Tuesday, September 17, 2024
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संपादकीय – इक घर बसाऊंगा, जन्नत के प्लॉट पर

मैक्सिको से एक मज़ेदार ख़बर आई है। वहां एक चर्च है जिसका नाम है ‘चर्च ऑफ़ एंड टाइम’। इसके एक पादरी ने दावा किया है कि उसने वर्ष 2017 में भगवान से बात की और भगवान ने उसे जन्नत में प्लॉट बेचने के लिये कहा है।मैक्सिको में यह चर्च चर्चा के केन्द्र में है। स्वर्ग में रहने के लिये प्लॉट बेच कर लाखों डॉलर कमाए जा चुके हैं। चर्च ने स्वर्ग की ज़मीन का एक ब्रोशर (स्मारिका) भी छपवाया है जिसमें स्वर्ग की एक काल्पनिक फ़ोटो भी लगाई गई है। इसमें बादल दिखाई दे रहे हैं; वहां एक घर भी बना हुआ है; जिसके पीछे सुनहरी किरणें भी दिखाई देती हैं। फ़ोटो में चार लोगों का एक परिवार भी है। यह फ़ोटो इस सोच को भी नकारती है कि स्वर्ग में पैसे का लेनदेन नहीं होता।

मिर्ज़ा ग़ालिब यूं ही दावा करते रहे कि उन्हें जन्नत की हक़ीकत मालूम है। उनके हिसाब से तो, “दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है!” हिन्दी कवि शैलेन्द्र भी चुनौती देते रहे कि “अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!”
दरअसल इस सप्ताह तीन ऐसी ख़बरें सुनने को मिलीं कि मन में बहुत से सवाल उठने शुरू हो गये। पहली ख़बर मिली कि दक्षिण अफ़्रीका में लगभाग तीस लाख साल पुराने नरकंकाल मिले हैं जिन्हें सही ढंग से दफ़नाया गया था। यानी कि तीस लाख साल पहले भी दफ़ानाने कि विधि प्रचलित थी। ये कंकाल वर्तमान मानव से कद में थोड़े छोटे हैं।
मगर मेरे मन में एक और सवाल उठा वर्तमान आसमानी किताबें तो केवल तीन हज़ार साल पुरानी हैं। और हिन्दू भगवान भी तीस लाख साल पुराना तो नहीं ही है। तो उस समय का भगवान कैसा होता होगा! क्या उस काल के मानव ने अपने भगवान का निर्माण किया था या नहीं। वो कैसे जीता था.. क्या पूजा अर्चना करता था? क्या इस मानव के यहां भी जन्नत या जहुन्नम होते थे… क्या उनके स्वर्ग और नरक के यही नाम थे या कुछ और…
दूसरी ख़बर आई हाथरस से… दरअसल सूरजपाल जाटव नामक पूर्व पुलिस कॉन्स्टेबल ने नौकरी छोड़कर भगवान बेचने का नया रास्ता अपनाया और देखते-देखते अपने लाखों भक्त भी बना लिए। अब उसका नाम भी नया था – नारायण साकार हरि। इस कथावाचक को लोग भोले बाबा और विश्व हरि के नाम से भी जानते हैं। दलित समाज से आने वाले इस बाबा के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचने वाले भक्तों में अधिकांश दलित या ओबीसी समाज से हैं। छेड़खानी के जुर्म में सूरजपाल को सज़ा हो गई थी। वह जेल में रहा और जेल से निकलने के बाद लोगों को स्वर्ग की राह दिखाने लगा।  
बाबा के सत्संग में भगदड़ मची और 121 लोगों की मृत्यु हो गई। मृतकों में सौ से अधिक महिलाएं और छ: बच्चे भी शामिल हैं। भगवान का तीसरा मामला सबसे अधिक मज़ेदार है और चुटकीला भी। हुआ कुछ यूं है कि मेक्सिको से एक मज़ेदार ख़बर आई है। वहां एक चर्च है जिसका नाम हैं ‘चर्च ऑफ़ एंड टाइम’। इसके एक पादरी ने दावा किया है कि उसने वर्ष 2017 में भगवान से बात की और भगवान ने उसे जन्नत में प्लॉट बेचने के लिये कहा है। 
मैक्सिको में यह चर्च चर्चा के केन्द्र में है। स्वर्ग में रहने के लिये प्लॉट बेच कर लाखों डॉलर कमाए जा चुके हैं। चर्च ने स्वर्ग की ज़मीन का एक ब्रोशर (स्मारिका) भी छपवाया है जिसमें स्वर्ग की एक काल्पनिक फ़ोटो भी लगाई गई है। इसमें बादल दिखाई दे रहे हैं; वहां एक घर भी बना हुआ है ;जिसके पीछे सुनहरी किरणें भी दिखाई देती हैं। फ़ोटो में चार लोगों का एक परिवार भी है। यह फ़ोटो इस सोच को भी नकारती है कि स्वर्ग में पैसे का लेनदेन नहीं होता। क्योकि इस फ़ोटो में वीज़ा, मास्टरकार्ड, जी-पे, एपल-पे के लोगो भी चिपकाए गये हैं। यानी कि आपको कैश देने की आवश्यकता नहीं है। चर्च का पादरी वैसे भी पैसों को छूना पसन्द नहीं करता… माया को भला क्या छूना ! इतना ही नहीं, इस पादरी ने भगवान के महल के पास खास जगह पर गारंटी से जगह द‍िलाने का भी वादा क‍िया है… बस उसके दाम कुछ अधिक होंगे। 
@tallguytycoon नाम के इन्वेस्टर ने इंस्टाग्राम चर्च के इस बिज़नस पर वीडियो बना कर पोस्ट किया है। इस पोस्ट से पता चलता है कि मेक्सिको का यह चर्च ‘स्वर्ग’ में प्लॉटों की बिक्री की दर की शुरूआत सौ डॉलर (रु 8,345 /-) प्रति वर्ग मीटर से होगी। जितनी बढ़िया लोकेशन और साज-सज्जा, उतने ही अधिक दाम। प्लॉट ख़रीदने में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। जो भी चाहे किसी भी आकार का प्लॉट ख़रीद सकता है। 
धर्म चाहे कोई भी हो. हर धर्म में स्‍वर्ग और नरक की अपनी-अपनी परिभाषा है। हर मज़हब के धर्मगुरुओं से हमने हमेशा यही सुना है कि जो पाप करेगा वो नर्क में जाएगा और पुण्य करने वाला स्‍वर्ग में। मगर इस चर्च ने तो तमाम धार्मिक किताबों को धता बताते हुए एक नई आर्थिक थियोरी की स्थापना कर दी है कि प्लॉट ख़रीदने से स्वर्ग में स्थान पक्का है… कर्म चाहे कैसे भी क्यों न किये हों। बताया जा रहा है कि, कई लोगों ने चर्च पर भरोसा कर अपने मेहनत की मोटी रकम लुटा दी है।
ईसाइयत मामलों के विशेषज्ञों ने इस दावे पर संदेह जताया है और कहा है कि इस प्रकार के दावे अक्सर ईसाइयत के नाम पर धोखाधड़ी और अंधविश्वास फैलाने के लिए किए जाते हैं। वहीं, कुछ अनुयायियों ने पादरी के दावे को सही मानते हुए जमीन खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। कई लोग इसे एक आध्यात्मिक अनुभव मान रहे हैं जबकि अन्य इसे सिर्फ एक प्रचारात्मक चाल बता रहे हैं। प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं इस दावे के पीछे कोई धोखाधड़ी या गलत उद्देश्य तो नहीं है।
यह भी दावा किया जा रहा है कि यह वीडियो वास्तव में एक व्यंग्य की तरह बनाया गया है. इसे मूल रूप से एक फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया था, जिसे हंसी-मजाक वाली चीजें शेयर करने के लिए जाना जाता है। तब से वीडियो को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर किया जा चुका है, जिसे लाखों लोग देख चुके हैं।
सवाल फिर वही खड़ा हो जाता है कि क्या हमें भगवान ने बनाया है या हमने भगवान को अपने रूप में गढ़ा है! हाथरस का हादसा स्पष्ट करता है कि परमात्मा के नाम पर धूर्त लोग कैसे अंधविश्वासी जनता को ठगते हैं… लूटते हैं। मक्का में भीषण गर्मी सो सैंकड़ों मर जाते हैं तो तीर्थयात्रा पर जाते हुए भक्तों को आतंकवादी गोलियों से भून देते हैं। स्वर्ग और नर्क का झांसा दे-देकर हज़ारों वर्षों से इन्सान को बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है। यदि इन्सान तीन लाख वर्ष पहले भी था तो उस समय का भगवान कौन था? यदि इन्सान को दफ़नाया जाता था तो क्या कोई धार्मिक विधि भी अपनाई जाती होगी? भगवान, स्वर्ग और नर्क कुछे ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हमेशा सवाल खड़े होते रहेंगे।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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52 टिप्पणी

  1. आज का संपादकीय
    एक घर बनाऊंगा! आज का संपादकीय देवानंद और साधना पर फिल्माए गए गीत की यादों को ताजा करता है
    एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने
    जिसमें गीतकार ने रूमानियत और
    व्यावहारिकता दोनों को एक साथ प्रस्तुत
    किया था आज विजय शर्मा जी ने संपादकीय में भी वही स्थिति को पाठकों के सामने रखा है मेक्सिको के चर्च वाले पादरी का बयान हो या भारत के तथाकथित बाबाओं का बयान दोनों में एक तथ्य कॉमन है कि मानव को किस प्रकार से मुर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा किया जाए और हो भी क्यों ना विश्व के किसी भी कोने में चले जाइए हर व्यक्ति कहीं ना कहीं इस भावना से ग्रस्त है कि उसे चमत्कार देखने हैं उसे मेहनत का शॉर्टकट ढूंढना है यह बात अलग है कि विकसित देशों की अपेक्षा अपेक्षित या विकासशील देशों में यह भावना ज्यादा प्रधान होती है। विज्ञान भी यहां पानी भरता है।
    आज के मानव को चेताता संपादकीय।
    बधाई आदरणीय संपादक और पूरे पुरवाई परिवार को।

    • भाई सूर्य कांत जी संपादकीय पर सार्थक टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार। गीत देव आनन्द और नूतन पर फ़िल्माया गया था। बस यह नोट कर लें।

  2. इसे देखके यही कह सकते हैं कि धर्म के नाम पर अशिक्षा का अंधकार फैला है, वरना ये मूर्खता के सिवाय कुछ और नहीं हो सकता ।

  3. आज का संपादकीय
    एक त्रुटि हेतु क्षमा याचना।
    विजय शर्मा की जगह आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी पढ़ा जाए।

  4. बेहतरीन। क्या भगवान ने हमें बनाया है या…का बढ़िया विश्लेषण। ज्ञानवर्धक।

  5. if there’s no God let’s create it, मानी हुई बात है कि भगवान, इन्सान ने गढ़ा है और कुछ लोग उसका नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं।
    लेकिन एक पक्ष यह भी है कि लोग भगवान और नर्क के भय से बहुत से अच्छे काम भी कर रहे हैं।
    हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, भगवान और धर्म के भी दो पहलू हैं।
    इस बात से सुकून मिला कि इसाइयों से हिन्दू बेहतर हैं जो स्वर्ग के प्लॉट ना बेंच रहे हैं ना ख़रीद रहे हैं।
    हमें तो चार्वाक दर्शन पर विश्वास है,
    “यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः”
    जितने दिन जिन्दा हैं सुख से जियें, बाकी बाद में देखा जायेगा।
    एक रोचक विषय को मनोरंजक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए बधाई और धन्यवाद।

  6. कलयुग का मध्यकाल आरम्भ हो गया है
    ऐसा लगने लगा ।प्राकृतिक आपदाओं में कमी नहीं है और ये अंधविश्वास मानवता को कहाँ ले
    जाकर छोड़ेंगे ,ईश्वर जाने ।
    धरती पर अब वास्तविक भगवान का अवतरण होना चाहिए ।
    Dr Prabha mishra

  7. बहुत रुचिपूर्ण सूचनाओं भरा संपादकीय तेजेन्द्र जी।अनेक नवीन सूचनाओं का भंडार हैं आप!
    न जाने मानव कब से धरती पर हैऔर न जाने उसने कितने भगवानों को जन्म दिया होगा? हर समय भगवान के नाम पर कुछ न कुछ नया शगूफ़ा होता ही है।
    अब घर खरीदने के लिए धन की आवश्यकता भी तो होगी।
    मुझे एक बड़ी मज़ेदार घटना याद आ गयी। आपके यूके में ही भारत के एक तथाकथित महाराज ने मुझसे कहा था कि अच्छा बोलती हो, बस थोड़ा परिधान में परिवर्तन हो जाए तो बहुत भक्त मिल जाएंगे।
    काश! कुछ बुद्धि होती तो शायद कुछ धन ही कमा लिया होता।हाँ, एक उपन्यास के पात्र ज़रूर बन गई वो महान आत्मा!
    अब तो बरसों पहले रेत हाथ से फिसल चुकी। अब पछताए होता क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!!
    आनंद आ गया संपादकीय पढ़कर।

    बधाई व अभिनंदन आपको!

    • ज़बरदस्तम प्रणव जी… अंग्रेज़ी में कहते हैं ना… It is never too late… प्रयास जारी रहें।

  8. किसी भी जगह धर्म को हथियार बनाकर कुछ भी करवाया जा सकता है। धर्म में तर्क करने का प्रश्न नहीं होता। तभी लोग अपने विवेक को खो देते हैं। ऐसे में आप तीन प्रश्नों के माध्यम से तीन अलग जगहों की घटनाओं का उल्लेख कर भगवान या स्वर्ग नर्क के होने न होने की बात उठा रहे हैं। बढ़िया संपादकीय।

  9. हा हा हा, अब ये मुँह और मसूर की दाल! उस ज़माने में कुछ कर गुज़रते संपादक श्री तो बात और थी।
    आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद

    • आज ही बनाई मैंने मसूर की दाल… फिर शीशे में चेहरा देखा… इतना बुरा नहीं था…!!!

  10. आज का संपादकीय अद्भुत है…। लोग चाहे कितनी ही आधुनिक हो जाए… स्वर्ग और नरक के जाल में फंस ही जाते हैं। आपने हर धर्म का वास्तविक रूप को दिखाया है। किंतु ये सब एक प्रकार का छल है जानते हुए भी लोग दलदल में पैर रखते ही हैं।शिक्षित और विकसित समाज का फिर क्या लाभ यदि हम अपना कर्म और मानवीय धर्म भुलकर ऐसे अंधविश्वास में फंस जाए।

    आजका संपादकीय सम्पूर्ण रूप से मार्गदर्शन किया है..
    आपका धन्यवाद…..

    • अनिमा जी, आपको संपादकीय पसंद आया, हार्दिक आभार। आप अपनी व्यस्त दिनचर्या में से संपादकीय पढ़ने और टिप्पणी करने के लिये समय निकाल पाती हैं, हमारे लिये महत्वपूर्ण है।

  11. इस संपादकीय टिप्पणी के लिए आपको बधाई।
    भगवान को तो नहीं देखा। पर आए दिन कोई न कोई नया व्यक्ति स्वयं को भगवान की श्रेणी में घोषित कर देता है। यह अवश्य देखते हैं। स्वर्ग और नरक हमारी अपनी खोज हैं। इसमें दो राय नहीं। तो भगवान भी लाजिमी तौर पर होंगे ही।
    और स्वर्ग में हर रोज़ लाखों लोग जा रहे हैं तो वहाँ आवास की समस्या भी होगी।
    हम तो कहेंगे कि शहरी विकास मंत्रालय वहाँ के लिए एक स्वर्ग विकास प्राधिकरण गठित करे, ताकि सभी को उचित मूल्य पर सर्व सुविधा युक्त आवास मिल सकें।

    दूसरे, यदि चर्च कर सकता है तो सनातनी क्यों नहीं।
    हम तुम लग कछु घाट?

  12. सुप्रभात. नमस्कार..आपका संपादकीय चौंकाने वाला है।इस देश.विश्व को .समाज को जितनी कूपमण्डूकता.और विवाद धर्म से मिला है.वह सभी जानते हैं।हमारे समाज में यदि स्वर्ग की अवधारणा है तो केवल इसलिए कि हम कोई गलत काम करने से डरें..मानवता के लिए जियें.।इसका अर्थ कदापि नहीं था कि धर्म को एक व्यापार. एक धंधा.और कुव्यसनों का केंद्र ही बना दिया जाये।आपकी बात बहुत प्रभावित करती है कि धर्म कोई भी हो स्वर्ग नरक की सबकी अलग परिभाषा है।बिल्कुल सही है.इस मायने में भारत हो या विदेश. सोच और विचारधारा में कुछ अपवाद छोडकर कोई अंतर नहीं है।मैक्सिको की घटना हास्यास्पद तो है ही लेकिन हमारी सोच को दिग्भ्रमित करने वाली विचारधारा को जन्म देने के लिए चिंतित भी करती है।हिन्दू समाज में.अंतिम संस्कार के बाद घरों में गरुण पुराण का पाठ सुना जाता है जिसमें जीव की नरक और स्वर्ग तक पहुंचने की यात्रा का विशद वर्णन है.जिसमे बुरे कर्म करने वालों को सजा मिलेगी और सत्कर्म करने वालों को स्वर्ग। शायद समाज को सही मार्ग निर्देशित करने के लिए ऐसा प्रावधान किया गया होगा।इसलिए स्वर्ग के नाम पर यह कार्य व्यापार केवल ढोंग और दिखावा है।स्वर्ग कहीं और नहीं..हमारे दिल में हैं।हमारे सद्विचार और कुविचार ही स्वर्ग-नरक को जन्म देते हैं।बहुत ही सुन्दर. सार्थक. सारगर्भित और पथ प्रदर्शक भी है आजका संपादकीय..हार्दिक बधाई और अशेष शुभ कामनाए भाई..आपकी सृजन यात्रा चलती रहे.और हमारा मार्गदर्शन भी करे।सादर प्रणाम।
    पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर

  13. बहुत से लोग ऐसी चीजें खरीदने व बेचने में विश्वास रखते हैं। जो वास्तव में है हीं नहीं। होता हीं नहीं
    कई बार सब कुछ जानते बूझते भी ऐसी वस्तुएँ खरीदने की विवशता आ जाती है जो वास्तव में होती हीं नहीं।
    इस बात को मैं एक उदाहरण से स्पष्ट करना चाहता हूँ।
    क्योंकि ऐसी चीजें कई बार स्वयं मैंने भी खरीदी है या कह सकता हूँ कि मुझे भी खरीदना पड़ा है।
    विश्व का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क भारतीय रेल वेटिंग लिस्ट टिकट बेचता है। वह भी कई कई केटेगरी का वेटिंग लिस्ट टिकट, जो कि वास्तव में होता हीं नही है। आश्चर्य कि बात यह कि मेरी हीं तरह लाखों रेल यात्री चार-चार महिने पहले इसे बड़ी आशा एवं विवशता से खरीदते हैं। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह कि इस वेटिंग लिस्ट टिकट पर लाखों यात्री यात्रा भी करते हैं। यह वेटिंग लिस्ट टिकट यदि फाइनल चार्ट निकलने तक हीं वैलिड रहता। फाइनल लिस्ट निकलते हीं ऑनलाइन वेटिंग टिकट की तरह सभी वेटिंग टिकट स्वतः रद्द हो जाते तो फिर भी इसका कुछ औचित्य समझ में आता। परंतु फाइनल चार्ट निकलने के बाद भी रेल्वे टिकट खिड़की से लिया गया टिकट वैलिड रह जाता है।
    परिणाम रिजर्व बोगियों में यात्री अनाज की बोरियों की तरह लद जाते हैं। वे स्वयं परेशान होते है वह तो होते हीं है। कन्फर्म टिकट वाले यात्रियों के लिए भी एक भारी परेशानी पैदा करते हैं। पैसे खर्च कर रिजर्व किये हुए अपनी हीं सीट पर उनका हिलना डुलना यहाँ तक कि उनके शौचालय आने जाने का रास्ता सब बंद हो जाता है।
    स्वर्ग में लोकेशन के हिसाब से प्लाॅट बेचने का धंधा मैक्सिको ने भले हीं नया शुरु किया हो। परंतु भारत का यह सबसे प्राचीन व्यवसाय है। मृत्युपरांत महापात्र एवं पुरोहित ब्राह्मणों को दिया गया दान दक्षिणा एवं खिलाया गया स्वादिष्ट भोजन पकवान स्वर्ग में सीधे मृतक तक पहुँचता है ऐसी प्राचीन भारतीय हिन्दू धार्मिक मान्यता है। इतना हीं नहीं परलोक सुधारने के नाम पर भारी दान दक्षिणा चुकाकर अपने लिए भी स्वर्ग में सुरा सुंदरी सुख ऐश्वर्य इत्यादि की आग्रीम व्यवस्था करवा देने का प्रावधान भारत में प्राचीन काल से ही उपलब्ध है। ऐसे में नये नये चतुर बने मैक्सिको वासी स्वर्ग में ख्याली प्लाॅट चाहे जितने भी खरीद लें। रहेंगे वहाँ भी प्रजा बनकर हीं। क्योंकि इन्द्र का दरबार तो हम भारतीयों ने सदियों पूर्व हीं आरक्षित करवा लिया है। हम से आगे भला वे कैसे निकल सकते हैं? विशेष कर उन क्षेत्रों में जहाँ हम भारतीयों का विशेषाधिकार एवं विशेष दक्षता है। अपने अपने क्षेत्रों में माहिर दुनिया में चाहे कोई भी हो। हमारे क्षेत्रों में हमसे आगे निकल जाना इतना आसान है क्या??

  14. आज की संपादकीय पढ़कर बहुत आनंद आ गया।
    बेवकूफी की पराकाष्ठा है लोग जानते हुए समझते हुए भी इंसान को भगवान समझने लगते हैं और उनकी पूजा करने के लिए चले जाते हैं इसके पहले जाने कितने बाबाओ को जेल की हवा खानी पड़ रही।
    फिर भी लोगों की अकल घास चलने चली जाती है। अभी भी इतने बड़े हादसे के बाद भी अकल नहीं आएगी जानते ूझते हुए भी स्वर्ग में घर बनाने चले जबकि जानते हैं वहां जाने का कोई रास्ता नहीं है ।किसी न किसी माध्यम से लोग जनता को लूट रहे हैं और जनता बेवकूफ बनती जा रही है।
    इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आदरणीय आपने संपादकीय रची है हार्दिक बधाई आपको

    • प्रभु पृथ्वी के हर हिस्से पर इन्सान ने अपना-अपना भगवान गढ़ा… यही है सच्चाई।

  15. आज का आपका सम्पदाकीय इस पृथ्वी पर रहे लोगों की कुटिल बुद्धि की पराकाष्ठा का अनुपम उदाहरण है जो अपनी कुचालों द्वारा मासूम लोगों को ठगने का कार्य कर रहे हैं। ईश्वर है या नहीं, यह प्रश्न तो सदियों से मानव मन को झकझोरता रहा है लेकिन इतना अवश्य है एक सर्वशक्तिमान शक्ति इस भूमण्डल पर अवश्य है जो इंसान को बुरे कर्मो से रोकती है जो इस शक्ति को नहीं मानता वही स्वयं शक्तिमान बनकर दूसरों को बेवकूफ बनाता है।
    साधुवाद आपको।

  16. Your Editorial of today gives us hitherto unknown or little known information about a group of people claiming to ascertain the stay in heaven of those who will purchase a house from them.
    Interestingly you have pointed out how every religion promises us heaven only on the basis of our good deeds n faith.
    Whereas in this case it depends on our purchasing capacity to find a place there.
    A thoroughly thought-provoking issue.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  17. गधे केवल काबुल में ही नहीं पाये जाते। इनका दुनिया में चौतरफा वितरण है।

  18. सर, इस संपादकीय ने तो बोलती बंद कर दी.. अंधविश्वास किस हद तक मनुष्यों के दिमाग़ से खेल सकता है इस लेख से साफ़ झलकता है…मैंने तो अपने पापा-माँ को इस जाल में फँसते हुए देखा है और उनको बाहर निकाला है। माँ मेरी प्रिंसिपल थीं और पापा SBI में Chief Manager.. शायद ये वशीभूत कर लेते हैं..बहुत सुन्दर लेख

  19. इस संपादकीय को पढ़कर एक बात तो बिलकुल स्पष्ट हो गई है कि मूर्खता का किसी भी धर्म या पंथ से कोई नाता नहीं है। मूर्ख बनाकर अपनी दुकान चलाने वाले भी हर देश_हर दिशा में दिख जाते हैं।
    इंसान इतना आलसी और नासमझ है कि शॉर्ट कट लेकर सारे सुख पा लेने की जुगत में इन तथाकथित धर्म बाबाओं को भगवान मान पूजने लगता है और ये बाबा लोग भी अच्छे से इन लोगों को भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक रूप से दीवालिया बनाने में जुट जाते हैं।
    स्वर्ग में सशरीर प्रवेश दिलवाने वालों के लिए क़ानूनी सजा का प्रावधान भी इनके भक्तों की संख्या को कम नहीं कर सकता है।
    रुचिकर संपादकीय के लिए साधुवाद सर!

    • प्रिय रचना, अपने पहले ही वाक्य में आपकी टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है। हार्दिक आभार।

  20. धर्म और ईश्वर ऐसे विषय हैं जिन पर लोग सिर्फ आस्था रखते हैं तर्क नहीं करते । तर्क करने वाले नास्तिक या घोर पापी कहलाये जाते हैं । बस इसी को लोग हथियार बना कर लोगों को बेवकूफ बनाते रहते हैं

  21. अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राष्ट्र मेक्सिको में इस प्रकार की धर्मान्धता व्याप्त है,जानकर आश्चर्य हुआ…..क्योंकि भारत में तो इसका चलन आम ही है।लगभग सम्पूर्ण साक्षर राष्ट्र के नागरिकों में धर्म को लेकर इस प्रकार की सोच व्याप्त है, तो जहां कम साक्षरता दर है, उन राष्ट्रों के नागरिकों की इस संदर्भ में तो बात ही क्या की जाए? जीते जी सत्कर्मों को ना कर, धन के उपयोग से धर्म प्रदत्त स्वर्ग में रहने का अधिकार भी अब उन्हीं को प्राप्त होगा जो आर्थिक रूप से संपन्न होंगे इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ की सीधे सच्चे लोग, जो धर्मानुसार स्वर्ग के वास्तविक अधिकारी हैं उनके लिए स्वर्ग की राह पूर्णतः दुष्कर है। समाज में धर्म की मान्यता ही इसीलिए बनाई गई जिससे अराजकता ना व्याप्त हो, मनुष्य के गलत कार्यों पर अंकुश लग सके और पुण्य के माध्यम से स्वर्ग का मार्ग और पाप करने से नरक का भय कायम किया गया, परंतु इस आर्थिक थ्योरी ने तो वास्तव में यह सिद्ध कर दिया की कलयुग में मनुष्य ही धर्म का ठेकेदार है और ईश्वर का निजी सहायक भी और जहां तक ईश्वर की व्याप्ति का प्रश्न है, मेरे विचार से उसके लिए तो तुलसीदास जी कि यह पंक्तियां सर्वथा सार्थक है, “हरि अनंत हरि कथा अनंता”
    महत्वपूर्ण तथ्यों व मानक स्रोतों, संदर्भों तथा उपयुक्त उदाहरण से संपृक्त आपका यह संपादकीय अत्यंत रोचक और साथ ही विचारणीय भी है।
    साधुवाद

  22. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    मैक्सिको से आई मजेदार खबर वाकई मज़ेदार ही लगी!वहाँ के चर्च का नाम ‘चर्च ऑफ़ एंड टाइम’तो और भी ज्यादा मजेदार लगा। इसके एक पादरी ने 2017 में भगवान से बात की और भगवान ने उसे जन्नत में प्लॉट बेचने के लिये कहा और उसे 2024 में याद आया? मतलब 7 साल तक प्लानिंग चलती रही दिमाग में ?पूरा नगर बसाना है तो फिर नक्शा वगैरा बनवाने में टाइम लगा 7 साल का ! तभी तो एक फोटो भी दे दी साथ में!!
    भारतीयों को यह भ्रांति है कि भारत के अलावा और बाहर के जितने भी देश हैं सब ज्यादा……..
    हैं। खाली स्थान में आप कुछ भी भर सकते हैं अपने हिसाब-किताब से।
    धर्मांधता भारत से ज्यादा तो बाहर नजर आई।
    इतिहास में पढ़ा हुआ पोप का साम्राज्य याद आ गया जो स्वयं को भगवान के दूत बताते थे।
    भगवान के नाम पर लूट का एक नया बिजनेस है। जैसा कि यहाँ संपादकीय में भी दर्ज है सूरज पाल! पता नहीं लोगों को भीड़ इतनी पसंद क्यों है मोबाइल में और टीवी में भी तो सब कुछ देखा जा सकता है। अपन तो तीर्थों को भी यहीं से प्रणाम कर लेते हैं।

    संपादकीय हास्यास्पद लगा तेजेन्द्र जी! अविश्वसनीय भी। क्या पैसे वाले लोग इतने अधिक बेवकूफ होते हैं!!!!!!!!!! मेहनत की कमाई इस तरह बर्बाद करते हैं!
    लगता है ईश्वर ने दिमाग वाले माले में कुछ घाल- मेल कर दी है।
    सच कहें, तो बहुत दुख होता है।जो ईश्वर ताकत देता है, जिसका भय गलत काम करने से रोकता है जिसका संदेश और सबब एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है, उसे लोगों ने मजाक बना लिया है।
    क्या ही कहा जाए ईश्वर से प्रार्थना है कि सबको सद्बुद्धि दे।
    ईश्वर से ज्यादा बेचारा इस संसार में कोई नहीं लगता। चाहे वह किसी भी धर्म से हो।
    उसने तो अपने लिए कभी कुछ चाहा ही नहीं।आप दूसरों का भला करके भी उन्हें खुश कर सकते हैं। न जाइए मंदिर में, मत कीजिए पूजा। पर एक जरूरतमंद की मदद कर दी तो भी भगवान आपसे खुश रहेगा। सच पूछा जाए तो भगवान को कोई समझ ही नहीं पाया। मोहम्मद साहब, गुरु नानक जी, ईसा मसीह, महावीर, बुद्ध और चाहे अपने ही कोई भी भगवान क्यों ना हों, सब लोग एक ही बात करते हैं दया, करुणा और परोपकार की। और लोग अपने हिसाब से भुनाते हैं।
    जैसी जिसकी सोच।

    भक्ति में भाव का कितना महत्व है इसे इस तरह समझ सकते हैं –
    रैदास जाति से चमार थे। उनके समय में छुआछूत का जोर था। उनकी झोपड़ी गांँव से बाहर थी।वे नियमित गंगा स्नान के लिए जाया करते थे।गंगा माँ के परम भक्त थे।वे रोज एक माला गंगा माँ को चढ़ाते थे।
    एक बार किसी कारणवश वे गंगा स्नान को न जा सके। किसी राहगीर को गंगा स्नान के लिए जाते हुए देखकर उन्होंने उससे निवेदन किया कि,” भैया! मेरी तरफ से यह माला गंगा मैया को दे देना। और हाथ में ही देना और कहना कि रैदास ने भिजवाई है।फेंकना मत। साथ में यह भी कहा कि मेरी कठौती के लिए थोड़ा सा गंगाजल भी लेते आना। जूते बनाने के लिए जरूरत पड़ती है।
    उसने माला ले ली लेकिन मन ही मन हँसी उड़ाई कि गंगा मैया हाथ में लेंगी इस चमार की माला। और उसे इस बात पर भी रोष था कि गंगाजल का उपयोग चमड़े के जूते बनाने में किया जाए। वह बड़बड़ाते हुए चला गया।
    उसने जैसे ही माला गंगा जी में फेंकी एक हाथ गंगा जी से बाहर निकला और उसने उस माला को झेल लिया। थोड़ी देर बाद वह हाथ फिर से निकला ।उसमें एक बेशकीमती मोती की माला थी और आवाज आई कि यह रैदास को दे देना। कहना गंगा ने दिया है।
    वह आश्चर्यचकित था। माला इतनी सुंदर थी कि उसने रख ली। विचार किया कि राजा को दूँगा रानी के लिए तो राजा प्रसन्न होकर इनाम देंगे।
    लौटने पर रैदास ने पूछा कि तुमने गंगा मैया को हाथ में माला दी थी ना? तो उसने कह दिया हाँ! हाथ में ही दी थी। फिर उसने पूछा कि उन्होंने मेरे लिए कुछ दिया? तो उसने मना कर दिया कि नहीं कुछ नहीं दिया। रविदास शांत हो गये। फिर उसने कहा कि मैं तुम्हारा गंगाजल लाना भी भूल गया।
    लेकिन उसकी कठौती गंगाजल से अपने आप भर गई थी। उसने जवाब दिया कोई बात नहीं भैया तुम नहीं लाए लेकिन गंगा मैया ने खुद मेरी कठौती भर दी।
    और तभी मुहावरा बना *मन चंगा तो कठौती में गंगा*
    इसी तरह रसखान ने भी कृष्ण के दर्शन किये। नरसिंह जी तो सूरदास थे। उनकी गरीब बेटी के लिए तो मायरा लेकर कृष्ण भगवान आ गए थे।और पूरे गाँव के लिए लाए।
    भगवान हैं। अपने में सामर्थ्य भी तो हो उनसे सामना करने के लिये।
    उस माला की कहानी आगे तक है पर अभी नहीं।
    उन्हें तो एक बार इसीलिए प्रताड़ित किया गया कि इनके कारण ही गाँव में वर्षा नहीं हो रही। और फिर यह हुआ कि उनके घर पर वर्षा हो रही थी व पूरे गाँव में सूखा पड़ा था।
    हमारे मन का दर्पण साफ होगा तो उसमें सब अच्छा-अच्छा दिखेगा। फिलहाल तो इतना ही।
    अब जीते रहे तो देखते हैं कि जन्नत के प्लाट पर कौन-कौन जाता है और पहुंँच भी पाता है कि नहीं। पहले चाँद और मंगल पर तो बस जाएँ जाएँ।
    वैसे आपने कई मुद्दे बड़े सटीक उठाए हैं। आपने जिन प्रश्नों को संदर्भित किया है ,जो आपके दिमाग में उठे, वह भी बहुत जायज हैं।
    अंत में एक बात और एक बहुत पुराना गाना अपने याद दिला दिया “तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा”
    तेरे घर के सामने पिक्चर हमने राँची में देखी थी उस समय हम पाँचवी में थे और अपने बड़े पिताजी से जो हमारे बड़े भाई थे। उनके लिए लड़की देखने राँची गए थे ।वहाँ देखी थी। शायद सन् 62 की गर्मियों की बात है। हीरोइन की तो याद नहीं लेकिन हीरो देवानंद थे। देवानंद हमारे प्रिय हीरो में नहीं थे उस समय।
    मजेदार संपादकीय के लिए बधाई आपको। कभी-कभी हास्य- व्यंग्य के लिए भी कुछ होना चाहिए। पर फिर भी कहीं ना कहीं यह मसला गंभीर लगा। ठगी का एक नया रूप और धर्म के ठेकेदारों का नया व्यापार।
    एक और बेहतरीन संवाद की के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको।

    • आदरणीय नीलिमा जी, आपने तो इतने विस्तार से संपादकीय को समझाया है और निजी घटनाओं से जोड़ा है कि आभार बहुत छोटा शब्द रह जाएगा।

  23. आदरणीय तजेन्द्र जी,
    आपने अपने संपादकीय को आरंभ से अंत तक रोचक बनाए रखा है। परंतु साथ ही साथ यह संपादकीय बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठा रहा है, “भगवान ने हमें बनाया या हमने भगवान को?”
    धर्म चाहे कोई भी हो कुछ गलत नहीं बताता परंतु यह कथाकथित धर्म गुरु हमारी भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं। लेकिन इसके लिए भी तो हम ही दोषी हैं । हम क्यों उन्हें अपनी भावनाओं से खिलवाड़ करने देते हैं? कैसे और कौन बदलेगा यह सब?
    पठनीय और विचारणीय संपादकीय बधाई स्वीकारें।

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