होमकविताहरिहर झा की कविता - मीत है बाजार की कविता हरिहर झा की कविता – मीत है बाजार की By हरिहर झा September 28, 2024 0 298 Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp हिंदी भाषा वैज्ञानिक है, ऊँचा सिर अपना रखवाती पर स्टेटस-सिंबल इंग्लिश के आगे जाहिल कहलाती कविता, लेख कहानी अच्छी, ग्राहक को ही पटा न पाती हिंदी दिवस मनाने, डस्टर ले कर धूल उड़ाई जाती सृजनात्मक साहित्य बड़ा है, प्रयोजनमूलक नहीं पाती अर्थशास्त्र, विज्ञान में देखा, ढूंढा, मिले दिया ना बाती मीत है बाजार की, हिंदी, व्यापार बड़ा ले कर आती विदेश में फहराए झंडा, घर में कच्ची गोली खाती इकसठ करोड़ घर में बोलें, फिर भी क्यों जिबान हकलाती माँ की लोरी, कद्र ना मिले, दासी बन बेचारी गाती हरिहर झा संपर्क – [email protected] Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp पिछला लेखसंजय अनंत की दो कविताएँअगला लेखबिमल सहगल की कविता – खंडित मूर्तियाँ हरिहर झासम्पर्क - [email protected] RELATED ARTICLES कविता नरेंद्र कौर छाबड़ा की कविता – लड़की October 5, 2024 कविता नेहा वर्तिका की कविता – है थका हुआ शहर मेरा September 28, 2024 कविता बिमल सहगल की कविता – खंडित मूर्तियाँ September 28, 2024 कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें टिप्पणी: कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! नाम:* कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें ईमेल:* आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें वेबसाइट: Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed. Most Popular कविताएँ बोधमिता की November 26, 2018 कहानीः ‘तीर-ए-नीमकश’ – (प्रितपाल कौर) August 5, 2018 ‘हयवदन’ : अस्मिता की खोज May 2, 2021 अपनी बात…… April 6, 2018 और अधिक लोड करें Latest संपादकीय – टाटा का मतलब बाय-बाय नहीं होता October 12, 2024 कैलाश की अविस्मरणीय आध्यात्मिक यात्रा – शांभवी शंभु October 6, 2024 राकेश कुमार दुबे का लेख – समाज के मनोविज्ञान से संवाद : जैनेन्द्र का परख October 5, 2024 प्रो. सरोज कुमारी की कलम से – सांप : संघर्ष में लिपटी एक प्रेम कथा October 5, 2024 और अधिक लोड करें