Sunday, September 8, 2024
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अजय कुमार मोंगा की कविता – कितना सरल प्रश्न है!

कितना सरल प्रश्न है
पुस्तक मेले में नहीं हैं?
उत्तर कितना उदास
‘नहीं’।
पुस्तक का नाम ‘ईमानदार बनो!’
और रिश्वत देकर बिकती है
देने वाले भी बाग़-बाग़
लेने वाले भी परम प्रसन्न
अधिकारी ने ही सिखलाया
प्रकाशक झटपट मान गया
तुमने अपने पल्ले से नहीं देना
बस, पर-पेज का रेट बढ़ाना है
अरे कौन पढ़ता है किताब कोई
चाहे प्रूफ़ भी ना पढ़वाना
पुस्तक का मूल्य देखकर ही
पाठक कलप कर रह जाता
जो लिख दिया गया
वो छप जाए
पड़ी रहे चाहे परछत्ती में
कोशिश नहीं कि पढ़ी जाए
जो बिन रिश्वत के बड़ा बना हो
ऐसा कोई नहीं दिखा
पूँजी के बाज़ार में
बुकसेलर तक नहीं बचा
धन्धा बचा, धन्धेबाज बचे
शब्द दब गए, इश्तहार बचे
बहुत उदास करता है प्रश्न
…मेले में हैं?
बहुत निर्लज्ज उत्तर है…
‘नहीं’।

अजय कुमार मोंगा
मोबाइल – 09891022477
ईमेल –  [email protected]
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4 टिप्पणी

  1. अजय कुमार की यथार्थपरक कविता।
    जो बिन रिश्वत बड़ा बना हो,
    ऐसा कोई नहीं मिला!

    वाह!

  2. आदरणीय अजय जी!कविता को पढ़कर एक पल के लिए हम खामोश हो गए। हमें समझ में ही नहीं आया कि इस कविता के बारे में क्या लिखा जाए।
    पहले टीवी फिर मोबाइल ने पुस्तकों से सभी को दूर कर दिया है। हम लोगों के समय तो पुस्तकें ही सब कुछ थीं। मनोरंजन का साधन, सीखने का जरिया, और सबसे अच्छा मित्र। समय बिताने का सबसे बड़ा साधन। किताबों का ऐसा नशा था कि की बार बिना उबासी के रात बीत जाती थी अगर कोई अच्छी किताब या कहानी आपके हाथ में हो तो। लेकिन यह सही है कि बिना ईश्वर की किताबें छपती नहीं और जो छप जाती हैं। उन्हें पढ़ने वाला कोई नहीं है।
    आपकी कविता को पढ़कर सच में बहुत अधिक दुख हुआ लेकिन इस विषय में कुछ भी किया जाना संभव नजर नहीं आता।
    आपकी पीड़ा महसूस हुई। एक ही रचना आपने दी है लेकिन वह कम प्रभावशाली नहीं।
    शुक्रिया आपका और प्रस्तुति के लिए तेजेन्द्र जी का भी शुक्रिया।
    पुरवाई का आभार।

  3. आप प्रकाशक हैं, सच्चाई जानते होंगे, लेकिन प्रकाशन में रिश्वत? आज के ज़माने में? आज तो प्रकाशक राह देखते हैं कि कोई तो आ जाए प्रिंट करवाने…
    एक search google पर करने से ही जाने कितने प्रकाशकों के messages आ जाते हैं…
    कम से कम कीमत पर प्रकाशक पुस्तक छापने को तैयार हैं, वो भी जानते हैं कि कुछ ही दिन हैं जब print media चल रहा है अन्यथा एक sunset industry है, कब बंद पड़ जाए कोई नहीं जानता। ऐसे में यह रचना समयानुकूल नहीं लगी, क्षमा कीजिएगा।

  4. एक कड़वा सच है। कुछ खास चुनिंदा लोग उन्ही के बीच का सच। बहुत बहुत साधुवाद अजय जी

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