Sunday, October 27, 2024
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संपादकीय – आँखों से जो उतरी है दिल में…!!

सवाल यह उठता है कि यदि ये दो विद्यार्थी ऐसा ऐप बना सकते हैं जो कि  ‘रे-बैन’ स्मार्ट  चश्मे से फ़ोटो लेकर उसकी पूरी जानकारी हासिल कर सकता है, तो क्या जो पूरी दुनिया के प्रोफ़ेशनल हैकर हैं वो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्या यह समाचार उन सब तक नहीं पहुंचा होगा? और हो सकता है कि इन दो विद्यार्थियों ने तो केवल शौकिया तौर पर यह ऐप बनाया हो; मगर जो हार्ड कोर प्रोफ़ेशनल कंप्यूटर एक्सपर्ट हैं, वो तो ख़तरनाक किस्म का ऐप बनाने में सक्षम होंगे।

1963 में आशा पारेख और जॉय मुखर्जी की एक फ़िल्म आई थी ‘फिर वही दिल लाया हूं ’। उस फ़िल्म में मजरूह सुल्तानपुरी ने गीत लिखे थे और संगीत दिया था ओ.पी. नैय्यर ने। एक गीत जिसे आशा भोंसले ने गाया था और आशा पारेख पर फ़िल्माया गया था उसके बोल थे – “आँखों से जो उतरी है दिल में / तस्वीर है इक अन्जाने की / ख़ुद ढूंढ रही है शम्मा जिसे / क्या बात है उस परवाने की”।
किसे पता था कि वर्ष 2024 में चश्मे बनाने वाली कंपनी ‘रे-बैन’ एक ऐसा चश्मा बनाएगी जिसमें सचुमच का कैमरा लगा होगा और उस कैमरे से तस्वीर उतारी जा सकेगी। अब वो तस्वीर कुदरत के नज़ारों की भी हो सकती है; चान्द सितारों की भी हो सकती है और किसी शम्मा या परवाने की भी। इन चश्मों को रे-बैन मेटा चश्मा कहा जाता है। स्मार्ट फ़ोन की तर्ज़ पर इन चश्मों को भी स्मार्ट चश्मा कहा जाता है। इनकी कीमत भारतीय रुपयों में तीस से चालीस हज़ार रुपयों के बीच होती है।
अग्रेज़ी में एक कहावत है – “Today’s poetic imagination is tomorrow’s scientific truth! ” यानी कि आज के कवि की कल्पना की उड़ान कल का वैज्ञानिक सच हो सकता है। कवि कल्पना के पंखों पर उड़ान भरते हुए सदियों पहले चांद पर पहुंच गया था। मगर वैज्ञानिक को समय लगा और नील एल्डन आर्मस्ट्रांग जुलाई 1969 में ही चांद पर कदम रखने वाला पहला व्यक्ति बन पाया। 
ऐसे ही हिन्दी फ़िल्म ‘मिस्टर एक्स’ में किशोर कुमार और ‘मिस्टर इंडिया’ में अनिल कपूर के पास एक ऐसा फ़ार्मूला होता था जिससे वे ग़ायब हो सकते थे। सिने-दर्शकों का इससे ख़ासा बढ़िया मनोरंजन हुआ और वैज्ञानिकों को एक चुनौती मिल गई कि कैसे वे ऐसा कोई यंत्र बना सकते हैं जिसे पहन कर इन्सान ग़ायब हो सकता है। 
सांकेतिक चित्र
वैसे फ़िल्मों में एक ऐसा ही धूप का चश्मा – यानी कि गॉगल्स – भी दिखाई गई हैं जिन्हें पहन कर इन्सान सामने वाले के कपड़ों के भीतर से बदन तक देख सकता है। ज़ाहिर है कि वैज्ञानिक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हुए इस आविष्कार को दुनिया के सामने लाने के लिये बेचैन हो रहे होंगे। 
मगर अमरीका के दो विद्यार्थियों – आंफ़ू वींग  (AnhPhu Nguyen) और केन आर्देफ़ियो (Caine Ardayfio) ने साझे रूप से एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि पूरे विश्व में उनकी ही चर्चा हो रही है। आंफ़ू का जन्म दक्षिण वियतनाम में हुआ था। दोनों विद्यार्थी हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्र हैं। 
इन दोनों विद्यार्थियों ने एक ऐसा ऐप बनाया है जो कि रे-बैन कंपनी के गॉगल्स के साथ कनेक्ट किया जा सकता है। इन मेटा गॉगल्स से फ़ोटो को ऐप में भेज दिया जाता है और ऐप इस चेहरे को पहचान कर उसके बारे में तमाम जानकारी हासिल कर सकता है। जिसकी जानकारी हासिल की जा रही है, उसे इस बारे में कुछ जानकारी भी नहीं होती। 
आईवी लीग स्कूल के इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों ने अपने इस आविष्कार का जब प्रदर्शन किया तो देखने वाले हक्के-बक्के रह गये। केवल फ़ोटो से ही इन्सान के बारे में अथाह जानकारी हासिल कर लेता है यह ऐप। आंफ़ू और केन ने अपने इस ऐप का नामकरण किया है आई-एक्सरे (I-Xray)।
यहां यह बताना भी ज़रूरी होगा कि रे-बैन मेटा स्मार्ट चश्मा तीन मिनट तक का वीडियों भी रिकॉर्ड कर सकता है। 
आई-एक्सरे (I-Xray) प्रोग्राम चश्मे से फ़ुटेज को पिम-आईज़ (PimEyes) – एक चेहरे की पहचान करने वाला उपकरण –  पर अपलोड करके काम करता है। यह उपकरण इंटरनेट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध किसी भी छवी के साथ रिकॉर्ड किये गये चेहरे का मिलान करने के लिये आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) का उपयोग करता है। 
इसके बाद आई-एक्सरे एक अन्य एआई टूल को सक्रिय करता है जो छवि में मौजूद व्यक्ति के बारे में निजी विवरण प्राप्त करने के लिये सार्वजनिक डेटाबेस को खंगालता है – जिसमें उसका नाम, पता, फ़ोन नंबर और यहां तक कि रिश्तेदारों के बारे में भी जानकारी शामिल है। तत्पश्चात यह जानकारी आई-एक्सरे मोबाइल ऐप पर भेजी जाती है। 
‘X-Monday’ पर पोस्ट किये गये वीडियो में आंफ़ी और केन को वास्तिवक समय में सहपाठियों की पहचान करते और आई-एक्सरे द्वारा एकत्रित की गई जानकारी का उपयोग करके सार्वजनिक रूप से अजनबियों से संपर्क करते हुए देखा जा सकता है जैसे कि वे उन्हें जानते हों। 
लोगों के चिंता ज़ाहिर करने पर आंफ़ी और केन ने इस बात के स्पष्ट किया कि वे अपने कार्यक्रम को सार्वजनिक नहीं करेंगे। उन्होंने अपना कार्यक्रम केवल रे-बैन मेटा स्मार्ट ग्लास के मामले में ‘गोपनीयता से जुड़ी महत्वपूर्ण चिंताओं को उजागर करने’ के लिये ही बनाया है। हमारा बनाया हुआ कार्यक्रम दुरुपयोग करने के लिये नहीं बनाया गया है। यह केवल एक तरह की चेतावनी है। 
इन युवा विद्यार्थियों ने सबके दिल से डर हटाने के बारे में भी सोचा और लोगों को सार्वजनिक डेटावेस से ख़ुद को हटाने में मदद करने के लिये चरण-दर-चरण निर्देश जारी किये जिनके माध्यम से इन दोनों ने व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त की थी। 
ज़ाहिर है कि इसका असर रे-बैन कंपनी पर भी पड़ा होगा। उन्होंने तत्काल प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी कंपनी का बयान जारी करते हुए सफ़ाई दी है कि, “रे-बैन मेटा ग्लास में चेहरे की पहचान करने की तकनीक नहीं लगाई गई है। इस चश्मे से केवल फ़ोटो खींची जा सकती है या फिर वीडियो बनाया जा सकता है। यह साफ़ पता चल रहा है कि ये दोनों छात्र कंप्यूटर पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं जो किसी भी कैमरे, फ़ोन या रिकॉर्डिंग डिवाइस पर ली गई तस्वीरों के साथ काम कर सकता है।”
कंपनी ने आगे कहा है कि, “अधिकांश अन्य उपकरणों की तुलना में रे-बैन मेटा ग्लास में एक एल.ई.डी. लाइट लगी होती है जो सामने वाले को संकेत देती है कि चश्मे वाला व्यक्ति फ़ोटो खींच रहा है या फिर रिकॉर्डिंग कर रहा है। इस एल.ई.डी. को अक्षम नहीं किया जा सकता और ना ही किसी प्रकार की छेड़छाड़ की जा सकती है।”
यदि यह मान भी लिया जाए कि अमरीका के ये दो विद्यार्थी अपने आविष्कार को सार्वजनिक नहीं करेंगे, तो भी क्या हम सब निश्चिंत हो कर बैठ सकते हैं क्या? सवाल यह उठता है कि यदि ये दो विद्यार्थी ऐसा ऐप बना सकते हैं जो कि  ‘रे-बैन’ स्मार्ट  चश्मे से फ़ोटो लेकर उसकी पूरी जानकारी हासिल कर सकता है, तो क्या जो पूरी दुनिया के प्रोफ़ेशनल हैकर हैं वो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्या यह समाचार उन सब तक नहीं पहुंचा होगा? और हो सकता है कि इन दो विद्यार्थियों ने तो केवल शौकिया तौर पर यह ऐप बनाया हो; मगर जो हार्ड कोर प्रोफ़ेशनल कंप्यूटर एक्सपर्ट हैं, वो तो ख़तरनाक किस्म का ऐप बनाने में सक्षम होंगे। 
कृत्रिम बौद्धिकता में हो रही प्रगति पर अब सब लोग चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं क्योंकि जो नये आविष्कार हो रहे हैं, उससे आम आदमी के लिये यह पता लगा पाना बहुत कठिन हो जाता है कि कोई उनकी रिकॉर्डिंग कर रहा है। अब जैसे चश्मे का इस्तेमाल हो रहा है ऐसे ही अन्य पहनने वाली वस्तुओं का भी तो इस्तेमाल शुरू हो सकता है। 
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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33 टिप्पणी

  1. बहुत चिंताजनक है ये विषय। आपने इस विषय पर गहराई से शोध किया है। यूँ भी सभी राम भरोसे ही जीते हैं, अब इस AI की दुनिया में सब ऊपर वाले की मेहरबानी…
    अच्छा और चेतावनी देता संपादकीय, आभार।

  2. यह तो सच में बहुत चिंताजनक स्थिति है। अगर यह बाज़ार में आ गया तो इसका दुरूपयोग तो निश्चित है। आज के समय में विज्ञान मानव की जितनी सहायता कर सकता है उतनी ही ज्यादा मुश्किलें भी खड़ी कर सकता है, यदि उस पर निगरानी न रखी गई।
    बहुत अच्छा संपादकीय,,,,,

  3. सूक्ष्म आकलन। आपका विषय पर चिंतन मौलिक और पूर्वापेक्षी होता है। अतीत पर दृष्टि डाले हुए वर्तमान पर गंभीर चिंतन करते हैं। संपादकीय पठनीय और जिज्ञासापूर्ण होता है।

  4. आप ही ने लिखा है कि आज कवि की कल्पना कल का विज्ञान। चिंता अपनी जगह है किन्तु न ही कवि कल्पना करना बंद करेगा और न ही विज्ञान उस कल्पना को एक धरातल देने को अपनी कोशिशों को अंजाम तक पहुँचाना किन्तु धन्यवाद कि आपके सम्पादकीय से इस नई खोज का पता चला ।

  5. इस संपादकीय ने व्यक्तिगत रूप से तो इतना नहीं डराया है पर जब देश दुनिया के बारे में सोचा तो मुझे छात्रों का यह आविष्कार खतरनाक और भयावह लगा। देशों की खुफिया जानकारियां पल भर में बाहर आ जाएंगी। विश्व का अर्थतंत्र गड़बड़ा जाएगा, सामाजिक ढांचा बुरी तरह से क्षत-विक्षत होगा। राजनीति और राजनेताओं यह बुरा प्रभाव डालेगा।
    इस संपादकीय को पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आपका विजन बहुत ही मानवीय है। आपको सामाजिक जीवनमूल्यों की चिंता है। देश-दुनिया को इन चश्मों से न देखकर आप मानव हित से जुड़े चश्मे से देखने के आदी हैं। और यह सभ्य संसार के लिए जरूरी ही नहीं अनिवार्य भी है। संपादकीय के माध्यम से जो जानकारी दी गई है यह महत्वपूर्ण तो है ही साथ में ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी है। क्योंकि इसे जानकर हम सावधान तो हो ही सकते हैं। बधाई आपको

    • भाई लखनलाल, आपका स्नेह दिल को हमेशा छू जाता है। पुरवाई का प्रयास रहता है कि अपने परिवार को नई से नई जानकारी उपलब्ध करवाए।

  6. अद्भुत जानकारी के साथ यह एक अतिचिंतित होने वाला विषय है। आम जनता इतनी अधिक तकनीकी जानकारी से अनजान रहती है। आपका संपादकीय कई उपयोगी जानकारी से अवगत कराता है। विज्ञान की ये अत्याधुनिक तकनीकें विकास के साथ भविष्य के लिए खतरे की घंटी बजा रही हैं।

  7. संपादकीय – आँखों से जो उतरी है दिल में…!!
    विज्ञान और तकनीक संचारकों से अक्सर कहा जाता है कि वे इन विषयों को लोगों में और विशेष रूप से आम जन में पहुंचाने हेतु सरल रोचक अंदाज़ में लिखें या बोलें ।और बाद में यही अवधारणा लोकप्रिय विज्ञान यानी पॉपुलर साइंस के रूप में अब सबके सामने है।इसी विज्ञान के रूप को हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में शामिल करके हमारे देश के नागरिकों को विज्ञान एवं तकनीक savvy बनाने का लक्ष्य है।
    उपरोक्त वर्णित तथ्य पुरवाई के इस संपादकीय को रेखांकित करते हैं।विज्ञान और तकनीक भस्मासुर भी कैसे और कहां साबित हो सकती है। इस मानव थाती को कितना प्रयोग में लाना है ।यह भी इस नवाचार उत्पाद यानी जादुई चश्में के माध्यम से बताया गया है।रोचकता वही है जो रोचक विषयों के बीच में से अपनी बात को प्रस्तुत करे और भारतीय फिल्मों के गीतों में से हमारे संपादक ने लोकप्रिय विज्ञान संचारक की भूमिका निभा कर एक शानदार नज़ीर प्रस्तुत कर दी है।
    बस यही संपादकीय से अपेक्षा रहती है जो साठ के दशक से 80के दशक तक रही और बाद में विशेषज्ञता के नाम पर कुर्बान कर दी गई।उसी को पुनः जागते देख यहां पर बहुत अच्छा लगा।
    पुरवाई पत्रिका परिवार और संपादक महोदय को हृदय से बधाई।

    • भाई सूर्यकांत जी, आपकी टिप्पणी बहुत सारगर्भित और अर्थपूर्ण है। हार्दिक आभार।

  8. भयानक.. बुद्धि। इंसान कभी उपयोगी बुद्धि का प्रयोग किया है? जब किया गया.. उसका लाभ उठाया गया नकारात्मक सोच से।
    यह भी एक नकारात्मक सोच ही है। अब इसकी जितनी भी सफाई दी जाए..मनसा तो बिल्कुल सही नहीं है। विज्ञान का यह कैसा समय है? प्रकृति से छेड़छाड़ तो कभी स्वयं के विनाश में लिप्त।

    आपका संपादकीय सदैव एक चुनौतीपूर्ण विषय पर होता है और हमें नई जानकारी भी प्राप्त होती है। आपकी लेखनी सदा मार्गदर्शन करती रहे।

  9. Your Editorial of today informs us about the app that those two Ivy League students have prepared with the help of AI and which when used with smart Rayban goggles can pierce into any other object n make pictures.
    It is an absolutely new and unknown world for us who belong to the 40s generation.
    But of course it is very interesting n makes us marvel at the curiosity n inventive power of the modern youth.
    Thanks for enlightening us about this innovative project of these two young students.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  10. सच्चाई यह है अगर इस क़िस्म की हैकिंग से बचना है तो आमेजन के जंगल में रहना होगा, कोई मोबाइल या फिर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस साथ में नहीं रखनी होगी तभी हैकिंग से बचा जा सकता है
    लेकिन मित्र इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हृदय तल से आभार

  11. ओह! अत्यंत चिंताजनक। संपादक जी आपने वैश्विक चुनौतियों और उनकी गंभीरता पर सवाल उठाए हैं।एकदम नयी जानकारी चौंकाती है,हम किस दुनिया में रहते हैं,और आप एक अनोखी मे ले जाते हैं। फोटो से चेहरों के पीछे का सच जानने की एक कला भारतीय ज्योतिष की भी धरोहर है। अभी भी कुछ ज्योतिष चेहरा पढ़कर भूत, वर्तमान और भविष्य बताने में माहिर हैं।हमें अपने साथ हुआ वाक्या याद आ रहा है।एक बार हमारा स्थानान्तरण झाबुआ हो गया।हम जाना नहीं चाहते थे किन्तु स्थानान्तरण रुकने में लंबा समय लग रहा था विवश होकर हमें झाबुआ जाना पड़ा।हमें लगभग दो महीने वहां रहना पड़ा।इस दौरान हमारी प्राध्यापक मित्र के घर एक पहुंचे हुए ज्योतिष/संत आए। उन्होंने हमें बताया कि आपका यहां आना ईश्वरीय शक्ति के अधीन आपके परिवार के हित के लिए हुआ है। आपके ग्रह आपके पति के लिए अभी अनुकूल नहीं है। फिर उन्होंने हमारे अगूंठे पर एक दृश्य दिखाया,वह अभी भी हमारे मानस पटल पर अंकित है। उसमें हमारे इंदौर के घर के खाने के कमरे का दृश्य दिखाया गया था। इसमें हमारा परिवार जोशी साहब, बेटी,बेटा, भानजी भोजन के लिए बैठे थे, कुछ चर्चाएं हो रही थीं ,टी वी यद्यपि बंद था फिर भी कोई छाया उसके आसपास थी। ज्योतिष जी ने कहा यही सत्य इसे ही घर से निकालना है,अगर आप वहां होती तो यह आपके साथ होती, फिर पति पर भारी पड़ती। अभी इसकी नकारात्मक ऊर्जा आपके साथ है।आप अभी एक महीना यहीं रहेंगी,तब तक आप एक तुलसी के गमले में धनिया बो दीजिए। थोड़ा कष्ट देकर बाधा हट जाएगी। एक माह बाद आप इंदौर होंगी।यह बात सन 2003 की है। सचमुच मई 2003 में जोशी साहब का हार्निया का आपरेशन हुआ। जून 2003में हम इंदौर आ गए। केवल हमारे चेहरे को पढ़कर इतना सटीक बताकर, वर्तमान को अंगूठे पर दिखाकर, भविष्य को राह देने का काम कोई विरला ही कर सकता है। किन्तु अपने अंगूठे पर अंकित दृश्य हमें आज भी रोमांचित कर देता है।उस समय हमने अपने घर लौटने की खुशी में सब बिसराए दिया था, बाद में हमने उन संत ज्योतिष का बहुत पता लगाया किन्तु नतीजा सिफर रहा।अब यदि एआई की मदद से,दो छात्रों ने चेहरे से सब कुछ जानने की कला ढूंढ निकाली है, तो इसका सदुपयोग होगा तो मानवता विकसित होगी। बहरहाल आपकी लेखनी का कमाल है कि कहां-कहां से अनूठा खोज लाती है।आपकी लेखनी जिज्ञासाएं भर्ती रहे और हम उसमें से कुछ जुटा सकें इसी के साथ दीपपर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं

    • कला जी, जो ज्योतिषी आपको मिले, उन्होंने अपनी विद्या का सदुपयोग किया जबकि Artificial intelligence का दुरुपयोग किया जा रहा है।

  12. कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सफर आज यहाँ तक पहुँच गया, इस नये शोध का आगे क्या श्याम पक्ष होगा ? ये प्रगति का एक कदम विकृत मानसिकता वालों के लेिए एक नया आयाम देने वाला है।
    आपकी संपादकीय ने ज्वलंत विषय को छुआ है। आपकी कलम को नमन।

  13. हम सब जानते हैं , ईश्वर ने मनुष्य और प्रकृति को बनाया है ! सारे जीव-जंतु भी ईश्वर की रचनाएँ हैं। पर भौतिक ज्ञान मनुष्य निर्मित है। हां ! ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है !! मनुष्य , ज्ञान द्वारा ही जीवन की समस्याओं का समाधान करता है। कुछ नए जीव भी अब मनुष्य बना चुका है। क्लोनिंग होती रही है। नई भेड़ बनाई गई थी। हमारी समस्याएं सुलझानेवाला ज्ञान ही, अब हमारे लिए समस्याएं पैदा कर रहा है। ज्ञान का दुरुपयोग किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। यह संपूर्ण मानवता के लिए अति घातक बनता जा रहा है। आपका यह संपादकीय भी पाठकों का लिए बहुत उपयोगी है। हार्दिक धन्यवाद !!

    • ज्ञान के दुरुपयोग की अब कोई सीमा नहीं है। अब ‘दुर्ज्ञान’ जैसा शब्द भी गढ़ना पड़ेगा।

  14. विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने मनुष्य के विकास के लिए अनेकों अविष्कार किये जिससे कि उनका जीवन स्तर उठे, यह हुआ भी किन्तु कुछ अविष्कार ऐसे हुए जिनसे इंसान का विनाश ही हुआ। रे बैन स्मार्ट चश्मा उनमें से ही एक है। भले ही इसको बनाने वाले छात्र या दावा कर रहे हों कि वे अपने इस अविष्कार को सार्वजनिक नहीं करेंगे लेकिन यह सार्वजनिक तो हो ही गया।
    इसका फायदा हैकर न उठायें ऐसा हो ही नहीं सकता। यह लोगों के निजी जीवन में सेंध लगाने का अनुचित साधन सिद्ध होगा। इससे बचने के उपाय भी खोजने होंगे। आपका संपादकीय इस शोध की जानकारी के साथ लोगों को जागरूक करते हुए चेतावनी भी दे रहा है।

    साधुवाद आपको।

    • सुधा जी आपकी सार्थक और अर्थपूर्ण टिप्पणी संपादकीय समझने में सहायक सिद्ध होगी।

  15. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    इस बार का संपादकीय तो बिल्कुल अकल्पनीय है किंतु सर्वप्रथम इस बात की तारीफ करनी होगी कि खेल गाँव की व्यस्तता में भी आपने संपादकीय के लिए इतना महत्वपूर्ण विषय ढूँढ लिया। यह सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है। आपकी आँखों में भी वह लैंस है जो चारों तरफ घूमता रहता है और पूरी दुनिया की घटनाओं पर अपनी नजर रखता है साथ तथ्यात्मक खोज करने वाला सुपर पावर दिमाग!!!!!आप सचमुच कमाल हैं! अब बात संपादकीय पर-विज्ञान ने विकास के क्षेत्र में संसार को जितनी उत्कृष्टता प्रदान की है और उसके जितने लाभ हुए हैं, उससे कम उसके नुकसान नहीं है ।एक अच्छी सोच जिस उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ती है, एक अपराधी प्रवृत्ति वाली नीची और दुष्ट सोच उससे चार कदम आगे जाकर उसका तोड़ निकाल लेती हैं। जैसे सरकार नियम बनाती है, कानून बनाती है और तोड़ पहले निकल आते हैं।
    बहुत चिंतित करने वाला है यह संपादकीय। शैतान अपने हर रोम में आँखें रखता है ।
    आपकी यह सोच जायज है कि यदि ये दो विद्यार्थी ऐसा ऐप बना सकते हैं जो कि ‘रे-बैन’ स्मार्ट चश्मे से फ़ोटो लेकर उसकी पूरी जानकारी हासिल कर सकता है, तो जो पूरी दुनिया के प्रोफ़ेशनल हैकर हैं वो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?” अब तक तो यह समाचार उन सब तक पहुँच ही गया होगा। भले ही इन दो विद्यार्थियों ने केवल शौकिया तौर पर यह ऐप बनाया है मगर जो हार्ड कोर प्रोफ़ेशनल कंप्यूटर एक्सपर्ट हैं, वो तो ख़तरनाक किस्म का ऐप बनाने में जुट ही गये होंगे।
    आपके संपादकीय के शीर्षक में गाने की पंक्ति पढ़कर विश्वास नहीं हो रहा था कि अंदर का मटेरियल इतना ज्यादा खतरनाक होगा लेकिन आपने संदर्भ बहुत अच्छा दिया इसमें कोई दो मत नहीं।
    इस संपादकीय ने वाकई एक नई चिंता संसार को दी है और वह चिंता भी सामान्य नहीं।
    इस डरावने लेकिन सत्य संपादकीय के लिए आपका प्रयास काबिले तारीफ है और प्रशंसनीय भी।
    बहुत-बहुत बधाइयाँ एवं शुभ यात्रा।
    पुरवाई का तहे दिल से शुक्रिया।

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