Wednesday, October 16, 2024
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नेहा वर्तिका की कविता – है थका हुआ शहर मेरा

है थका हुआ शहर मेरा
सुकूँ भरी एक रात हो,
शोर के पहरों से छुप कर
ख़ामोशियों  से बात हो l
उजालों के लिबास से
कुछ देर तो मुहं मोड़ लूँ,
हो चांदनी से गुफ़्तगू
शब-ए चुनर मैं ओढ़ लूँ l
पानी ही पानी है, फिर भी
हर नदी में प्यास है,
दीदार-ए-चांद की उसे भी
हर रोज़ ही तो आस है l
महफ़िल-ए-शब सज ज़रा
और चांदनी का रक़्स हो,
इतरा रही हो हर नदी
उसमें चांद का जो अक्स हो l
कोई सिरफिरी ठंडी हवा
पत्तों को आके चूम ले,
नशे में जैसे चूर हो
ये शज़र कभी तो झूम ले l
कुछ ख्वाबों को दिन में ढूंढते
सब चैन मेरा खो गया,
शब से ज़रा मिली नज़र
मैं थक कर के फिर से सो गया l
उजालों के अपने ऐब हैं
कुछ देर से आना सहर,
चांद यूँ ही खिला रहे
ऐ रात तू ज़रा ठहर
ऐ रात तू ज़रा ठहर l
नेहा वर्तिका
कवयित्री लेखिका
स्विट्ज़रलैंड
संपर्क –
[email protected]
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1 टिप्पणी

  1. नेहा वर्तिका जी की कविता ‘है थका हुआ शहर मेरा ‘ आज के मानव की अपनी परेशानियों का चित्रण है। ज्यादा सुख की चाह में ही उसका सुख चैन छिन गया है।हर जगह जल्दी से जल्दी विकसित हो जाने की भीड़ है। और उस भीड़ में शोर बहुत है। हर चीज उपलब्ध हो जाने के बावजूद मन अतृप्त बना रहता है। मन उजले पक्ष की अपेक्षा अंधेरे में रम जाना चाहता है। कवयित्री को इस कविता के लिए बधाई

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