Tuesday, September 17, 2024
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शन्नो अग्रवाल की कविता – तुलसीदासजी

फूल गुँथे जिसकी वेणी में
रखा उसको पशु की श्रेणी में।
कोख से जिसकी जनम लिया
वह दुइ दिन में मरि गयी महतारी
चुनिया दासी ने पाला उनको
वह भी हुइ गयी राम को प्यारी।
बड़े हुये तो ब्याह रचाया
प्रेम के मारे बुरा था हाल
घरवाली थी अति सुंदर
उसके पीछे पहुँचे ससुराल।
पर हाथ लगी निराशा उनके
एक हाथ से बजे न ताली
रत्नावली के कटु बचनों ने
उनके प्रेम की हवा निकाली।
हृदय में बात चुभी तीर-सी
बुद्धि शीघ्र उनकी तब जागी
छोड़-छाड़ घरबार सभी
तब तुलसीदास बने वैरागी।
प्रेम प्रताड़ित तुलसीदास
जब ना आये पत्नी को रास
खायी उसकी ऐसी झिड़की
खुली बंद अकल की खिड़की।
पत्नी के उन कटु बचनों से
हुई शिकार उनकी हर नारी
इसीलिये लिखा है शायद
नारी ताड़न की अधिकारी।  
प्रखर बुद्धि और राम समर्पित
गोस्वामी ने कलम उठाई
जग-जीवन और ऊँच-नीच पर
लिखीं सैकड़ों तब चौपाई।
नारी जाति से हुयी विरक्ति
बात न उसकी कोई भायी
ढोल, गंवार और पशु संग
वह उनकी चपेट में आयी।
फूल गुँथे जिसकी वेणी में
रखा उसको पशु की श्रेणी में।
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2 टिप्पणी

  1. तुलसीदास जी हमारे प्रिय कवि रहे हालांकि भक्ति काल के सभी कवि बेहद आदरणीय और श्रेष्ठ कवियों में हैं।
    तुलसीदास जी का फ़ोटो देखकर मन प्रसन्न हो गया पर कविता पढ़कर इतनी खुशी नहीं हुई जितनी की उम्मीद थी। वैसे तो रत्नावली को पूरा ,कम लोग ही जानते हैं; बस एक ही बात सब लोग जानते हैं।
    रत्नावली के कारण उन्होंने नहीं लिखा कि स्त्री ताड़ना की अधिकारी।
    रत्नावली मानस में कहीं से कहीं तक नहीं है।
    किसी भी रचना को लिखते समय संदर्भ बहुत मायने रखता है। जो भी कुछ संवाद होते हैं वह संवाद पात्र के अनुरूप होना आवश्यक होता है। यह बात तब अर्थ पूर्ण होती जब रामचरितमानस का कोई प्रबुद्ध पात्र बोलता।

    समुद्र जड़ बुद्धि है उसे आप किसी बुद्धिमत्ता पूर्ण बात की अपेक्षा कैसे कर सकते है। भगवान राम ने स्वयं कहा-
    ‘विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
    फिर समुद्र ने स्वयं को अपने मुंह से स्वयं को जड़ कहा।
    फिर जब राम बाण का संधान करते हैं तब समुद्र प्रकट होता है और समुद्र खुद यह कह रहा है “गगन समीर अनल जल धरनी, इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी।
    पांच तत्व -आकाश, वायु, अग्नि, जल और धरती पांचों का ही सहज में ही जड़ स्वभाव होता है जलते उड़ाते हो दबाते हुए कोई विवेक से विचार नहीं करते कि किसको बचाना है किसको नहीं।
    अगर वह बुद्धि से जड़ ना होता तो भगवान राम को तीन दिनों तक प्रतीक्षा न करनी पड़ती।
    फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रामचरितमानस अवधी में लिखी गई है। क्षेत्रीय बोलियों के अपने क्षेत्रीय अर्थ होते हैं।
    फिर जिन लोगों ने पूरी रामचरितमानस को गंभीरता से पढ़ा है वह इस बात को जानते हैं की रामचरितमानस में स्त्रियों के चार प्रकार बताए गए हैं।
    राम ने यह बात नहीं कहीं। इस बात को तवज्जो तब देना चाहिए था अगर यह राम ने कही होती। राम ने या किसी प्रबुद्ध व्यक्ति या ऋषि मुनियों ने कही होती। उन्होंने हमेशा स्त्रियों का सम्मान किया, वे एक पत्नीव्रत धारी थे।
    किसी चपरासी से पढ़े लिखे ऑफिसर जैसी सभ्य और समझदारी पूर्ण भाषा या बात की अपेक्षा नहीं जा सकती कुछ इस तरह।

    तुलसीदास जी जैसा समन्वयकारी कोई नहीं हुआ जिन्होंने अपने समय के धर्मगत भेद को दूर करने का महत् कार्य किया।
    शुक्रिया आपका शन्नो जी !आपकी कविता के माध्यम से आज तुलसीदास जी का स्मरण कर पाए! तुलसीदास जी का स्मरण यानी राम का स्मरण!
    तेजेन्द्र जी का शुक्रिया! और पुरवाई का आभार!!

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