Tuesday, September 17, 2024
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संपादकीय – महिलाओं के विरुद्ध पाशविक हिंसा

ब्रिटेन और बांग्लादेश में राजनीति और सांप्रदायिक्ता को लेकर हिंसा हुई जबकि कोलकाता में पाशविक हिंसा पहले हुई और राजनीति बाद में शुरू हुई। यदि इस केस पर ईमानदारी से कार्यवाही की गई होती तो यह तो सीधा सादा ‘ओपन एण्ड शट’ केस था। मगर शुरूआत से ही इस मामले में अस्पताल के स्टाफ़ और पुलिस ने कुछ इस तरह के कदम उठाए कि शक की सुई के दायरे में तमाम लोग ख़ुद-ब-ख़ुद घिरते आए।

मित्रो, हमने सोचा था कि भारत के 78वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर भारतवासियों को बधाइयां देंगे और इसी विषय पर संपादकीय लिखा जाएगा। मगर 
अपने 27 जुलाई का हमारा संपादकीय ब्रिटेन में प्रवासी हिंसा और दंगों पर संपादकीय पर आधारित था। उसके बाद से ब्रिटेन में उनकी प्रतिक्रिया में हिंसा और प्रदर्शनों में बढ़ोतरी हुई है। प्रतिक्रिया करने वालों को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केयर स्टॉमर ने दक्षिणपंथी ठग कहा है। मगर सच्चाई यह है कि अब नारे लगने लगे हैं कि जो प्रवासी ब्रिटेन के कल्चर के साथ तालमेल नहीं बैठा सकते वे अपने-अपने देश वापिस चले जाएं।
इधर ब्रिटेन में हिंसा अपना जलवा दिखा रही है तो वहीं बांग्लादेश में तो शेख़ हसीना का तख़्ता ही पलट गया। वहां की हिंसा ने अपना रौद्र रूप दिखाया तो उसकी तपिश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर ज़ुल्म होने लगे। भारत के पड़ोसी देशों में राष्ट्र स्तर पर हिंसा और दंगे हो पाते हैं क्योंकि ये देश आकार में छोटे हैं। मगर भारत में अलग-अलग राज्यों में दंगे समय-समय पर अपना सिर उठाते रहते हैं। सांप्रदायिकता का जुनून सड़कों पर अपना विकृत चेहरा दिखाता रहता है।
इसके साथ ही साथ कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज की एक 31 वर्षीय जूनियर डॉक्टर के साथ उसी के अस्पताल में गैंग-रेप हो जाता है। उसकी हत्या पाशविक ढंग से कर दी जाती है और उसके बाद पूरे भारत के तमाम डॉक्टर सड़कों पर निकल आते हैं और अपनी सुरक्षा को लेकर अपनी बात सत्ताधीशों तक पहुंचाना चाहते हैं। 
कहा जाता है कि हिंसा में पुरुष केवल मरते हैं मगर औरतें पहले बेइज्ज़त होती हैं उसके बाद मरती हैं। उनका बलात्कार होता है… सामूहिक बलात्कार होता है… शरीर नोंचा खसोटा जाता है… फिर हत्या कर दी जाती है। औरत की उम्र की कोई परवाह नहीं होती वह बच्ची भी हो सकती है और प्रौढ़ा भी। 
ब्रिटेन और बांग्लादेश में राजनीति और सांप्रदायिक्ता को लेकर हिंसा हुई जबकि कोलकाता में पाशविक हिंसा पहले हुई और राजनीति बाद में शुरू हुई। यदि इस केस पर ईमानदारी से कार्यवाही की गई होती तो यह तो सीधा सादा ‘ओपन एण्ड शट’ केस था। मगर शुरूआत से ही इस मामले में अस्पताल के स्टाफ़ और पुलिस ने कुछ इस तरह के कदम उठाए कि शक की सुई के दायरे में तमाम लोग ख़ुद-ब-ख़ुद घिरते आए।
कल्पना की जाए कि एक महिला 36 घंटे की ड्यूटी के बाद अस्पताल के ही सेमिनार रूम में रात को आराम करने के लिये लेट जाती है और वो रात उसके जीवन की आख़री रात बन जाती है।  बताया जा रहा है कि रात को ग्यारह बजे पीड़िता ने अपने घर फ़ोन पर बात की और घरवालों को बताया कि वह ठीकठाक है। सुबह सात बजे उसके घर वालों को अस्पताल से फ़ोन जाता है कि पीड़िता अप्रकृतिक तरीके से घायल हो गई है। उसके आधे घंटे के बाद फिर से फ़ोन किया जाता है कि पीड़िता ने आत्महत्या कर ली है।
पीड़िता के माता पिता अपनी एक पड़ोसन के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। उस पड़ोसन ने बताया कि तीन घंटे तक उन्हें पीड़िता का शव देखने नहीं दिया गया। जब अंततः उन्हें अनुमति दि गई तो पिता ने अपनी बेटी की नग्न लाश देखी। उसके गुप्तांग से ख़ून बह रहा था। उसकी टांगें दोनों ओर से खींच कर नब्बे डिग्री के कोण पर हो गई थीं जैसे किसी पशू ने उन्हें खींच दिया हो। उसका चश्मे का शीशा टूट कर उसकी आँखों में धंस गया था और आँखों में से भी लहू बह रहा था। ये सब उस मजबूर के जीवन के अंतिम पलों का चिल्ला चिल्ला कर बयान कर रहा था। 
आख़िर कॉलेज का प्रिंसिपल और अन्य स्टाफ़ क्या छिपाने का प्रयास कर रहा था। किसे बचाने के लिये इतना झूठ बोला जा रहा था। जब प्रिंसिपल के विरोध में छात्र उठ खड़े हुए तो ममता बनर्जी सरकार के पास उसे पदच्युत करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। उसे इस पद से हटाए अभी आठ घंटे भी नहीं हुए थे कि उसे दोबारा एक उतने ही बड़े संस्थान का प्रिंसिपल नियुक्त भी कर दिया गया। इससे एक बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि संदीप घोष के बहुत ऊंचे तक संबंध हैं। उसे हिला पाना इतना आसान नहीं है। 
मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल के उपाधीक्षक अख़्तर अली ने पूर्व प्रिंसिपल पर आरोप लगाते हुए  कहा, ”संदीप घोष से गंदा आदमी मैंने अपने जीवन में नहीं देखा है। बहुत ही करप्टेड आदमी है। स्टूडेंट को फेल करना, हर चीज में 20% कमीशन लेना… मतलब आरजी कर में जो भी काम होता था पोस्टिंग हो, हाउस स्टाफ शिफ्ट हो, हर जगह वह पैसा खाता था। कई छात्रों को शराब पिलाता था।” 
अख़्तर अली ने यह भी कहा कि संदीप घोष ने माफ़िया राज फैला रखा था। उसकी सिक्योरिटी के लिए 20 आदमी रहते थे। मैंने फिल्म स्टारों को बाउंसर लेकर चलते हुए देखा है लेकिन किसी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को अपने जिंदगी में नहीं देखा। वह बहुत पावरफुल है। मैंने साल 2023 में उसके ख़िलाफ़ शिकायत की थी, लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ।”
भारत के संविधान के अनुसार लॉ एण्ड ऑर्डर राज्य की ज़िम्मेदारी है। भारत भर ने देखा कि यदि राज्य सरकार नहीं चाहती तो सुशांत सिंह राजपूत की हत्या के भी सभी सुबूत मिटाए जा सकते हैं। उसके बाद सी.बी.आई. हाथ मलती रह जाती है। कोलकाता में भी यही प्रयास साफ़ दिखाई दे रहे हैं। न जाने ‘निर्ममता बनर्जी’ की सरकार किसे बचाने का प्रयास कर रही है कि सुबूत मिटाने के लिये पहले उस कमरे की दीवारें तोड़ कर मरम्मत का काम शुरू कर दिया गया और अंततः पांच हज़ार गुण्डों की फ़ौज भिजवा कर पूरे अस्पताल के फ़र्नीचर, उपकरण, सामान तोड़फोड़ डाले। 
पूरे देश में डाक्टर हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे थे। मगर केवल कोलकाता में गुण्डों ने शांतिप्रिय छात्रों को धमकाने के चक्कर में घृणित हिंसा का सहारा लिया। अस्पताल की एक युवा डॉक्टर विशाखा ने उस रात की घटना को सिलसिलेवार तरीके से बताते हुए कहा, “हम मंच पर ही थे जब अस्पताल के मुख्य गेट के बाहर कुछ लोग जमा होने लगे. फिर भीड़ बढ़ती चली गई और भी ज़्यादा लोग जमा होने लगे। हमारे साथियों ने हम सब महिला डॉक्टरों को मंच से चले जाने को कहा। तभी उन्हें हंगामे और तोड़फोड़ की आवाज़ें सुनाई देने लगीं.”
भारत में कई प्रकार के बलात्कार होते हैं जैसे कि कांग्रेसी बलात्कार /  भाजपाई बलात्कार  / समाजवादी बलात्कार  / तृणमूल बलात्कार  / डीएमके बलात्कार /  नेशनल कांफ्रेंस बलात्कार  / आम आदमी पार्टी बलात्कार। पीड़िता के साथ हमदर्दी वही करता है जिसने उसकी जाति/धर्म के हिसाब से चश्मा पहन रखा होता है। चश्मे ऐसे हैं कि किसी को भी अपनी पार्टी का बलात्कारी दिखाई ही नहीं देता। कोलकाता की डॉ. अभया के सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या पर ‘सेक्युलर सन्नाटा’ शायद सबसे अधिक शोरीला है। 
ममता बनर्जी वाम और राम (वामपंथी दल और भाजपा) को हिंसा के लिये दोषी ठहरा रही है और उसने भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को गिरफ्तार भी कर लिया है। मगर टीवी डिबेट में नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी वामपंथी दल के प्रवक्ता उछल-उछल कर ममता का समर्थन कर रहे हैं। 
टीएमसी पार्टी के पूर्व सांसद एवं पार्टी प्रवक्ता शांतनु सेन ने भी आरजी कर अस्पताल पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था, “मैं असमंजस में हूं कि अपनी बेटी को आरजी कर में नाइट ड्यूटी पर भेजूं या नहीं। मैं एक पूर्व आरजी कर हूं… मेरी बेटी वहां पढ़ती है… पिछले कुछ वर्षों में आरजी कर में चिकित्सा शिक्षा में गिरावट आई है।” मगर उन्हें यह बयान देना महंगा पड़ गया। टीएमसी ने उन्हें पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया। 
कोलकाता हाई कोर्ट ने वहां की पुलिस, कॉलेज प्रशासन और ममता सरकार पर बहुत कठोर टिप्पणियां की हैं। हाई कोर्ट ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में हाल ही में हुई बर्बरता की घटना पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह सरकार की नाकामी है और मेडिकल कॉलेज को बंद कर देना चाहिए।
अपनी टिप्पणियों में, न्यायालय ने अस्पताल पर हमले को रोकने में ‘राज्य मशीनरी की पूर्ण विफलता’ की ओर इशारा किया। इस घटना में अस्पताल के महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरण नष्ट कर दिए गए। जमकर तोड़फोड़ की गई। न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाओं का डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों के मनोबल और आत्मविश्वास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस तह की घटना से डॉक्टर्स का मनोबल टूटता है और उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है।
हाई कोर्ट के आदेश पर ही यह केस कोलकाता पुलिस से लेकर सी.बी.आई. को सौंपा गया है। मगर सी.बी.आई. के काम शुरू करने से पहले ही राज्य सराकर ने सुबूतों को मिटाने का काम शुरू कर दिया। इससे याद आता है सुशांत सिंह राजपूत हत्याकाण्ड का मामला। उस समय की सरकार ने भी सी.बी.आई. की जांच शुरू होने से पहले ही सारे सुबूत नष्ट कर दिये थे। सी.बी.आई. के हाथ कुछ भी नहीं लगा था। और सी.बी.आई. की जांच शुरू होने से पहले ही ममता बनर्जी ने चिल्ला-चिल्ला कर दोषी को फांसी पर चढ़ाने की मांग का नाटक शुरू कर दिया। 
हद तो तब हो गई जब ममता बनर्जी ख़ुद इस मामले को लेकर प्रदर्शन करने निकल पड़ी। एक आम आदमी के मन में सवाल उठना लाज़मी है कि आख़िर ममता बनर्जी किसके विरुद्ध प्रदर्शन कर रही है। क्या वह अपने ही गृह मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और अस्पताल प्रशासन के विरुद्ध धरना प्रदर्शन कर रही है। सरकार उसकी अपनी है तो वह न्याय की गुहार किस से लगा रही है?
भारत के संविधान का अनुच्‍छेद-356 केंद्र सरकार को किसी भी राज्य सरकार को हटाकर प्रदेश का नियंत्रण अपने हाथ में लेना का अधिकार देता है। इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में इस अनुच्छेद का इस्तेमाल 50 बार किया था। कोलकाता के जो हालात चल रहे हैं, क्या वे संविधान के इस अनुच्छेद को दावत दे रहे हैं?
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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66 टिप्पणी

  1. आज का संपादकीय
    महिलाओं के विरुद्ध पाशविक हिंसा
    सारी संवेदनाओं वेदनाओं और सियासत का सबसे वीभत्स खेला? पक्ष और विपक्ष के बीच चल रहा है। महाभारत के द्रोपदी चीर हरण कांड को भी शर्मसार करता और उसे न्यूनतम साबित करता हुआ ।आज का यह ताजा ताजा हत्याकांड है जिसमें वीभत्सता और घृणा की सारी की सारी दीवारें टूट गई है स्थिति रक्त रंजित और सियासत रंजित भी है ।
    अब सियासत है कि ठीक केजरीवाल की याद दिलाती है धरने पर बैठ जाओ और सब कुछ छुपा लो और जनता हमारी इतनी मासूम सरल है कि वह आसानी से बेवकूफ भी बन जाती है ।
    अभी अभी भी दूरदर्शन पर चर्चा चल रही है जिसमें बंगाल राज्य सरकार के प्यादे शकुनी अंदाज में दलील देने में व्यस्त हैं न जाने यह भारत का कौन सा विश्व गुरु का खेल है जिसमें महिलाओं के साथ इतना घृणित और जघन्य कांड ?!
    शर्मसार हैं हम हम अपने आप को विश्व गुरु कहते?
    यह तो अब समय ही बतायेगा कि इसका परिणाम कौन कौन भुगतेगा।
    और हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में रही थी रही है और तब इन्होंने बंगाल की अराजक स्थिति का संज्ञान नहीं लिया क्यों नहीं इसे बर्खास्त किया? इस गवर्नमेंट को यदि समय से इस गवर्नमेंट को बर्खास्त कर दिया जाता ।
    तो संभवत शायद यह स्थिति नहीं आती एक बेटी को शर्मसार नहीं होना पड़ता।पूरी महिला जाति को आंसू नहीं बहाने पड़ते।
    हम तो पड़ोसी देशों से भी गए गुजरे हो गए हैं।
    आज का संपादकीय बहुत बहादुरी से स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है कि सत्य क्या है
    रस्मी तौर पर कहना पड़ेगा,क्योंकि प्रत्येक पाठक आम जन बहुत दुखी है।
    पुरवाई परिवार ने बहुत ही निडरता और सजगता से और स्पष्टता से इस संपादकीय को लिखा है ।उन्हें इसके लिए धन्यवाद।

    • इस विस्तृत एवं सार्थक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार भाई सूर्यकांत जी। इस टिप्पणी से हमें भी कुछ सीखने को मिला।

  2. सही लिखा ये सन्नाटा बड़ा ही शोरीला है, मोदी सरकार 356 का उपयोग नहीं करेगी क्योंकि इसके बाद जो चुप हैँ वे इतना हल्ला करेंगे कि ये शर्मनाक कांड दब जायेगा और सरकार बरखास्तगी का शोर हो जायेगा जिसे मोदी सरकार के दम नहीं है रोकने की । वैसे इसके हम सब अपराधी हैँ क्योंकि इस राजनीतिक व्यवस्था के भागीदार हम सब हैँ ,

  3. बहुत विचारोत्तेजक संपादकीय है भाई तेजेंद्र जी। अंदर तक हिला देने वाला। जैसी वह पूरी वीभत्स घटना आंखों के आगे आ गई हो। आश्चर्य, राजनीतिक लोग, जिनमें महिला राजनेता भी हैं, इतनी निर्ममता कैसे ओढ़ लेते हैं कि उन्हें कुछ भी संवेदित नहीं करता! कितना शर्मनाक है एक मुख्यमंत्री का ऐसा आचरण!!

    इस निर्भय संपादकीय के लिए आभार भाई तेजेंद्र जी।

    स्नेह,
    प्रकाश मनु

  4. आज के संपादकीय के माध्यम से आपने मेरे मन में उठने वाले रोष और पीड़ा को शब्द दिए हैं। समझ नहीं आता… आखिर कब तक ऐसी पशुता होगी?

    ऐसी वारदातों की वजह से मनुष्य के मन में जो डर पैदा हो रहा है,उसकी गूंज अलग अलग रूप में सामने आने लगी है।

    • संपादकीय आपको अपने मन की बात लगी, यही इस संपादकीय की सफलता है प्रगति जी। हार्दिक आभार।

  5. सशक्त संपादकीय। सत्य के पक्ष में आवाज़ उठाना अत्यंत जरूरी है। आपने अपने संपादकीय काॅलम से आवाज़ उठाई। राजनीति आखिर इतनी क्रूर क्यों होती है? स्त्री का जीवन इतना सस्ता क्यों है कुछ परुषों की नजर में? ऐसे हादसों पर हमेशा सवालों का एक जलजला उठता है फिर बैठ जाता है और कुछ वक्त बाद एक नया हादसा।
    हादसों की चोट लगती रहती है और दर्द होना कम हो जाता है। आम जनता अगले दिन अपने काम पर निकल जाती है।
    इस वीभत्स घटना की जो तीव्रता बनी है इस चिंगारी को मंद नहीं पड़ना चाहिए। अपराधियों को ऐसी सजा मिले कि रूह भी कांप जाए।
    ज्वलन्त मुद्दे पर लिखे आपके संपादकीय के लिए साधुवाद।

    • सुधा आपने सही कहा है कि चिंगारी को बुझने नहीं देना है। पहली बार एक सरकार दोषियों को बचाने का खुला प्रयास कर रही है।

  6. तेजेंद्र ,आपने बहुत ही बढ़िया संपादकीय लिखा है सारी बातें समझ में आई।
    बहुत सारगर्भित।
    वहां के प्रिंसिपल के बारे में इतना मालूम ही नहीं था जो आपने लिखा।

  7. दिल दहला देने वाली घटना है ।
    जहाँ सरकार पद और वोट की राजनीति करने में ही खुश हो तरह तरह के हथकंडे अपना कर ख़ुद को सुरक्षित करती हो वहाँ मनुष्यता तार तार होती है । अनुच्छेद56 के बगैर तानाशाही पर नियंत्रण संभव नहीं शायद ।
    Dr Praha mishra

  8. आज का आपका संपादकीय जिस मुद्दे पर आधारित है, समझ में नहीं आता यह कहाँ जाकर रुकेगा क्योंकि कुछ लोगों के लिए यह मुद्दा स्त्री अस्मिता से जुडा न होकर सिर्फ राजनीतिक बन जाता है जिसे हर राजनीतिक पार्टी अपने चश्मे से देखना और अपने हित के अनुसार भूनना चाहती है। एक जगह आपने ममता बनर्जी को निर्ममता बनर्जी लिखा है। न. जाने यह टाइपिंग मिस्टेक है या उनका नया नामकरण किया है। जो भी है यह नया नाम उनकी मानसिकता को दर्शा रहा है। बंगाल में इतने वीभस्त कांड हुए हैं लेकिन कोई भी उनके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाता!! विपक्षी दलों सिर्फ और सिर्फ राजनीति करनी है उन्हें पीड़िता के दुःख दर्द से कोई लेना देना नहीं है।
    ममता बनर्जी किसके विरुद्ध आंदोलन कर रही हैं, यह भी समझ से परे है।
    इंदिरा गाँधी धारा 356 का प्रयोग इसलिए कर पाई क्योंकि उस समय विपक्ष इतना मजबूत नहीं था। अब तो बात -बात में विपक्ष सरकार के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट चला जाता है तथा उसकी सुनवाई भी हो जाती है क्योंकि कुछ वकील तो सिर्फ इसलिए ही वहां हैं। अतः ऐसा वैसा कर केंद्र सरकार अपनी फ़जीहत नहीं करवाएगी।

    • हमारी दुआ है कि सुबूत मिटाने वाले अपनी चाल में सफल ना हुए हों।‌ अभया को न्याय मिलना ही चाहिए।

  9. अत्यंत संवेदनशील घटना एवं लज्जाजनक भी….
    आपका अंतिम वाक्य कि ‘इमरजेंसी लगा दिया जाए’ … समर्थन करती हूँ… पर.. कोलकाता अब गुंडाराज का अड्डा बन चुका है। वहाँ सीधी बात पहुँचती नहीं। अंत केवल अन्याय का नहीं अन्यायी का भी हो जाना चाहिए… पूरी जनता यदि ज्वार की तरह खड़ी हो जाए..इस नेतागिरी का भी अंत हो जाता…. और विपक्षी से कोई उम्मीद नहीं है कि उनका मुँह खुलेगा…..
    जो एजेंडा लेकर ये तथा कथित नेताएँ कुरसी का खेल खेल रहें….उनको तो ईश्वर अवश्य दण्डित करेंगे……..

    • अनिमा जी हार्दिक आभार। हम इमरजेंसी नहीं राष्ट्रपति शासन की बात कर रहे हैं।

  10. आपकी निडर लेखनी.. सुदृढ़ स्वतंत्र लेखनी आज की युवा पीढ़ी को यदि प्रेरित कर पाए तो लेखन सार्थक हो जाए सर…. यह युवा पीढ़ी चाहे तो लेखनी को अस्त्र बनाकर आपकी तरह हर एक के हृदय में सत्य के साथ खड़े होने की शिक्षा दे सकती है….

    आपको सदा प्रणम्य रहें सर…

  11. समसामयिक विषय पर सार्थक और सुदृढ़ स्वतंत्र निष्पक्ष विचार। अति उत्तम संपादकीय के लिए हार्दिक बधाई और आभार। आपकी लेखनी यूं ही मार्ग दर्शन करती रहे।

  12. आपने सारी सच्चाई खोलकर रख दी।ममता बैनर्जी जाने किसके विरुद्ध किससे क्या बोल रही थी,किसके विरुद्ध प्रदर्शन कर रही थी?इन लोगों के आत्मा नाम की कोई चीज होती होगी तो कचोटती होगी क्या?एक तो कानून व्यवस्था को पलीता लगा हुआ है ऊपर से अपराधियों के प्रति नरम रुख अपनाया जा रहा है।सत्ता के पीछे ये राजनेता अपना ईमान धर्म ,मानवता तक भूल जाते हैं ।इसी कारण अपराधियों ,भ्रष्टाचारियों ,बलात्कारियों को डर नहीं रह जाता ।
    पुरुष द्वारा स्त्री को सिर्फ मादा समझने की सोच कब बदलेगी?कब वह उसे अपनी तरह एक इंसान समझेगा ?

  13. तेजेंद्र जी आपको यह सम्पादकीय भारत के समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाना चाहिए। सम्पादकीय पढ़ते समय आक्रोश और करुणा की मिश्रित अनुभूति हुई। औरत की इज़्ज़त को राजनीतिक दॉवपेच के नीचे दफ़्न करने वालों के लिए कोई भी सजा कम होगी।
    अरुणा अजितसरिया

  14. डॉ तेजेंद्र शर्मा जी आपने अत्यंत ज्वलंत और झकझोर देने वाली घटना को संपादकीय का विषय बनाया है। धन्यवाद।
    जब एक अबला नारी, स्त्री,महिला, बहन के साथ इस तरह के घृणित, पाशविक कृत्य होते हैं। तब हमारी निरीह आंखें मानवता के आधार पर देखने के अतिरिक्त भर्त्सना ही कर सकती हैं किंतु इससे क्या? वह जीवन लौट कर आ सकता है। नहीं ? जब तंत्र ही सवालों के घेरे में हो तब उस पर क्या कहा जा सकता है। एक और जांच, जांच पर जांच की रिपोर्ट आ भी जाय तो क्या।

    समाज से इस तरह के पाशविक कृत्य समाप्त हो सकते हैं। शायद नहीं। इस तरह के कृत्य को अंजाम देने वालों को कठोर से कठोर दण्ड दिया जा सकता है किंतु इस घेरे और दवाब के बावजूद लोग बचा लिए जाते हैं।

    अब मुझे लगता है। इस केश में से बलात्कारियों का बचना मुश्किल हो सकता है क्यों जब दो विरोधी शक्तियां बचाने और दंड देने की प्रक्रिया में शामिल हो जाती हैं। पूर्व में बंगाल के इसी तरह के केश में भयंकर दंड दिया गया था। उस केश ने भी पूरे देश में तहलका मचा दिया था। अब बात निकली है तो आवाज दूर तक जाएगी।
    प्रजातंत्र के तंत्र के तंत्र को किसी अपराधी को बचाने से समाज में अराजकता ही फैलती है। दुनियां में प्रजातंत्र को उत्तम शासन प्रणाली माना जाता है क्योंकि संपूर्ण प्रक्रिया न्याय व्यवस्था पर केंद्रित होती है। दंड किया है। उस व्यक्ति को दंड अवश्य मिलना चाहिए और कठोर से कठोर दण्ड मिलने की उम्मीद की जा सकती है

    सऊदी अरब में कठोर दण्ड देने का प्रावधान किया गया है किंतु दंड से मुक्त करने का प्रावधान शक्ति उस पीड़ित परिवार के हाथों में होता है। उसमें बहुत कम आशा की किरण होती है। उसमें मृत्यु दंड देकर शासन देश को अपराध मुक्त करने का प्रयास करते हैं।

    दुनिया प्रजातंत्र में विश्वास करती है। एक दिन दुनियां में प्रजातंत्र कायम होगा। मुझे विश्वास है। तब इस के अपराधों पर अवश्य लगाम लग सकेगी।

    समाज में शिक्षा के अधिक से अधिक प्रसार और नारियों का सम्मान करने, लिंग भेद की दूरी घटाने, सभी को मानव समझने के मिशन और अभियान अधिक से अधिक चलाने आवश्यक हो जाते है। निरंकुश राजनीति और राजनीतिज्ञों को ओछी राजनीति करने से रोकना प्रजातंत्र के बहुमूल्य वोट के अधिकार का प्रयोग करके और उसकी शक्ति को दिखा कर अंकुश लगा सकते हैं। है।
    अब दुनियां को अपराध मुक्त करने के लिए कानून की दंड संहिता का एक लघु कोर्स विश्वविद्यालयों में अवश्य चलाने पर विचार किया जाना चाहिए। लोग अपराध करते हैं क्योंकि उन्हें पकड़े जाने पर अनेक वर्षों के कठोर कारावास और वहां मिलने वाली प्रताड़ना का अहसास नहीं होता है।
    योराप के लोग नियमों का पालन शक्ति और कठोरता के साथ करते हैं क्योंकि अपराध करने पर मुक्ति संभव नहीं होने का डर उनके मन, मस्तिष्क में सदैव बना रहता है। वहां पर स्त्री, नारी बहन, और बच्चे सभी सुखी जीवन जीते हैं। भारत में न जाने कब वह दौर आएगा।

    किसी देश का बहुत बड़ा देश होना और देश की जनसंख्या विस्फोट को भी नजारा अंदाज नहीं किया जा सकता है किंतु प्रत्येक देश में समस्याएं होती हैं। उन समस्याओं पर विजय प्राप्त करना मनुष्य और देश वासियों का कर्तव्य होता है। देश की समस्याएं अनगिनत हैं। यह कहकर राजनीतिज्ञ अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं। योरप की तरह ईमानदार पत्रकार पूरे विश्व में हों तो अच्छा होगा। देश में साफ सुधरी छवि वाले राजनीतिज्ञों, ईमानदारी पूर्ण पत्रकारिता करने वाले लोगों की पलटन बनाने पर बल देना होगा। तब प्रजातंत्र से इस तरह के अपराध और समस्याएं दूर भाग सकतीं हैं।

  15. आज मैं सोची रही थी कि आप इस विषय पर आपका संपादकीय होगा! वैसा ही हुआ। आपकी निडरता, साफ-साफ कहना बहुत बड़ी बात है। ममता बनर्जी किस
    बात के लिए सड़क पर उतरी है? छोटा बच्चा भी क्या पूछ रहा है। बहुत ही अफसोस की बात है। हमें इतना दुख हो रहा है उस डॉक्टर बच्चों के लिए बताइए उसके मम्मी पापा कैसे सहन कर सकते हैं?

  16. निडर संपादकीय
    जड़ तो कहीं और ही है, इंसान अब जानवर नहीं हैवान बन गया है। रही बात उस प्रिंसिपल की तो उसके सिर पर तो किसी और का हाथ होगा ही, अब और नहीं उसकी जड़ को उखाड़ना होगा। ऐसे दरिंदो के चलते तो अब यही डर सबके मन में घर करेगा, और यही सही लगता है कि,बेटी की हिफाज़त के लिए उसे घर में ही कैद रखना सही होगा। कब तक स्त्री भागती रहेगी, अब और नही, ऐसी हैवानियत को रोकना पड़ेगा। हर एक नारी को सुरक्षा देनी ही पड़ेगी। ऐसे दरिंदों को सड़क पर खड़ा कर देना चहिए।

  17. दिनों – दिन बढ़ती हिंसा एक सामान्य नागरिक को बहुत चिंतित करती है और इस तरह की पशुता,बर्बता स्त्री के संदर्भ में और चिंतनीय है। आपकी संपादकीय से लोगों में चेतना आए,ऐसी आशा करती हूँ आप हमेशा ज्वलंत मुद्दों को उठाते हैं बहुत बहुत धन्यवाद सर

  18. एक तरफ मोदी विकसित भारत बनाने की बात कर रहे हैं. दूसरी तरफ ऐसी घिनौनी वारदात सरकारी व्यवस्था के गाल पर तमाचा. सत्ता और राजनीतिक प्रताड़ना का शिकार आम व्यक्ति हो रहा है. मोदी की वजह से मणिपुर जल रहा है और पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी की वजह से.

  19. आपके संपादकीय के एक-एक शब्द से सहमत हूँ। आपने पूरे साहस के साथ सच लिखा है। इतना वीभत्स कांड की मेरे शब्द खो गए हैं। बेटी की माँ के भय हावी हो गए हैं। हमने निर्भया से अभया तक नाउम्मीदी ही देखी है। फाँसी भी सोच में बदलाव लाने में कहाँ समर्थ रही। किससे गुहार करें… अपने-अपने हिस्सों और अपने-अपने किस्सों में बँटे तंत्र में स्त्री की रक्षा उसके सम्मान से अधिक जब उनकी खेमेबाजी है। एक शांति पूर्ण प्रदर्शन को सबूत मिटाने का खेल बनाते तंत्र और दोषी को बचाकर अपनी ही सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतरी ममता बैनर्जी के राजनीतिक स्टंट देखने को हम अभिशप्त हैं। एक स्त्री के शासन में एक स्त्री को, स्त्री कि गरिमा के लिए आगे आते देखने के स्थान पर पद से हटाने के मात्र आठ घंटे में उन्हें दोबारा एक उतने ही बड़े संस्थान का प्रिंसिपल नियुक्त करने से सरकार की मंशा स्पष्ट होती है।
    जब पूरे देश के डॉक्टर हड़ताल पर हैं तो सच में यह सन्नाटा बहुत शोरीला है।

    • वंदना जी, आपने संपादकीय को पूरा समर्थन दिया है। आपकी टिप्पणी संपादकीय के उद्देश्य को रेखांकित करती है। हार्दिक आभार।

  20. भारत में बलात्कार और महिलाओं के प्रति हिंसा बहुत आम घटना हो गई है और इस तरह की हर बड़ी घटना राजनीति के चक्रव्यूह में फँसकर अपना दम तोड़ देती है , किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाती। ऐसा लगता है हर पार्टी के अपने अपने बलात्कारी हैं और हर पार्टी अपने वाले को बचाने में लगी है। बलात्कार और हिंसा की किसी भी घटना में ऐसी सजा नहीं हो पाती जिससे बलात्कारी इस जघन्य अपराध को करने से पहले सोचे । ये स्थिति तो उन घटनाओं की है जो मीडिया में आ जाती हैं । ना जाने कितनी ही ऐसी घटनाएँ हर दिन होती हैं जो खबरों में आ ही नहीं पाती।

  21. पुरवाई के इस अंक का संपादकीय भारत में बलात्कार और महिलाओं के प्रति हिंसा को विस्तार से उजागर करता है। भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार और हिंसा बहुत आम घटना हो गई है और इस तरह की हर बड़ी घटना राजनीति के चक्रव्यूह में फँसकर अपना दम तोड़ देती है , किसी अंजाम तक नहीं पहुँच पाती। ऐसा लगता है हर पार्टी के अपने अपने बलात्कारी हैं और हर पार्टी अपने वाले को बचाने में लगी है। बलात्कार और हिंसा की किसी भी घटना में ऐसी सजा नहीं हो पाती जिससे बलात्कारी इस जघन्य अपराध को करने से पहले सोचे । ये स्थिति तो उन घटनाओं की है जो मीडिया में आ जाती हैं । ना जाने कितनी ही ऐसी घटनाएँ हर दिन होती हैं जो खबरों में आ ही नहीं पाती।

  22. आपकी निर्भीक कलम से सटीक और विचारोत्तेजक संपादकीय, अभिनंदन। हर भारतीय और भारतवंशी प्रशासन के ढीलेढाले रवैये से क्षुब्ध है। सरकारों और राजनीतिज्ञों की कुत्सित चालों से सेवाभावी डॉक्टरों का मनोबल गिरने लगा है।

  23. Your Editorial of today speaks of the disgraceful manner in which the Bengal government handled the horrendous n barbaric rape case of a young doctor while she was resting after a hard day’s duty in her medical institution.
    Also of the shameful manner in which the Principal of the institution was shifted to another hospital without any punishment meted out to him.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  24. बहुत ही गंभीर तथा चिंता का विषय बना हुआ है। कि कब तक आखिर कब तक हमारे देश में बहन बेटियों के साथ ये घटनाएं होते रहेंगे?
    क्या इन बलात्कारियों के मन में खौंफ नहीं रहता? आखिर किन लोगों के बल पर ये इतना घिनौना अपराध करते हैं।

    भारत क्या पूरे विश्व में अगर कोई ऐसा घिनौना हरक़त करता है तो उसकी सजा मौत होनी चाहिए।

    लचीला न्याय व्यवस्था ऐसे अपराध को बढ़ावा देती है।
    भारत में ऐसे कितनी घटनाएं हो चुकी है। सरकार रोड पर प्रदर्शन कर किस से न्याय मंग रहे हैं।

    इंसान को बनाने वाले से या अपने नाकामियों का मूक प्रदर्शन कर वोट बटोरने के लिए?

  25. यह बहुत शर्मनाक है। पता नहीं इन घटनाओं पर कभी कोई कमी और ठोस कार्रवाही क्यों नहींहोती।जिस घर से बच्ची जाती है उसके माता पिता कैसे लाचार से खङे रहते हैं। धरने, कैंडल मार्च, आरोप प्रत्यारोप और फिर सब खत्म। दुनियां आगे बढ जाती है। माता पिता उस रिसते नासूर की पीङा पूरी जिन्दगी झेलते हैं। अब बच्चियों को पढने या नौकरी के लिए बाहर भेजते डर लगता है। किसी का कुछ नहीं जाता सिवाय उस बच्ची के घरवालों और खुद उसके। वो तो अपनी जान ही गंवा देती है। इतना कङा कानून बनाया जाये कि कोई ऐसा करने से पहले उसकी सजा के बारे में सोच कर कांप जाये।

  26. सामयिक घटनाक्रमों पर बेबाक टिप्पणी है। बलात्कार की अलग अलग कोटियों का उल्लेख कर आपने इंगित कर दिया है कि राजनीति किस घृणित स्तर तक पहुंच गयी है। ऐसे परिदृश्य ने आजादी के उत्सव को सचमुच निस्तेज कर दिया।

  27. तेजेन्द्र जी ,
    घटना से पहले ही मन क्षोभ से भरा हुआ था और संपादकीय ऐसा कि घटना पर जबरदस्त प्रहार कि भूलने न दे |
    हर दिन कुछ न कुछ ऐसा सुनने को मिल जाता है कि इंसानियत पर शर्मसार हो जाते हैं |
    हम तो सोचते थे कि हमारी ज़िंदगी में शायद कुछ बेहतर बदलाव हो सकेगा किन्तु निराशा ही महसूस होती है |
    काश ! आपकी बात हर उस कान में पहुँचे जो कहीं न कहीं इस सबसे बाबस्ता हैं |
    आपके साहस को सलाम
    बस बात का कुछ असर हो |

    • आदरणीय प्रणव जी, आप संपादकीय पढ़ने के लिये समय निकालती हैं और फिर टिप्पणी भी लिखती हैं… हमारा हौसला बुलंद हो जाता है। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

  28. जितेन्द्र भाई: जिस सच्चाई, दिलेरी और निडरता से आपने आजकल के तीन सनसनीखेज़ मुद्दों का ब्याख्यन किया है उसके लिये बहुत बहुत साधुवाद। बँगलादेश में जो तख्ता पल्टी हुई उसकी तो पोल खुल चुकी है। कैसे अपने आपको बड़े और शक्तिशाली कहने वाले देश अपनी मनमानी पूरी न होने पर एक छोटे से देश में सरकार को गिराने की हरकत करेंगे, बहुत शरम की बात है। ब्रिटेन में जो सब हो रहा है, उसके बारे में आप से अधिक कौन जान सकता है। तीसरी ख़बर जो बँगाल की एक महिला डॉक्टर के साथ गैंग रेप और हत्या का है उसने तो सब के रौँगटे खड़े कर दिये। पोस्टमॉर्टम की जो दिल दहलाने वाली रिपोर्ट सामने आई है उसको सुनकर रोना आता है कि भारत जैसे देश में ऐसे दरिन्दे अब भी ज़िन्दा हैं। लगता है जल्दी ही सब मुजरिम जल्दी ही पकड़े जायेंगे।
    सब से बड़े शरम की बात तो यह है कि अपनी कुर्सी बचाने के लिये ‘निर्ममता बैनर्जी” के विधायक खुले आम कह रहे हैं कि जो भी दीदी के बारे में उंगली भी उठायेगा तो उसकी उंगली तोड़ दी जायेगी। ड्रामेबाजी की हद हो गई जब स्वयँ निर्ममता इस अत्याचार के ख़िलाफ़ खुद सड़क पर उतर आई। निर्ममता स्वयँ बंगाल की मुख्य मन्त्री, स्वस्थ्य मन्त्री तथा पुलिस की इंचार्ज है फिर किसके ख़िलाफ़ जलूस निकाल रही थी। उसके चाहने वालों के ब्यान तो सुनिये। दिमाग़ भन्ना जायेगा यह सुनकर कि ऐसी सोच वाले इतने गिरे हुये लोग अभी भी इस दुनिया में हैं।

    • विजय भाई, आपका आक्रोश बिल्कुल जायज़ है। थ्री-इन-वन मुख्यमंत्री पता नहीं किसके विरुद्ध प्रदर्शन कर रही है। यही प्रार्थना है कि पुलिस तमाम सुबूत नष्ट करने में सफल ना हो सकी हो… वर्ना एक और सुशांत सिंह राजपूत वाला मामला हो जाएगा।

  29. आँखे खोलता लेख। यह बात तो साफ है सर कि बलात्कार और इस तरह जघन्य हत्या को कोई एक आदमी तो अंजाम नहीं दे सकता। यह माना ही नहीं जा सकता कि 31 साल की युवती ने ख़ुद को छुड़ाने या बचाने का कोई प्रयास नहीं किया होगा। आरोपी के चेहरे या शरीर पर प्रतिरोध का एक भी निशान न होना मामले को बहुत गंभीर बनाता है। जिसकी जडें बहुत गहरी हैं। बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उस बेटी को इंसाफ मिले

  30. ऐसी लोमहर्षक घटना पर आपका सम्पादकीय आंखें खोल देने वाला है, सशक्त विचारों के साथ समाधान के पट भी खोलता हुआ प्रतीत होता है, निश्चय ही केंद्र सरकार को बंगाल राज्य स की बागडोर अपने हाथ में लेनी चाहिए…और सरकार चाहे किसी की भी हो महिला सुरक्षा उसके सम्मान की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। वहाँ किसी प्रकार की कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।

    • तुमने बिल्कुल ठीक कहा जया। वर्तमान बंगाल सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई मॉरल अधिकार नहीं है।

  31. इन्द्रकुमार दीक्षित, 5/45 मुंसिफ़ कालोनी देवरिया। इन्द्रकुमार दीक्षित, 5/45 मुंसिफ़ कालोनी देवरिया।

    आदरेय शर्मा जी कोलकाता महिला डाक्टर बलात्कार एवं जघन्य हत्याकांड पर आपका सम्पादकीय जिस तरह बेबाकी से इस घटना के परतों को उधेड़ता है,वह काबिले तारीफ़ है।हाई कोर्ट,सी बीआई और सुप्रीम कोर्ट जैसी शीर्ष संस्थाएँ इस जघन्य काण्ड के खुलासा करने में जुटी हैं,लेकिन क्या ममता बनर्जी इतनी पावरफुल है जो इसके बावजूद भी असली चेहरों को बचाने में लगी हुई है,अगर सी बी आई इसमें विफल रह्ती है तो यह लोकतंत्र और न्याय की विफलता होगी।
    पश्चिम बंगाल कोढ राज्य बन गया है,हो सकता है कि आपके इस दमदार आवाज का असर हो और पीडित को न्याय मिलने का रास्ता खुले।आपको साधुवाद!

    • भाई इंद्र कुमार जी आपकी टिप्पणी में आक्रोश जायज़ है। इस हादसे ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है।

  32. आदरणीय तेजेंद्र जी!
    अबकी बार हम पूरी तरह श्योर थे कि इसी विषय पर संपादकीय होगा क्योंकि ज्वलंत मुद्दों पर बात करना संपादकीय की फितरत होती है और यहाँ पर मुद्दा ही ज्वलंत नहीं है बल्कि चारों तरफ आग ही आग है।
    विषय तो ऐसा है कि इस पर कुछ कहने के बजाय कुछ करने की स्थिति बनती है।पर जिन्हें करना चाहिए या जिन्हें करना है ;वह खुद आग लगाकर तमाशा देखने वालों में से हैं। हमें तो यही समझ में नहीं आता कि क्रूरता की हद कहांँ तक है!!!!!!
    एक बार इंदौर के मेडिकल कॉलेज में झाबुआ की मेडिकल स्टूडेंट के मर्डर का जिक्र आपकी एक संपादकीय के तहत ही हमने किया था जिसमें बड़े-बड़े दिग्गज, लगभग 65-70 लोग खामोशी से मार दिए गए जिनकी मृत्यु का आज तक सीआईडी भी पता ना लगा सकी और उसमें तो सी एम ही खुद इंवॉल्व थे व्यापम घोटाले में। इस तरह के नृशंस हत्याकांड निरंतर चल रहे हैं ।बस किसी का पता नहीं चलता, कहीं किसी पर कार्यवाही नहीं की जाती और कहीं किसी पर बवाल मच जाता है। तकलीफ हर जगह एक सी रहती है , कलकत्ता कांड भी हृदय विदारक है।भोगने वाले के लिये भी, परिवार के लिये भी।दर्द के प्रकार चाहे जितने भी हों लेकिन उसका अहसास एक सा ही होता है ।उसकी पीड़ा एक जैसी ही होती है।
    जब मात्र 4 महीने की लड़की के साथ बलात्कार होता है और वह खत्म हो जाती है, इस नृशंसता को किस श्रेणी में रखा जाए? पर कहीं आवाज भी सुनाई नहीं देती! पेपर के किसी कोने में एक खबर की तरह छप के रह जाती है। लेखक सिर्फ लिख ही सकता है, लिखकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है, लेकिन अब वह वक्त ही नहीं रहा कि लिखे को कोई पढ़े और पढ़कर किसी के खून में उबाल आए।
    अगर ऐसा होता तो देश के किसी भी कोने में किसी भी फीमेल के साथ होने वाली इस तरह के अपराध के प्रतिकार के लिए हर जगह से आवाज उठाई जाती। शायद बात यहां तक बढ़ती ही नहीं अगर शुरू से ऐसा होता पर ऐसा नहीं है।
    अभी-अभी परसाई जी की जयंती गई है। उनके कहे हुए एक कथन की याद आ गई
    *बलात्कार को ‘पाशविक’ कहा जाता है पर यह पशु की तौहीन है।पशु बलात्कार नहीं करते ।सुअर तक नहीं करता, मगर आदमी करता है।”*
    (हरिशंकर परसाई)
    हमें गुप्त जी की पंक्तियां भी याद आईं पंचवटी की।गुप्त जी के पंचवटी खंडकाव्य में भी लक्ष्मण जी रात के समय श्री राम- सीता जी की कुटिया की पहरा देते हुए बाहर बैठे हैं और अयोध्या को याद करते हुए मन ही मन सोच रहे हैं ! उसी में बीच में एक संदर्भ है-
    *करते हैं हम पतित जनों में, बहुधा पशुता का आरोप;*
    *करता है पशु वर्ग किन्तु क्या, निज निसर्ग नियमों का लोप?*
    *मैं मनुष्यता को सुरत्व की, जननी भी कह सकता हूँ,*
    *किन्तु पतित को पशु कहना भी, कभी नहीं सह सकता हूँ॥*
    कितनी सच्ची बात कही है यहां पर मैथिलीशरण गुप्त जी ने लक्ष्मण जी के माध्यम से।
    पशु अपने निसर्ग नियमों का उल्लंघन नहीं करते। लक्ष्मण जी स्पष्ट कहते हैं कि,” पतित लोगों के लिए पशु संबोधन का प्रयोग करना मेरे लिए असहनीय है।
    दानवों का समूह नाश करके ईश्वर ने उनके वंश को समाप्त कर दिया किंतु उनकी सारी प्रवृत्तियां मनुष्य में आ गईं।
    यहां देश में आग लगी है और हमारे प्रधानमंत्री विदेश घूम रहे हैं।

    बलात्कार की श्रेणियों के उदाहरण के माध्यम से आपने राजनीतिक पार्टियों पर अच्छा व्यंग किया है। यह तो कटु सत्य है कि राजनीति आजकल नपुंसकों की तरह सड़क पर उधर आई है।
    यहां पर सामुद्रिक न्याय जैसी स्थिति बनी हुई है। हर बड़ा व्यक्ति छोटे को खाने पर तुला है। हम बचे रहें,हम सुखी रहें, हम जो चाहें वह करें, हम सर्वोपरि रहें, बाकी जनता जाए भाड़ में।

    सच में बहुत ज्यादा दुख होता है, बहुत ज्यादा तकलीफ होती है, लेकिन जिसका जाता है उसका तो दुख उसी को समझ में आता है। जिस बारे में सुनते पढ़ने अथवा देखते हुए अपने बच्चों के लिए कल्पना करके रूह कांप जाती है और ऐसा मन होता है कि उन्हें ऐसा छुपा ले कि किसी की नजर ना पड़े। इस कष्ट को जब दूसरा भोगता है तो हर माता- पिता की आत्मा छलनी होती है।
    लड़की की बॉडी के 36 टुकड़े होना सुनकर ही कलेजा कांप जाता है।
    पर तब किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई थी।
    हम लोग बांग्लादेश की त्रासदी के लिये हाय- हाय कर रहे थे, और हमारे देश में ही त्राहि-त्राहि हो गई।
    बांग्लादेश के बारे में तो यह भी पढ़ने में आया कि लाश के साथ भी बलात्कार किया। इसे अपन किस श्रेणी में रखेंगे? बलात्कार करके मारना तो सुना था, लेकिन लाश के साथ बलात्कार सुनना और शेष रह गया था।

    पता नहीं क्यों लेकिन मन में कुछ ऐसा भी संदेह होता है कि यह ममता सरकार को गिराने का कोई प्रयास तो नहीं था? और अगर इसका जवाब हां में है तो इतना वीभत्स ?इस हद तक?
    यहां तो राजनीति पूरी तरह से निर्वस्त्र ही नजर आती है।
    अब यही कह सकते हैं कि-
    कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते ….
    आज का संपादकीय तो खुली किताब की तरह था देश के सामने, पर आपने जिस तरह से उसे पेश किया वह काबिले तारीफ है सर जी!
    बहुत-बहुत शुक्रिया आपका तेजेन्द्र जी संपादकीय के लिए और पुरवाई का आभार।

    क्षमा याचना के साथ- हमारे मोबाइल ने अनुनासिक चिन्ह देने से इनकार कर दिया है इसलिए अनुनासिक की जगह भी हमें अनुस्वार का प्रयोग करना पड़ा।

    • आदरणीय नीलिमा जी, आपकी टिप्पणी हमेशा की तरह बहुत से पहलुओं पर उंगली रखती है। आपका संदेह कि “यह ममता सरकार को गिराने का कोई प्रयास तो नहीं था?” आसानी से गले नहीं उतरा। फिर भी आपको पूरा हक़ है अपना संदेह व्यक्त करने का। हार्दिक आभार।

  33. कहीं-कहीं कुछ टिप्पणियां ऐसी पढ़ीं , इसलिए मन में विचार आया। कई बार हालातों की गंभीरता विश्वास खो देती है। सरकार और सरकार के करिंदों पर से भी। इसलिए संभावनाओं के कीड़े लोगों के दिमाग में कुलबुलाने लगते हैं । सत्य या विश्वसनीय हो ,बिल्कुल आवश्यक नहीं।
    आपने अपनी बात रखी इसके लिए शुक्रिया।

  34. बहुत संवेदनशील लेख पूरी सारगर्भिता के साथ… निर्ममता बनर्जी.. बिल्कुल सही नाम दिया आपने… पूरे वेस्ट बंगाल को बर्बाद कर के रख दिया है इसने.. महिला होते हुए, महिला हितैषी न होकर महिला विरोधी है ये… कुर्सी का लालच कितना गिरा सकता है इस case में देखना चाहिए.. इस पूरी घटना पर मेरी श्रद्धांजलि

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