Sunday, September 8, 2024
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संपादकीय – अमरीका में चुनावी हिंसा

अमरीका को प्रवचन देने की बुरी आदत है। वह पूरी दुनिया को सलाह देने से बाज़ नहीं आता। मगर पूरी दुनिया में बमबारी भी वही करता दिखाई देता है। भारत के चुनावों में हिंसा की बात करता है मगर अपने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी पर गोली चलने देता है। केजरीवाल पर मुकद्दमा चलने पर अमरीका को परेशानी होती है। मगर डॉनल्ड ट्रंप पर देशद्रोह का मुकद्दमा होने देता है। भारत में अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म की दुहाई देता है मगर अपने ही देश के विद्यार्थियों को फ़िलिस्तीन के पक्ष में धरना प्रदर्शन के जुर्म में देश निकाले का आदेश सुना देता है।

अमरीकी फ़िल्मों में पिस्तौल और बंदूकें इतनी आसानी से चलती हैं जैसे कोई प्रेम के गीत गा रहा हो। इन फ़िल्मों का असर भारत की फ़िल्मों पर भी हुआ है और हमारी फ़िल्मों में भी हिंसा का नंगा नाच दिखाई देने लगा है। 
हिरोशिमा और नागासाकी से लेकर वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध तक अमरीका पूरे विश्व में गोले बारूद का धुआं फैलाता रहा है। सिनेमा में मोज़ेज़, बेन-हर और एलसिड जैसे किरदार निभाने वाले चार्ल्टन हेस्टन राइफ़ल एसोसिएशन के मुखिया का रूप धर लेते हैं। और अब चुनाव में राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डॉनल्ड ट्रम्प पर जानलेवा हमले ने तो साबित कर दिया है कि हिंसा अमरीका नसों में लहू के साथ बहती है। 
हर साल कितनी वारदातें सामने आती हैं जब अमरीका के स्कूल और कॉलेजों में गोलियां चल जाती हैं। हैरानी की बात यह है कि अमरीका में हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर किसी तरह की पाबन्दी के पक्ष में कोई नियम कानून नहीं बनाए जाते। गन-लॉबी इतनी शक्तिशाली है कि किसी भी राष्ट्रपति में इतनी हिम्मत नहीं कि उनके विरुद्ध कोई कानून पास करवा सके। 
राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने पेंसिल्वेनिया में खुद पर हुए हमले पर बात करते हुए कहा कि उस वक्त वो खुद को मरा हुआ मान चुके थे. उन्होंने अपने ज़िन्दा होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें लगता है जैसे ईश्वर ने उन्हें बचाया है या फिर किस्मत ने। 
उन्होंने हैरानी भरे स्वर में कहा,  “सबसे अविश्वसनीय बात यह थी कि मैंने न केवल अपना सिर घुमाया, बल्कि बिल्कुल सही समय पर और सही तरीके से घुमाया।”  उन्होंने कहा कि जो गोली उनके कान को छू गई, वो उनकी जान भी ले सकती थी। 
बीबीसी के एक समाचार के अनुसार, “चेहरे पर ख़ून, हवा में लहराती हुई मुट्ठी और सीक्रेट सर्विस के अधिकारियों की मदद से मंच से उतरते पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की असाधारण तस्वीर न केवल इतिहास रच सकती है बल्कि यह नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव की दिशा भी बदल सकती है।”
ट्रम्प पर हमले की जांच में सामने आया है कि अमेरिकी अधिकारियों को कई हफ्ते पहले ईरान से ट्रम्प को मारने के लिए रची जा रही साजिश की जानकारी मिली थी। अमेरिकी मीडिया सीएनएन के मुताबिक, सीक्रेट सर्विस ने इंटेलिजेंस मिलते ही ट्रम्प की सिक्योरिटी बढ़ा दी थी। हालांकि, ट्रम्प पर हमला करने वाला थॉमस इसी साजिश का हिस्सा था या नहीं इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है।
हमलावर की पहचान 20 साल के युवक थॉमस क्रूक्स के तौर पर हुई थी। उसने एआर-15 राइफ़ल से 8 गोलियां चलाई थीं। फायरिंग के तुरंत बाद सीक्रेट सर्विस के अफ़सरों ने हमलावर को मार गिराया था। वह रिपब्लिकन पार्टी का ही समर्थक था।
मीडिया रिपोर्ट्स में सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब पहले से ही हमले का डर था, तब भी ट्रम्प की सुरक्षा में चूक कैसे हो गई। इससे पहले मंगलवार को सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि हमलावर ने जिस इमारत की छत से ट्रम्प पर हमला किया, उसकी दूसरी मंजिल पर ही सर्विस यूनिट के स्नाइपर्स तैनात थे।
चीन सही मायने में एक पूंजीवादी देश है। चीन ने बाकायदा ट्रंप की मुट्ठी बांधे हुए जो तस्वीर है, उसकी टीशर्ट बनाकर लॉन्च भी कर दी… कीमत रखी 450 रुपये मात्र. सवाल अमेरिका के गन कल्चर पर भी है. बोया पेड़ बंदूक का तो शांति कहां से होय… दुनियाभर में नये-नये युद्ध शुरू कराकर हथियार बेचने वाले अमेरिका में..ट्रंप भले ही शूटर की गोली से बच गए हों लेकिन टॉफी बिस्कुट कैंडी की तरह किराने की दुकानों पर बंदूक और गोली बेचने वाले अमेरिका का गन कल्चर… अब उसके लिए ही भस्मासुर बन चुका है।

कुछ दिन पहले ही अमरीका से एक चौंकाने वाली ख़बर सामने आई है। अमेरिकन राउंड्स नाम की एक स्टार्ट-अप कंपनी अब बुलेट बेचने के लिए यूएस में वेंडिग मशीनें लगा रही है, जो कुछ शहरों में शुरू भी हो गई हैं। अमेरिका में किराना स्टोर में दूध ब्रेड जैसी आम जरूरत की चीजों के साथ गोलियां बेचने के लिए वेंडिंग मशीन लगाई जा रही हैं। ये खरीद प्रक्रिया को सरल बनाने और जिम्मेदार बंदूक मालिकों के लिए पहुंच बढ़ाने की कोशिश के तहत किया जा रहा है। कंपनी के संस्थापक जॉनडो का मानना है कि किराना स्टोर पर बुलेट बेचा जाना भविष्य की कल्पना है। उनका कहना है कि गोली और हथियार खरीदना भी वेंडिंग मशीन से किसी अन्य उत्पाद को खरीदने जितना आसान होना चाहिए।
सोचने की बात यह है कि जिस देश की सोच में हिंसा बसी हो, वो देश विश्व भर का चौधरी बन कर लोकतंत्र और मानवाधिकार की बात कैसे कर सकता है। वैसे भी हॉलीवुड की वेस्टर्न थीम का फ़िल्मों में घोड़ों पर सवार मैली-कुचैली दाढ़ी वाले लोग बंदूकें दाग़ते दिखाई देते रहते हैं। क्लिंट ईस्टवुड, जॉन वेन औरी ली वैन क्लिफ़ उन फ़िल्मों के ख़ुदा हैं। यानी कि आप स्वयं तो गोलियां दूध और चिप्स की तरह वेंडिंग मशीन से बेचेंगे मगर तालिबान को गाली देंगे क्योंकि वो अपने बच्चों तक को गोली चलाना सिखाते हैं। भाई आप में और उनमें फ़र्क क्या है। आप पैंट कोट पहन कर बंदूक चलाते हैं और सभ्य होने का नाटक करते हैं जबकि वो अपनी पारंपरिक पोशाक में और अपनी भाषा में हिंसा करते हैं – दोनों के कुत्ते टॉमी नहीं बन सकते… कुत्ते ही रहेंगे!
अमरीका को प्रवचन देने की बुरी आदत है। वह पूरी दुनिया को सलाह देने से बाज़ नहीं आता। मगर पूरी दुनिया में बमबारी भी वही करता दिखाई देता है। भारत के चुनावों में हिंसा की बात करता है मगर अपने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी पर गोली चलने देता है। केजरीवाल पर मुकद्दमा चलने पर अमरीका को परेशानी होती है। मगर डॉनल्ड ट्रंप पर देशद्रोह का मुकद्दमा होने देता है। भारत में अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म की दुहाई देता है मगर अपने ही देश के विद्यार्थियों को फ़िलिस्तीन के पक्ष में धरना प्रदर्शन के जुर्म में देश निकाले का आदेश सुना देता है। 
वहीं एक बात और भी ध्यान देने लायक है। ट्रंप पर हुए जानलेवा हमले पर सरकारी पक्ष और अन्य नेताओं ने गंभीरता से तमीज़दार भाषा में प्रतिक्रियाएं दीं। यदि बात भारत की होती तो धड़ाधड़ इस तरह की घटना पर निकृष्ट राजनीतिक बयान दिया जा रहे होते… शायद यह भी कहा जाता कि पिछली बार पुलवामा था अब की बार ख़ुद पर गोली। “ज़रा पता लगाया जाए कि इतना परफ़ेक्ट निशानेबाज़ ढूंढा कहां से जो कान को छूते हुए गोली निकाल गया!”   
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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46 टिप्पणी

  1. आज के संपादकीय अमेरिका में चुनावी हिंसा को एक पुरानी कहावत याद आती है पर उपदेश कुशल बहुतेरे या फिर दूसरों की हँसी
    पर हंसे और अपनी हँसी पर रोए!
    संपादकीय द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर अब तक के हालात पर बेहद रोचक सारगर्भित बात को कहता हुआ अमेरिका को आईना दिखाता है। इस महाशक्ति को समझना होगा कि इसे अपने गिरेबान में झांकना सीखना होगा।

  2. अमेरिका का गन कल्चर उसके लिए भस्मासुर बन गया है लेकिन उसका ध्यान वैश्विक हथियार व्यवसाय में सिरमौर बने रहने पर ही केंद्रित रहेगा. उसे कितना भी आईना दिखाने का प्रयास किया जाए वह देखने को तैयार ही नहीं होगा.

  3. सादर नमस्कार सर बहुत ही महत्वपूर्ण विषय और संवेदनशील भी… विश्व के लिए एक दर्पण समान… एक जीवंत उदाहरण भी ….साधुवाद

  4. आदरणीय तेजेंन्द्र जी
    अमेरिका के प्रति हमें जरा भी सहानुभूति नहीं। जब हम थोड़ा समझदार हुए तो ही जानने लगे थे के रूस भारत का मित्र है और अमेरिका पाकिस्तान का सहयोगी।
    भारतीय लोगों का अमेरिका जाना ,वहाँ रहना, पढ़ना और नौकरी का इतना ज्यादा क्रेज कि,शान समझना, हमें कभी नहीं रुचा। पर अपने निर्णय के लिए सब स्वतंत्र है ं
    एक गाना याद आ रहा है
    जो बोया है वही पाएगा
    तेरा किया आगे आएगा
    जैसी करनी वैसी भरनी।
    और फिर यह भी-
    बोया पेड़ बबूल का,
    आम कहाँ से खाय।

    आज की संपादकीय की तारीफ इसलिए ही है कि आपने अमेरिका के बारे में लिखने का दुस्साहस सच्ची वीरता से किया -सीधी सड़क-बेधड़क। इसके लिए आपके साहस को सलाम करते हैं हम। सादर प्रणाम संपादकीय और संपादक, दोनों को ही।
    फिर भी यह कहे बिना नहीं रह सकते कि आपके इस तरह के संपादकीय हमेशा मन में आपके लिए एक चिंता पैदा कर देते हैं।
    भारत और अमेरिका के संदर्भ में आपने जो भी कुछ कहा है उसके लिए यही कहावत पर्याप्त है कि
    “खुद गुरुजी बैंगन खाएँ ,दूसरे को उपदेश सुनाएँ।’
    ‌ सच पूछा जाए तो इस तरह की स्थितियाँ बहुत तकलीफ देती हैं। बार-बार हम विकास के अर्थ को ढूँढने का प्रयास करते हैं कि विकास क्या है ?कहाँ है ?कैसा है? और जैसा भी है क्या वास्तव में हम ऐसा ही विकास चाहते थे?
    लेकिन अमेरिका के इस कृत्य के लिए उसे नजर अंदाज भी नहीं किया जा सकता। लोग आजकल देख कर ज्यादा सीख रहे हैं। विकास के जिस शिखर पर अमेरिका है उसे देखकर यह तो विचार दिमाग में आता ही है कि अगर पड़ोस में आग लगी है तो अपने घर की सुरक्षा की भी गैरेंटी नहीं रहती।
    जिस देश में हथियार व गोली बारूद इतनी सहजता से मिल जाते हैं तो ऐसा क्यों न माना जाए कि जितने भी दंगे फसाद होते हैं और हथियार लोगों के पास आते हैं ,चाहे वह दंगे कैसे भी हों,सांप्रदायिक हों या किसी भी तरह के तो हथियार अमेरिका से ही प्राप्त होते होंगे।
    कुल मिला के विषय चिंतनीय है।
    बेहतरीन संपादकीय के लिए एक बड़ी चिन्ता के साथ बहुत-बहुत बधाई आपको। ईश्वर आपकी रक्षा करें।हम सबकी दुआएं आपको लगें।
    आप सदा स्वस्थ व दीर्घायु हों।
    अमेरिका के तीन राष्ट्रपति हमारे प्रिय हैं
    सबसे पहले -अब्राहम लिंकन, दूसरे कैनेडी, और तीसरे ओबामा!
    जितना हमने अब्राहम लिंकन को पढ़ा है हम उनसे बहुत प्रभावित हैं।
    अब्राहम लिंकन का पत्र बेटे के शिक्षक के नाम, एक महत्वपूर्ण पत्र हैं। मोबाइल न गुमा होता तो वह हमारे पास सुरक्षित था ।हो सकता है यूट्यूब में मिल भी जाए अगर किसी को पढ़ना हो तो।
    एक बार पुनः संपादकीय के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
    पुरवाई का आभार।

  5. इस बेहतरीन टिप्पणी के‌ लिए धन्यवाद या आभार के शब्द नहीं मिल रहे नीलिमा जी।

  6. जिस देश में राष्ट्रपति या उस पद के उम्मीदवार पर गोली चलाने का रिवाज रहा है , उसके मुँह से किसी पर आक्षेप अनुचित है। विश्व में अपने को सर्वशक्तिमान समझने वाले देश की राजनीति भी रक्त से। सनी हुई है।
    इतनी बेबाक सम्पादकीय के लिए आपको बधाई देती हूँ।

  7. नमस्कार तेजेन्द्र जी
    बहुत बढ़िया संपादकीय। अमरीका की सच्चाई तो पूरी दुनिया जानती है कि उसकी कथनी और करनी में कितना अंतर है। रूस की मित्रता पर हम विश्वास कर सकते हैं। मेरे अंकल स्वर्गीय श्री टी.एन.कौल जी (lCS) रूस में काफी समय तक Ambassador रहे थे और रूस से हमारी मित्रता तभी से चली आ रही है

  8. इतनी बेबाक संपादकीय के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। अपने लिए कुछ दूसरों के लिए कुछ ऐसे अमेरिका की राजनीति।

  9. नमस्कार
    बातों बातों में बड़ी बात
    अमेरिका अंतराष्ट्रीय चौधरी है ,क्या बात

    Dr Prabha mishra

  10. आपकी बात बिल्कुल सटीक है। अंतिम पंक्तियां तो और भी। इस बेहतरीन संपादकीय के लिए आपको धन्यवाद।

  11. Your Editorial of today brings out the worrisome increase in the sales n manufacture of guns n bullets in America.
    Leading to so many teenagers holding n using guns here,there,everywhere.
    The assault on Trump is a very grave matter indeed.
    Also you point out how the American public has taken it in the right spirit n not played any ‘blame game’.
    Like our Indian people do
    Warm regards
    Deepak Sharma

  12. आदरणीय संपादक जी नमस्कार।
    आपने अमेरिका की वर्तमान वस्तुस्थिति का खुलासा किया जो बेहद जरूरी है।
    क्षमा पांडेय

  13. आदरणीय संपादक जी नमस्कार।
    आपने अमेरिका की वर्तमान वस्तुस्थिति का खुलासा बेहद दिलचस्प तरीके से किया।
    क्षमा पांडेय

  14. संपादक महोदय नमस्कार।। अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में भी ये सब अमानवीय व्यवहार प्रश्नचिन्ह लगाता है।

  15. आदरणीय संपादक जी नमस्कार।
    आपने अमेरिका की राजनीति में हिंसात्मक कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला।
    क्षमा पांडेय

  16. सादर अभिवादन सर
    आपका संपादकीय हमेशा एक ज्वलंत मुद्दे को लेकर लिखा जाने वाला बहुत प्रभावी रहता है। आपका बहुत आभार, आपके कारण कई अनजान पहलुओं से हम वाकिफ हो पाते हैं।

  17. तेजेन्द्र भाई: आपके इस सम्पादकीय ने तो अमरीका की दुखती नस को ज़ोर से दबा दिया है। ऐसे स्पष्ठ शव्दों में लिखने के लिये बहुत बहुत साधुवाद। एक बहुत मशहूर कहावत है। “दूसरों को नसीहत, आप मियाँ फ़जीहत”। यह कहावत अमरीकी सोच पर पूरी तरह से उतरती है। आँखें बन्द करके उनकी बस सुने जाओ और हाँ में हाँ मिलाते जाओ और गिल्टी फ़ील करते जाओ। यही तो बस यह चाहते हैं।। ऐसी ही एक काल्पनिक कहानी में अमरीका के राष्ट्रपति एक देश की यात्रा पर गये। बातचीत के दॉरान में उन्होंने बड़ी बड़ी बातें करके उस देश के प्रधान मन्त्री की कठोर आलोचना करनी शुरू करदी। सुनते सुनते तँग आकर जब प्रधान मन्त्री ने राष्ट्रपति से पलट कर सवाल किया कि वो अपने देश में अपनी ही इन बातों का कितना पालन करते हैं तो उसको तपाक से जवाब मिला कि “हम ही जो कहें और उस पर अमल करें तो तुम किस मर्ज़ की दवा हो। हमारा काम तो केवल भाषण देना है। उस पर अमल करना आपका धर्म बन जाता है।“
    गन कल्चर तो अमरीकी DNA में है। कैनेडा में गन कन्ट्रोल है लेकिन दिन पर दिन यहाँ भी शूटिँग की वार्दातें बढ़ती जारही हैं। पकड़ी हुई पितौलें अधिक्तर unregistered होती हैं। ज़ाहिर है कि यह सब firearms कहाँ से सम्गल होकर आरहें हैं। अमरीका के संविधान के दूसरे ammendment की इस सोच (Right to bear arms) में कुछ भी कमी आने की संभावना नहीं लगती।
    तेजेन्द्र भाई: आपके इस सम्पादकीय ने तो अमरीका की दुखती नस को ज़ोर से दबा दिया है। ऐसे स्पष्ठ शव्दों में लिखने के लिये बहुत बहुत साधुवाद। एक बहुत मशहूर कहावत है। “दूसरों को नसीहत, आप मियाँ फ़जीहत”। यह कहावत अमरीकी सोच पर पूरी तरह से उतरती है। आँखें बन्द करके उनकी बस सुने जाओ और हाँ में हाँ मिलाते जाओ और गिल्टी फ़ील करते जाओ। यही तो बस यह चाहते हैं।। ऐसी ही एक काल्पनिक कहानी में अमरीका के राष्ट्रपति एक देश की यात्रा पर गये। बातचीत के दॉरान में उन्होंने बड़ी बड़ी बातें करके उस देश के प्रधान मन्त्री की कठोर आलोचना करनी शुरू करदी। सुनते सुनते तँग आकर जब प्रधान मन्त्री ने राष्ट्रपति से पलट कर सवाल किया कि वो अपने देश में अपनी ही इन बातों का कितना पालन करते हैं तो उसको तपाक से जवाब मिला कि “हम ही जो कहें और उस पर अमल करें तो तुम किस मर्ज़ की दवा हो। हमारा काम तो केवल भाषण देना है। उस पर अमल करना आपका धर्म बन जाता है।“
    गन कल्चर तो अमरीकी DNA में है। कैनेडा में गन कन्ट्रोल है लेकिन दिन पर दिन यहाँ भी शूटिँग की वार्दातें बढ़ती जारही हैं। पकड़ी हुई पितौलें अधिक्तर unregistered होती हैं। ज़ाहिर है कि यह सब firearms कहाँ से सम्गल होकर आरहें हैं। अमरीका के संविधान के दूसरे ammendment की इस सोच (Right to bear arms) में कुछ भी कमी आने की संभावना नहीं लगती।

  18. तेजेंद्र जी !
    क्या कहूँ,सबने सब कुछ कह दिया |
    ये कैसी पॉलिसी है ?न जाने क्यों अमेरिका के लिए शुरू से ही इतना क्रेज़ है लोगों में ?
    सब कुछ जानते समझते हुए भी एक आवरण में जी रहे हैं लोग |
    आप किस साहस से खुलकर लिखते हैं ! ईश्वर आप पर अपनी छत्रछाया बनाए रखें |
    यही प्रार्थना है |

  19. अल्लामा इक़बाल ने कहा था
    तुम्हारी तहजीब खुद तुम्हारे ही खंजर से खुदकुशी कर लेगी ।
    जो शाखे नाज़ुक पै आशियाना बनेगा, ना पायेदार होगा ।
    मानवता पतन की ओर अग्रसर है ।
    जुरासिक एज को खत्म होने में भी एक युग लगा था ।

  20. दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।कथनी-करनी का फर्क सरे आम फर्दाफ़ाश किया।इसीलिए तो आपके सम्पादकीय की प्रतीक्षा रहती है।
    दोनों के कुत्ते टॉमी नहीं कुत्ते ही….गज्जब का पंच मारा ।
    यही संदर्भ में भारतीय विपक्ष की विचारधारा भी कम नहीं।

    निवेदिताश्री

  21. बहुत ही कड़क सम्पादकीय, वास्तव में
    ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे ‘ यह बात चरितार्थ होती दिखती है

  22. खुद अमेरिका से पंगा ले रहे हैं या फिर ब्रिटेन पंगा ले रहा है. तीखी बात कही है.

  23. Dr. Ritu Mathur

    अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राष्ट्र मेक्सिको में इस प्रकार की धर्मान्धता व्याप्त है,जानकर आश्चर्य हुआ…..क्योंकि भारत में तो इसका चलन आम ही है।लगभग सम्पूर्ण साक्षर राष्ट्र के नागरिकों में धर्म को लेकर इस प्रकार की सोच व्याप्त है, तो जहां कम साक्षरता दर है, उन राष्ट्रों के नागरिकों की इस संदर्भ में तो बात ही क्या की जाए? जीते जी सत्कर्मों को ना कर, धन के उपयोग से धर्म प्रदत्त स्वर्ग में रहने का अधिकार भी अब उन्हीं को प्राप्त होगा जो आर्थिक रूप से संपन्न होंगे इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ की सीधे सच्चे लोग, जो धर्मानुसार स्वर्ग के वास्तविक अधिकारी हैं उनके लिए स्वर्ग की राह पूर्णतः दुष्कर है। समाज में धर्म की मान्यता ही इसीलिए बनाई गई जिससे अराजकता ना व्याप्त हो, मनुष्य के गलत कार्यों पर अंकुश लग सके और पुण्य के माध्यम से स्वर्ग का मार्ग और पाप करने से नरक का भय कायम किया गया, परंतु इस आर्थिक थ्योरी ने तो वास्तव में यह सिद्ध कर दिया की कलयुग में मनुष्य ही धर्म का ठेकेदार है और ईश्वर का निजी सहायक भी।
    महत्वपूर्ण तथ्यों व मानक स्रोतों, संदर्भों तथा उपयुक्त उदाहरण से संपृक्त आपका यह संपादकीय अत्यंत रोचक और साथ ही विचारणीय भी है।
    साधुवाद

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