Wednesday, October 16, 2024
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मनविंदर सिंह भाटिया की कलम से – आधी आबादी के मन की गहरी थाप

किताब – आधा आसमान
लेखक – रमेश कुमार ‘रिपु’
प्रकाशक – बिम्ब प्रतिबिम्ब,पंजाब
कीमत – 290 रुपए
बड़े कथा फलक पर नयी भाषा में स्त्री-विमर्श की गढ़ी गयी रचना है ‘आधा आसमान’। आधी दुनिया के भीतर उथल-पुथल,वैचारिक सोच के साथ ही भावनात्मक कशकमश और उसके मन की थाह लेती  वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार ‘रिपु’ का  चौथा कहानी संग्रह है ‘आधा आसमान’। तेजी से बदलते समाज में उसकी सोच ‘आधी आबादी’ के संदर्भ में कई मामले में दकियानुसी ही है। सोच बदले तो देश बदले। ‘आधा आसमान’ ट्रासजेंडर के जीवन के दुखद अध्याय के भोगे सत्य को इस तरह उजागर करता है कि उसकी पीड़ा,उसका जीवन पाठक की पीड़ा और सत्य बन जाता है। उस लड़के का क्या दोष,जिसे तन तो मिला, मगर आधा मर्द का। और मन मिला पूरी औरत का। ऐसे में उसे अपनी देह से नफ़रत करने वालों के खिलाफ़ वो आवाज़ कहां उठाए? उसके जीवन में ‘आधा आसमान’ है। कैेसे अपने जीने के लिए पूरा आसमान बनाया,समाज की सोच से आगे की कहानी है।
कहानी के किरदार अंतस मन को छूकर एक पल के लिए स्तब्ध कर देते हैं। अंजनी का अंजली बनने तक के सफ़र में उसकी प्रेमिका निधि उसका भरपूर साथ देती है। अंजनी का अंजली बन जाने पर उसे उसकी अपनी दुनिया में हमसफ़र मिलने की कहानी दिलकश है। इस दौर में मन को छू जाने वाला हमसफ़र मिलना बड़ी बात है। उसका हमसफ़र मुंबई में सिक्योरिटी गार्ड की एजेसी का मालिक है। वह भी ट्रांसजेंडर है। बरसों बाद अंजनी की प्रेमिका उसे फोन कर बताती है कि वो शादी करने जा रही है। लेकिन उसे यह नहीं पता होता है कि अंजनी अब अंजली बन गयी। वो फोन पर उसे बताता है कि जिस शरीर से उसे नफरत थी, उससे वो मुक्त हो गयी। और कहती है,‘कहते हैं किन्नर किसी को अपना एक रुपए खुशी- खुशी दे तो उसके घर बरकत होती है। तेरी शादी के लिए पांच हजार एक रुपए तुझे कोरियर कर रही हॅूं। तू सदा सुहागन रहे। सदा खुश रहे। मेरी यही दुआ है। तेरी जब गोद भराई हो तो मुझे जरूर याद करना अंजली दिल खोलकर तेरे यहां नाचेगी।’’सुनकर निधि का रोम रोम खुशी से नाच उठता है।
‘आधा आसमान’ की कहानियां जीवन के महीने धागे से बुनी गयी है।लेखक ने आधुनिक समाज के बदलते रिश्ते को वर्तमान और भविष्य के फलक पर मोहक भाषा में उकेरा है। स्त्री समस्या और स्त्री की अस्मिता को केन्द्र में रखकर समृद्ध भाषा में लिखी गयी कहानियों की रेंज शंख बांसुरी जैसी है। ‘आधा आसमान’ में आधी दुनिया पर कई सवाल भी उठाए गए हैं। मौजूदा समय में विवाहेत्तर दांपत्य एक सत्य के रूप में उभरा है।‘दस्तक’ कहानी दो ध्रुवों को सामने लाता है। सवाल यह है कि क्या पति की ज़िन्दगी में दूसरी औरत के आने से वह बदल जाता है?दूसरी औरत में ऐसा क्या देख कर पति बदल जाते हैं? मुखौटाधारी समाज में देखा गया है कि औरत को अपना कंधा देने वाले पुरुष उसे बीच सफ़र में ही छोड़ देते हैं।मजबूरी और विवशता में वह फिर एक नया कंधा तलाशती है। बार-बार माॅ पति बदले तो क्या बच्चों को भी अपना पिता बदल लेना चाहिए?ये ऐसे सवाल हैं,जो समाज के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं।
जैसे जामुन में मिठास रह लेता है। प्रेम भी जीवन में ऐसे ही रहता है। हिन्दू हो या फिर मुस्लिम दोनों की देह में प्रेम ऐसे ही रहता है,जैसे समंदर के सीने में ज्वार। इसलिए समाज में प्रेम को किसी जाति के दायरे में  रखना जायज नहीं है। ‘कितनी दूरियां’ एक अनछुए सवाल की ओर ध्यान खींचती है। दो अलग-अलग मजहब के लड़का और लड़की की भावनाओं का रंग जब एक है, तो उनके बीच इश्क़ का बीज अंकुरित होने पर उंगलियां क्यों उठती है? वैसे एक तरफा प्यार भी,प्यार होता है। यदि लड़की को उसके मजहब के लड़के से बेवफ़ाई मिले और दूसरे मजहब के लड़के से वफ़ा के साथ इज्जत भी,तो उनके बीच जाति और मजहब  का वास्ता देकर दूरियां नहीं बढ़ानी चाहिए।
‘कोई तो होगा’ कहानी में गहरे सामाजिक सारोकार के मूल्यों की गूंज है।तमाम वर्जनाओं को तोड़कर एक नयी तस्वीर बनाते हैं कहानी के किरदार। कहानी के अनुसार पंरपराएं टूटनी चाहिए।बेटी मेरा अभिमान है। कहने से आधी दुनिया की तस्वीर नहीं बदलेगी। बहू चाहिए। मगर,कोई यह क्यों नहीं कहता कि गृहकार्य में दक्ष लड़के के लिए सुयोग्य कन्या चाहिए। नये ज़माने की माँ को अपनी बेटी के लिए लाखों में एक लड़का चाहिए। बदलाव के लिए पहला कदम हर घर से उठना चाहिए।
औरत अपने प्यार और इच्छाओं को कभी भी एक नज़रिये से नहीं देखती। बात जब उसकी ‘पहचान’ और उसके वजूद पर आ जाए तो जो भी फैसला लेती है,उसे पूरी शिद्दत के साथ पूरा भी करती है। और खुद को बदलने के साथ समाज को भी बदलने वाला फैसला लेने में जरा भी संकोच नहीं करती। ‘प्यार का रेशमी धागा’ एक ऐसी औरती की कहानी है जो माँ बनने के लिए सारे जतन करती है। और उसके साथ बेवफ़ाई करने वाले पति को एहसास कराती है कि पत्नी के बगैर अधूरे हो। सिर्फ पत्नी ही अपने प्यार के धागे से सारे रिश्ते को बांध सकती है, बाहर वाली नहीं। कोई भी औरत तभी पूरी होती है,जब वो माँ बनती है। माँ बनने के अधिकार से कोई भी पति अपनी पत्नी को वंचित नहीं कर सकता।
संग्रह की सभी कहानियां स्त्री जीवन से जुड़ी हुई हैं। जो पाठक लम्बी कहानियां पसंद करते हैं,उन्हें लगेगा कि उपन्यास पढ़ रहे हैं। संग्रह की कहानी ‘पहचान’ आधी दुनिया के जीवन में हस्ताक्षेप कर उसे बदल देने की शर्त लगाने वाले पुरुष के अभियान को ठेस लगने की बानगी है। पुरुष दुनिया बदल सकता है, मगर कोेई भी औरत हो भले वो तवायफ ही क्यों न हो,उसकी पहचान नहीं बदल सकता। लेखक के अनुभव संसार में ज्यादातर कठिन संघर्ष करती और दुख सहकर भी अपने लिए नया रास्ता इजाद करने वाली औरतों से कहानियां परिचय कराती हैं। संग्रह की कहानियां पढ़ते समय अलग-अलग और स्तब्ध करने वाली शक्लों में,उससे हमारा साक्षात्कार होता है।
अपने बुजुर्ग माता पिता के साथ अनैतिक आचरण करने वाले लड़के और लड़कियों का चित्र देख सकते हैं ‘समझदारी’ कहानी में। कहानी बुजुर्ग हो रहे माता पिता को नेक मशविरा भी देती है कि अपने बेटा- बहू के मोह में पड़कर कभी अपनी सारी संपत्तियां उनके नाम नहीं करें। अन्यथा बुढ़ापा किसी अनाथालय आश्रम में कटेगा। इन कहानियों के माध्यम से लेखक स्त्री-विमर्श के उस पक्ष को रेखांकित किया है, जो अभी तक समाज की आँखोँ  से परे था। समाज में मानवीय संवेदनाएं घायल है। औरत की ज़िन्दगी का व्यापक मानचित्र है ‘आधा आसमान’। कहानी की भाषा मोहक है,क्यों कि इसमें उर्दू की मिठास है। इसलिए भाषा की ताजगी अंत तक बनी रहती है।
मनविंदर सिंह भाटिया
दुर्ग,छत्तीसगढ़
मो -8269234816
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