Sunday, September 8, 2024
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रेखा राजवंशी की तीन ग़ज़लें

1
कितने अरमाँ पिघल के आते हैं
लोग चेहरे बदल के आते हैं 
अब मिरे  दोस्त भी रकीबों से
जब भी आते, संभल के आते हैं 
जब कोई ताज़ा चोट  लगती है
मेरे आंसू मचल के आते हैं 
आज कल रात और दिन मेरे
तेरी यादों में ढल के आते हैं 
दिल में जब टीस उठती है कोई
चंद मिसरे ग़ज़ल के आते हैं 
मुद्दतों इंतिज़ार था जिनका
मेरी मय्यत पे चलके आते हैं
2
आज मैं फिर से माहताब बनूँ
तू मुझे पढ़ तेरी किताब बनूँ 
शबनमी रात की ख़ुमारी  में
तू मुझे पी, तिरी शराब बनूँ 
पूछे कितने सवाल ये दुनिया
उनकी हर बात का जवाब बनूँ 
तू भी  बन जाए गुल मिरा हमदम
मैं भी महका हुआ शबाब बनूँ 
तू  सहर लाने का तो कर वादा
तेरी खातिर मैं आफ़ताब बनूँ
3
चलो कुछ तो हुआ, आगाज़ हुआ
अपनी बातों का भी बयाज़ हुआ 
क़तराक़तरा बिखर गई खुशबू
नग़्मानग़्मा ये दिल का साज़ हुआ 
कुछ कहके भी बात कह देना
मुख़्तसर उनका ये अंदाज़ हुआ
चाँद तारों की फुसफुसाहट से
सब पे ज़ाहिर हमारा राज़ हुआ
किसी के आने की आहट आई
कोई हमदम, कोई हमराज हुआ 
 
(*बयाज़ -a poet’s note-book)
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