कश्मीर धरती का स्वर्ग है यहां औरत का घर की चारदीवारी से निकलना एक सामाजिक आंदोलन है? कुछ अजीब -सी बात है ना! लेकिन चौंकाने की बात नहीं है नटीपुरा श्रीनगर की महिलाओं ने अपनी शक्ति को पहचान है। अपने पिछड़ेपन पर लात मारने अपना विरोध व्यक्त करने और उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वेजकड़े हुए हैं कोई -ना कोई तरीका महिलाएं निकल ही लेती हैं कभी-कभी यह तरीका अजीबो-गरीब होता है।
कश्मीर में औरतें अपनी बात कह नहीं सकती थी धर्म के नाम पर समाज के नाम पर उनके पैरों में बेड़िया डाली जाती आजादी और गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में अपने अंदर छुपे हुनर” खाना” बनाने को उन्होंने चुना।
अगर हम दस वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को अलग कर दे तो इसका अर्थ यह होगा कि यहां महिलाओं के एक चौथाई हिस्से ने स्वादिष्ट खाना बनाना अपनी नानी, दादी, मां से सीख लिया और इन महिलाओं में से सतर हजार से भी अधिक महिलाओं ने प्रदर्शन एवं प्रतियोगिताओं जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में बड़े गर्व के साथ अपने नए कौशल का प्रदर्शन किया।
नटीपुरा, बारामूला के मुख्य इलाकों से अत्यंत रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आई युवा मुस्लिम लड़कियां अपने हाथ का बना हुआ गरम-गरम खाना लोगों को खिलाती हैं।
इरहम बीवी नामक एक युवती ने जिसने अपना छोटा सा ढाबा चलाना शुरु किया, मुझे कहा- यह मेरा अधिकार है अब हम अपने पैरों पर खड़े हैं पता है लोग हम पर फब़ितयां कसते हैं लेकिन मैंने उसे पर कोई ध्यान नहीं दिया।
गोसिया कॉलेज पड़ती है उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन बनाने का ऐसा चाव लगा कि कॉलेज से छुट्टी के बाद वह अपनी बैन में खाना बना कर लाती है और लोगों को खिलाता है।
वे अपनी आर्थिक स्थिति बताते हुए कहती है कि एक रेस्टोरेंट खरीदने की हैसियत नहीं है गोसिया ने बताया कि खाना बनाकर खिलाना एक खास तरह की आजादी है हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता मैं कभी इसे नहीं छोडूंगी।
श्रीनगर में तो बहुत सी औरतें पर्यटको को स्वादिष्ट खाना बना कर खिलाते हैं क्योंकि कश्मीर में पर्यटक बहुत आते हैं 370 के बाद हालातो में सुधार आया महिलाओं को अपनी बात कहने का मौका मिला वे घर से बाहर निकली उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को पहचाना।
महिला खेतिहर, मजदूर, पत्थर खदानों में मजदूरी करने वाली औरतें और गांव में काम करने वाली नर्सिं।बाल बाड़ी और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता औरतें और स्कूल की अध्यापिकाएं सभी परिवार के लिए खाना बनाती हैं अगर परिवार उनके खाने की तारीफ करता है तो क्यों ना लोगों को भी बना कर खिलाए खाना ताकि लोगों को घर का बना बनाया खाना खाने को मिले।
मास्टर शैफ की एक अगुआ का कहना है मुख्य बात यह है कि इस आंदोलन ने महिलाओं को बहुत आत्मविश्वास प्रदान किया है। महत्वपूर्ण यह है कि इसमें पुरुषों पर उनकी निर्भरता कम कर दी है अब हम प्राय: देखते हैं की औरत को पैसे के लिए मर्द के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता वह अपना और परिवार का पालन पोषण कर सकती है सामान लाना फिर खाना बनाना व्यवस्था खुद करती है ।लेकिन यकीन मानिए जब इन्होंने घर से बाहर निकाल कर खाना बनाना शुरू किया तो इन पर लोगों ने जमकर प्रहार किया जिसे इन्हे झेलना न पड़ा।
गंदी- गंदी टिप्पणियां की गई लेकिन धीरे-धीरे परिवार एवं समाज की प्रवृत्ति में परिवर्तन आया लोगों ने इनको समझा परिवार ने इनका साथ दिया।
फिर हमने होटल मैनेजमेंट की और मास्टरशैफ में हिस्सा लिया विजेता घोषित हुई इरहम को देखकर बाकी महिलाओं में जागृति आई उन्होंने भी सोचा क्यों ना हम अपने हुनर को लोगों के सामने लाए ऐसी बहुत सी महिलाएं लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी जिन्होंने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।
जम्मू की योग्यता ने कॉलोनी में मिसाल कायम की योग्यता ने फूड ट्रक स्टार्ट किया, योगिता कौल के पापा ड्राइवर थे और मां घर में खाना बनाती थी । माता-पिता की प्रेरणा से जम्मू विश्वविद्यालय में योगिता ने मास्टर किया तो योगिता ने सोचा अपना काम शुरू किया जाए अपने हुनर को लोगों के सामने लाया जाए ताकि लोगों को स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिले।
रुखसाना बानो नेमक्की की रोटी और सांग बनाना शुरू किया दूधपथरी में और साथ में नमकीन चाय , कहवा बनती हैं पर्यटक जब खाते हैं तो उंगलियां चाटते ही रह जाते हैं।
इससे महिलाओं के अंदर आत्म सम्मान की भावना पैदा हुई है बहुत महत्वपूर्ण है एक महिला ने बताया लोगों के लिए यह समझना बहुत कठिन है कि कश्मीर की महिलाओं के लिए यह कितनी बड़ी चीज है उनके लिए यह फाइव स्टार होटल में काम करने जैसी बड़ी उपलब्धि है। लोग उनका मजाक उड़ा सकते हैं लेकिन केवल यहां की औरतें ही समझ सकती हैं। कि उनके लिए यह कितना महत्वपूर्ण है जो पुरुष इसका विरोध करते हैं वह अपने काम से मतलब रखेंमहिलाओं की बराबरी कर ही नहीं सकते। महिलाओं को अल्लाह ताला ने अद्भुत शक्ति दी है।
कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद एक बदलाव यह भी आया कि सात पर्दों के अंधेरे में दम तोड़ती मुस्लिम महिलाएं भी अब दुनिया के उजाले में आ रही हैं, अपनी आर्थिक दुनिया खड़ी कर रही हैं.
मुक्ति जी ने इस बदलाव को रेखांकित करने का अच्छा प्रयास है.
आदरणीय मुक्ति जी !
इसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा, आश्चर्य भी हुआ और उतनी ही अधिक खुशी भी हुई। कश्मीर जैसी जगह के लिए यह पढ़ना आश्चर्य जनक है! किंतु फिर भी किसी क्षेत्र में तो मुस्लिम महिलाएँ आगे बढ़ीं। उन्होंने अपनी अहमियत और आजादी के महत्व को समझा। भले ही वह खाना बनाने का काम क्यों ना हो। सदियों से बेड़ियों में जकड़ी हुई मुस्लिम महिलाओं ने अपने अस्तित्व को पहचाना। संसार में अपने होने को महसूस किया। सच में बहुत ही अधिक अच्छा लगा! इस बेहतरीन रिपोर्ताज के लिए,कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं की इस पहल और आजादी के लिए, अपने महत्व को समझने के लिए, स्वयं को पहचानने के लिए ,अपने स्वाभिमान को जाग्रत करने के लिए,तहेदिल से बधाइयाँ और अंतर्मन से उनके लिए शुभकामनाएँ हैं। ईश्वर उनके हर काम में सहायक हो।
मुक्ति के माध्यम से, मुक्ति की लेखनी से, कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति की बात को सुनकर बहुत अच्छा लगा।
इस रिपोर्ताज के लिए बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको मुक्ती जी!
काश कभी हम भी कश्मीर घूमने जा पाएँ और आपसे मुलाकात हो पाए। पर यह संभव लगता नहीं!
प्रस्तुति के लिए तेजेंद्र जी का बहुत-बहुत शुक्रिया!
पुरवाई का आभार तो बनता ही है!
बहुत सुंदर लिखा आपने .काश्मीर की.महिलाओं का दर्द हमेशा अछूता रहा है.अब उनका जीवन भी संवर रहा है.वे.प्रगति और विकास की.भाषा समझने लगी है .वह भी अपने हौसलों और दृढ़ संकल्प के बल पर।जो.हुनर उनके पास पीढियों से है वही उनका संबल बन गया है।साधुवाद मुक्ति जी.आपने इन पर कलम चलाकर सबको प्रेरणा दी है कि जब कठिन संघर्ष और चुनौतियों का सामना कर काश्मीर की महिलाए आगे बढ सकती हैं तो विकास संभव है।बहुत बहुत बधाई. शुभ कामनाए..
कश्मीर की महिलाओं ने इस ओर रुख अपनाया है अपनी तरक्की का, अपनी आजादी का– यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है! मैं भी कश्मीर में ही रहती हूं उम्मीद है एक दिन मैं भी यह देख पाऊंगी। फिलहाल आपको बधाई है यह रिपोर्ट देने के लिए।
You are the best shine bright like a diamond we are proud of you mama
Best wishes from Vrishty ❤️
कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद एक बदलाव यह भी आया कि सात पर्दों के अंधेरे में दम तोड़ती मुस्लिम महिलाएं भी अब दुनिया के उजाले में आ रही हैं, अपनी आर्थिक दुनिया खड़ी कर रही हैं.
मुक्ति जी ने इस बदलाव को रेखांकित करने का अच्छा प्रयास है.
जी बहुत बहुत धन्यवाद,आप को रिपोर्ताज पसंद आया
Well done ✅✅ mukti jee proud of you.
Thxs tejender jii
उत्कृष्ट आलेख
बहुत बढ़िया आलेख सूचनाप्रद.
बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मुक्ति जी !
इसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा, आश्चर्य भी हुआ और उतनी ही अधिक खुशी भी हुई। कश्मीर जैसी जगह के लिए यह पढ़ना आश्चर्य जनक है! किंतु फिर भी किसी क्षेत्र में तो मुस्लिम महिलाएँ आगे बढ़ीं। उन्होंने अपनी अहमियत और आजादी के महत्व को समझा। भले ही वह खाना बनाने का काम क्यों ना हो। सदियों से बेड़ियों में जकड़ी हुई मुस्लिम महिलाओं ने अपने अस्तित्व को पहचाना। संसार में अपने होने को महसूस किया। सच में बहुत ही अधिक अच्छा लगा! इस बेहतरीन रिपोर्ताज के लिए,कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं की इस पहल और आजादी के लिए, अपने महत्व को समझने के लिए, स्वयं को पहचानने के लिए ,अपने स्वाभिमान को जाग्रत करने के लिए,तहेदिल से बधाइयाँ और अंतर्मन से उनके लिए शुभकामनाएँ हैं। ईश्वर उनके हर काम में सहायक हो।
मुक्ति के माध्यम से, मुक्ति की लेखनी से, कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति की बात को सुनकर बहुत अच्छा लगा।
इस रिपोर्ताज के लिए बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको मुक्ती जी!
काश कभी हम भी कश्मीर घूमने जा पाएँ और आपसे मुलाकात हो पाए। पर यह संभव लगता नहीं!
प्रस्तुति के लिए तेजेंद्र जी का बहुत-बहुत शुक्रिया!
पुरवाई का आभार तो बनता ही है!
जी बहुत बहुत धन्यवाद, आप को रिपोर्ताज पसंद आया।
पाठकों का प्यार यूं ही मिलता रहे। कश्मीर में आपका स्वागत है।
बहुत सुंदर लिखा आपने .काश्मीर की.महिलाओं का दर्द हमेशा अछूता रहा है.अब उनका जीवन भी संवर रहा है.वे.प्रगति और विकास की.भाषा समझने लगी है .वह भी अपने हौसलों और दृढ़ संकल्प के बल पर।जो.हुनर उनके पास पीढियों से है वही उनका संबल बन गया है।साधुवाद मुक्ति जी.आपने इन पर कलम चलाकर सबको प्रेरणा दी है कि जब कठिन संघर्ष और चुनौतियों का सामना कर काश्मीर की महिलाए आगे बढ सकती हैं तो विकास संभव है।बहुत बहुत बधाई. शुभ कामनाए..
बहुत बहुत धन्यवाद
कश्मीर की महिलाओं ने इस ओर रुख अपनाया है अपनी तरक्की का, अपनी आजादी का– यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है! मैं भी कश्मीर में ही रहती हूं उम्मीद है एक दिन मैं भी यह देख पाऊंगी। फिलहाल आपको बधाई है यह रिपोर्ट देने के लिए।
बहुत बहुत धन्यवाद,आप को रिपोर्ताज पसंद आया