Friday, October 18, 2024
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सुमन शर्मा की कविता – दो अक्टूबर

हर गली चौराहों पर फैली,
यह कैसी लाचारी है,
गाँधी तेरे देश की बेटी,
बन गई अब बेचारी है?
मसली जातीं कोमल कलियाँ,
उजड़ रही फुलवारी है,
दानवता के खेल के आगे,
बापू,लाठी तेरी हारी है।
सत्य,अहिंसा के पुजारी
मानवता के उपदेश तेरे,
अब लगते सबको भारी हैं।
माँ-बहनों,दलित-पीड़ितों,
पर होते रहते अत्याचार,
निडर बनकर विचरते रहते
अब सारे व्यभिचारी हैं।
मौन हो गयी सभी ज़ुबानें,
अब न दिल दहलते हैं,
करूण आर्तनाद विचलित नहीं करते,
अपने ही दिल के कटघरों में,
खोल आँखें मूक खड़े हम,
यह कैसी आज़ादी है?
बापू,तुम अब न दिलों में,
रह गये जयन्तियों,
शताब्दियों,मूर्तियों में,
हे स्वतंत्रता के पुजारी,
हमारी ये कैसी खुमारी है?
बिन तेरे इस देश में अब,
पीड़ित निर्भयाओं की जंग,
न जाने कब तक जारी है?
न जाने कब तक जारी है
क्यों नहीं जलती दिलों में ,
अब कोई चिंगारी है?
बापू तेरे देश में बनी,
कैसी यह लाचारी है?
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