिन और रात की
बाँहों में बाँहें
जो अपनी तरफ बुला कर
कभी धूप और
कभी रोशनी से रूबरू करवाती है
अगर थम जाए पग कहीं तो
बारिश की बूंदे बरसाती हैं
अक्सर सफर की खिड़कियों से
स्वर्ग दिखता है
नीला आसमान
जब बादलों से लिपटता है
दूर खडे़ पेड़ लहराते
मुसाफिरों को गीत सुनाते है
और उन गीतों से उन्हें
अपनी और लुभा कर
छांव की गोद में सुलाते हैं
जहाँ
ठण्डी हवाऐं कदम-कदम
पर चलती हैं
चेहरे को छूने वाली
अक्सर मंजिलों से रूबरू होती हैं
लेकिन अनजानो  सा बर्ताव कर
ना जाने कहाँ ले जाये
आँखें मूंद्ते ही
उन बर्फ की चोटियों पर
इन कदमों के साथ लहराए
जहाँ सिर्फ
सुकून ही सुकून
खामोशियों की आहटें
और आँखों में
नमी की कशिश होती है
बस मंज़िल से ज्यादा
सफर की बाँहें खूबसूरत होती हैं 
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