Saturday, September 21, 2024
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कविता – जय हिन्दी, जय भारती

सरल, सरस भावों की धारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
शब्द शब्द में अपनापन है,
वाक्य भरे हैं प्यार से,
सबको ही मोहित कर लेती
हिन्दी निज व्यवहार से,
सदा बढ़ाती भाई-चारा,
जय हिंदी, जय भारती ।
नैतिक मूल्य सिखाती रहती,
दीप जलाती ज्ञान के,
जन -गण -मन में द्वार खोलती
नूतनतम विज्ञान के,
नव-प्रकाश का नूतन तारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
देवनागरी, भर देती है
संस्कृति की नव-गंध से,
इन्द्रधनुष से रंग बिखराती
नव-रस, नव-अनुबंध से,
विश्व-ग्राम बनता जग सारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
त्रिलोक सिंह ठकुरेला समकालीन छंद-आधारित कविता के चर्चित नाम हैं. चार पुस्तकें प्रकाशित. आधा दर्जन पुस्तकों का संपादन. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - [email protected]
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1 टिप्पणी

  1. हिंदी पर आपकी कविता अच्छी है आदरणीय त्रिलोक जी! जितना भी कहा जाए हिन्दी के लिए उतना ही कम है।

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