Tuesday, September 17, 2024
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स्नेह ‘पीयूष’ का लेख – बागवानी और पर्यावरण : एक फ़र्ज़, एक ज़रूरत और बहुत सारा सुकून

जी हाँ बागवानी मे ये सब कुछ है बल्कि इन सब से भी कहीं अधिक बहुत कुछ है। नन्ही कलियों का आना, नए-नए पत्तों का दिखना, बीजों का धरती की छाती फोड़कर बाहर आना, भीनी मादक सुगंध बिखेरना, रंग बिरंगे फूल सभी कुछ अलग ही आनंद का आभास कराते हैं। इनसे मिली शांति और प्रसन्नता का है रूप ही अलग है।  जैसे कोई बहुत ही जादुई सी खुशी…….
जरा सोचिए! एक बीज नन्हें से पौधे में बदलता हुआ एक वृक्ष बन जाता है, और फूल ,पत्ते, फल ,बीज ,जीवन दायिनी ऑक्सिजन,छाया,ठंडक क्या-क्या नही देता और अंत में जाते जाते भी लकड़ी देकर समाप्त हो जाता है। यानि सिर्फ देता है, आपसे कुछ भी नही लेता और लेते-लेते हम इतने खुदगर्ज हो गए कि जंगल के जंगल काटते गए पर नए लगाने कि कभी किसी को सुध ही नहीं आई और आज जब चारो ओर जल का संकट, पर्यावरण का असंतुलन, ग्लोबल वार्मिंग, सिकुड़ते ग्लेशीयर, समुद्र का बढ़ता जल स्तर और ओज़ोन छिद्र जैसी विपत्ति से घिर गए तो याद आया कि कुछ फर्ज हमारा भी है, माँ वसुंधरा के प्रति……. 

जब तक हम सब अपने अपने स्तर पर इस कर्तव्य कि पूर्ति नहीं करते, हमारी आवश्यकताओं कि पूर्ति भी एक दिन कठिन होते हुए असंभव हो जाएगी और तब कोई भी पछताने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाएगा। देर तो अभी भी बहुत हो चुकी है लेकिन फिर भी कुछ संभावना बची है। 
इस संभावना को जीवित रखना ही पड़ेगा अगर हम सभी दो-दो पेड़ लगाने का प्रण ले ले तो करोड़ों कि जनसंख्या वाले इस देश में कितने नए वृक्ष लग जाएगे। बल्कि दो क्यों पूरे 14  पेड़ लगाइए क्योंकि एक शोध में ये भी पता चला है कि अगर आप 14 पेड़ लगाते है तो प्रकृति को उतनी आक्सीजन लौटा देते हैं जितनी औसतन आपने अपने पूरे जीवन में उपयोग की है। 
सोचिए कितनी अनोखी और सुंदर बात है !
क्या मुश्किल है 14 पेड़ लगाने में ???
अब जगह कि कमी को वजह बनाना सिर्फ़  बहाना है, अगर आप चाहें तो कहीं भी हरियाली ला सकते हैं। सड़को के किनारे, पार्कों में, मैदानों में, खाली पड़े दूर दराज इलाकों में, छत पर, बालकनी में, खिड़कियों पर, सीढ़ियों पर कही भी बेशक हर जगह बड़े वृक्ष नहीं लगाए जा सकते, लेकिन एक स्वच्छ और संतुलित पर्यावरण में तो घास तक कि भूमिका और आवश्यकता है, तो फूल उगायें किचन गार्डेनिंग कीजिए, औषधियाँ लगायें, इंडोर गार्डेन बनायें, टोकरियाँ लटकायें ,कंपोस्टिंग करिए जो हानिकारक ग्रीन गैसों को रोकने के साथ आपको एक बढ़िया खाद उपलब्ध कराएगी जिससे आप जैविक बाग़वानी जो आजकल ओर्गेनिक गार्डेनिंग के नाम से बहुत प्रचलित हो रहा है उसका का लुफ्त उठा सकते है जो बहुत ही संतोषदायक और स्वास्थ्यवर्धक है, जो कि आपको अकारण तरह-तरह के जहरीले कीटनाशको और रसायनों के सेवन से बचाएगा, धरती के बढ़ते तापमान को कम करेगा। कंपोस्टिंग के लिए आपको सिर्फ घर से निकालने वाले प्रकृतिक कचरे कि आवश्यकता है, जैसे फल सब्जियों के छिलके,अखाद्य्य भोजन, गत्ते, सूखे पत्ते, कागज वगैरह जो प्रतिदिन घर-घर से निकलकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचता है और आफत बनता जा रहा है क्योंकि इसका निपटान असंभव होता जा रहा है तो क्यों न हम इसे घर में ही रोक लें और कंपोस्टिंग करके, एक  ज़िम्मेदार नागरिक बने और इस अनूठी प्रकिया का लाभ उठाए। 

बहुत थोड़े से खर्च में जैविक बागवानी शुरू कि जा सकती है। किचन वेस्ट, खाली पड़े डब्बे, बोतल, जार, प्लास्टिक बोतल, बोरियाँ, बैग्स बहुत सारे विकल्प है जो खर्च बचाने के साथ साथ अजैविक कचरा फैलाने में भी रोकेंगे और उनमें पौधे उगा कर आप एक नेक काम में भागीदार हो जायेंगे।
दोस्तो समय आ गया है, और अनहोनी की प्रतीक्षा मत करिए, तैयार हो जाईए , अपने घर बिल्डिंग कॉलोनी में सबको एकजुट करिये, मिलकर ये नेक काम करना आपको मजे के साथ साथ एक सुखद अनुभूति भी प्रदान करेगा। 
महानगरो के सरकारी, आवासों में रहते हुए हमेशा वांछित  जगह का अभाव रहा, लेकिन मेरे बागवानी के शौक ने हर जगह मुझे 100-50 पौधों की जुगत करा दी पर हैदराबाद आकर स्थान अभाव  की समस्या हल हो गयी और 100-50 गमलों का विस्तार 400-500 तक हो गया अब मेरे पास अप्रैल की चिलचिलाती गर्मी से सैकड़ो गमलों में लगा एक हरा भरा बाल्कनी गार्डेन और किचन गार्डेन है जो की पूरी तरह और्गेनिक और परिणाम इतना अच्छा कि बहुत कम सब्जियाँ मुझे बाहर से खरीदनी पड़ती है हाँ थोड़ी मेहनत जरूर है पर अंत में सब कुछ है बहुत मजेदार शांतिदायक, संतुष्टिदायक और स्फूर्तिदायक।
सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना ने तो आँखें तरेर कर बता भी दिया कि हमें क्या करना चाहिए और हम क्या कर रहे हैं। कुछ ही दिनों के लॉकडाउन ने सारी की सारी आबोहवा साफ़ कर दी, नाली बन चुकी कचरे से बज़बजाती नदियाँ वर्षों से चल रही तमाम परियोजनाओं को पछाड़ती बिना कुछ किए फिर से जीने लगीं, ज़हरीली हो चुकी हवा ने बताया कि साफ़ हवा में साँस लेना किसे कहते हैं , भारी गर्मी में तापमान कम होना बड़ा सुखद आश्चर्य था, घर में बना ताज़ा भोजन क्या होता है, अच्छे और खुशहाल जीवन को कितनी कम आवश्यकता है, कुल मिलाकर साधारण जीवन में असाधारण सुख दिखा, घर परिवार की क़ीमत पता चली और बेलगाम भागती कृतिम जीवन शैली की  असलियत सामने आ गई। भले ही हमें ये सब अनुभव विवशता के कारण हुए लेकिन ये परिवर्तन हमारी आँखें खोलने के लिए पर्याप्त था।  लेकिन, बड़े अफ़सोस की बात है कि लॉकडाउन हटते ही हम बड़ी आसानी से सब कुछ भूल गए और कुछ महीने भी ये सब नहीं संभाल पाये जो अचानक मुफ़्त में मिल गया था। 

और धीरे-धीरे  इस वर्ष गर्मी अपना विकराल रूप दिखा रही है वो ताप हम सब झेल ही रहे हैं और आने वाले वर्षों में ये हालात बद से बदतर होने से कोई नहीं रोक सकेगा। कई शहरों में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया है। 
सरकारी योजनाये ऐसे ही बनती और विफल होती रहेंगी, जब तक हर नागरिक अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेगा। सरकारें अपना काम करें लेकिन हम सब भी अपना योगदान करे, अक्सर देखा जाता है कि गीले और सूखे कचरे की जैविक अजैविक कचरे इकट्ठा करने की सरकारी बंदोबस्त है लेकिन पालन तब तक ही होता है जब तक सख़्ती होती है लेकिन उसके बाद फिर वही वापस अपने ढर्रे पर….
अब बारी आती है, गाड़ियों की जो अब सहूलियत के साथ सरदर्दी भी बनती जा रही है। हर छोटे बड़े शहर में गाड़ियों की रेलमपेल है, पार्किंग की जगह नहीं मिलती, लंबी-लंबी लाल बत्ती होती है, घंटों सडक़ों पर जाम लगता है, कुछ किलोमीटर की दूरी तय करने में समय का बड़ा हिस्सा ऐसे ही व्यर्थ हो जाता है ,गाँव क़स्बों में सड़क हो ना हो गाड़ियाँ ज़रूर मिलेंगी, तो हवा में घुलता ये धुएँ का ज़हर कहाँ जा रहा है???  सीधा हमारी साँसों  में….
वातानुकूलित घर,वातानुकूलित दफ़्तर,वातानुकूलित वाहन,वातानुकूलित बाज़ार से निकलने वाली गर्मी कहाँ जा रही है???? सीधे हमारे वातावरण में ….
रोज़ बन रही गगनचुम्बी इमारते, अनगिनत वृक्षों की बलि ले लेती है।  मिट्टी वाली ज़मीन कंक्रीट वाली फ़र्श में तब्दील होती जा रही है । 
फ़ैक्टरियों से निकल कर अपशिष्ट पदार्थ धड़ल्ले से नदियों में छोड़ा जा रहा है, जहां स्वच्छ जलधारा होनी चाहिए, वहाँ झाग और फेन तैर रह रहा है । 
पानी की किल्लत तो गरीब बस्ती वालों से पूछिये जिन्हें पीने के पानी के लिए घंटों संघर्ष करना पड़ता है। 
ऐसे बहुत से विषय हैं जिनपर रुक कर सोचने की ज़रूरत है।
अब बात ये आती है कि ये सब तो अब आधारभूत आवश्यकता बन चुका है, अब इनके बिना तो रहना ही असंभव है इसलिए मैंने यहाँ कोरोना काल का ज़िक्र किया लेकिन ये भी बात ठीक है की सब कुछ बंद करके घर पर तो नहीं बैठा जा सकता, तो करना क्या चाहिए? कुछ नहीं, बस एक अच्छे और सच्चे नागरिक का कर्तव्य निभाइये जो मैं आप हम सब जानते हैं……

 

सबकी अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ हैं लेकिन सप्ताह के कुछ दिन या जहां तक हो सके दोस्तों को हमसफ़र बनाइए और लाल बत्ती को झुँझलाते हुए नहीं गप्पें लड़ाते हुए पार करिए, पानी की एक-एक बूँद क़ीमती है उसे हरहाल बचाइए आजकल लगभग सभी घरों मे आर ओ फ़िल्टर का उपयोग किया जाता है लेकिन इस प्रक्रिया मे बहुत अधिक मात्रा मे जल व्यर्थ बह जाता है, इस जल को एकत्र करके साफ सफाई मे उपयोग कीजिये, सुबह शाम ए.सी. कूलर से निकल कर थोड़ा खुले आसमान में आइए और मुफ़्त में विटामिन डी पाइए जिसकी कमी बड़ी तेज़ी से हर दूसरे व्यक्ति  को अपनी चपेट में ले रही है, और कई तरह की बीमारियों का  कारण बन रही है।  कचरे के निपटान में हाँथ बटाइए, कंपोस्टिंग करिए, सोलर ऊर्जा का उपयोग कीजिए ,जैविक खेती को बढ़ावा दीजिए, और हरियाली तो जितना मर्ज़ी बढ़ाइए ,जितनी आवश्यकता हो उतनी ही ख़रीदारी कीजिए याद कीजिए अपना बचपन कितने कम कपड़ों, जूतों और खिलौनों में कितना शानदार बीता है
ये सब बहुत ही छोटी छोटी बातें है लेकिन इनपर अमल करके हम कितने बड़े बदलाव ला सकते हैं सोचियेगा ज़रूर…
आप सभी से मेरा करबद्ध निवेदन है, कि जब अवसर मिले जहां भी मिले पेड़ ज़रूर लगायें, पर्यावरण को स्वस्थ रखने में अपनी भूमिका निभायें और माँ वसुंधरा की पीड़ा कम करके पुण्य के भागीदार बनें।

स्नेह पीयूष
संपर्क – [email protected]
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1 टिप्पणी

  1. आदरणीय स्नेह जी! आपके इस लेख को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। वाकई यह बहुत महत्वपूर्ण लेख है। काश! कि लोग समझ पाएँ इसका महत्व और इसकी जरूरत। बागवानी का हमें भी बहुत शौक है। हमारा भी बगीचा छत पर रहा। हमने बड़, पीपल, नीम, शमी,आँवला, बोनज़ाई नीबू और आम भी लगाए हुए हैं।वैसे
    जैविक खाद को लेकर लोग जागरूक हो रहे हैं।
    आपका बगीचा देखकर मन प्रसन्न हो गया।
    इस सच्चाई से तो कोई भी मुँह नहीं मोड़ सकता कि कोरोना ने कितना कुछ सिखा दिया।
    इस बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण लेख के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ।
    सबको इसे पढ़ना ही नहीं समझना भी चाहिये और अमल मे लाने के लिए प्रयास भी करना चाहिये ।अगर किसी के घर में बगीचा नहीं भी है, तो भी जैविक खाद बनाकर बेची जा सकती है क्योंकि वह बिकती है बाजार में ।
    एक बार पुनः आपका शुक्रिया।

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