नेहा वर्तिका जी की कविता ‘है थका हुआ शहर मेरा ‘ आज के मानव की अपनी परेशानियों का चित्रण है। ज्यादा सुख की चाह में ही उसका सुख चैन छिन गया है।हर जगह जल्दी से जल्दी विकसित हो जाने की भीड़ है। और उस भीड़ में शोर बहुत है। हर चीज उपलब्ध हो जाने के बावजूद मन अतृप्त बना रहता है। मन उजले पक्ष की अपेक्षा अंधेरे में रम जाना चाहता है। कवयित्री को इस कविता के लिए बधाई
नेहा वर्तिका जी की कविता ‘है थका हुआ शहर मेरा ‘ आज के मानव की अपनी परेशानियों का चित्रण है। ज्यादा सुख की चाह में ही उसका सुख चैन छिन गया है।हर जगह जल्दी से जल्दी विकसित हो जाने की भीड़ है। और उस भीड़ में शोर बहुत है। हर चीज उपलब्ध हो जाने के बावजूद मन अतृप्त बना रहता है। मन उजले पक्ष की अपेक्षा अंधेरे में रम जाना चाहता है। कवयित्री को इस कविता के लिए बधाई