Friday, October 18, 2024
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रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सिस्टम

जो देश को
अपना समझते हैं
देश पर मरते हैं
माटी का हक
अदा करते हैं
जिम्मेदार नागरिक होने का
सबूत पेश करते नहीं थकते हैं
क्या कर सकते हैं?
व्यवस्था के
काले ज़हरीले नाग
उन्हीं को डँसते हैं

और जो
खुलेआम
नियम- कायदों की
बखिया उखाड़कर
मुँह फाड़कर
हँसते हैं
वे
इस ज़हर के फेर में
कब फँसते हैं

सीधा- सादा
ईमानदार आदमी
जिसमें
खूबी कहो या कमी
जिसका
घपले के बारे में
सोचकर ही
बैठ जाता है दिल
समय से पहले- पहल ही
सारे के सारे
चुका देता है बिल
अनुपात में
इस तरह का आदमी अब
कम है
है भी तो, अकेला है
बेदम है
सेवानिवृत्त सक्सैना जी के यहाँ
आज जाना हुआ मेरा
परेशान थे
पूछा- क्या हुआ?
बोले-
मेरे घर में
एक तो
वैसे ही है अँधेरा
बेटे की विदेश में धूम
पत्नी मरहूम
ऊपर से
मुझे भी बीमारियों ने घेरा
उस पर
आज सुबह से
माथा गया है घूम
कारण
बिजली का बिल
मैंने कहा- मतलब?
बोले-
बिजली बिल आना
मतलब- बिलबिलाना

एक बल्ब, पंखे पर
इतनी
भारी- भरकम वसूली
जी चाहता है
चढ़ जाएँ सूली

कई बार
शिकायत कर चुके
तो भी
दे रहे हैं झटके
नहीं रुके
हम विद्युत विभाग से पस्त हैं
पर हमारे पड़ोसी मस्त हैं
पास के पोल पर
दिन ढले ही
डालकरके कटिया
सिस्टम कितना घटिया!

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1 टिप्पणी

  1. आजकल सिस्टम के बारे में कुछ भी कहना अपराध की श्रेणी में आने लगा है रश्मि विभा जी!
    बिजली से हम लोग भी परेशान है। पहले तो 14- 1500 बिल आता था 2000 भी नहीं आया लेकिन अब 3 महीने से 5 -6 हजार से कम ही नहीं हो रहा और जाकर पूछो कि यह सब क्या हो रहा है तो कोई जवाब देनेवाला नहीं
    सिस्टम-बेरहम।
    अपराधी प्रवृत्ति वालों का ही समय है। वही सुखी जीवन जी सकते हैं। और जो सामान्य ईमानदार आदमी है वह तो शांत जीवन जीने का खाली स्वप्न भी देख ले तो दस बार सोचें।

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