Sunday, September 8, 2024
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प्रो सरोज शर्मा की कलम से – शिक्षक शिक्षा के नए संदर्भ : राष्ट्रीय शिक्षा नीति का परिप्रेक्ष्य

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के चिंतन विंदु आज भी अधिक प्रासंगिक हैं। बहु-अधिगम प्रणाली के आदर्श प्रतिमान, वर्तमान शिक्षा-प्रणाली की भी एक प्रमुख आवश्यकता है; जो एक शिक्षक की  भूमिका पर जोर देता है। वह शिक्षार्थी को इस तरह से पोषित करता है कि, वह एक सक्रिय शिक्षार्थी बन सके और व्यापक स्तर पर समाज और राष्ट्र की भलाई के लिए सभी मानवीय क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम हो सके। इसलिए शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों की गुणवत्ता ज़रूरी है जो, हमारे देश की भावी-पीढ़ी को नया आकार देगी और शिक्षकों की एक मज़बूत पहचान सुनिश्चित करेगी।
‘राष्ट्रीय शिक्षा-नीति (एनईपी)2020’- का स्पष्ट दृष्टिकोण है कि “अगली पीढ़ी को आकार देने वाले शिक्षकों की एक टीम के निर्माण में अध्यापक-शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस भूमिका का  कारण है कि, भारत में शिक्षक समाज का सबसे सम्मानित सदस्य होता था” (एनईपी 2020, अनु. 15.1)। इसलिए इस प्रतिष्ठित पद के लिए हमें अपने शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रम की कल्पना नए परिप्रेक्ष्य में करने की ज़रूरत है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि, केवल उत्कृष्ट विद्यार्थी ही शिक्षण के पेशे में आयें ताकि शिक्षकों के लिए उच्च सम्मान प्राप्त हो सके। इस दिशा में एनईपी-2020 ने शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को उचित रूप से मान्यता दी है। जिसमें 21 वीं सदी के सीखने के कौशल एवं सामग्री के साथ-साथ शिक्षा-शास्त्र में उच्च गुणवत्ता युक्त, प्रशिक्षण भी शामिल होगा और जो हमारे भावी शिक्षकों को तेजी से बदलते समय की गति के साथ आगे ले जाएगा।
शिक्षा के क्षेत्र में सूचना-आधारित से ज्ञान-आधारित की ओर तथा वर्तमान आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस से संपन्न ज्ञान आधारित-शिक्षा के परिवर्तन को स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण बिन्‍दु है। ताकि हमारे भविष्य के शिक्षक तकनीकी-क्रांति को अपनाने के लिए तैयार हों। वर्तमान के अनेक घटनाक्रमों ने स्पष्ट कर दिया कि पारंपरिक शिक्षक और ढांचानुमा तथाकथित विद्यालय धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं। देश भर के सभी औपचारिक स्कूल भी वर्चुअल शिक्षण की प्रक्रिया में सम्मिलित हो रहे हैं। अतः  यह कहना गलत नहीं होगा कि 21वीं सदी की नई दुनिया में शिक्षक-शिक्षा पर अधिक जिम्मेदारी है, जो वास्तव में सीखने का आधार है।
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति के अनुसार, शिक्षकों को तैयार करना एक ऐसी प्रक्रिया है; जिसके लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण और ज्ञान की आवश्यकता के साथ-साथ, बेहतरीन मेंटरों के निर्देशन में मान्यताओं और मूल्यों के निर्माण और अभ्यास की भी आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि, अध्यापक शिक्षा और शिक्षण-प्रक्रियाओं से संबंधित अद्यतन प्रगति के साथ भारतीय मूल्यों, भाषाओं, ज्ञान, लोकाचार, और परंपराओं, जनजातीय परंपराओं के प्रति भी जागरूक रहें। इस लक्ष्य के कारण न केवल समृद्ध भारतीय संस्कृति और विरासत को पुनर्स्थापित करने का अवसर मिलेगा, बल्कि एक जीवंत ज्ञानवान समाज का भी निर्माण होगा।
वर्तमान शिक्षा-प्रणाली, औपनिवेशिक इतिहास की गवाही देती है। जिसके कारण प्राचीन और शाश्वत भारतीय-ज्ञान और विचार की समृद्ध विरासत को उसका उचित महत्व प्राप्त नहीं हुआ। हमारी प्राचीन शिक्षा-प्रणाली ने हमेशा व्यक्ति के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया है और ऐसे मूल्यों पर जोर दिया है जो कि नम्रता, सच्चाई, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सभी के प्रति सम्मान के रूप में केन्द्रित है। इसलिए अब शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों को गौरवशाली प्राचीन भारतीय-संस्कृति और विरासत को दृष्टिगत करते हुए नया स्वरूप दिया जाना चाहिए। 
शिक्षा एक सामूहिक, सामाजिक-प्रयास है; जो यह सुनिश्चित करती है कि, प्रत्येक नागरिक गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए अनुशासित होकर अपनी पूर्ण कार्य-क्षमता के साथ समाज का एक महत्वपूर्ण सदस्य बने। हमारे शिक्षक-विद्यालयों में दी जा रही शिक्षा का आधार गुणवत्ता है और यही उसका केंद्र भी है।  विद्यालयों में दी जा रही  शिक्षा को किताबों के ज्ञान से आगे बढ़कर शिक्षार्थी द्वारा अपने जीवन में प्रायोगिक रूप पर शिक्षक को कार्य करने की जरूरत है और यह एक चुनौती है।  असर (ASER) की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि, बच्चों में सीखने की क्षमता में अनेक समस्याएं हैं जो एक गहरा संकट है। हम जानते हैं कि ग्रामीण भारतीय क्षेत्रों में कक्षा 5 के लगभग पचास प्रतिशत बच्चे दो अंकों के साधारण घटाव की समस्या को भी  हल नहीं कर सकते हैं; और यह स्थिति वर्तमान स्कूली-शिक्षा के प्रत्येक स्तरों पर स्पष्ट नज़र आती है। ऐसे चुनौतीपूर्ण समय को ध्यान में रखते हुए, हमारे विद्यालयी शिक्षकों को इस तरह से तैयार रहने की आवश्यकता है कि वे किसी भी परिस्थिति को संभालने और समस्या-समाधान के कौशल में निपुण हों । 
वर्तमान परिदृश्य में एनईपी शिक्षकों के लिए, ‘एकीकृत शिक्षा-कार्यक्रम’ पर ज़ोर देते हुए आशा की एक नई किरण प्रस्तुत करता है। जिसमें विद्यार्थियों को शिक्षा के विभिन्न दृष्टिकोणों से अवगत कराया जाता है, जो संभावित शिक्षकों को महत्वपूर्ण सोच के साथ-साथ समस्या-समाधान, नवाचार और अनुकूलन क्षमता के साथ, सक्षम बनाने में एक वैचारिक आधार प्रदान करेगा। आने वाले दशकों में भारत के पास सबसे बड़ा कार्य-बल होने का अनुमान है। अतः जनसंख्या का एक बड़ा भाग अब उच्चशिक्षा-तंत्र में प्रवेश करने जा रहा है। इसलिए इस देश के भविष्य के निर्माण की आकांक्षा रखने वालों को सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले शिक्षकों केलिए, समग्र शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना समय की प्रमुख माँग है।
21वीं सदी में, जब हम, एक वैश्विक समाज में रह रहे हैं; तब शिक्षकों के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के बहुमुखी कार्यक्रमों की ज़रुरत है।  साथ ही शिक्षा-पाठ्यक्रम को इस तरह से संशोधित करने की आवश्यकता है कि, वह समावेशी हो और उसमें आजीवन सीखने, शिक्षार्थियों के विकास और अनुप्रयोगों पर ज़ोर दिया जाए। लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मूल्‍यों पर भी जोर दिया जाना चाहिए और भावी शिक्षकों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत करने की दिशा में प्रयास होने चाहिए। यह एक भारतीय होने की मज़बूत पहचान की नींव रखता है। पाठ्यक्रम को समाज की, लगातार बदलती जरूरतों, नैतिक मानदंडों, प्रौद्योगिकी उन्नति और प्रसार एवं वर्तमान संदर्भ में दूरस्थ- वर्चुअल सीखने की पद्वति का भी संज्ञान लेना चाहिए।
अतः इस सन्दर्भ में गहन चिंतन-मनन की आवश्यकता है। जिसमें विविध पक्षों के साथ-साथ बी.एड पाठ्यक्रम के लिए एक वर्ष, दो वर्ष और चार वर्ष के पाठ्यक्रमों पर भी विस्‍तृत चर्चा हो। नए परिवेश में शिक्षकों के लिए ‘एकीकृत शिक्षा-कार्यक्रम’ अवश्य ही नई दिशा का निर्माण करेंगे। साथ ही, परिणाम आधारित शिक्षकों के लिए शिक्षा-कार्यक्रम विकसित किये जायेंगे तो अत्यंत उपयोगी होंगे। यह भी महत्वपूर्ण है कि, शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में, 21वीं सदी के सीखने के कौशल को वास्तविक बनाने के आयामों का पता लगाकर उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
राष्ट्रीय अध्यापक-शिक्षा परिषद, सम्पूर्ण भारत में अध्यापक-शिक्षा का नियामक और पथ प्रदर्शक है। आज उसकी भूमिका और भी बढ़ती जा रही है‌‌ क्योंकि तेज़ी से बदलते परिवेश में शिक्षा को आधुनिकतम, समावेशी और सर्व-स्वीकार्य बनाना अत्यावश्यक है। इस दिशा में ‘राष्ट्रीय अध्यापक-शिक्षा परिषद’, ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए भी हैं। इनमे से 4-वर्षीय ‘एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम’ (आईटीईपी), एक महत्वपूर्ण कदम है। जहां इस हेतु, ‘चार वर्षीय विशिष्ट पाठ्यचर्या’, का निर्माण किया गया है, वहीं दूसरी ओर कुछ चयनित संस्थानों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा; जहां नवीन आवश्यकताओं के अनुसार आधारभूत संरचना और मानव संसाधन उपलब्ध हैं। 
अध्यापकों के लिए ‘राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी)’, अध्यापकों की गुणवत्ता का एक आधार प्रस्तुत करता है। वास्तव में यह तो बस एक आरंभ हैं, जो दीर्घकालिक परिणाम देगा। इससे 21वीं सदी में अध्यापकों की कार्य-दक्षता निर्धारित होगी ताकि बदलती तकनीक से वे स्वयं को परिचित कराते और कुशल बनाते रहें। जब हम दीर्घकालिक परिणाम की बात करते हैं तो, यह निश्चित रूप से विद्यार्थियों के प्रदाश्रहन से जुड़ा होता है क्योंकि कुशल-शिक्षक निश्चित रूप से विद्यार्थियों के प्रदर्शन में सुधार लाएगा। 
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का एक और अभिनव प्रयास राष्ट्रीय मेंटरिंग मिशन (एनएमएम)  के रूप में है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अनुच्छेद 15.11 के लक्ष्यों के अनुरूप निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उठाया गया यह एक महत्वपूर्ण कदम है।  यह शिक्षकों को सलाह देने, ज्ञान के औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रसार के साथ ही शिक्षकों के व्यावसायिक कौशलों के विकास की दिशा में कार्य करता है। राष्ट्रीय मेंटरिंग मिशन (एनएमएम) द्वारा विविध कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से जहां शिक्षकों को प्रशिक्षित और नए अनुभव प्रदान किए  जाते हैं; वहीं तकनीक के कुशलतम उपयोग के माध्यम से भी निरंतर कौशल-विकास की दिशा में कार्य किया जाता है। यह समन्वित प्रयास, देश में शिक्षकों को ज्ञान का एक नया दृष्टिकोण दे रहे हैं। 
अनेक सरकारी नवाचारों को लागू करने के लिए ब्रिज कोर्स का निर्माण एक सरल और प्रभावी कदम होगा l जैसे-  शारीरिक-शिक्षा और योग-शिक्षण। शिक्षण की गुणवत्ता एक स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन पर भी निर्भर होती है। तो एक ओर जहां इस प्रक्रिया में शिक्षण को ग्रहण करने वाले शिक्षार्थियों का स्वस्थ होना आवश्यक है वहीं दूसरी ओर
शिक्षकों को भी शारीरिक-शिक्षा और योग-शिक्षण में निपुण होना आवश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति  विशेष रूप से इस दिशा में शिक्षकों के शिक्षण और प्रशिक्षण पर ज़ोर
देती है। यही कारण है की शारीरिक-शिक्षा और योग-शिक्षण, शिक्षक-शिक्षा का एक अभिन्न अंग बन गया है।
इसी प्रकार समावेशी शिक्षा पर भी एक पाठ्यक्रम ज़रूरी है l हम अपने समाज में एक बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की पाते हैं जो किसी न किसी तरह की शारीरिक या मानसिक अक्षमता से ग्रसित होते हैं। उनकी आवश्यकताएँ बाकी बच्चों से अलग होती हैं और यही कारण है कि वे कहीं न कहीं शिक्षण की मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं। इसलिए अध्ययन-शिक्षण प्रक्रिया में उनका समावेशन अत्यावश्यक है। चूंकि उनकी आवश्यकताएँ अलग हैं, अतः उनके अध्यापन हेतु विशिष्ट कौशलों की भी आवश्यकता होती है। शिक्षकों में यह कौशल विकसित करना और उसे निरंतर निखारते रहना भी आज शिक्षकशिक्षा का एक अभिन्न अंग बन चुका है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति,  भारत केंद्रित शिक्षा की बात करती है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को हम नकार दें वरन आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ भारत की गौरवशाली ज्ञान परंपरा को जानने के साथ ही उसका प्रयोग और परिमार्जन ही इसका वास्तविक उद्देश्य है। भारत से अतीत में ज्ञान की कई धाराएँ प्रवाहित हुईं, परंतु कालांतर में वे कहीं खो गयी और साथ ही हमने स्व-गौरव का बोध भी खो दिया। हर ज्ञान और कौशल के लिए हमने पश्चिम की ओर देखना शुरू कर दिया। शिक्षक का एक अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व, उस समर्थ और श्रेष्ठ भारत से विद्यार्थियों का परिचय करना भी है। अतः एक ओर जहां शिक्षण-अध्यापन सामग्री के पुनरीक्षण के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परंपरा के समावेशन की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को भी इस दिशा में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इसमें भारत के दर्शन, चिकित्सा, गणित, खगोल शस्त्र, धातु विज्ञान, जीवन मूल्यों आदि जैसे विविध ज्ञान क्षेत्र से परिचय ब्रिज-कोर्स के माध्यम से हो सकता   है। 
सूचना-तकनीक, आज ज्ञान के प्रसार और शिक्षण का एक अत्यंत प्रभावी माध्यम है। यह जहां विशिष्ट ज्ञान तक पहुँच को संभव बनाती है वहीं, दूसरी ओर इसके प्रसार का भी एक सशक्त माध्यम है।  यह शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच की दूरी को भी कम कर देती है। अतः बदलते परिवेश और और बदलती तकनीक के साथ शिक्षकों का सूचना प्रौद्योगिकी में पारंगत होना, समय की आवश्यकता है। आज तकनीकी विकास ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी परिष्कृत  प्रौद्योगिकी को भी संभव बना दिया है, जो ज्ञान का एक  नया संसार है। लेकिन हर प्रौद्योगिकी के साथ उसके न्यायपूर्ण उपयोग की आवश्यकता होती है; ताकि संतुलन बना रहे। शिक्षक इस संतुलन को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है। शिक्षक शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग भविष्य के शिक्षकों के साथ-साथ भावी विद्यार्थियों को भी सशक्त बनाएगा। 
प्रो. सरोज शर्मा 
अध्यक्ष, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान
नोएडा, उत्तर प्रदेश
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