समीक्षित कृति : धर्मपाल महेंद्र जैन चयनित व्यंग्य रचनाएँ (व्यंग्य संग्रह)लेखक : धर्मपाल महेन्द्र जैन प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, सी – 515, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्ली – 110012 आईएसबीएन नंबर : 978-81-19339-60-0 मूल्य : 225 रूपए
“धर्मपाल महेंद्र जैन चयनित व्यंग्य रचनाएँ” चर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन का पांचवा व्यंग्य संग्रह हैं। धर्मपाल जैन के लेखन का कैनवास विस्तृत है। वे कविता और गद्य दोनों में सामर्थ्य के साथ अभिव्यक्त करने वाले रचनाकार हैं। धर्मपाल महेन्द्र जैन की प्रमुख कृतियों में “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है”, “दिमाग वालो सावधान”, “इमोजी की मौज में”, “भीड़औरभेड़िए” (व्यंग्य संग्रह),“इस समय तक”, “कुछ सम कुछ विषम” (काव्य संग्रह) शामिल हैं। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। धर्मपाल महेन्द्र जैन की गिनती आज के चोटी के व्यंग्यकारों में है। इनका व्यंग्य रचना लिखने का अंदाज बेहतरीन है। व्यंग्यकार ने इस संग्रह की रचनाओं में वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं, खोखलेपन, पाखण्ड इत्यादि अनैतिक आचरणों को उजागर करके इन अनैतिक मानदंडों पर तीखे प्रहार किए हैं। साहित्य की व्यंग्य विधा में धर्मपाल जी की सक्रियता और प्रभाव व्यापक हैं। व्यंग्यकार वर्तमान समय की विसंगतियों पर पैनी नज़र रखते हैं। लेखक अपनी व्यंग्य रचनाओं को कथा के साथ बुनते हुए चलते हैं।
“इंडियन पपेट शो” समकालीन राजनीति की बखिया उधेड़ता एक रोचक व्यंग्य रचना है। “ऐ तंत्र, तू लोक का बन” लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों पर करारा और सार्थक व्यंग्य है। यह यथार्थ को चित्रित करता बेहतरीन शैली में तराशा गया एक सराहनीय व्यंग्य है। “बागड़बिल्लों का नया धंधा” व्यंग्य लेख वर्तमान परिस्थितियों में एकदम सटीक है तथा यह व्यंग्य लेख अवसरवादी राजनीति पर गहरा प्रहार करता है। आम जनता को भ्रमित करना और भ्रमित बनाए रखना वैश्विक राजनीति का नया अस्त्र बन गया है। अंधेरे और भ्रम का यह घटाटोप भारत में ज्यादा गहरा है। बागड़बिल्ले देश को बचाने के नाम पर अलग-अलग तरह का भ्रम फैलाते रहे हैं, कुछ संविधान को बचाने का भ्रम फैलाते रहे हैं तो कुछ भाषा या धर्म को बचाने का। (“बागड़बिल्लों का नया धंधा”)
“पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें”, “महानता का वायरस”, “हर गड्डे को उसके बाप का नाम दें” जैसे व्यंग्यधर्मपाल जैनके अलहदा अंदाज के परिचायक है।धर्मपाल महेन्द्र जैन के कहनपन का अंदाज अलग है। “अस्सी किलो कविता के आलोचना सिद्धांत” धड़ाधड़ कविताएँ लिखने वालों पर और “साहित्य शिरोमणि चिमनी जी” येनकेन प्रकारेण साहित्य के पुरस्कार झटक लेने वाले लेखकों पर कटाक्ष है। “भैंस की पूँछ” बहुत ही मजेदार और चुटीला व्यंग्य है। आप रसीलाजी को नहीं जानते तो पक्का सुरीलीजी को भी नहीं जानते होंगे। वे महान बनने के जुगाड़ में जी जान से लगे थे पर पैंदे से ऊपर उठ नहीं पा रहे थे। उन्हें पता था कि विदेश में रहकर महान बनना बहुत सरल है। हिंदी नाम की जो भैंस है बस उसको दोहना सीख जाएँ तो उनके घर में भी घी-दूध की नदियाँ बह जाएँ। (“भैंस की पूँछ”) “पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें” यथार्थ को चित्रित करता बेहतरीन शैली में तराशा गया एक सामयिक प्रभावशाली व्यंग्य है जो पुलिस की कार्यशैली पर भी सार्थक हस्तक्षेप करती है। व्यंग्यकार दृश्य चित्र खड़े करने में माहिर हैं। एक बार फिर चेक कर लें कि आप ने सुसाइड नोट लिखकर अपनी ऊपरी जेब में विधिवत रख दिया है। पुलिस की नजर का कोई भरोसा नहीं है। विटामिन एम खाया हो तो वे सुसाइड नोट पाताल में भी खोज सकते हैं। यदि उन्हें विटामिन का पर्याप्त डोज़ न मिले तो वे आँखों के सामने पड़ा सुसाइड नोट भी नहीं देख पाते। (“पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें”)
“बापू का आधुनिक बंदर” देश के जनप्रतिनिधियों के बिकने का कच्चा चिट्ठा खोलता है। “वैशाली में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर” एक रोचक रचना है जिसमें राजा को अमेरिका से मिले पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर गिफ्ट राजा से महारानी, महारानी से उसके प्रेमी सेनापति, सेनापति से सेनापति की प्रेयसी विपक्षी नेत्री, विपक्षी नेत्री से उसके प्रियतम एंकर, एंकर से वैशाली की नगरवधू और नगरवधू से वापस राजा के पास आ जात्ता है। “काली है तो क्या हुआ” भैंस पर एक मज़ेदार निबंध है। “आइंस्टीन का चुनावी फार्मूला” माफिया तंत्र को उकेरती एक सशक्त व्यंग्य रचना है। “लॉकडाउन में दरबार” रचना में लेखक के सरोकार स्पष्ट होते हैं। इस रचना को लेखक ने एक नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया है। व्यंग्यकार ने लॉकडाउन के दौरान सरकारी कार्यप्रणाली पर गहरा प्रहार किया है।
“चंद्रयान-3 से भारत”, “पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें”, “नाक के चौरासी मुहावरे”, “अस मानुस की जात” जैसे रोचक और चिंतनपरक व्यंग्य पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाते हैं और साथ ही अपनी रोचकता और भाषा शैली से पाठकों को प्रभावित करते हैं। “माल को माल ही रहने दो”, “काली है तो क्या हुआ”, “शर्म से सिकुड़ा घरेलू बजट”, “भाई साहब की पद्मश्री”, “अगला चुनावी घोषणा पत्र”, “ओ मानस के राजहंस” इत्यादि इस संग्रह की काफी उम्दा व्यंग्य रचनाएँ हैं।
संग्रह की रचनाओं के विषयों में नयापन अनुभव होता है। संग्रह की विभिन्न रचनाओं की भाषा, विचार और अभिव्यक्ति की शैली वैविध्यतापूर्ण हैं। व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। लेखक के पास सधा हुआ व्यंग्य कौशल है।धर्मपाल जैन की प्रत्येक व्यंग्य रचना पाठकों से संवाद करती है। चुटीली भाषा का प्रयोग इन व्यंग्य रचनाओं को प्रभावी बनाता है। व्यंगकार ने इन व्यंग्य रचनाओं में चुटीलापन कलात्मकता के साथ पिरोया है। धर्मपाल जैन की व्यंग्य लिखने की एक अद्भुत शैली है जो पाठकों को रचना प्रवाह के साथ चलने पर विवश कर देती है। व्यंग्यकार ने अपने समय की विसंगतियों, मानवीय प्रवृतियों, विद्रूपताओं, विडम्बनाओं पर प्रहार सहजता एवं शालीनता से किया है। व्यंग्यकार धर्मपाल जैन के लेखन में पैनापन और मारक क्षमता अधिक है और साथ ही रचनाओं में ताजगी है। लेखक के व्यंग्य रचनाओं की मार बहुत गहराई तक जाती है। धर्मपाल जैन अपनी व्यंग्य रचनाओं में व्यवस्था की नकाब उतार देते हैं। लेखक की रचनाएँ यथास्थिति को बदलने की प्रेरणा भी देती है। आलोच्य कृति में कुल 41 व्यंग्य रचनाएँ हैं। न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशनसे प्रकाशित 128 पृष्ठ का यह व्यंग्य संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह व्यंग्य संग्रह सिर्फ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। आशा है यह व्यंग्य संग्रह पाठकों को काफी पसंद आएगा और साहित्य जगत में इस संग्रह का स्वागत होगा।