Wednesday, October 16, 2024
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प्रो. सरोज शर्मा का लेख – विद्यालयी शिक्षा के व्यापकत्व की दिशाएं और संभावनाएं   

  • प्रो. सरोज शर्मा
वैविध्यपूर्ण सामाजिक ताने-बाने में ‘सभी के लिए शिक्षा’ का स्वरूप व्यापक है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार स्कूली स्तर पर निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के प्रति कटिबद्ध है। शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है और इसके लिए अनेक रूपों में हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) इस द्रष्टिकोण को परिपुष्ट करती है। इसके तहत ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘समग्र शिक्षा’ जैसे पहलुओं को और अधिक मजबूत किया जा रहा है। प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (Right to Education) 3 से 18 वर्ष की आयु तक विस्तारित किया गया है।
शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण स्तंभ है। शिक्षित नागरिक एक मजबूत लोकतंत्र की नींव होते हैं। इसलिए सभी बच्चों के लिए समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु ठोस कदम उठाना वास्तव में समय की मांग है, ताकि वे भविष्य के लिए तैयार हो सकें और एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और समानता आधारित समाज के निर्माण में योगदान दे सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या कम करने और सभी स्तरों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के अनेक चिंतन विंदु निर्दिष्ट किये गए हैं जो निश्चित ही आगे के लिए पथप्रदर्शक बनेंगे।

स्कूल न जाने वाले बच्चों की समस्या से निपटने के लिए सजगता की जरुरत है। उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए ब्रिज कोर्स और वोकशनल ट्रेनिंग उपयोगी होंगे, जिससे वे रोजगार योग्य कौशल हासिल कर सकते हैं। यह जरूरी है कि सभी सरकारी योजनाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार हो ताकि अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकें। गौरतलब है कि अनेक शैक्षिक संस्थान इस मिशन को पूरा करने में निरंतर अग्रसर हैं। राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS), जो मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा (Open and Distance Learning) के माध्यम से शिक्षा प्रदान करता है, तथा देश भर के अन्य स्टेट ओपन स्कूलों को इस दिशा में कार्य करना चाहिए।
इस संस्थान में आउट ऑफ स्कूल बच्चों के प्रवेश और अन्य प्रक्रियाओं के लिए एक समर्पित वेब पोर्टल  https://sdmis.nios.ac.in/modules/oosc/oosc बनाया गया है। यह पोर्टल स्कूल न जाने वाले बच्चों को पंजीकृत करने, ट्रैक करने और प्रमाणित करने में मदद करता है। पंजीकरण की यह पूरी प्रक्रिया राज्य शिक्षा विभाग के माध्यम से होती है। इस वेब पोर्टल पर राज्य शिक्षा विभाग के माध्यम से पंजीकृत प्रत्येक बच्चे को एक स्थायी आईडी दी जाती है जो एनआईओएस से पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद भी शिक्षार्थी की पहचान करने में सहायक होती है। यह संस्थान  प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में राज्य शिक्षा विभागों के साथ मिलकर व्यवस्थित तरीके से काम कर रहा है। प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के स्कूल न जाने वाले बच्चों को स्कूली शिक्षा के अनेक स्तरों, जैसे – कक्षा 3, 5, 8,10 और 12 पर एनआईओएस में पंजीकृत करने का प्रयत्न किया जा रहा है। लचीलेपन से युक्त शैक्षिक कार्यक्रम में विद्यार्थी अपने समय और सुविधा के अनुसार अध्ययन कर सकते हैं। वे लोग भी पढ़ाई कर सकते हैं जो काम कर रहे हैं या अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं। इस संस्थान में केवल शैक्षणिक शिक्षा ही नहीं, बल्कि व्यावसायिक पाठ्यक्रम की भी व्यवस्था है। ये पाठ्यक्रम बच्चों को विभिन्न प्रकार के कौशल सिखाते हैं, जिससे वे रोजगार प्राप्त कर सकते हैं और आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, सिलाई, बुनाई, कंप्यूटर ऑपरेशंस, इलेक्ट्रीशियन आदि पाठ्यक्रम शामिल हैं।
दिव्‍यांग शिक्षार्थियों की शिक्षा भी एक चिंतनीय विषय है जिसके लिए एक मानक स्‍थापित करना आवश्यक है। ‘भारतीय सांकेतिक भाषा’ को एक विषय के रूप में प्रसारित किया और विभिन्न विषयों के वीडियो भारतीय सांकेतिक भाषा में तैयार किए गए जाएँ। साथ ही डेज़ी प्रारूप में बोलती पुस्‍तकों का निर्माण किया जाए जो विशेष रूप से देखने में अक्षम, दृष्टिबाधित तथा डिस्‍लेक्सिया सहित ‘प्रिंट डिसएबिलिटी’ वाले शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी हों। हालाँकि एनआईओएस और एनसीईआरटी जैसी संस्थाएं इस दिशा में कार्यरत हैं परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
भारतीय ज्ञान परम्‍परा को नए रूप में प्रस्तुत करने हेतु अनेक पाठ्यक्रमों का निर्माण जरूरी है। वैदिक शिक्षा, संस्‍कृत भाषा एवं साहित्‍य, भारतीय दर्शन तथा प्राचीन भारतीय ज्ञान के अन्‍य विभिन्‍न क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित विषयों के पठन-पाठन की व्यवस्था हो, जिसमें शिक्षार्थियों को माध्‍यमिक तथा उच्‍चतर माध्‍यमिक दोनों स्‍तरों पर वेद अध्‍ययन, संस्‍कृत व्‍याकरण, भारतीय दर्शन तथा संस्‍कृत साहित्‍य जैसे विषय उपलब्‍ध कराए जायें।
देश के जांबाज सैनिकों की शिक्षा के लिए भी अभिनव प्रयास किये जा रहे हैं हैं। वर्त्तमान में अग्निवीरों को पढ़ने के अवसर दिए जा रहे हैं। ग्रामीण बालिकाओं की शिक्षा के लिए विविध योजनाएं हैं। अभी ओलंपिक खेलों की चर्चा जोरों पर रही है। यह संतोष और उत्साह का विषय है कि बड़ी संख्या में खिलाड़ियों ने मुक्त शिक्षा की लचीली व्यवस्था का लाभ उठाया है और खेल में विशिष्टता प्राप्त करने के साथ-साथ स्कूली शिक्षा भी बेहतर ढंग से पूरी की है। ये खिलाड़ी अपनी सुविधानुसार अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं। भविष्य में भी आशा है कि बहुत से खिलाडी और अन्य क्षेत्रों के लोग भी वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था का लाभ उठायेंगे और सभी तक शिक्षा पहुँचाने की संकल्पबद्धता को साकार करेंगे ।
प्रो. सरोज शर्मा
अध्यक्ष, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS)
शिक्षा मंत्रालयभारत सरकार
नोएडा, उत्तर प्रदेश
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