Friday, October 18, 2024
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अनिला सिंह चाढ़क की ग़ज़लें

ग़ज़ल-1
आंख थी मेरी समंदर दिल मेरा सहरा रहा
जिस्म का मौसम कभी भीगा कभी सूखा रहा
मिल न पाया वो जिसे हम उम्र भर ढूँढ़ा किए
एक चेहरे  पर  हमेशा दूसरा चेहरा रहा
दर्द के सहराओं में हम उम्र भर भटका एक
टूटता सा एक रिश्ता आंख से रिसता रहा
बारिशों में सिर बचाया भीगे इक अखबार से
जिंदगी भर कागजों से कागजी रिश्ता रहा
ग़ज़ल-2
खुशी की आरजू होगी ग़मों का सिलसिला होगा
खुद अपने आप से वो शख्स जाने कब मिला होगा
जला करते हैं लम्हें छोड़ता है  साँस वो जब जब
वो कोई चोट खाया सिरफिरा सा दिल जला होगा
वो अक्सर मांगता है भीख अपनों से मोहब्बत की
उन्हीं अपनों से ग़म उसको विरासत में मिला होगा
तुम्हारे पांव के छाले.  रिसे हैं   रिसते जातें हैं
तू   तपती रूह पर मेरी बिना सम्हले चला होगा
ये धागे प्यार के मिलते नहीं बाजार में अब तो
बहुत से टूटते रिश्तों को वो कैसे जिया होगा
ग़ज़ल-3
रंजिशें इतनी बढ़ी हम घर से बेघर हो गए
फूल जैसे हाथ में खंजर ही खंजर हो गए
यह सदा किसकी है जो टकरा के लौटी है अभी
अब कलेजे माँओं के पत्थर ही पत्थर हो गए
बर्फ के कुछ बुत बनाकर रोकर बच्चों ने कहा
तुम ही रहोगे अब यहां हम घर से बेघर हो गए
आस्तीने कम पडी जब सांप रखने के लिए
आदमी के जिस्म में सांपों के अब घर हो गए
कौन से रंगरेज ने लालिमा दी बर्फ को
पेड़ पौधों की जगह लाशों के बिस्तर हो गए
खेल खेला गोलियों से बच्चों ने कश्मीर के
इस  धरा पर दुष्ट सारे अब सिंकदर हो गए
ग़ज़ल-4
अमानत में ख्यानत हो रही है
उन्हें हमसे मोहब्बत हो रही है
यहां हर चीज अब बिकने लगी है
सियासत में तिजारत हो रही है
सजा कर दिल में कितने  खंजरो को
खुद अपने से अदावत  रही है
बहुत नादान ये मेरा चमन है
हवाओं से बगावत हो रही है
लगा कर के गले अब झूठ को ही
सच की ही  खिलाफ़त हो रही है

अनिला सिंह चाढ़क
ग़ज़लकार
Jammu kashmir
संपर्क – [email protected]
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2 टिप्पणी

  1. अच्छी ग़ज़लें हैं अनिला जी आपकी! कुछ शेर जो अच्छे लगे-

    ग़ज़ल-1

    मिल न पाया वो जिसे हम उम्र भर ढूँढ़ा किए
    एक चेहरे पर हमेशा दूसरा चेहरा रहा

    -लोगों के एक चेहरे पर अनेक चेहरे रहते हैं।

    ग़ज़ल-2
    खुशी की आरजू होगी ग़मों का सिलसिला होगा
    खुद अपने आप से वो शख्स जाने कब मिला होगा

    -अपने आप से मिलना ही सबसे अधिक मुश्किल होता है।

    वो अक्सर मांगता है भीख अपनों से मोहब्बत की
    उन्हीं अपनों से ग़म उसको विरासत में मिला होगा

    -यह बेहद मार्मिक हैं।

    तुम्हारे पांव के छाले. रिसे हैं रिसते जातें हैं
    तू तपती रूह पर मेरी बिना सम्हले चला होगा

    -ओह!

    ये धागे प्यार के मिलते नहीं बाजार में अब तो
    बहुत से टूटते रिश्तों को वो कैसे जिया होगा

    -यह वाकई बहुत मुश्किल काम है।

    ग़ज़ल-3

    रंजिशें इतनी बढ़ी हम घर से बेघर हो गए
    फूल जैसे हाथ में खंजर ही खंजर हो गए

    -इससे दुखद को और कुछ नहीं।

    यह सदा किसकी है जो टकरा के लौटी है अभी
    अब कलेजे माँओं के पत्थर ही पत्थर हो गए

    -इससे पीड़ा दायक और क्या?

    बर्फ के कुछ बुत बनाकर रोकर बच्चों ने कहा
    तुम ही रहोगे अब यहां हम घर से बेघर हो गए

    -यह बहुत मार्मिक है।

    आस्तीने कम पडी जब सांप रखने के लिए
    आदमी के जिस्म में सांपों के अब घर हो गए
    -यह कड़वा सच है।

    कौन से रंगरेज ने लालिमा दी बर्फ को
    पेड़ पौधों की जगह लाशों के बिस्तर हो गए

    -यह कर्म और सोच का सबसे गंदा अंधापन है।

    खेल खेला गोलियों से बच्चों ने कश्मीर के
    इस धरा पर दुष्ट सारे अब सिंकदर हो गए

    -यह नियति दुख भरी है।

    ग़ज़ल-4

    बहुत नादान ये मेरा चमन है
    हवाओं से बगावत हो रही है

    लगा कर के गले अब झूठ को ही
    सच की ही खिलाफ़त हो रही है
    -आज का सत्य यही है।
    अच्छी गजलों के लिए आपको बधाइयाँ अनिला जी।

  2. बहुत खूब, अनिला जी

    जज्बातों के सफर में दूसरों को साथ ले यूं ही चलते रहिए!

    बिमल सहगल

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