Tuesday, September 17, 2024
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संपादकीय – चिकन पॉक्स का रिश्तेदार… मंकी पॉक्स!

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, जहां एक ओर कोरोना किसी इन्सान के खांसने, छींकने, बोलने, गाने, साथ बैठने से भी फैल जाता है;  वहीं एमपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति के काफ़ी क़रीब आने पर फैलता है, जैसे – आप संक्रमित मरीज़ की त्वचा को छू लें, शारीरिक संबंध बना ले, संक्रमित इंसान के बिस्तर पर लेट जाएं या उसके कपड़ों का इस्तेमाल कर लें। देर तक आमने-सामने बात करने से भी एमपॉक्स वायरस एक से दूसरे इंसान में जा सकता है।

हमने आप सबको सूचित कर ही दिया था कि पुरवाई अब पाक्षिक हो चुकी है और सामग्री महीने के पहले और तीसरे रविवार को पोस्ट की जाएगी। मगर हमने यह वादा नहीं किया था कि हमारा संपादकीय भी इस नियम का पालन करेगा। पुरवाई टीम का मानना है कि यदि कोई ऐसा विषय सामने आ जाता है जिसकी जानकारी पुरवाई के पाठकों को ज़रूरी महसूस होगी, उस पर संपादकीय लिख कर पाठकों को सचेत किया ही जाएगा। 
जब कोविद-19 ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया था तो अंधा-धुंध लोगों की मृत्यु हो रही थी। उस समय कुछ ऐसा भी प्रतीत होने लगा था कि ये विश्वमारी पूरी दुनिया को लील लेगी। तमाम रिश्ते नाते बेगाने से लगने लगे थे। आपदा में अवसर ढूंढने वालों की भी कमी नहीं थी।  पूरा विश्व डर के साये में जी रहा था। 
मगर पिछले दो वर्षों से लगातार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एक और बीमारी को आपदा घोषित कर चुका है। इस वायरस का नाम है एम-पॉक्स (मंकी पॉक्स)। एमपॉक्स कोविड या H1N1 इन्फ्लूएंज़ा की तरह हवा से फैलने वाली बीमारी नहीं है। संक्रमित व्यक्ति से आमने-सामने संपर्क, सीधे त्वचा से त्वचा का संपर्क, यौन संबंध, बिस्तर और कपड़ों को छूना, सुरक्षा मानकों का पालन न करना आदि मामलों में संक्रमण का जोखिम अधिक होता है।
एम-पॉक्स कोई नया वायरस नहीं है। वर्ष 1958 में इसे सबसे पहले देखा गया था। शुरूआत में यह वायरस डेनमार्क के बंदरों में मिला था। इन्सान तक इस वायरस को पहुंचने में 12 वर्ष लग गये। वर्ष 1970 में इस वायरस ने पहली बार किसी मनुष्य को अपनी गिरफ़्त में लिया… देश था कांगो।
अब तक यह वायरस विश्व के 70 देशों में फैल चुका है। एम-पॉक्स को लेकर 2022 में पहली बार एक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की गई थी। इस वायरस के संपर्क में आने पर कुछ लक्षण महसूस किये जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं – सिरदर्द, बुख़ार, माँसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, चकत्ते, चेचक की तरह के दाने, गले में सूजन, थकावट और ठण्ड लगना। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, जहां एक ओरकोरोना किसी इंसान के खांसने, छींकने, बोलने, गाने, साथ बैठने से भी फैल जाता है ;  वहीं एमपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति के काफ़ी क़रीब आने पर फैलता है, जैसे – आप संक्रमित मरीज़ की त्वचा को छू लें, शारीरिक संबंध बना ले, संक्रमित इंसान के बिस्तर पर लेट जाएं या उसके कपड़ों का इस्तेमाल कर लें। देर तक आमने-सामने बात करने से भी एमपॉक्स वायरस एक से दूसरे इंसान में जा सकता है।
पाकिस्तान में हाल ही में एम-पॉक्स के तीन मामले सामने आए हैं। उत्तरी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को पुष्टि की है कि पाकिस्तान ने एम-पॉक्स वायरस से पीड़ित तीन मरीजों का पता लगाया है। अब जबकि एम-पॉक्स वायरस पाकिस्तान और वहां से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर तक पहुंच गया है तो भारत सरकार को इस ओर अतिरिक्त ध्यान देना होगा। 
वैसे  यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाया कि पाकिस्तान के तीनों मरीजों में कौन सा वेरिएंट पाया गया है। खैबर पख्तूनख्वा के स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक सलीम खान ने कहा, “दो मरीजों में एमपॉक्स होने की पुष्टि हुई है। तीसरे मरीज़ के नमूने पुष्टि के लिए राजधानी इस्लामाबाद में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान को भेजे गए थे।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि  तीनों मरीजों को अलग रखा जा रहा है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान ने एम-पॉक्स के एक संदिग्ध मामले का पता लगाया है। वैश्विक स्वास्थ्य अधिकारियों ने गुरुवार को स्वीडन में एम-पॉक्स वायरस के एक नए प्रकार के संक्रमण की पुष्टि की।
दरअसल भारतीय उप-महाद्वीप में आबादी का घनत्व इतना सघन है कि किसी भी प्रकार के वायरस का असर कई गुना अधिक हो कर फैलता है। पाकिस्तान में यह वायरस खाड़ी देशों के माध्यम से प्रवेश कर सका है। भारत में मंकी-पॉक्स को लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया है। वर्ष 2022 में जब यह वायरस वैश्विक स्तर पर फैला था उस वर्ष भारत में 30 मामले उजागर हुए थे। 
मंकी-पॉक्स में मरने की दर 3 प्रतिशत है। यह कोविद-19 के मुकाबले में कम घातक है। मगर समस्या यह है कि इस समय यह वायरस 17 अफ़्रीकी देशों में फैल चुका है। शंका यह भी जताई जा रही है कि मंकी-पॉक्स के महामारी बनने पर लॉक-डाउन की स्थिति भी हो सकती है। 
मंकी-पॉक्स वायरस के कारण जो लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं, उनमें फ़्लू जैसी हालत शामिल है – जैसे कि बुख़ार, खांसी, उल्टी। मगर एक लक्षण जो थोड़ा डरावना लगता है वो है मवाद से भरे दाने जो कि इस बीमारी की ख़ास पहचान है। जैसे चेचक और चिकन पॉक्स में पूरे बदन पर मवाद भरे दाने निकल आते हैं, ठीक वैसे ही मंकी-पॉक्स में भी होता है। 
जब कोरोना वायरस विश्वमारी बन कर संसार को बेचारा और असहाय बना रहा था, तो उससे बचने के लिये कुछ उपाय भी सुझाए गये थे… कहा जाता है न कि एहतियात बरतने से एक लाभ होता है कि समस्या का इलाज नहीं खोजना पड़ता।
ठीक उसी तरह मंकी-पॉक्स से बचने के लिये भी कुछ एहतियात तो बरतने ही पड़ेंगे – सबसे पहले तो वही पुराना कदम – सामाजिक दूरी बनाए रखें। संक्रमित व्यक्तियों के सीधे संपर्क में ना आएं। जैसा कि कोरोना के ज़माने में कहा जाता था कि हाथों की स्वच्छता बनाए रखना बहुत ज़रूरी है। बार-बार साबुन और पानी से हाथ धोते रहें। 
सबसे ज़रूरी बात यह है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गई किसी भी वस्तु को छूने से बचें। उसके बर्तन, कपड़े आदि को कदापि न छुएं। यदि किसी कारण छू भी लें तो तत्काल साबुन से मल-मल कर हाथ धोएं। एक और महत्पूर्ण बात – अपनी त्वचा को ढक कर रखें। हर तरह से संक्रमित व्यक्ति के घावों के निकट ना जाएं। ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने से बचें। सुरक्षित यौन संबंध वैसे भी जीवन के लिये ज़रूरी हैं। जंगली जानवरों से बचना आवश्यक है (यहां मनुष्य रूपी जानवर की बात नहीं हो रही)… यदि आपको कभी भी ऐसा महसूस हो कि आपके शरीर में मंकी-पॉक्स के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 
पुरवाई के पाठकों के लिये आवश्यक है कि न केवल अपने आपको इस ख़तरनाक वायरस से बचाए रखें, बल्कि अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को भी सावधान करते रहें।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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36 टिप्पणी

  1. ख़तरनाक बीमारी की जानकारी और इससे सावधानी पर अच्छा सन्देश दिया है ।

    सधन्यवाद
    Dr Prabha mishra

  2. एक और जनोन्मुखी संपादकीय।मैने आस पास के शिक्षित लोगों को भी इसके बारे में पूछते देखा है।इस से जागरूकता की अहमियत का पता चलता है। हाल में ही यह मंकीपॉक्स भी सुर्खियों में है।भारत जैसे सघन परंतु विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना से परे विकासशील देश को ऐसे संपादकीय की जरूरत रहती है।
    संपादकीय मंकी पॉक्स की भयावहता से आगाह तो करता है परंतु बेवजह डराता तो बिल्कुल नहीं है। बचाव और रोकथाम के उपायों को सहज सरल अंदाज़ में बताता है।
    यही विज्ञान को प्रचारित प्रसारित करने का सही तरीका है। भारत के संविधान के आर्टिकल 51 में भले ही यह नागरिक अधिकार हो परंतु क्षुद्र राजनीति के चलते विज्ञान आम जन मानस में शैलेंद्र के गीतों की मानिंद स्थान नहीं बना पाया। प्रस्तुत संपादकीय सरीखे रोचकता और सुरक्षा का पुट लिए आलेख संभवतः यदि प्रकाशित होकर आम जन तक पहुंचते रहें तो शायद
    कोई कह दे।
    हम उस देश के वासी हैं जहां विज्ञान रहता है।
    जानदार और शानदार संपादकीय हेतु पुरवाई पत्रिका परिवार की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई हो।
    और हां क्या ही बेहतर हो कि संपादकीय साप्ताहिक ही रहे।

    • ऐसी टिप्पणी पूरी पुरवाई टीम में उत्साह भर देती है। हार्दिक आभार भाई सूर्यकांत जी।

  3. बहुत जरूरी और आवश्यक जानकारी आपने दी। हार्दिक शुभकामनाएं। ऐसी जानकारी देते रहिए ताकि हमारा ज्ञान भी बढ़ते रहें। धन्यवाद ।

  4. बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने तेजेन्द्र जी।इस प्रकार आप हमेशा चेतावनी देते हैं।कुछ न कुछ लगा ही रहता है जीवन में जो आम आदमी से बाबस्ता है।
    ऐसी बीमारियों के बारे में जानकारी हासिल बड़ी देर बाद होती है।इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद
    आपको।

  5. बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी… हमेशा की तरह ही पुख्ता तथ्यों के साथ बचाव और रोकथाम के उपाय..
    इतना अच्छा संपादकीय लिखने के लिए आपको हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

  6. जागरूक करता आपका यह संपादकीय राष्ट्रहित के प्रति आपकी तत्परता,सक्रियता,हितचिंतन सहित राष्ट्रभक्ति का बेजोड़ पर्याय प्रस्तुत करता है। जनहित में जारी विचारणीय,महत्वपूर्ण, ज्ञानवर्धक एवं सुचिंत्य संपादकीय के लिए आपको साधुवाद आदरणीय

  7. बहुत जरूरी जानकारी. सही समय में दी.
    लक्षणो के बारे में सजगता जरूरी था
    फैलने के कारणों का भी लोगों को जानना आवश्यक

    साधुवाद तेजेंद्र जी, समय रहते आगाह किया

  8. मंकी पक्स पर सम्पादकीय सही समय पर विषयपरक सही जानकारी दे रहा है और नागरिको को सचेत चौकन्ना करता है। आप का सम्पादकीय चाहे साप्ताहिक आए या जरूरी होने पर ही आए, इतना जरूर है हम जैसे अकिंचन पाठकों को प्रतीक्षा और उत्सुकता बनी रहती है

  9. इस संपादकीय में विश्व के देशों में मंकीपाक्स जैसी नई महामारी के बारे में जानकारी दी है साथ ही उसके प्रति सचेत भी किया है। विश्व कोरोना जैसी महामारी के खौफ से अभी उबरा ही था कि इस नई आफत ने दस्तक दे दी है। इसके लक्षणों में शरीर में जो फफोले उमगते है वे कष्टकारी प्रतीत हो रहे हैं। आशा करता हूं कि इसका सामना मानव जाति को न करना पड़े। जहां से यह बीमारी शुरू हुई है वहीं खत्म कर दी जाए।

  10. चिकन पॉक्स का रिश्तेदार… मंकी पॉक्स… सचमुच मंकी पॉक्स के सारे लक्षण चिकन पॉक्स या कहें स्मॉल पॉक्स की तरह ही हैं तथा उससे बचने का निदान भी वही है।
    इस बीमारी से चेताने वाले आपके संपादकीय के लिए आपको साधुवाद।
    आपका निर्णय सही है, पुरवाई के पाठकों को आपके संपादकीय का बेसब्री से इंतजार रहता है।

  11. जितेन्द्र भाई: मँकी पॉक्स के बारे में जो आपने जानकारी दी है, उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद। एक पुरानी कहावत है ‘आस्मान से गिरा खजूर पर अटका’। इतने साल कोविड की गिरफ़्त से थोड़ा छुटकारा मिला तो इस नये महमान ने अन्दर आने के लिये दरवाज़ा खटखटा दिया। अधिक समय बर्बाद न करते हुये अगर हम अभी से सावधान हो जायेंगे और प्रीकॉशण लेना शुरु कर देंगे तो शायद इस आने वाले संकट का असर कुछ कम होगा।

  12. आगाह करने के लिए आभार। मंकी पाॅक्स बहुल यौन संबंध और समलैंगिक संबंधों से फैलना देखा गया है। अफ्रीका की एक बहुत बड़ी आबादी इससे आक्रांत है मौत की दर भले कम है, पीड़ादायक बहुत है।

  13. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    सर्वप्रथम तो आपका ही शुक्रिया इस बात के लिए कि संपादकीय के प्रति आपने बहुत सही निर्णय लिया। संपादकीय को आप हर सप्ताह लगा सकते हैं; क्योंकि उसके प्रति तो सभी की उत्सुकता रहती है और इस समय विश्व में इतना कुछ घटित हो रहा है कि संपादकीय के लिए विषय की कमी नहीं।
    अब तो आपके संपादकीय को पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगने लगा है कि आपके संपादकीय के लिए क्या कहा जाए !तथ्यपूर्ण तो आप लिखते ही हैं तथ्यों के साथ सच्चाई का बयान करते हैं। उसके नफा- नुकसान की बात भी हो जाती है। एक लंबे समय के बाद संपादकीय को इस तरह से पढ़ना हमें तो कम से कम बहुत ही अच्छा लग रहा है। पहले न्यूज़पेपर में डेली सबसे पहले संपादकीय का पेज खोलते थे। आजकल न्यूज़ मोबाइल में मिल जाती है तो पेपर देखने का काम ही नहीं।
    ऐसे माहौल में आपका संपादकीय बहुत महत्वपूर्ण लगता है।
    आपने रोग के बारे में तो बताया ही लेकिन उसके लक्षण भी बता दिये। यह ज्यादा जरूरी था। हम तो यही सोच रहे हैं कि जितने भी रोग हैं सब गर्दन ही क्यों पकड़ते हैं!
    मंकी पॉक्स चिकन पॉक्स का भाई-बहन ही लगता है कुछ। जैसे ही अपने दानों की बात की और हमारे दिमाग में ख्याल आया ,लेकिन आगे आपने लिखा भी है।
    आपने रोग, रोग लक्षण और उससे बचने के उपाय भी बता दिए हैं। इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। कल फिर एक संपादकीय का इंतजार रहेगा पर अभी के लिए तो आपका शुक्रिया बनता है।

  14. सादर आभार सर। आपने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत करवाया। इस तरह की आपदाओं से सच ही समय रहते जागरूकता व बचाव के उपाय बेहद आवश्यक हैं। पुनश्च आभार

  15. मंकी पॉक्स की विस्तृत जानकारी सजगता लाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। हर पुरवाई परिवार का सदस्य अपने परिवार के साथ अपने मित्रों और पड़ोसियों को सावधान करके एक जागरूक शुभचिंतक की भूमिका निभायेंगे।

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