Thursday, September 19, 2024
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तरुण कुमार का आलेख – केवल उत्सव मनाना काफी नहीं

भारत उत्सवों का देश है। दुनिया में शायद ही कोई देश हो जहां इतने सारे पर्व-त्यौहार और उत्सव मनाए जाते हों। होली, दिवाली, दशहरा, ईद, बकरीद, पोंगल, बिहु, मकर संक्रांति आदि विविध त्योहार व पर्व देश के विभिन्न भागों में मनाए जाते हैं। यहां तो बुजुर्गों की मृत्यु को भी मोक्ष मानकर इसका उत्सव मनाया जाता है। इन सामाजिक उत्सवों के अलावा कुछ सरकारी उत्सव भी हैं जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती जिनका आयोजन तो सरकार करती है परंतु भागीदारी पूरे देश की होती है। 
एक ऐसा ही सरकारी उत्सव हिंदी दिवस है जो मुख्य रूप से भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, उपक्रमों, बैंकों, स्कूलों, कालेजों, सार्वजिनक संस्थानों, आदि में हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि  इसमें समाज के आमजन की भागीदारी कम ही होती है। यह दिन हिंदी भाषा की महत्ता और उसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। 
हिंदी दिवस की शुरुआत भारतीय संविधान द्वारा 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किए जाने के बाद राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा 1953 में की गई थी। इस दिन को विशेष रूप से हिंदी भाषा के प्रति समर्पित किया जाता है और इसके माध्यम से हिंदी को सरकारी कामकाज में और समाज में बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 
हिंदी, भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख भाषाओं में से एक है और संविधान द्वारा 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक प्रमुख भाषा है। हिंदी भारत की राजभाषा है और यह देश की सांस्कृतिक और भाषायी विविधता का प्रतीक भी है। हिंदी का साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है, और इसके माध्यम से हम अपनी संस्कृति, परंपराओं और ऐतिहासिक धरोहर को जान सकते हैं। हिंदी की समृद्ध साहित्यिक परंपरा, जिसमें कबीर, तुलसीदास, सूरदास, प्रेमचंद, और महादेवी वर्मा जैसे महान साहित्यकार शामिल हैं, हमें यह सिखाती है कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का भी हिस्सा है। 
लेकिन क्या भारत का जनमानस हिंदी को लेकर इतना सजग है कि वह हिंदी को अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का हिस्सा माने? क्या हिंदी दिवस का आयोजन एक औपचारिकता से आगे भी कुछ है? जैसे हम बाकी त्योहारों को मनाकर भूल जाते हैं वैसे ही क्या हम हिंदी दिवस को मनाकर भूल नहीं जाते? 
चूंकि इसका आयोजन प्रमुख रूप से सरकारी कार्यालयों में होता है इसलिए बात की शुरुआत केंद्र सरकार के कार्यालयों से करते हैं। हिंदी दिवस के अवसर पर अधिकांश कार्यालयों में हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया जाता है। इस दौरान हिंदी की विभिन्न प्रतियोगिताएं जैसे हिंदी भाषण, निबंध लेखन प्रतियोगिताएँ, कविता पाठ, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अधिकांश अधिकारियों/कर्मचारियों का सरोकार इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने और पुरस्कार जीतने तक ही सीमित होता है। इसी के साथ सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग की इतिश्री हो जाती है। हिंदी दिवस पर यह विचार करने की आवश्यकता है कि अंग्रजी के प्रति जो मोह है, जो आकर्षण है, वह कब तक रहनेवाला है। हिंदी को लेकर जब तक हमारी सोच नहीं बदलती, सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग की स्थिति कमोबेश ऐसी ही रहनेवाली है और भाषाई आत्मनिर्भरता एक दिवास्वप्न बनी रहेगी। 
केंद्र सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग संबंधी आंकड़ों की बात की जाए तो राजभाषा विभाग के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट में केंद्र सरकार के कार्यालयों में ‘क’ क्षेत्र (सभी हिंदी भाषी राज्य) और ‘ख’ क्षेत्र (पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, तथा चंडीगढ़, दमण और दीव तथा दादरा और नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र ) में हिंदी पत्राचार का प्रतिशत औसतन 70-80 दिखाया जाता है जबकि ‘ग’ क्षेत्र (हिंदीतर भाषी राज्य) में हिंदी पत्राचार का प्रतिशत भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा निर्धारित 65 प्रतिशत के आसपास दिखाया जाता है। परंतु क्या सचमुच सरकारी पत्राचार में हिंदी का इतना प्रयोग हो रहा है। उत्तर है, ‘नहीं’। ये आंकड़े वास्तविकता से काफ़ी दूर हैं। 
हिंदी से जुड़े अधिकारियों/कर्मचारियों को अपने कार्यालयों में हिंदी का काम करना धर्मयुद्ध लड़ने जैसा है। उन्हें अन्य अधिकारियों से हिंदी में काम करवाना तो दूर कार्यालय के विभिन्न अनुभागों/प्रभागों में होनेवाले हिंदी में काम का ब्योरा लेने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। यहां हिंदी के काम को दोयम दर्जे का काम माना जाता है और कमोबेश यही स्थिति हिंदी कर्मियों की भी होती है। हिंदी अनुवाद व राजभाषा नीतियों के कार्यान्वयन से जुड़े अधिकारी/कर्मचारी हिंदी वाले कहे जाते हैं। मानो बाकी सारे अधिकारी/कर्मचारी अंग्रेजी वाले हों। स्थिति तब और भी हास्यास्पद हो जाती है जब उत्तर प्रदेश और बिहार से आनवाले अधिकारी/कर्मचारी भी कहते हैं उनकी हिंदी कमज़ोर है; और ऐसा कहते हुए वे गौरवान्वित महसूस करते हैं।  जो लोग हिंदी में पैदा हुए, हिंदी में पले–बढ़े, अपने घरों में सारी बातचीत, सारे काम हिंदी में करते हों और सरकारी काम करने की बात आए तो कहें कि उन्हें हिंदी नहीं आती, सचमुच यह बहुत बड़ी बिडंबना है। जब तक यह सोच बनी हुई है, हिंदी दिवस के आयोजन का कोई मतलब नहीं रह जाता है। हिंदी दिवस एक औपचारिकता बनकर रह जाता है। 
सामान्य जन जीवन में भी हिंदी को अपनाने को लेकर कोई उत्साहवर्धक स्थिति नहीं है। किसान, मजदूर और सामान्य लोग भी अपने बच्चों को अंग्रजी पढ़ाने पर जोर देते हैं। अंग्रजी माध्यम के स्कूल अब गांव-गांव में खुल गए हैं। इसके पीछे मुख्य कारण शायद यह है कि हिंदी हमारे दिल की भाषा तो है परंतु पेट की भाषा नहीं बन पाई है। हमारे प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं। परंतु आत्मनिर्भर भारत का सपना इसके वास्तविक अर्थों में तभी साकार होगा जब देश भाषाई दृष्टि से भी आत्मनिर्भर होगा। 
हिंदी दिवस के आयोजन को लेकर स्थिति चाहे जो भी हो, ऐसा कहना सही नहीं होगा कि 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित किए जाने से लेकर अब तक हिंदी का कोई प्रसार नहीं हुआ। इस दिशा में सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए गए और उनके परिणाम भी अच्छे मिले हैं। बेशक अपेक्षित प्रगति नहीं हुई। परंतु हिंदी की अपनी अंदरूनी शक्ति और सूचना प्रौद्योगिकी व अन्य कई कारणों से हिंदी का प्रसार देश के भीतर व विदेशों में भी उल्लेखनीय रूप से हुआ है। आज दुनिया के सौ से अधिक देशों में हिंदी बोली जाती है और कई देशों में हिंदी शिक्षण और साहित्य सृजन हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया आदि ने भी हिंदी के प्रयोग को पंख लगा दिया है।   
सूचना प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। इस तकनीकी युग में, हिंदी जैसी भाषाएँ भी डिजिटल दुनिया में अपने स्थान को मजबूत कर रही हैं। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी के मिलन ने न केवल भाषा की पहुँच को बढ़ाया है, बल्कि हिंदी भाषियों के लिए अनेक नई संभावनाएँ भी खोली हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिंदी में बहुत सारी डिजिटल सामग्री उपलब्ध हो गई है। इंटरनेट पर हिंदी वेब पेज, ब्लॉग, समाचार साइट्स, और ई-पुस्तकें हिंदी भाषा में उपलब्ध हैं, जिससे हिंदी भाषियों को उनके पसंदीदा विषयों पर जानकारी प्राप्त करने में आसानी हो रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, और यूट्यूब ने हिंदी भाषियों को अपनी बात कहने का एक नया मंच प्रदान किया है। ये प्लेटफॉर्म्स हिंदी में सामग्री साझा करने और संवाद करने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे हिंदी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी ने हिंदी भाषा के सॉफ़्टवेयर और एप्लिकेशन का विकास भी किया है। हिंदी में कीबोर्ड लेआउट्स, ट्रांसलेटर टूल्स, और वॉयस रिकग्निशन सॉफ़्टवेयर ने भाषा की डिजिटल इंटरफ़ेस में वृद्धि की है। इससे हिंदी बोलने वाले लोगों के लिए तकनीकी उपकरणों का उपयोग करना और भी आसान हो गया है। ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाइन शिक्षण सामग्री भी हिंदी में उपलब्ध है। यह हिंदी भाषी छात्रों और पेशेवरों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 
सॉफ्टवेयर, वेबसाइट्स, और मोबाइल एप्लिकेशंस के अनुवाद में हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है। बड़ी कंपनियाँ और स्टार्टअप्स अपनी सेवाओं को हिंदी में उपलब्ध करवा रहे हैं, जिससे अधिक लोगों तक उनकी पहुँच हो रही है। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिंदी में डिजिटल विज्ञापन और विपणन अभियानों ने व्यवसायों को हिंदी भाषी बाजार तक पहुँचने में मदद की है। इससे न केवल व्यवसायों को लाभ हुआ है, बल्कि हिंदी भाषा और उसकी संस्कृतियों को भी व्यापक प्रचार मिला है। भविष्य में, तकनीकी नवाचार जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, और वर्चुअल रियलिटी में हिंदी का अधिक समावेश हो सकता है। इसके माध्यम से हिंदी भाषा के तकनीकी अनुप्रयोगों की वृद्धि और भी तेज हो सकती है, जिससे भाषा का विकास और भी व्यापक होगा।
हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी का संयोजन, भाषा को डिजिटल दुनिया में एक नई पहचान दे रहा है। यह न केवल हिंदी भाषियों के लिए नई संभावनाएँ खोल रहा है, बल्कि यह हमारी भाषाई और सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने में सहायक है। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिंदी का भविष्य उज्जवल और प्रगतिशील प्रतीत होता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से हिंदी भाषा का प्रसार और भी तेज और व्यापक हो सकता है। एआई की तकनीकों का उपयोग करके हिंदी को डिजिटल और वैश्विक स्पेस में एक मजबूत पहचान दिलाई जा सकती है। इससे न केवल हिंदी भाषा की प्रासंगिकता बढ़ेगी, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध करेगा।
हिंदी दिवस पर हम सभी को समझना होगा कि हिंदी भाषा का महत्त्व केवल हिंदी दिवस के दिन मनाए जाने वाले उत्सव तक सीमित नहीं होना चाहिए।  इसके बजाय, हिंदी को हमारी दैनिक जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहिए और इसे व्यवहारिक रूप से अपनाना चाहिए। हम सभी को विचार करना चाहिए कि कैसे हम हिंदी भाषा को और सशक्त बना सकते हैं। यह केवल भाषणों, कविताओं, या निबंध लेखन तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि हमारे संवाद, कामकाज, शिक्षा और विचारों में भी हिंदी को स्थान मिलना चाहिए। 
हिंदी को समृद्ध बनाने और इसका विस्तार करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। स्कूल और कॉलेजों में हिंदी को केवल एक विषय के रूप में पढ़ाना ही नहीं, बल्कि इसका प्रयोग दैनिक जीवन और अन्य विषयों में भी किया जाना चाहिए। प्रौद्योगिकी में हिंदी का उपयोग काफी महत्वपूर्ण है। डिजिटल प्लेटफार्मों पर हिंदी भाषा के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अलावा हिंदी साहित्य, कविता, संगीत, सिनेमा, और थिएटर के माध्यम से भी हिंदी का प्रसार किया जाना चाहिए ताकि इसकी सुंदरता को सामने लाया जा सके।
हिंदी दिवस का सही मायने में उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब हम इसे अपनी संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा मानकर दैनिक जीवन में इसका आदान-प्रदान करेंगे। सिर्फ़ एक दिन का उत्सव मनाने से हिंदी का उत्थान संभव नहीं, बल्कि इसके लिए निरंतर प्रयास और संकल्प की आवश्यकता है। हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारी भाषाएँ और संस्कृतियाँ हमारी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।  हिंदी को उसकी उचित जगह देने और उसकी सराहना करने के लिए हमें लगातार प्रयासरत रहने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस भाषा की मिठास और समृद्धि का आनंद ले सकें। 

तरुण कुमार
सहायक निदेशक (राजभाषा)
ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार
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1 टिप्पणी

  1. आपका पूरा आलेख पढ़ा तरुण जी!आपकी चिंता वाज़िब है। सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मना लेने से या एक पखवाड़ा कार्यक्रम कर लेने से हिंदी का उद्धार नहीं होने वाला है। इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
    यह लेख एक विमर्श को आमंत्रित करता है।
    बहुत-बहुत शुक्रिया आपका इस महत्वपूर्ण लेख के लिये।

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