यदि सोचा जाए कि आज बालसाहित्य की कौनसी-कौनसी विधाएँ हैं तो बिना किसी हिचक के सहज ही इन विधाओं का नाम ले सकते हैं- कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, संस्मरण, जीवनी, यात्रा वृतांत, पहेलियाँ, चित्र-कथा इत्यादि। लेकिन यदि पता चले कि एक बालिका-पाठक को जो विधा सबसे अधिक न केवल अच्छी बल्कि जरूरी भी लगती है वह ‘आलेख’ है तो आप सुप्रसिद्ध लेखिका और विशिष्ट बाल साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी और मेरी तरह चौंक जाएँगे न?
डॉ. विमला भंडारी के संपादन में 2024 में ही प्रकाशक साहित्यगार, जयपुर से एक पुस्तक प्रकाशित हुई है – ‘बच्चों के ज्ञानवर्धक आलेख’। इसी में बतौर संपादकीय विमला भंडारी जी ने अपने लेख ‘बाल साहित्य में आलेख विधा’ के अंतर्गत बताया है कि ‘बालिका ने बताया कि उसे कविता-कहानी नहीं बल्कि आलेख पढ़ना पसंद है क्योंकि आलेख में सीधी-सीधी बात बतायी जाती है। उसके लिए बहुत सारा फ़िज़ूल नहीं पढ़ना पड़ता। कहानी हमें घुमाती है, इधर-उधर भटकाती है। फिर मतलब की बात पर आती है जो मुझे पसंद नहीं। जो कहना है साफ़-साफ़ कहे।’ भले ही बहुतों को, खासकर कहानी-कविता-नाटक आदि पसंद करने वाले बच्चों और कुछ विद्वान आलोचकों को इस बालिका का कहा पूरी तरह या बिना झिझक स्वीकार न भी हो, लेकिन इतना तो विचार करना ही होगा कि बाल साहित्य में विधा के रूप में आलेख को प्रवेश मिल जाना चाहिए अथवा क्यों नहीं मिलना चाहिए। हाँ, एक और दृष्टि से भी विचार करना होगा कि, क्या आलेख को उपयोगी बाल साहित्य माना जाए या रचनात्मक?
हम जानते हैं कि बाल साहित्य की दुनिया में विज्ञान कथाएँ भी हैं और सूचनात्मक साहित्य भी और इनमें से कुछ ही रचनात्मक साहित्य के स्तर तक पहुँच पाती हैं अन्यथा कविता या कहानी आदि के रूप में जानकारी का पाठ पढ़ाती ही रह जाती हैं। यह लिखने का आशय यह बिलकुल नहीं है कि उपयोगी बाल साहित्य का महत्त्व किसी भी रूप में कम है या उसकी ज़रूरत नहीं है। आशय बस इतना है कि रचनात्मक बालसाहित्य की दुनिया में उन्हें जबरन न घुसाया जाए। आलेख के संदर्भ में, इसी पुस्तक में, प्रकाश तातेड़ का यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि ‘आलेख पाठ्यपुस्तक जैसा सपाट विवरण मात्र न हो। आलेख की विषयवस्तु से बच्चे को कनेक्ट करके लिखना चाहिए ताकि आलेख पढ़ते समय उसको यह महसूस हो कि यह आलेख मेरे लिये है।’
इसी पुस्तक में विधा के रूप में एक अच्छे आलेख की पहचान भी करायी गई है। डॉ. सतीश कुमार ने अपने आलेख ‘आलेखों की तथ्यों पर निर्भरता’ में लिखा है- ‘..आलेख साहित्य की एक विधा है जिसे निबंध का ही लघु रूप माना जाता है। इसे वैचारिक गद्य रचना भी कहा जा सकता है। यह मूलत: तथ्यात्मक होता है जिसमें किसी विषय विशेष से संबंधित जानकारी और विवेचन प्रस्तुत किया जाता है..।’ उन्होंने संकलित लेखों के संदर्भ में यह भी लिखा है- ‘आलेख लिखना सरल नहीं है, क्योंकि वह कल्पना से परे तथ्यात्मक होता है। इसके लिए सर्वप्रथम तथ्यों का संकलन करना पड़ता है। अधिकांश बाल साहित्यकरों ने ऐसा नहीं किया है।’ स्पष्ट है कि ‘आलेख’ लेखन की दिशा में, डॉ. सतीश कुमार के अनुसार बाल साहित्यकारों को अभी बहुत मेहनत करनी होगी।
प्रकाश तातेड़ जी का आलेख ‘ज्ञानवर्धक आलेख के गुण’ निश्चित रूप से पढ़ा जाना चाहिए। गागर में सागर की शैली में तातेड़ जी ने अच्छे आलेख की विशेषताओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। उन्हें इस पुस्तक के अधिकर आलेख बहुत ही संजीदगी एवं समझदारी से लिखे लगे हैं। मेरा सुझाव है कि आलेख लिखने की चाह रखने वाले बाल साहित्यकारों को तातेड़ जी की इन बातों की अवश्य गाँठ बाँध लेनी चाहिए- ‘सर्वप्रथम आलेख का शीर्षक जिज्ञासा पूर्ण एवं आकर्षक हो ताकि बच्चे पढ़ने की ओर प्रेरित हों। आलेख के प्रारंभ में बच्चों को संबोधित करते हुए या जोड़ते हुए सरल, सहज, रोचक भाषा में विवरण लिखना चाहिए। …लेखक को गूगल की नकल से बचना चाहिए। उसे एकाधिक स्रोत से जानकारी ग्रहण कर फिर लेखन करना चाहिए। आलेख की भाषा-शैली और प्रवाह में रोचकता एवं विविधता भी अपेक्षित है। आलेख का लेखन बच्चे को केंद्र में रखकर किया जावे तो ही वह बच्चे को स्वीकार होगा’ तातेड़ जी ने और भी महत्त्वपूर्ण हिदायतें दी हैं।
पुस्तक में विषय के अनुसार आलेखों को 5 भागों में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार हैं- प्रकृति और पर्यावरण, भोजन, व्यायाम और स्वास्थ्य, खेल और खिलाड़ी, अतंरिक्ष तथा पौराणिक चरित्र।
मुझे ‘पौराणिक चरित्र’ ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। इनमें प्राय: शोधपरक दृष्टि से तथ्यों का संचयन भी है और अभिव्यक्ति में रचनात्मक मौलिकता भी है। उदाहरण के लिए, ‘पुंडरीक की मातृ-पितृ भक्ति को डॉ.लता अग्रवाल ने जिस तरह से प्रारम्भ किया है वह आकर्षक है। इसके बाद आलेख स्वत: कहानी की रचनात्मकता में ढलता चला जाता है। सुधा आदेश के आलेख ‘शबरी की राम भक्ति’ भी ऐसी ही विशेषता से सम्पन्न है। आधुनिक तीरंदाजी के जनक के रूप में द्रोणाचार्य और उसका प्रयोग करने वाले पहले योद्धा के रूप में एकलव्य का रचनात्मक आलेख ‘एकलव्य की गुरु भक्ति’ निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ रचना है।
‘प्रकृति और पर्यावरण’ भाग में भी अनेक आलेख हैं जो जिज्ञासा जगाने और रोचकता की दृष्टि से पठनीय हैं। इसी प्रकार बच्चों से संवाद शैली में लिखे गए ‘स्मृति का क्रिकेट खेल’ जैसे आलेख भी बच्चों और अन्य पाठकों को अपनापन देने में सक्षम हैं।
आलेखों में जहाँ-जहाँ भाषा के स्तर पर सपाटता के स्थान पर रचनात्मकता आ गई है, वहाँ-वहाँ वह आकर्षक और पाठक को जोड़ने वाली सिद्ध हुई है। कुछ उदाहरण देना चाहूँगा जिनका आनंद पाठक पुस्तक में खोज कर ले सकते हैं-
‘पक्षी विश्व के प्राकृतिक राजदूत हैं जो बिना किसी वीजा के एक से दूसरे देशों की यात्रा करते हैं।’
‘अरे नदियों की बात तो हम भूल ही गये। हमको तो सामान फेंकना होता है। नदी में बहा देते हैं।’
‘ऑक्टोपस को प्रकृति ने आठ बाहें दी हैं और हर बाँह में तंत्रिका-तंत्र इतना विकसित होता है कि वह मस्तिष्क की भाँति निर्णय भी ले सकता है।’
‘अभी एक रोचक बात और आपको बताता हूँ, वह यह कि हम जिन तारों का देख पा रहे हैं, उनमें से अनेक तारे कई हजार साल पहले मर चुके होंगे।’
‘क्रिस्टीना महिलाओं को अपने पंख फैलाने और अपने सभी सपनों को पूरा करने के लिए ऊँची उड़ान भरने के लिए एक उदाहरण स्थापित करती हैं।’
अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि चुनौती की तरह प्रस्तुत अपने ढंग की यह पुस्तक अपने पाठकों के लिए अनेक रूपों में उपयोगी सिद्ध होगी। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
दिविक रमेश
एल-1202, ग्रेंड अजनारा हेरिटेज,
सेक्टर-74, नोएडा-201301
ई-मेलः [email protected]