Friday, October 18, 2024
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डा. वीणा विज ‘उदित‘ की कविता – रूहानी बारिश

आंखें सूखे तालाब की
तलहटी सी खुश्क
जल का कतरा कहीं नहीं।
प्यास आंगन के
छींके पर टंगी है
छींके की नजरें
बाहर लगी हैं
गैर इलाके का कोई
मुसाफिर आ गया तो?
घड़े के नीचे की मिट्टी
आस की बूंदें समेटे है
दर्द से कराह रही
ढूंढती इश्के की
रूहानी बारिश!
सोहनी का मटका
दरिया पी गया
दरिया की प्यास बढ़ गई
माशूक को लील लिया
पानी लाल हो गया।
दीवानगी पानी हो गई
पानी पी पी
मुटियारों ने रोग पाल लिया
घर-घर इश्क हो गया
झाड़- फूंक कौन करे?
पानी जवानी जी रहा
इश्क की एक बूंद
कतरे- कतरे में फैली
जमाना इश्क हो गया!
जिस्म की कढ़ाई में
इश्क का पानी खौल रहा
सुध बिसर गई
कैसे दिल हाड़- मांस में कैद रहे?
पल्लू ही फटके उड़ गया
साथ ले गया पीर!!
डा. वीणा विज ‘उदित
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